उन्नीसवीं शताब्दी में विदेशी शासन की दासता से दुखी और शोषित हो रही भारतीय जनता को जिन महापुरुषों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संर्घष के लिए प्रोत्साहित किया उनमें, स्वामी विवेकानंद जी प्रमुख थे। अपनी ओजस्वी वांणी से उन्होने जन-मानस के मन में स्वतंत्रता का शंखनाद किया। अपनी मातृभूमि के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। भारत माता की गुलामी और उसके तिरस्कार को देखकर स्वामी जी का मन व्याकुल हो जाता था। उनके मन में राष्ट्रप्रेम कूट-कूट कर भरा था। मद्रास के अनेक युवा शिष्यों को उन्होने लिखा था कि, “भारत माता हजारों युवकों की बली चाहती है। याद रखो, मनुष्य चाहिए पशु नही।“
देश को सम्पन्न बनाने के लिए पैसे से ज्यादा हौसले की, ईमानदारी की और प्रोत्साहन की जरूरत होती है। स्वामी जी के अमृत वचन आज भी देशवासियों को प्रोत्साहित करते हैं। उनमें चिंतन और सेवा का संगम था। विवेकानंद जी ने भारतीय चिंतन से विदेशों में भारत का सम्मान बढाया। भारत माता के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा थी। जब वे 1896 में विदेश से भारत लौटे तो, जैसे ही जहाज किनारे लगा दौङकर भारत भूमि को साष्टांग प्रणाम किया और रेत में इस प्रकार लोटने लगे कि जैसे वर्षों बाद कोई बच्चा अपनी माता की गोद में पहुँचा हो।
आज हमारा देश स्वतंत्र होने के बावजूद अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है। बेकारी, गरीबी, शिक्षा, प्रदुषण एवं अन्न-जल तथा मँहगाई की समस्या से देश की जनता प्रभावित है। ऐसी विपरीत परिस्थिती में भी स्वामी विवेकानंद जी को विश्वास था कि, हमारा देश उठेगा, ऊपर उठेगा और इसी जनता के बीच में से ऊपर उठेगा। स्वामी जी प्रबल राष्ट्रभक्त थे। वे देश की स्वाधीनता के कट्टर समर्थक थे। उन्हे कायरता से नफरत थी, उनका कहना था कायरता छोङो निद्रा त्यागो। स्वाधीनता शक्ति द्वारा प्राप्त करो। वे राष्ट्र उत्थान के प्रबल समर्थक थे। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था भारत का विकास। स्वामी जी कहते थे कि, ये जननी जन्मभूमि भारत माता ही हमारी मातृभूमि है। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। स्वामी जी के संदेश युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं, उन्होने युवाओं को संदेश दिया कि,
“हे भाग्यशाली युवा, अपने महान कर्तव्य को पहचानो। इस अद्भुत सौभाग्य को महसूस करो। इस रोमांच को स्वीकार करो। ईश्वर तुम्हे कृपादृष्टि के साथ देखता है और वह तुम्हारी सहायता और मार्गदर्शन के लिए सदैव तत्पर है। मैं तुम्हारे महान बनने की कामना करता हूँ। विश्व ने अपना विश्वास तुम्हारे ऊपर जताया है। तुम्हारे बङे तुमसे उम्मीद रखते हैं। तो युवा का अर्थ है स्वंय में दृण विश्वास रखना, अपने आशावादी निश्चय तथा संकल्प का अभ्यास करना और स्वसंस्कृति के इस सुंदर कार्य में अच्छे इरादों की इच्छा रखना। यह न केवल तुम्हे बल्कि तुमसे जुङे सभी लोगों को संतुष्टि और पूर्णता देगा। वास्तव में अपने जीवन को आकार देना तुम्हारे हाथ में है। सद्गुण का अभ्यास करो, सद्गुणों के प्रति दृण रहो। सद्गुणों में खुद को स्थापित करो। सद्गुणों की प्रभावशाली आभा बनो और अच्छाई का अनुसरण करो। युवा इस भव्य प्रक्रिया के लिए बना है।
