शनि देव जयंती
(Shani Dev Jayanti in Hindi)
22 मई 2020 को शनि देव जयंती है।
शनि देव को न्याय के देवता कहा जाता है। शनि का रंग गहरा नीला होता है। शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, वात प्रकृति प्रधान, तामस प्रकृति, तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अपना अधिकार रखता है। शनिदेव का निवास स्थान “शनि मण्डल” बताया जाता है। शनिदेव की पत्नी का नाम नीलादेवी है। शनिदेव के सात वाहन – गिद्ध, हिरण, गधा, हाथी, घोडा, कुत्ता और भैंस हैं।
शनिदेव सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परम पिता ब्रह्माजी ने शनिदेव को तीनों लोकों का न्यायाधीस नियुक्त किया है। जब भी कोई जीव पाप, अधर्म, अनीति और अत्याचार करता है तब उसके कर्मों के अनुसार शनि देव उसे सज़ा देते हैं। पूर्व काल में जब ऋषि अगस्तय राक्षसों के आतंक से पीड़ित थे तो शनिदेव ने राक्षसों का संहार कर के उन्हे भय मुक्त किया था।
शनि देव के जन्म की कथा ( Shani Dev Katha in Hindi)
सूर्यदेव की द्वितीय पत्नी छाया के पुत्र शनि जब अपनी माँ के गर्भ में थे तब उनकी माँ छाया भगवान शंकर की आराधना और तपस्या में इस प्रकार लीन थीं की उन्हे खान-पान का भी भान न था। और उसी के प्रभाव से शनि देव श्याम वर्ण के हुए। शनि का श्याम वर्ण देख कर सूर्यदेव ने छाया पर आरोप लगाया की शनि उनका पुत्र नहीं है। और तभी से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखता है। ऐसा कहा जाता है की शनिदेव ने घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। और तब भगवान शिव ने शनिदेव को यह वरदान दिया था कि –
नव ग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वोच होगा। और तुम्हारे नाम से, और तुम्हारे प्रभाव से मानव ही नहीं देवता गण भी भयभीत रहेंगे।
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शनि की साढ़े साती
किसी भी व्यक्ति को शनि की साढ़े साती तीन प्रकार से लगती है:
- लग्न से,
- चन्द्र लग्न से,
- और तीसरी सूर्य लग्न से।
हर मनुष्य को तीस साल में एक बार साढ़े साती आती ही है। नया उद्योग, या कोई बड़ा साहस शनि की साढ़े साती में करने पर असफलता मिलने के आसार बढ़ जाते हैं। साढ़े साती के समय में अच्छे कर्म किए जाए तो शनि उसका अच्छा पुरस्कार भी प्रदान करता है। शनि की साढ़ेसाती व्यक्ति को कंगाल बना सकती है। और कर्मों के प्रति सचेत हो जाने पर, अच्छे कर्म का रास्ता अपना लेने पर व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान, धन दौलत, और ख्याति दिला कर सुख भी प्रदान करती है।
शनि देव और आठ का अंक
अंक शास्त्र में 8 (आठ) का अंक शनि का अंक माना जाता है। अगर किसी के जन्म की तारीख 17 है तो 1+7=8, या 26 है तो 2+6=8 आए तो उनका अंकाधिपति शनिश्चर होता है। इस अंक वाले व्यक्ति मंद गति से तरक्की करते हैं। अति परिश्रम के बाद ही सफलता प्राप्त होती है। जितना परिश्रम करते हैं उस से कम ही उन्हे प्राप्त होता है।
शनि का प्रकोप होने पर उत्पन होने वाले रोग
ऐसा कहा जाता है की जब कोई व्यक्ति अनाचार, अधम और अन्याय के रास्ते पर चलने लगता है, तब शनि देव उसके स्वास्थ्य को रोग ग्रस्त कर के उसे दंड देते हैं। गठिया रोग, स्नायु रोग, वात रोग (वायु से होने वाले रोग), भगन्दर रोग, गुदा में उत्पन्न होने वाले रोग, पेट के रोग, जांघों के रोग और टीबी कैंसर जेसे घातक रोग शनि के प्रकोप से उत्पन्न होते हैं।
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शनिदेव के रत्न
जामुनिया, नीलमणि, नीलिमा, नीलम, नीला कटेला, यह सब शनि के रत्न और उपरत्न होते हैं। शनि के प्रकोप से त्रस्त व्यक्ति को अच्छा रत्न चुन कर शनिवार को पुष्य नक्षत्र में उसे धारण करना चाहिये। ऐसा कहा जाता है की इन रत्नों मे किसी भी रत्न को शुद्ध मन से धारण करते ही व्यक्ति की तकलीफ़ों में चालीस प्रतिशत तक आराम मिल जाता है।
