श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की पहली मुलाकात एक मित्र के घर हुई थी। वहीं से गुरु रामकृषण और शिष्य विवेकानंद में चुम्बकीय आकर्षण का अध्याय शुरु हुआ था। जब कभी घर गृहस्ती के काम के कारण नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम) रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर नहीं जा पाते तो, रामकृष्ण व्याकुल हो जाते थे। एक बार बहुत दिनों तक नरेंद्र उनसे मिलने नही गये उसी दौरान किसी ने कहा कि, नरेन्द्र का चाल-चलन बिगड़ गया है, यह बात श्री रामकृष्ण को सही नहीं लगी और उन्होने अपने भक्तों से कहा कि जाकर के उसका हालचाल लेकर आओ, क्यों नहीं आ रहा है?
कुछ भक्त नरेन्द्र के घर गये और उनसे तरह-तरह के प्रश्न पूछने लगे, तो नरेंद्र को लगा कि यह लोग मुझ पर शक करते हैं और गुरु रामकृष्ण भी शक करते हैं इसिलिये उन्होंने इन लोगों को मेरे बारे में जानने के लिए भेजा है। ये सोचकर नरेन्द्र को गुस्सा आ गया। नरेन्द्र के इस व्यवहार से जो शिष्य आए थे उन्हे भी लगा कि नरेंद्रनाथ का चरित्र बिगड़ गया है और उन लोगों ने जाकर के रामकृष्ण जी से कहा कि, अब तो नरेंद्र का चरित्र भी बिगड़ गया है।
यह सुनकर रामकृष्ण बहुत नाराज़ हो गए और उन्होंने कहा; “चुप रहो मुझको मां ने बताया है वह कभी ऐसा नहीं हो सकता फिर कभी ऐसी बात कहोगे तो मैं तुम लोगों का मुंह तक न देखूंगा।“ नरेंद्र पर श्री रामकृष्ण का कितना दृढ़ विश्वास था यह समझ पाना कठिन है। वहीं नरेन्द्र पर भी रामकृष्ण का जादू इसतरह चढ चुका था कि, वह ज्यादा देर तक उनसे नाराज नही रह सकते थे और न ही उन पर अविश्वास कर सकते थे।
पिता की मृत्यु के बाद नरेन्द्र नाथ पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी लेकिन परिवार की स्थिति अच्छी नहीं हो पा रही थी, इसलिए नरेन्द्र नाथ ने सोचा कि श्री रामकृष्ण से जाकर की प्रार्थना करें। श्री रामकृष्ण कुछ ऐसा कर दें जिससे घर की स्थिति सही हो जाए। यह सोचकर, वह श्री रामकृष्ण के पास गए और बोले कि, “महाराज! मेरी मां और भाई बहनों को जीवन यापन पर्याप्त अन्न खाने को मिल सके इसके लिए आप अपनी मां काली माता जी से कुछ अनुरोध कर दीजिए।
श्री रामकृष्ण ने कहा-
अरे! मैं कभी मां से कुछ नहीं मांगता फिर भी तुम लोगों का भला हो इसके लिए एक बार अनुरोध किया था, पर तू तो मां को मानता नहीं है इसलिए मां तेरी बात पर कुछ ध्यान नहीं देती।
गुरु की लीला भी अद्भुत होती है। वे जानते थे कि नरेन्द्र मूर्ति पूजा पर विश्वास नही करते फिर भी उन्होने ने कहा कि तुम ही जाकर माँ से माँगो तो वो तुमको जरूर देगी। परिवार की जिम्मेदारियों के वशीभूत नरेन्द्र मंदिर में तीन बार गये किन्तु माँ से सांसारिक सुख के लिये कुछ न माँग सके क्योंकि मन में तो बचपन से सन्यास का बीज पनप रहा था, उनका मन वेदो की ओर उन्मुख था।