युवा जीवन इन प्रक्रियाओं का सक्रिय विकास और सम्पादन है। तुम्हारा यह समय जीवन की इस अति महत्वपूर्ण और अतिआवश्यक प्रक्रिया के लिए उपयुक्त और अनुकूल कार्यक्षेत्र मुहैया करवाता है। यह युवा जीवन का विशिष्ट, अतिमहत्वपूर्ण और उच्चतम मूल्य है। यह महान व्यक्तित्व की रचना का अभिप्राय बतलाता है। यह आत्म-विकास एवं आत्म-निर्माण है। “सफल जीवन” शब्द का सही आशय जानने का प्रयास करो। जब तुम जीवन के संदर्भ में सफल होने की बात करते हो तो इसका मतलब मात्र उन कार्यों में सफल होना नही जिसे तुमने पूरा करने का बीङा उठाया था या उठाया है। इसका अर्थ सभी आवश्यकताओं या इच्छाओं की पूर्ति कर लेना भर नही है। इसका तात्पर्य सिर्फ नाम कमाना या पद प्राप्त करना या आधुनिक दिखने के लिए फैशनेबल तरिकों की नकल करना या अप-टू-डेट होना नही है।
सच्ची सफलता का सार ये है कि, तुम स्वंय को कैसा बनाते हो। यह जीवन का आचरण है, जिसे तुम विकसित करते हो। यह चरित्र है, जिसका तुम पोषण करते हो और जिस तरह का व्यक्ति तुम बनते हो। यह सफल जीवन का मूल अर्थ है। इसलिए तुम पाओगे कि महत्वपूर्ण मसला सिर्फ जिंदगी में सफलता से जुङा हुआ नही है, बल्कि जीवन की सफलता से संबन्धित है। ऐसा सफल जीवन वह है, जो एक आर्दश महान व्यक्ति बनाने में कामयाब रहे। तुम्हारी सफलता का आकलन इससे नही है कि तुमने क्या पाया, बल्कि इससे है कि तुम क्या बने, कैसे जिए और तुमने क्या किया।“
स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होने अपने युवाकाल में ही भारत के गौरव को पूरे विश्व में गौरवान्वित किया। स्वामी विवेकानंद जी ने हीनता से ग्रस्त भारत देश को ये अनुभव कराया कि इस देश की संस्कृति अब भी अपनी श्रेष्ठता में अद्वितीय है। स्वामी जी ने देशवासियों के अंर्तमन में जीवन प्रांण फूंका उन्होने कहा-
“हे अमृत के अधिकारीगण! तुम तो ईश्वर की संतान हो, अमर आनंद के भागीदारी हो, पवित्र और पूर्ण आत्मा हो तुम इस मर्त्यभूमि पर देवता हो। उठो! आओ! ऐ सिंहो! इस मिथ्या भ्रम को झटककर दूर फेंक दो कि तुम भेंङ हो। तुम जरा-मरणरहित नित्यानंदमय आत्मा हो।“
स्वामी विवेकानंद अत्यन्त विद्वान पुरुष थे। एक बार अमेरीकी प्रोफेसर राइट ने कहा था कि, “हमारे यहाँ जितने भी विद्वान हैं, उन सबके ज्ञान को यदि एकत्र कर लिया जाए तो भी, स्वामी विवेकानंद के ज्ञान से कम होगा।“
स्वामी विवेकानंद भारत के महान सपूत, देशभक्त, समाज-सुधारक और तेजस्वी संन्यासी थे। स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं को जीवन में अपनाने का प्रयास करते हुए, उनको शत्-शत् नमन करना हमारी सांस्कृतिक गरिमा की पहचान है। अतः आज उनकी जयंती के इस शुभ अवसर पर हम पुनः उनका स्मरण एवं वंदन करें।
जय भारत
अनिता शर्मा
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प्रवीण पाण्डेय says
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