Guru Purnima Essay in Hindi
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गुरु पूर्णिमा पर निबंध
ऊँ गुरूवे नमः
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर, विश्व के समस्त गुरुजनों को मेरा शत् शत् नमन। गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उच्च स्थान दिया है।संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
हर साल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। हिन्दू, बौद्ध व जैन धर्म के लोग अपने-अपने तरीकों से इस दिन अपने गुरु के सम्मान में व्रत, पूजन इत्यादि द्वारा यह पर्व मनाते हैं।
- पढ़ें: गुरु पूर्णिमा : गुरु के प्रति असीम श्रद्धा व समर्पण का पर्व ( Guru Purnima Speech in Hindi )
क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?
3000 ई० पूर्व आज ही के दिन जन्में वेदों, उपनिषदों व पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी को समस्त मानव जाति के गुरु माना जाता है और उनके जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ये भी माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान् गौतम बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। इसके अलावा, योग परंपरा के अनुसार आज ही के दिन भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया था और प्रथम गुरु बने थे।
हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है। जीवन का विकास सुचारू रूप से सतत् चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है। भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है।
मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। महर्षि वाल्मिकी जिनका पूर्व नाम ‘रत्नाकर’ था। वे अपने परिवार का पालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे। महर्षि वाल्मिकी जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया। मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने पढी या सुनी होगी। नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ती के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया।
गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है। गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है।
स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी। उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी जब उनको गुरू परमहंस का आर्शिवाद मिला। गुरू की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका।
छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरू समर्थ गुरू रामदास का प्रभाव हमेशा रहा।
गुरू द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है। मित्रों, कबीर दास जी का अपने गुरू के प्रति जो समर्पण था उसको स्पष्ट करना आवश्यक है क्योंकि गुरू के महत्व को सबसे ज्यादा कबीर दास जी के दोहों में देखा जा सकता है।
एक बार रामानंद जी गंगा स्नान को जा रहे थे, सीढी उतरते समय उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पङ गया। रामानंद जी के मुख से ‘राम-राम’ शब्द निकल पङा। उसी शब्द को कबीर दास जी ने दिक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपने गुरू के रूप में स्वीकार कर लिया। कबीर दास जी के शब्दों में— ‘हम कासी में प्रकट हुए, रामानंद चेताए’। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जीवन में गुरू के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मियता से किया है।
गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है। हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तभ गुरू हैं। कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया।
आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है।
गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नज़रिया गुरू की कृपा से मिलता है। पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता। संत कबीर भी कहते हैं कि –
सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।
गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है। गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो। अंत में कबीर दास जी के निम्न दोहे से अपनी कलम को विराम देते हैं।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
अनिता शर्मा
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I am grateful to Anita Ji for sharing this article on Guru Purnima with AKC. Thanks.
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THnk u..ankitaji…..aapki ye spech se mene aapni clg me presantatiom diya he…..it’ s a sach good speech….
Thanks anita ji…. appke ye artical ke vagase me college me presantation karuga. thank you very much anita jii……
Maya NA jeshri Krishna
Mara guru shree 108 goshvami mhaprbhuji ne Mara dadvat prnam
Maya NA jeshri Krishna
Aaadrniya Anita Sharma Ji, Aapke dwara kiya gaya varnan ati uttam hai. Aap hee mere liye GYAN PARKASH hain.
1. हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है।
2. मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है।
3. गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है।
4. गुरू द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है।
5. गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव, बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
6. गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है।
7. गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं।
8. गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है।
9. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
Prerna Dayak avm Gyan Vardhak…………..
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