स्वामी विवेकानंद जयंती व युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
भारतीय इतिहास के संक्रान्ति काल में अपने गुरु के मंगल आशीर्वाद को शिरोधार्य कर के युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म, समाज और राष्ट्र में समष्टि-मुक्ती के महान आदर्श को प्रस्तुत किया। गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों को अमृत समान मानने वाले स्वामी विवेकानंद जी जब पहली बार रामकृष्ण से मिले तो उनके मन में रामकृष्ण के प्रति एक विरोधाभास विचार उत्पन्न हुआ था। इस मुलाकात का प्रसंग “न भूतो न भविष्यति” में देखने को मिलता है। ये प्रसंग स्वामी विवेकानंद बनने से पूर्व का है।
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पुस्तक के अनुसार ये सर्वविदित है कि, स्वामी विवेकानंद जी का लक्ष्य बचपन से ही ईश्वर को पाना था। एक बार उनके मित्र सुरेश बाबु ने कहा कि, ठाकुर(रामकृष्ण परमहंस) तुम्हारे गाने की तारीफ कर रहे थे, तुम्हे बुलाया भी है। तुम उनसे मिलो, तुम्हे तुम्हारा लक्ष्य मिल जायेगा।
इसपर नरेन्द्र ने कहा कि, उस व्यक्ति में मुझे ऐसा कुछ नही दिखता की मेरी निष्ठा उसमें जगे। अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत की क्या बात करें वो तो बंगला भी ठीक से नही बोल पाता।
स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर उनके अनमोल विचार YOUTUBE पे सुनें
सुरेश बाबु ने एकबार फिर आग्रह किया कि एकबार जाने में क्या हर्ज है।
सुरेश बाबु की बात को मानते हुए नरेन्द्र ने कहा, “अच्छा! मैं चलूँगा, किन्तु एक बात कह देता हूँ कि न तो मैं आपके समान उनको अपना गुरु समझुंगा और ना ही उनके कहने पर ब्रह्म समाज छोडूंगा।
सुरेश बाबु नरेन्द्र को लेकर ठाकुर(रामकृष्ण परमहंस) के पास गये। उस समय ठाकुर पूर्व की ओर मुख किये प्रसन्नवदन कर रहे थे। उनके वचन सुनने में नरेन्द्र तल्लीन हो गये। जब ठाकुर की नज़र नरेन्द्र पर पड़ी तो उन्होने कहा कि-
तुम कक्ष में चटाई पर बैठो।
इतने में सुरेश बाबु ने कहा कि, ये वही है जिसने गाना गाया था। ठाकुर ने नरेंद्र की ओर देखा और पूछा कि, और क्या सीखा है कोई बंगला भजन भी गाते हो।
नरेन्द्र ने कहा बंगला गीत तो दो चार ही आता है। इसपर ठाकुर ने गीत गाने को कहा और हारमोनियम की व्यवस्था भी करवा दी।
नरेन्द्र ने “मन चलो निज निकेतन” गाया, गीत के मध्य में ही ठाकुर अंतर्मुखी हो गये और गीत समाप्त होते-होते ठाकुर की चेतना बहर्मुखी हो गई। वे उठे और वे नरेन्द्र का हाँथ पकड़ कर बाहर बरामदे में उत्तर की ओर खींचते हुए ले गये और एक कमरे में प्रवेश कर गये। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जौहरी (ठाकुर, रामकृष्ण परमहंस) को हीरे की परख हो गई थी। ठाकुर ने कमरे की कुंडी लगा दी ताकि कोई और आ न सके। नरेन्द्र को देखकर उनकी आँखों से आनन्द के आसुओं की धारा बहने लगी थी। नरेन्द्र की तरफ मुखातिब होकर ठाकुर कहने लगे कि,
तू इतने दिनों पश्चात आया। मैं किस प्रकार तेरी प्रतिक्षा करता रहा, तू सोच नही सकता।
नरेन्द्र अचंभित उनको देखते रहे। ठाकुर नरेन्द्र के सामने हाँथ जोड़कर खड़े हो गये और बोलने लगे “मैं जानता हूँ प्रभु! आप वही पुरातन ऋषी-नर रूपी नारायण हैं। जीवों का इस दुर्गति से उद्धार करने के लिये आपने पुनः संसार में अवतार लिया है।”
नरेन्द्र स्तंभित भाव से ठाकुर को देखते रहे। सहसा ठाकुर बोले ठहरो यहीं मेरी प्रतिक्षा करो कहीं जाना नही। ठाकुर कक्ष से बाहर निकल गये।
नरेन्द्र ने चैन की सांस ली और सोचने लगे कि किस पागलखाने में फंस गया। विचित्र सा चेहरा बनाकर वहीं बैठे रहे क्योंकि ठाकुर का आदेश उन्हे सम्मोहन की भाँति वहीं रोके रहा। लेकिन मन में ही वार्तालाप करने लगे कि, मैं तो नरेंन्द्र नाथ हूँ, विश्वनाथ का पुत्र परंतु ये तो ऐसे समझ रहे हैं कि मैं अभी आकाश से उतरा कोई देवता हूँ।
