Rani Padmini / Rani Padmavati History in Hindi
रानी पद्मिनी / रानी पद्मावती का इतिहास व कहानी
भारतीय इतिहास के पन्नों में अत्यंत सुंदर और साहसी रानी; रानी पद्मावती का उल्लेख है। रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। रानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बाल्य काल से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। उनके माता-पिता नें उन्हे बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था। कहा जाता है बचपन में पद्मावती के पास एक बोलता तोता था जिसका नाम हीरामणि रखा गया था।
रानी पद्मावती का स्वयंवर
महाराज गंधर्वसेन नें अपनी पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए उनका स्वयंवर रचाया था जिस में भाग लेने के लिए भारत के अगल अलग हिन्दू राज्यों के राजा-महाराजा आए थे। गंधर्वसेन के राज दरबार में लगी राजा-महाराजाओं की भीड़ में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था। उसी स्वयंवर में विवाहित राजा रावल रत्न सिंह भी मौजूद थे। उन्होनें मल्खान सिंह को स्वयंवर में परास्त कर के रानी पद्मिनी पर अपना अधिकार सिद्ध किया और उनसे धाम-धूम से विवाह रचा लिया। इस तरह राजा रावल रत्न सिंह अपनी दूसरी पत्नी रानी पद्मावती को स्वयंवर में जीत कर अपनी राजधानी चित्तौड़ वापस लौट गये।
चित्तौड़ राज्य
प्रजा प्रेमी और न्याय पालक राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे। उनके शासन में वहाँ की प्रजा हर तरह से सुखी समपन्न थीं। राजा रावल रत्न सिंह रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। उनका भव्य दरबार एक से बढ़कर एक महावीर योद्धाओं से भरा हुआ था। चित्तौड़ की सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी।
- ये भी पढ़ें: खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी
चित्तौड़ का प्रवीण संगीतकार राघव चेतन
चित्तौड़ राज्य में राघव चेतन नाम का संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। महाराज रावल रत्न सिंह उन्हे बहुत मानते थे इसीलिये राज दरबार में राघव चेतन को विशेष स्थान दिया गया था। चित्तौड़ प्रजा और वहाँ के महाराज को उन दिनों यह बात मालूम नहीं थी की राघव चेतन संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जनता था। ऐसा कहा जाता है की राघव चेतन अपनी इस आसुरी प्रतिभा का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध करने में करता था। एक दिन राघव चेतन जब अपना कोई तांत्रिक कार्य कर रहा था तब उसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया और राजदरबार में राजा रावल रत्न सिंह के समक्ष पेश कर दिया गया। सभी साक्ष्य और फरियादी पक्ष की दलील सुन कर महाराज नें चेतन राघव को दोषी पाया और तुरंत उसका मुंह काला करा कर गधे पर बैठा कर देश निकाला दे दिया।
अलाउद्दीन खिलजी से मिला राघव चेतन
अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने पर राघव चेतन बदला लेने पर आमादा हो गया। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य रहे गया था और वह था चित्तौड़ के महाराज रावल रत्न सिंह का सम्पूर्ण विनाश। अपने इसी उद्देश के साथ वह दिल्ली राज्य चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था।
12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। उन दिनों दिल्ली के बादशाह से मिलना इतना आसान कार्य नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगता है क्योंकि वह जानता था कि दिल्ली का बादशाह अलाउद्दीन खिलजी शिकार का शौक़ीन है और वहाँ पर उसकी भेंट ज़रूर अलाउद्दीन खिलजी से हो जाएगी। कुछ दिन इंतज़ार करने के बाद आखिर उसे सब्र का फल मिल जाता है।
