Chanakya Biography in Hindi
चाणक्य की जीवनी
आचार्य चाणक्य जो कि विष्णुगुप्त व कौटिल्य के नाम से भी विख्यात हैं एक महान विद्वान् थे, जिनकी नीतियों पर चल कर कई साम्राज्य स्थापित हुए। आइये आज हम उनके जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
जन्म व शिक्षा
राजा और प्रजा के मध्य पिता और पुत्र जैसा सम्बन्ध होना चाहिए।
ऐसे विचारों के प्रणेता महापंडित चाणक्य का जन्म बौद्ध धर्म के अनुसार लगभग 400 ई. पूर्व तक्षशिला के कुटिल नामक एक ब्राह्मण वंश में हुआ था। उन्हे भारत का मैक्यावली भी कहा जाता है।
नाम और जन्म को लेकर इतिहासकार एक मत नही हैं। कुटिल वंश में जन्म लेने के कारण वे कौटिल्य कहलाए। परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार कौटिल्य का जन्म नेपाल की तराई में हुआ था जबकि जैन धर्म के अनुसार उनका जन्मस्थली मैसूर राज्य स्थित श्रवणबेलगोला को माना जाता है।
जन्म स्थान को लेकर ‘मुद्राराक्षस‘ के रचयिता के अनुसार उनके पिता को चमक कहा जाता था इसलिए पिता के नाम के आधार पर उन्हें चाणक्य कहा जाने लगा।
कौटिल्य की शिक्षा दीक्षा प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय में हुई थी। प्रारंभ से ही होनहार छात्र के रूप में अपनी एक विशेष पहचान बनाने वाले चाणक्य! अध्ययन समाप्ति के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में ही पढ़ाने लगे थे।
भारत पर सिकंदर का आक्रमण : वो घटना जिसने चाणक्य के जीवन की दिशा मोड़ दी
एक शिक्षक के रूप में उनकी ख्याति आसमान की ऊंचाइयों को स्पर्श कर रही थी। परंतु उस दौरान घटित दो घटनाओं ने उनके जीवन की दिशा ही मोड़ दी।
- पहली- भारत पर सिकंदर का आक्रमण और तात्कालिक छोटे राज्यों की पराजय।
- दूसरी- मगध के शासक द्वारा कौटिल्य का किया गया अपमान।
उपरोक्त कारणों की वज़ह से विष्णुगुप्त देश की एकता और अखंडता की रक्षा हेतु छात्र छात्राओ को पढ़ाने के बजाय देश के राजाओं को शिक्षित करने का संकल्प लिये निकल पड़े। चाणक्य के जीवन की दिशा बदलने वाले प्रसंग पर गौर करना अतिआवश्यक है।
गौरतलब है कि भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के समय चाणक्य तक्षशिला में प्राध्यापक थे। तक्षशिला और गान्धार के राजा आम्भि ने सिकन्दर से समझौता कर लिया था। चाणक्य ने भारत की संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया किन्तु सिकन्दर से लड़ने कोई नहीं आया। पुरु ने सिकन्दर से युद्ध किया किन्तु हार गया। उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली राज्य था तथा उसके पड़ोसी राज्यों की आंखों का काँटा भी। देशहित को सर्वोपरी मानने वाले विष्णुगुप्त मगघ के तत्कालीन सम्राट धनानन्द से सिकंदर के प्रभाव को रोकने हेतु सहायता मांगने गये। परंतु भोग-विलास एवं शक्ति के घमंड में चूर धनानंद ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। उसने कहा –
पंडित हो और अपनी चोटी का ही ध्यान रखो ;युद्ध करना राजा का काम है तुम पंडित हो सिर्फ पंडिताई करो।
तभी चाणक्य ने अपनी चोटी खोल दी और प्रतिज्ञा ली कि जब तक मैं नंद साम्राज्य का नाश नही कर दूंगा तब तक चोटी नही बधुंगा ।
चन्द्रगुप्त को शिष्य बनाना
चाणक्य के जीवन का प्रसंग चंद्रगुप्त की बिना अधूरा है क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा को सार्थक करने में चंद्रगुप्त माध्यम बने। एक प्रवास के दौरान चाणक्य की नज़र एक ग्रामीण बालक पर पड़ी उनकी दिव्यदृष्टि ने बालक में राजत्व की प्रतिभा को भांप लिया। चाणक्य ने तुरंत 1,000 कार्षापण(मुद्रा) देकर उस बालक को उसके पालक-पिता से ख़रीद लिया।