कुछ समय पश्चात ठाकुर कक्ष में प्रवेश किये, उनके हाँथ में माखन मिश्री और कुछ मिठाईयां थी। वे अपने हांथो से नरेन्द्र को मिठाईयां खिलाने लगे। नरेन्द्र ने उनको रोकते हुए कहा कि आप मुझे दे दिजीये मैं अपने मित्रों संग बांटकर खा लूंगा।
ठाकुर के आग्रह में ऐसी शक्ति थी कि नरेन्द्र ज्यादा मना नही कर सके। उनके मुख पर भी माखन लग गया था। ठाकुर भावविभोर खिलाते रहे और पूछते रहे कि, तू शीघ्र ही एक दिन अकेला मेरे पास आयेगा। आयेगा न बोल नरेन्द्र ने स्वीकृती में सर हिला दिया। तब ठाकुर ने कक्ष के कपाट खोल दिये और बाहर आ गये एवं अपने आसन पर जाकर ऐसे बैठ गये मानो कुछ हुआ ही नही।
तभी ठाकुर अपने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहने लगे कि, “देखो नरेन्द्र सरस्वती के प्रकाश से किस प्रकार दीप्तिमान हैं।”
लोग चकित नरेन्द्र को देखने लगे। नरेन्द्र इस बात से चकित होकर ठाकुर की तरफ देखने लगे।
तभी ठाकुर ने नरेन्द्र से पूछा, “रात को निद्रा से पूर्व क्या तुम्हे कोई प्रकाश दिखाई देता है?”
“विस्मित होकर नरेन्द्र ने कहा जी हाँ! और पूछा, क्या अन्य लोगों को दिखाई नही देता?”
ठाकुर ने दृष्टीउठाकर उपस्थित लोगों से कहा, “देखो ये लड़का अपने जन्म से ही ध्यानसिद्ध है।” तुम लोगों को जैसे देख रहा हूँ, वैसे ही ईश्वर को भी देखा जा सकता है उससे बात की जा सकती है।
लेकिन क्षणिक ही दुखी होते हुए बोले कि, “ऐसा चाहता कौन है? कौन ये कहकर दुःखी होता है?
जैसा नरेन्द्र ने गाया “जाबे कि हे दीन आमार विफले चालिए”, ईश्वर को व्याकुल होकर पुकारो तो वे अवश्य दर्शन देते हैं।
नरेन्द्र मुग्ध भाव से ठाकुर को देखते रहे। फिर उनके पास पहुँच कर अबोध बालक की तरह आँख में आँख डालकर ठाकुर से पूछे कि क्या आपने ईश्वर के दर्शन किये हैं?
ठाकुर खिलखिलाकर हँसे और बोले हाँ मैने देखा है।
नरेन्द्र को ऐसे उत्तर की आशा नही थी वे स्तब्ध रह गये। ठाकुर के विश्वास और ढृणता के कायल हो गये। नरेन्द्र हाँथ जोड़कर बाहर निकल लिये उनके साथ उनके मित्र भी बाहर निकल लिये।
मित्रों, सर्वविदित है कि स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण की शिक्षाओं का सम्पूर्ण विश्व में संदेश दिया। स्वामी जी के लिये स्वामी रामकृष्ण के आदेश अमृत समान थे।
आइये आज स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर उनका वंदन करते हैं और उनकी दी गई शिक्षाओं को आत्मसात करने का संक्लप करते हैं।
जय भारत
अनिता शर्मा
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We are grateful to Anita Ji for sharing this Hindi article on the occasion of Swami Vivekananda Jayanti with AKC. Thanks a lot Ma’am.
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Nice article sir
sir mughe ye janna tha ki aap es site ko through coding run karwate ho ya without coding
I use wordpress. Please ask such questions through mail.
bahut Achha likha sir….
बहुत बढिया post share की आपने । आपका ब्लाग निश्चित ही एक पुस्तकालय का रूप है।
Very Nice Inspiring Story. Anita Ji
Very Nice Thanks for sharing Anita and Gopal ji
Very nice story
बहुत ही बढ़िया article share किया है आपने। धन्यवाद ….!! 🙂 🙂
गलत कथा है ये, कौनसी पुस्तक में पड़ी आपने?
Thanks Anita ji. स्वामी विवेकानंदा जी की interesting story आप ने share किया है |
Anita ji, bahut sunder article likha aapne, sahi kaha aapne ek asali johari hi hire ki pahachan kar sakata hain.
swami vivekanand jayanti ki sabhi ko shubhakamanaye