शनि संबंधी कारोबार और दान पुण्य
कारोबार- पेट्रोल, कोयला, तेल, गैस, लोहा, चमड़े से बनी वस्तुएं, काले रंग की वस्तुयें, ऊन, कार्बन से बनी वस्तुयें, मशीनों के पार्ट्स, पत्थर, रंग और तिल का व्यापार शनि से जुड़े कारोबार बताए जाते हैं। शनिदेव की कृपा होने पर इन सब वस्तुओं का व्यापार करने वाले व्यक्तियों को लाभ होता है।
दान पुण्य- उत्तराभाद्रपद, अनुराधा, तथा पुष्य, नक्षत्रों के समय में शनि पीड़ा निवारण के लिए खुद के वजन के बराबर जामुन के फ़ल, काले उड़द, चने, काले कपडे, काली गाय, गोमेद, भैंस, लोहा, तेल, नीलम, कुलथी, काले फ़ूल, काले जूते, तिल, कस्तूरी सोना इत्यादि दान किया जाता है। ऐसा करने से शनि का प्रकोप कम हो जाता है।
शनि का प्रकोप होने के कारण
शनि न्याय के देवता हैं इस लिए जब भी कोई जीव अधर्म करेगा तब तब उसे शनि देव का प्रकोप झेलना पड़ेगा, यही परम पिता ब्रह्माजी का विधान है। प्रकृति में असंतुलन पैदा करने वाले तत्वों को शनि प्रताड़ित करता है। काम क्रोध, मोह, लोभ और अनीति के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति शीघ्र ही शनि प्रकोप के भोग बनते हैं।
शनि का प्रभाव – 12 स्थान के मुताबिक
शनि को विकार, वायु, कंप, अस्थि रोग (हड्डियों की बीमारी), और दांतों की बीमारी का कारक बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है की जन्म कुंडली में शनि 12 स्थानों में जिस जगह होता है उस जगह के फल के अनुसार उस जीव पर शनि प्रभाव डालता है।
प्रथम स्थान- जब शनि प्रथम भाव में होता है तब उसकी गति मंद होती है। जैसे सूर्य उजाला देता है वैसे ही इस स्थान पर शनि अन्धकार कर देता है। इस स्थान में शनि के प्रवेश होते ही शोक और दुख उत्पन्न होता है।
दूसरा स्थान- शनि जब द्वितीय स्थान में प्रवेश करता है तब धन, दौलत, का स्वामी बनता है। व्यक्ति की हर तरह के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। इस स्थान में शनि के आने पर व्यक्ति अपनों से दूर भी हो जाता है।
तीसरा स्थान- इस स्थान में शनि आने पर व्यक्ति पराक्रमी और साहसी बनता है।
चौथा स्थान- शनि व्यक्ति के जीवन में चौथे स्थान पर विराजमान होने पर व्यक्ति के जीवन में कष्ट उत्पन होते हैं। चौथे स्थान पर शनि होने पर जीवन तकलीफ़ों से भरा नर्क समान बन जाता है।
पांचवे स्थान पर शनि– व्यक्ति के जीवन में इस स्थान में शनि आने पर उसे धार्मिक दिशा में रुचि बढ़ती है। और वह मन्त्रोचार की और आकर्षित होता है। इस स्थान में शनि व्यक्ति को उदासीनता भी देता है।
छठे स्थान पर शनि- इस स्थान पर शनि आते ही व्यक्ति पर शारीरिक कष्ट आने की भीती बढ़ जाती है। शनि के छठे स्थान में आने की वजह से दैविक कष्ट भी होते हैं। शनि के इस स्थान में आने पर पारिवारिक शत्रुता नाश हो जाती है।
सातवे स्थान पर शनि- व्यक्ति की कुंडली में जब शनि इस स्थान में प्रवेश करता है, तब उसका मन नकारात्मक विचारों से भर जाता है। लोगों पर खुदका प्रभाव घटता महसूस होता है। कई लोगों की शादियाँ शनि के सातवे स्थान में आने के दुष्प्रभाव से खंडित भी होती है।
आठवे स्थान पर शनि- जब भी शनि किसी व्यक्ति के जीवन में आठवा स्थान लेता है, तो भोग विलास के चक्कर में वह व्यक्ति हमेशा कंगाल रहता है। आय और खर्च का संतुलन करने की शक्ति कम हो जाती है।
नौवे स्थान पर शनि- व्यक्ति जब भी किसी कठिन यात्रा को भोगता है, या घूम फिर कर काम करता है, जिसमे उसे खूब कष्ट हो, तब समझ लेना चाहिए की शनि उसकी कुंडली में नौवे स्थान पर है। यह स्थान भाग्य का माना जाता है।
शनि का दसवा स्थान- जब शनि व्यक्ति के भाग्य में दसवें स्थान में आता है तब उस व्यक्ति को श्रम वाले कठिन कार्यों में रुचि होती है। व्यक्ति इस शनि स्थान के प्रभाव से खुद के लिए एक कार्य क्षेत्र निश्चित कर लेता है और उसी में लिप्त रहना चाहता है।