उस समय चंद्रगुप्त आठ या नौ वर्ष के बालक थे। चाणक्य ने उसे अप्राविधिक विषयों और व्यावहारिक तथा प्राविधिक कलाओं की भी सर्वांगीण शिक्षा दिलाई। माना जाता है कि उस वक्त कुछ ही प्रमुख शासक जातियां थी जिसमे शाक्य, मौर्य का प्रभाव ज्यादा था। चन्द्रगुप्त उसी गण प्रमुख का पुत्र था। चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया, एवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है। पालि स्रोतों से प्राप्त चंद्रगुप्त के प्रारम्भिक जीवन का विवरण मिलता है।
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Chanakya Life History in Hindi
चाणक्य के अनुसार एक आदर्श शासक की शिक्षा व गुण
कौटिल्य राजतंत्र के समर्थक थे। उनका कहना था कि प्रजा के सुख में राजा का सुख होना चाहिए और प्रजा के हित में ही राजा का हित निहित होना चाहिए। इसके लिए उसे बाल्यकाल से ही शिक्षित किया जाना चाहिए। एक अच्छे शासक बनने की प्रक्रिया मुंडन संस्कार से शुरू हो जानी चाहिए। सर्व प्रथम वर्णमाला तथा अंकमाल का अभ्यास कराना चाहिए और उपनयन के बाद नई आंविक्षिकी वार्ता और दंडनीति का ज्ञान कराया जाना चाहिए। कौटिल्य ने अपनी इसी निती से चंद्र गुप्त मौर्य को बाल्यकाल से ही एक श्रेष्ठ शासक के रुप में शिक्षित किया।
चाणक्य की शिक्षा से परांगत होकर चंद्रगुप्त ने सिकंदर को पराजित ही नही किया बल्की अपने कार्यकौशल तथा बौद्धिक कौशल से एक श्रेष्ठ शासक के रूप में इतिहास के पन्नों में अमर हो गया।
चाणक्य के अनुसार एक शासक कैसा होना चाहिये इसका विवरण उन्होने चाणक्य निती में विस्तृत रूप से लिखा है। कौटिल्य के अनुसार:
- राजा कुलीन होना चाहिए।
- राजा स्वस्थ और शासन का अनुसरण करने वाला होना चाहिए।
- अच्छे शासक को निर्भिक , शास्त्र ज्ञाता , संयमी बलवान होना चाहिए।
- काम-क्रोध तथा लोभ-मोह से मुक्त होना चाहिए।
चाणक्य का कहना है कि-
जिस प्रकार घुन लगी हुई लकड़ी शीघ्र नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार जिस राजकुल के राजकुमार शिक्षित नहीं होते, वह राजकुल बिना किसी युद्ध के ही नष्ट हो जाते हैं।
कौटिल्य का उपरोक्त कथन निसंदेह सृष्टि के सभी परिवारों के बालकों पर भी चरितार्थ होती है।
अर्थशाश्त्र की रचना
कौटिल्य की महान कृति अर्थशास्त्र आज भी प्रासंगिक है। इसमें पन्द्रह अधिकरण, एक सौ अस्सी प्रकरण, एक सौ पचास अध्याय और छ हजार श्लोक हैं। इस कृति में राजनीति, अर्थशास्त्र , इंजीनियरिंग-विद्या, रसायन शास्त्र , भू-गर्भ विद्या तथा अनेक विषयों को समाहित किया गया है। कौटिल्य द्वारा हस्तलिखित ये ग्रंथ तब सामने आया जब तंजौर के ब्राह्मण ने 1905 में मैसूर के प्राच्य पुस्तकालय में भेंट की।
हालांकि इसके पहले विद्वानों को ये ज्ञात था कि कौटिल्य द्वारा हस्तलिखित अर्थशास्त्र पर कोई ग्रंथ है किंतु प्रमाण नही था। कौटिल्य द्वारा हस्तलिखित अर्थशास्त्र पर आधारित ये ग्रंथ राजनैतिक ग्रंथ है।
इसमें सभी राजनीतिक विचारों को समाहित किया गया है। कौटिल्य ने राज्य की अवधारणा को प्रतिपादित किया है। परंतु ये कहना कठिन है कि उस समय राज्य का विचार क्यों प्रतिपादित हुआ। संभवतः कौटिल्य के अध्यापन कार्य को छोड़ कर इस व्यवस्था में आने का कारण ही राज्य की उत्पत्ति का कारण रहा होगा। उस समय विद्यमान हिंसा और अव्यवस्था ने राज्य की अवधारणा को जन्म दिया होगा । राज्य को ऐसी शक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
चाणक्य के अनुसार राज्य के 7 अंग
चाणक्य ने अपने पूर्ववर्ती विद्वानों मनु, भीष्म और शुक्र की राज्य कल्पना को प्रतिपादित करते हुए राज्य को सात अंगों में विभक्त किया है।
1. स्वामी: स्वामी यानी राजा जिसके चारों ओर शक्तियां घूमती हैं। कौटिल्य के अनुसार अमात्य का अर्थ मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी दोनों से है।
2. अमात्य: अमात्य राजा का दूसरा महत्वपूर्ण अंग है। अमात्य की महत्ता को बताते हुए कौटिल्य कहते हैं-