श्री रामकृष्ण ने नरेंद्र के आग्रह पर उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि, परिवार की चिन्ता मत कर माँ सब ठीक कर देंगी। श्री गुरु रामकृष्ण की कृपा से नरेन्द्र नाथ के परिवार का अभाव दूर हुआ। नरेन्द्र अटर्नी ऑफिस में पुस्तकों के अनुवादक के रूप में काम करने लगे और विद्यासागर महाशय के स्कूल में पढाने भी लगे। किन्तु बचपन से ही वैराग्य के प्रति लगाव बीच-बीच में हिलोरे लेने लगता।
एक दिन संसार त्यागने की कामना लिये नरेन्द्र अपने गुरु रामकृष्ण के पास गये। उनकी इच्छा सुनकर गुरु की पलकहीन आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, ये स्थिती देखकर नरेन्द्र की व्यथा भी अश्रुधारा के रूप में निकल पङी। रामकृष्ण उठे और सकरुण नेत्रों से नरेन्द्र की ओर देखते हुए बोलेः- बेटा, कामनी और कांचन का त्याग हुए कुछ न होगा। इस अद्भुत दृश्य को देख सभी भक्त अचंभित हो रहे थे। श्री रामकृष्ण ने नरेन्द्र को समझाया कि, जितने दिन का शरीर है, उन्हे उतने दिन इस संसार में रहना होगा और तुम्हारा जीवन किसी खास प्रयोजन के लिये हुआ है। अतः तुम अपना कार्य पूरा किये बिना इस संसार से विदा नही हो सकते। गुरु के संदेश ने नरेन्द्र के ह्रदय को आनंद और आशा की ज्योति से प्रकाशित कर दिया था। अब श्री रामकृष्ण उनकी दृष्टी में गुरु, पिता- सर्वस्व बन गये थे। उसी दिन से नरेन्द्र के जीवन में एक नवीन अध्याय का आरंभ हुआ।
प्रसिद्ध डॉ. बाबू महिला सरकार ने नरेंद्र की प्रशंसा करते हुए श्री रामकृष्ण से कहा था कि, ऐसा बुद्धिमान लड़का मैंने बहुत कम देखा इस उम्र में इतना ज्ञान और साथ ही इतनी नम्रता, यदि यह धर्म के लिए अग्रसर हो तो देश का कल्याण होगा। नरेन्द्र की प्रशंसा सुनकर श्री रामकृष्ण परंहस ने कहा कि, इसका जन्म ही देश कल्याण के लिये हुआ है।
1885 ई. के मध्य श्री रामकृष्ण को गले का केंसर हो गया। भक्तगणों ने उनको काशीपुर में एक बगीचे वाले किराये के मकान में ले गये। श्री रामकृष्ण की सेवा के लिये नरेन्द्र भी अपना अध्यापन कार्य तथा घर छोकर वहीं आ गये। गुरु एवं शिष्य का आपस में क्या अपूर्व सम्बन्ध था, यह तो श्री रामकृष्ण ही जानें। वे नरेन्द्र से किसी प्रकार की सेवा नही लेते थे। जिससे शुरु में उन्हे केवल देख-रेख के काम से ही संतुष्ट होना पङा था। एक दिन गुरुदेव के आदेश से सभी शिष्य भिक्षा माँगने निकल पङे, उसमें नरेन्द्र भी थे। उस दिन भिक्षा में जो भी मिला नरेन्द्र नाथ ने उसे पकाकर गुरु के समक्ष रखा। अपने गौरवबुद्धी युक्त युवा सन्यासी नरेन्द्र को देखकर श्री गुरु रामकृष्ण आनंद से विभोर हो गये।
श्री रामकृष्ण के गले के कैंसर ने धीरे-धीरे भयंकर रूप ले लिया था। उस समय उनकी सम्पूर्ण सेवा नरेन्द्र ही करते थे। श्री गुरु रामकृष्ण ने नरेन्द्र से कहा किः- तुम सब मेरे लङके हो, किन्तु तुम इन सबमें सबसे ज्यादा ज्ञानी हो, तो मैं तुमको इन सबकी जिम्मेदारी सौंप रहा हुँ, इनका ध्यान रखना तथा इन्हे सत् पथ पर ले जाना। अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखते हुए उन्होने कहा कि, मैं अपना सर्वस्व तुम्हे देकर जा रहा हूँ। ये सुनते ही नरेन्द्र छोटे बालक की तरह रोने लगे। आखिर 15 अगस्त 1886 को श्री रामकृष्ण तीन बार कालीनाम का उच्चारण करते हुए महासमाधी में लीन हो गये। उनकी अंतिम वाणी नरेन्द्र के ह्रदय में अंकित हो गई, स्वामी विवेकानंद जी के मन में अपने गुरु की जो छवि थी उसका वर्णन वे अक्सर किया करते थे।