ग्यारहवें स्थान पर शनि- अगर किसी व्यक्ति के भाग्य में शनि इस स्थान पर आए तो वह व्यक्ति दवाइयों का कारक बन सकता है। इस स्थान का शनि बुद्धिमता जगा देता है। व्यक्ति महेनत करने पर वैज्ञानिक भी बन सकता है। व्यक्ति गणित में भी निपुण बन सकता है।
बारहवे स्थान पर शनि- जब भी शनि व्यक्ति के भाग्य में बरहवा स्थान लेता है, तब व्यक्ति दूर-दूर तक धन की खोज में और शांति की खोज में भटकता है। हर समय व्यक्ति खुद पर एक बोझ महसूस करता है। व्यक्ति हमेशा धन कमाने की ललक में रहता है। कर्ज, बीमारी और दुश्मनी से दूर भागने पर भी उनमे फँस जाता है।
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शनि ग्रह की भौगोलिक स्थिति
- विज्ञान के मुताबिक नवग्रहों के क्रम में शनि ग्रह सूर्य ग्रह से सब से ज़्यादा दूरी पर मौजूद है।
- शनि धरातल का तापमान 240 फेरानहाइट होता है।
- शनि सूर्य से अंतर में 88 करोड़, 61 लाख मील की दूरी पर स्थित है।
- हमारी पृथ्वी और शनि ग्रह का अंतर 71 करोड़, 31 लाख, 43 हज़ार मिल है।
- शनि ग्रह का व्यास 75 हजार, 100 मील है।
- शनि ग्रह अपनी कक्षा में प्रति सेकंड 6 मील की रफ्तार से, कुल 21.5 वर्ष में सूर्य ग्रह की परिक्रमा पूर्ण कर लेता है।
- शनि के चारों ओर सात वलय मौजूद हैं।
- शनि के कुल 15 चंद्रमा है। उनके हर एक चंद्रमा का व्यास हमारी पृथ्वी से विशाल है।xx
विशेष
ऐसा कहा जाता है की जब तक जीव शनि की सीमा से बाहर नहीं होता है, तब तक उसकी उन्नति संभव नहीं है। शनि के विरोध मे जाते ही व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है। निर्णय लेने की शक्ति कुंठित हो जाती है, परिश्रम करने पर भी सभी कार्यों मे निष्फलता ही हाथ लगती है। बर्ताव मे चिड़चिड़ापन आ जाता है। शनि तुला और मकर राशि का स्वामी है। जब भी किसी पर शनि की वक्र दृष्टि पड़ती है तो शनि उस व्यक्ति के जीवन में चारो ओर से तबाही लता है। धन दौलत, सगे संबंधी, ख्याति, प्रसिद्धि ऐश्वरय सब कुछ एक झटके में छीन लेता है। शनि का प्रकोप व्यक्ति को अर्श से फर्श पर ला पटकता है।
जिस तरह शनि के प्रभाव से पीड़ित व्यक्ति अपना सर्वस्व खो देता है, उसी प्रकार शनि की कृपा होने पर व्यक्ति जप, तप और आध्यात्म की और आकर्षित होता है। समाज में उच्च स्थान पता है। और जीवान काल के उपरांत मोक्ष को प्राप्त होता है।
धन्यवाद्
परेश बराई
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Jai Shani Dev.
Hi, thanks for giving us a wonderful information related to Shani Dev Jayanti in Hindi. This is really a good and knowledgeable article.
Regards.
very nice information
शनिदेव के प्रकोप और उससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान है. शनिदेव का प्रकोप सभी प्रकापों से ऊपर माना जाता है. एक खास विषय पर बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है………..
इस उत्तम अवसर पर शनि देव के बारे में विस्तृत जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद ।
Bahut hi badhiya jaankari
Jo log Shani Dev ki krupa prapt karna chahte he unke liye yah jaankari bahut hi upyogi he,yaha sabhi jaankari bahut hi vistar se samajai gai he jo prsnsniy he.
असाध्य रोग, ढइया, शनि की साढे साती से पीडित, शनि की महादशा से गुजर रहे लोगो को शनि देव का व्रत, पूजन, दान, जप आदि से शान्ति के लिए शनि जयन्ती का दिन अति उत्तम माना जाता है । इस उत्तम अवसर पर शनि देव के बारे में विस्तृत जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद परेश जी ।
Bahut hi badiya jankari dene k liye thank you Gopal JI.
Shani bhagwan ki jai….
Many new informations about Shani Dev received
शनि महादेव की जय ! महादेव की जय !
बहोत सुन्दर लेखन…. धन्यवाद शनि महादेव आपको और ज्ञान दे.
यही मनोकामना है यही विनती है.
धन्यवाद , गोपाल मिश्रा जी !
बहुत ही सुंदर। जय हो शनि देव की1