“एक पहिए की गाड़ी की भांति राज-काज भी बिना सहायता से नही चलाया जा सकता इसलिए राज्य के हित में सुयोग्य अमात्यो की नियुक्ति करके उनके परामर्श का पालन होना चाहिए।”
3. जनपद: कौटिल्य ने तीसरे अंग के रुप में जनपद को स्वीकारा है। जनपद कार्यालय अर्थ है जनयुक्त भूमि। जनपद की व्याख्या करते हुए कौटिल्य कहते हैं, जनपद की स्थापना ऐसी होनी चाहिए, जहां यथेष्ठ अन्न की पैदावार हो। किसान मेहनती और लोग शुद्ध स्वभाव वाले हों। नदियां और खेत खुशहाली का वातावरण पैदा करते हों।
4. दुर्ग: कौटिल्य ने कहा है कि दुर्ग राज्य के प्रति रक्षात्मक शक्ति तथा आक्रमण शक्ति के प्रतीक हैं। उन्होंने चार प्रकार के दुर्ग की व्याख्या की है।
- औदिक दुर्ग- इस दुर्ग के चारो ओर पानी भरा होता है।
- पार्वत दुर्ग – इसके चारों ओर पर्वत या चट्टानें होती हैं।
- धान्वन दुर्ग – इसके चारों ओर ऊसर भूमि होती हैं जहां न जल न घास होती है।
- वन दुर्ग – इनके चारो ओर वन एवं दलदल पाए जाते हैं।
5. कोष: राज्य के संचालन में और दूसरे देश से युद्ध तथा प्राकृतिक आपदाओं से बाहर निकलने के लिए कोष की आवश्यकता होती है। कौटिल्य ने इसकी महत्ता को स्वीकारते हुए कहा कि-
धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में से अर्थ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है या यूं कहा जाए कि अर्थ दोनों का आधार स्तंभ है।
6. दण्ड: कौटिल्य के अनुसार, दण्ड का आशय सेना से है। सेना राज्य की सुरक्षा की प्रतीक है।
7. मित्र: कौटिल्य के अनुसार राज्य की प्रगति मित्र भी आवश्यक है। कौटिल्य कहते हैं कि मित्र ऐसा होना चाहिए जो वंश परंपरागत हो, उत्साह आदी शक्तियों से युक्त तथा जो समय पर सहायता कर सके।
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कौटिल्य की सबसे बड़ी देन मंडल सिद्धांत है और षांडगुण्य निजी है। मंडल राज्यों का वृत्त माना जाता है। छ लक्षणों वाली षांड्गुण्य नीति का समर्थन मनु ने भी किया है और इसका वर्णन महाभारत में भी मिलता है।राजदर्शन में कौटिल्य को प्रथम दार्शनिक कहा जा सकता है। कौटिल्य ने गुप्तचरों के प्रयोग को सरकार का अहृम हिस्सा कहा है।
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श्रीमदभागवत में चाणक्य का उल्लेख
आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के नाम का उल्लेख श्रीमदभागवत में भी किया गया है। श्रीमदभागवत के द्वादश स्कंध में कलयुग के राजाओं का वर्णन किया गया है। इस वर्णन में बताया गया है कि चाणक्य और चंद्रगुप्त द्वारा नंद वंश का नाश किया जाएगा।
ऐसा माना जाता है कि श्रीमदभागवत हजारों वर्ष पहले वेद व्यास द्वारा रची गई है, जबकि कई इतिहासकारों द्वारा आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त का इतिहास लगभग 350 ईसा पूर्व का बताया गया है। श्रीमदभागवत में उल्लेख मिलता है कि कलयुग में महापद्म नामक राजा का पृथ्वी पर साम्राज्य होगा। इस राजा के शासन का उल्लंघन कोई नहीं कर सकेगा। इस वंश की क्रूरता का नाश कौटिल्य, वात्सायन तथा चाणक्य नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण द्वारा किया जाएगा।
नंद वंश के नाश के बाद चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य को शासक बनाया जाएगा। मौर्यवंश का शासन एक सौ सैंतीस वर्षों तक रहेगा। श्रीमदभागवत में चाणक्य का विवरण उनकी प्रतिभा को आसमान की ऊँचाइयों पर ले जाता है। कर्म को प्रधान मानने वाले चाणक्य ने धनानंद के पतन से ये उदाहरण प्रस्तुत किया कि आलसी मनुष्य का वर्तमान और भविष्य नही होता।
चाणक्य का जीवन : प्रेरणा का अपार स्रोत
जो लोग ये कहते हैं कि, किस्मत पहले से लिखी जा चुकी है तो कोशिश करने से क्या फायदा, ऐसे लोगों को चाणक्य कहते है-
तुम्हे क्या पता! किस्मत में ही लिखा हो कि कोशिश करने से सफलता मिलेगी।
ये सर्व विदित है कि, पुरषार्थ से ही दरिद्रता का नाश होता है। शिक्षक के रूप में सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करके उन्होने समाज को शिक्षा दी कि,-
