आदरणीय मास्टर जी,
मैं भोला हूँ, आपका पुराना छात्र. शायद आपको मेरा नाम भी याद ना हो, कोई बात नहीं, हम जैसों को कोई क्या याद रखेगा. मुझे आज आपसे कुछ कहना है सो ये चिट्ठी डाक बाबु से लिखवा रहा हूँ.
मास्टर जी मैं 6 साल का था जब मेरे पिताजी ने आपके स्कू
ल में मेरा दाखिला कराया था. उनका कहना था कि सरकारी स्कूल जाऊँगा तो पढना-लिखना सीख जाऊँगा और बड़ा होकर मुझे उनकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी, दो वक़्त की रोटी के लिए तपते शरीर में भी दिन-रात काम नहीं करना पड़ेगा… अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा तो इतना कमा पाऊंगा कि मेरे बच्चे कभी भूखे पेट नहीं सोयेंगे!
पिताजी ने कुछ ज्यादा तो नहीं सोचा था मास्टर जी…कोई गाडी-बंगले का सपना तो नहीं देखा था वो तो बस इतना चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिख कर बस इतना कमा ले कि अपना और अपने परिवार का पेट भर सके और उसे उस दरिद्रता का सामना ना करना पड़े जो उन्होंने आजीवन देखी…!
पर पता है मास्टर जी मैंने उनका सपना तोड़ दिया, आज मैं भी उनकी तरह मजदूरी करता हूँ, मेरे भी बच्चे कई-कई दिन बिना खाए सो जाते हैं… मैं भी गरीब हूँ….अपने पिता से भी ज्यादा !
शायद आप सोच रहे हों कि मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूँ ?
क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूँ उसके लिए आप जिम्मेदार हैं !
मैं स्कूल आता था, वहां आना मुझे अच्छा लगता था, सोचता था खूब मन लगा कर पढूंगा,क्योंकि कहीं न कहीं ये बात मेरे मन में बैठ गयी थी कि पढ़ लिख लिया तो जीवन संवर जाएगा…इसलिए मैं पढना चाहता था…लेकिन जब मैं स्कूल जाता तो वहां पढाई ही नहीं होती.
आप और अन्य अध्यापक कई-कई दिन तो आते ही नहीं…आते भी तो बस अपनी हाजिरी लगा कर गायब हो जाते…या यूँही बैठ कर समय बिताते…..कभी-कभी हम हिम्मत करके पूछ ही लेते कि क्या हुआ मास्टर जी आप इतने दिन से क्यों नहीं आये तो आप कहते कुछ ज़रूरी काम था!!!
आज मैं आपसे पूछता हूँ, क्या आपका वो काम हम गरीब बच्चों की शिक्षा से भी ज़रूरी था?
आपने हमे क्यों नहीं पढाया मास्टर जी…क्यों आपसे पढने वाला मजदूर का बेटा एक मजदूर ही रह गया?
क्यों आप पढ़े-लिखे लोगों ने मुझ अनपढ़ को अनपढ़ ही बनाए रखा ?
क्या आज आप मुझे वो शिक्षा दे सकते हैं जिसका मैं अधिकारी था?
क्या आज आप मेरा वो बचपन…वो समय लौटा सकते हैं ?
नहीं लौटा सकते न ! तो छीना क्यों ?
कहीं सुना था कि गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता तो बस जन्म देते हैं पर गुरु तो जीना सिखाता है!
आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है, बच्चों को जीना सिखाइए…उनके पास आपके अलावा और कोई उम्मीद नहीं है …उस उम्मीद को मत तोड़िये…आपके हाथ में सैकड़ों बच्चों का भविष्य है उसे अन्धकार में मत डूबोइए…पढ़ाइये…रोज पढ़ाइये… बस इतना ही कहना चाहता हूँ!
क्षमा कीजियेगा !
भोला
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भोले का chithi
Ravinder verma says
Very Nice….Story…..
AchhiBaatein.Com says
ये सब ही वास्तविकता हैं
बहुत ही अच्छी कहानी शेयर करी हैं गोपाल जी आपको धन्यवाद
Amul Sharma says
दिल को छू लेने वाली कहानी! सच है कि आजकल लगभग सभी सरकारी स्कूल में ऐसा ही होता है। हमें बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा।
SK jHA says
bhout hi sunder story dali hi aapne akser school meaesa hi hota h
Anil Sahu says
Nice one.
kailas waje says
Real heart touching story.sabhi sarkari school me achi kshisha milegi to behtar stiti ho jayegi. Sabhi teachers ko naitikta ke sath padhana chahiye .
pawan says
Very good ….
shivendra says
वाकई सही बात लिखी है आपने….।।।
Neeraj says
Heart touching sooo today Reality
Bal Govind Chaturvedi says
सच में हम लोग अपने उत्तरदायित्वों को भूलते जा रहे हैं जो जितना पढ़ा लिखा है वह उतना ही शोषण के तरीकों को अपनाकर सिर्फ अपने परिवार के लिए जीने लगा है। ठीक है परिवार महत्वपूर्ण होता है पर हमारी समाज के लिए भी तो कुछ जिम्मेदारियाँ हैं आप जितना समाज और राष्ट्र से लिये हैं उसका कुछ भाग तो वापस करिये।