“वेदरूपी अनादि-अनन्त सागर के मंथन में जिस अमृत की प्राप्ति हुई है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवताओं ने अपना-अपना ओझ ढाला है और जो लीला मानव अवतारों के जीवन-रसायन के मिश्रण से और भी अधिक सारवान् हो गया है, उसी अमृत के पूर्णकुम्भस्वरूप भगवान श्री रामकृष्ण जीवों के उद्धार के लिये लीला द्वारा धराधाम पर अवतीर्ण हुए हैं।“
श्री गुरु रामकृष्ण के आर्दश को स्वामी विवेकानंद जी ने समस्त संसार में प्रसारित किया। गुरु की आज्ञानुसार उन्होने अपने गुरुभाइंयों को भी आदर्श कर्मयोगी की तरह विश्वमानव कल्यांण के लिये प्रोत्साहित किया। स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर उनको शत् शत् नमन एवं वंदन करते हैँ।
जय भारत
———–वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब का एक वर्ष पूर्ण होने पर आभार, बधाई !———–
प्रिय पाठकों, हर्ष के साथ आप सबसे कहना चाहेंगे कि, स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए, 12 जनवरी 2015 के दिन हमनें वाइस फॉर ब्लाइंड कल्ब की स्थापना की थी। वाइस फॉर ब्लाइंड कल्ब की पहली सालगिरह पर उन सभी साथियों को बधाई जिन्होने दृष्टीबाधित लोगों के विकास में हमारे साथ चलने का निर्णय लिया है। आप सबके सहयोग से वाइस फॉर ब्लाइंड का मिशन जरूर पूरा होगा। हमारे दिव्यांग साथी भी आत्मनिर्भर बनकर समाज में सम्मान से जीवन यापन करेंगे।) {वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब का उद्देश्यः- शिक्षा के माध्यम से दृष्टिबाधित साथियों को आत्मनिर्भर बनाना।}
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धन्यवाद
अनिता शर्मा
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Aapke Diye Gaye Swami Vivekanand aur unke Guru Ramkrishna paramhans ke bare mein padhakar bahut prabhavit hua aur mere andar bhi Aisi Prerna ke utpati hui ki main bhi adhyatm ki taraf Chalun
Thanks for providing such input.
ab pure world me swami Vivekananda or sri ram Krishna paramhans ki gatha gunjti hai..nice statement
Good post.
श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद दोनों ही भारत के महापुरुष है इनके के बारे में बहुत अच्छा लिखा है आपने।
स्वामी विवेकानंद की जयंती पर आपने उनके काफी अच्छे विचार रखे है | धन्यवाद अनीता जी ……
yeh bahut hi achhi biography hai. Ramkrishan paramhans and vivekanand ki life se ham sabko inspiration leni chahiye. thanks for sharing it .
Nice
bahut achhi post
स्वामी रामकृष्णा परमहंस जैसे लोग बहुत काम ही पैदा होते हैं | मैंने काफी पढ़ा हैं उनके बारें में | धन्यवाद —
FROM >>> http://www.HindiMotivation.In
Nice Post
सभी भारतीयो को स्वामी विवेकानंद की जन्म दिवस की हार्दिक सुभकामनायें