“एक शिक्षित इंसान हर जगह सम्मान पाता है, शिक्षा सुन्दरता को भी पराजित कर सकती है।”
चाणक्य का सम्पूर्ण जीवन ये सिद्ध करता है कि, व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है, ऊँचे स्थान पर बैठने से नही। चंद्रगुप्त मौर्य के माध्यम से सुदृढ केंद्रीय शासन की स्थापना करके एक श्रेष्ठ राष्ट्र का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले चाणक्य की शिक्षाएं आज भी समाज तथा देश के लिये प्रासंगिक हैं।
कौटिल्य ने अपनी अमूल्य रचना अर्थशास्त्र में कहा है कि, कर ऐसा होना चाहिये कि व्यापार और उद्यम पर अंकुश न लगे। वाणिंज्य में सुगमता हो और कर दो बार न लगे। कौटिल्य ने चेतावनी दी थी कि यदि इन सिद्धान्तों का पालन नही हुआ तो व्यपारी दूसरे राज्य में चले जायेंगे। वैश्वीकरण के इस युग में कौटिल्य की उपरोक्त बातें यथार्त नजर आ रही हैं। अर्थ शास्त्र के जानकार आज भी कौटिल्य द्वारा लिखी अर्थशास्त्र का अध्ययन करते हैं। चाणक्य निती का अनुसरण करके कई राजनायक सफल सुशासन की ओर अग्रसर हैं।
मृत्यु
चाणक्य की मृत्यु के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण इतिहासकार इसे लेकर एक मत नहीं हैं\ माना जाता है की उनकी मृत्यु 300 ई.पू के आस-पास हुई थी. कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने अन्न-जल त्याग कर देह त्याग दिया था तो कुछ लोग किसी षड्यंत्र द्वारा उनकी हत्या की बात करते हैं\
मित्रों, चाणक्य द्वारा प्रस्तुत की गई एक-एक बातें महत्वपूर्ण हैं। भारत की अनमोल धरोहर चाणक्य का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षर में अंकित है। उनके कथन के साथ ही कलम को विराम देते हैं-
असंभव शब्द का प्रयोग केवल कायर करते हैं, बहादुर और समझदार व्यक्ति अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करते हैं।
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दृष्टिबाधित बच्चों की मदद के लिए पाठकों से एक विनम्र निवेदन
प्रिय पाठकों नमस्कार,
जैसा कि बहुत से पाठक जानते हैं; स्वामी विवेकानंद जी के दिये संदेश को आत्मसात करते हुए मैं दृष्टीबाधित (ब्लाइंड) बच्चों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही हूँ। इसके अंर्तगत उनकी पाठ्यपुस्तकों की ऑडियो रिकॉर्डिंग करना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा 9वीं तथा 11वीं का पाठ्यक्रम बदल जाने से पूर्व की रिकार्डेड पाठ्यपुस्तक अब काम नही आयेगी।
अतः वर्तमान में नई पुस्तकों की रिकॉर्डिंग समय पर पूरा करना अहम कार्य है। आप सबसे निवेदन है कि जो पाठक इस कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं वो हमें [email protected] पर मेल करें। शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है। कृपया मदद के लिए आगे आएं और दृष्टिबाधित बच्चों को अपना सहयोग दें।
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We are grateful to Anita Ji for sharing a very interesting and detailed Chanakya Biography in Hindi / चाणक्य की जीवनी.
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गणेश आर. शर्मा says
चाणक्य & और चन्द्रगुप्त का मै विशेष फेन हु इसका एक भी एपीसोड मैंने नहीं मिस किया
YOGESH KUMAR says
Bahut hi achchi jankari di gai is post me..
Jab kisi ka apamaan hota hai tabhi vah kisi bade parivartan ka sakshi hota hai…
Thik isi prakar samrat ashok ke Bare me bhi likhiye..
Thank You
S M Karamath says
Nice post share kiya hyy bahi thanks aisa he share karthe raho
Abhishek Dhull says
बहुत अच्छी पोस्ट है चाणक्य जी के बारे में। ….
ashish says
bahut he accha post
Anand chanakya says
Lovely post