एक साधक ने श्री रामकृष्णदेव से पूछा कि : “महाशय, मै इतना प्रभुनाम लेता हूँ, धर्म चर्चा करता हूँ, चिंतन-मनन करता हूँ, फिर भी समय-समय पर मेरे मन में कुभाव क्यों उठते है?”
श्री रामकृष्णदेव साधक को समझाते हुए बोले : “एक आदमी ने एक कुत्ता पाला था। वह रात-दिन
उसी को लेकर मग्न रहता, कभी उसे गोद में लेता तो कभी उसके मुँह में मुँह लगाकर बैठा रहेता था।
उसके इस मूर्खतापूर्ण आचरण को देख एक दिन किसी जानकार व्यक्ति ने उसे यह समझाकर सावधान किया कि ‘कुत्ते का इतना लाड-दुलार नहीं करना चाहिए, आखिर जानवर की ही जात ठहरी, न जाने किस दिन लाड करते समय काट खाए।’
इस बात ने उस आदमी के मन में घर कर लिया। उसने उसी समय कुत्ते को गोद में से फेंक दिया और मन में प्रतिज्ञा कर ली कि अब कभी कुत्ते को गोद में नहीं लेगा । पर भला कुत्ता यह कैसे समझे ! वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद पर चढ़ने लगता। आखिर मालिक को कुछ दिनोंतक उसे पीट-पीट कर भगाना पड़ा तब कंही उसकी यह आदत छूटी।
तुम लोग भी वास्तव मे ऐसे ही हो । जिस कुत्ते को तुम इतने दीर्घ – काल तक छाती से लगाते आये हो उससे अब अगर तुम छुटकारा पाना भी चाहो तो वह भला तुन्हें इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकता है ?
अब से तुम उसका लाड करना छोड़ दो और अगर वह तुम्हारी गोद में चढाने आए तो उसकी अच्छी तरह से मरम्मत करो। ऐसा करने से कुछ ही दिनों के अन्दर तुम उससे पूरी तरह छुटकारा पा जाओगे।”
-दिलीप पारेख
सूरत, गुजरात
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I am grateful to Dilip Ji for sharing this Prerak Prasang with AKC.
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जिज्ञासा से कई वाचक मित्रो ने पूछा कि ‘प्रसंग उन्हें समज में नहीं आया.’
जब हमें समज में न आये तो हमें पूछ लेना चाहिए. ऐसा करने से हमारे विचार स्पष्ट हो जाते है.
इस प्रसंग में मन की बात बताई गयी है. प्रश्नकर्ता साधक पूछता है कि “मै इतना प्रभुनाम लेता हूँ, धर्म चर्चा करता हूँ, चिंतन-मनन करता हूँ, फिर भी समय-समय पर मेरे मन में कुभाव क्यों उठते है? मन में बुरे विचार क्यों आते है ?
अब यहाँ कुत्ते के स्थान पर हमारा मन है. ऐसा समजकर पढ़नेसे प्रसंग समज में आ जायेगा.
जैसे कि उपाय बताया गया – जब कुत्ता पास आये तो उसे मारना और भगा देना; उसको प्यार-दुलार नहीं करना, ना गोद में बिठाना. ऐसा थोड़े समय करनेसे कुत्ता फिर जैसे पास नहीं आता, वैसे अपनी पुरानी मनकी आदतों से छुटकारा पाने के लिए हमें उससे दूर करने का निश्चय करना है तथा उसके विरोध में रहेना है. साथ साथ में अच्छा संग, अच्छा पढ़ना-लिखना करते रहेना है. तब हम जरुर मन को सुधारने में कामयाब रहेंगे.
जिज्ञासा करनेवाले मित्रो का आभार मानता हूँ तथा धन्यवाद देता हूँ.
Bahut achche dhang se expalin kiya hai aapne. Thanks.
ekdam sahi baat
hum apne ko badal nahi paate or chahte hai, sab achcha hi achcha ho
tks this is very true sirji,we have to change this is only way updation is the only solution
thanks again for the logo akc
kahaani thoda samajh me nahi aayi.will u plz ellaborate it
great story thanks
बहूत ही गहरी और सच्ची बात है
मेरे साथ और मैं मानता हूँ बहुतो के साथ यही समस्या है
Thank you, Sir
good story
sahi hai sir uski ache se marammat karna chahiye.
is artical ko mai samajh nahi payi mai samajhna chahti hun pls reply
iska matlab ha ki jab dimak me ya man me kisi tarah ka galat khyal aye to ude bhula dena chhiye ya us par dhyan nahi dena chahiye
okkkkkkkkkkk
सच है..