एक दिन अलाउद्दीन खिलजी अपने खास सुरक्षा कर्मी लड़ाकू दस्ते के साथ घने जंगल में शिकार खेलने पहुँचता है। मौका पा कर ठीक उसी वक्त राघव चेतन अपनी बांसुरी बजाना शुरू करता है। कुछ ही देर में बांसुरी के सुर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी और उसके दस्ते के सिपाहियों के कानों में पड़ते हैं। अलाउद्दीन खिलजी फ़ौरन राघव चेतन को अपने पास बुला लेता है राज दरबार में आ कर अपना हुनर प्रदर्शित करने का प्रस्ताव देता है। तभी चालाक राघव चेतन अलाउद्दीन खिलजी से कहता है-
आप मुझ जैसे साधारण कलकार को अपनें राज्य दरबार की शोभा बना कर क्या पाएंगे, अगर हासिल ही करना है तो अन्य समपन्न राज्यों की ओर नज़र दौड़ाइये जहां एक से बढ़ कर एक बेशकीमती नगीने मौजूद हैं और उन्हे जीतना और हासिल करना भी सहज है।
अलाउद्दीन खिलजी तुरंत राघव चेतन को पहेलिया बुझानें की बजाए साफ-साफ अपनी बात बताने को कहता हैं। तब राघव चेतन चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहाँ की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज़ खोल देता है और राजा रावल रत्न सिंह की धर्म पत्नी रानी पद्मावती के अद्भुत सौन्दर्य का बखान भी कर देता है। यह सब बातें जान कर अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण कर के वहाँ की सम्पदा लूटने, वहाँ कब्ज़ा करने और परम तेजस्वी रूप रूप की अंबार रानी पद्मावती को हासिल करने का मन बना लेता है।
अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण की योजना
राघव चेतन की बातें सुन कर अलाउद्दीन खिलजी नें कुछ ही दिनों में चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना चित्तौड़ राज्य की और रवाना कर दी। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी पर चित्तौड़ के किले की अभेद्य सुरक्षा देख कर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना स्तब्ध हो गयी। उन्होने वहीं किले के आस पास अपने पड़ाव डाल लिए और चित्तौड़ राज्य के किले की सुरक्षा भेदने का उपाय ढूँढने लगे।
अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को भेजा कपट संदेश
जब से राजा रावल रत्न सिंह नें रूप सुंदरी रानी पद्मावती को स्वयमर में जीता था तभी से पद्मावती अपनी सुंदरता के लिये दूर-दूर तक चर्चा का विषय बनी हुई थी। इस बात का फायदा उठाते हुए कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें चित्तौड़ किले के अंदर राजा रावल रत्न सिंह के पास एक संदेश भिजवाया कि वह रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान सुन कर उनके दीदार के लिये दिल्ली से यहाँ तक आये हैं और अब एक बार रूप सुंदरी रानी पद्मावती को दूर से देखने का अवसर चाहते हैं।
अलाउद्दीन खिलजी नें यहाँ तक कहा की वह रानी पद्मावती को अपनी बहन समान मानते हैं और वह सिर्फ उसे दूर से एक नज़र देखने की ही तमन्ना रखते हैं।
चित्तौड़ के महाराज रावल रत्न सिंह का अलाउद्दीन खिलजी को जवाब
अलाउद्दीन खिलजी की इस अजीब मांग को राजपूत मर्यादा के विरुद्ध बता कर राजा रावल रत्न सिंह नें ठुकरा दिया। पर फिर भी अलाउद्दीन खिलजी नें रानी पद्मावती को बहन समान बताया था इसलिये उस समय एक रास्ता निकाला गया। पर्दे के पीछे रानी पद्मावती सीढ़ियों के पास से गुज़रेंगी और सामने एक विशाल काय शीशा रखा जाएगा जिसमें रानी पद्मावती का प्रतिबिंम अलाउद्दीन खिलजी देख सकते हैं। इस तरह राजपूतना मर्यादा भी भंग ना होगी और अलाउद्दीन खिलजी की बात भी रह जायेगी।
अलाउद्दीन खिलजी नें दिया धोखा
शर्त अनुसार चित्तौड़ के महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया और फिर अलाउद्दीन खिलजी को खिला-पिला कर पूरी महेमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। इसी अवसर का लाभ ले कर कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर अपनी छावनी में कैद कर दिया।
इसके बाद संदेश भिजवा दिया गया कि –
अगर महाराज रावल रत्न सिंह को जीवित देखना है तो रानी पद्मावती को फौरन अलाउद्दीन खिलजी की खिदमद में किले के बाहर भेज दिया जाये।
रानी पद्मावती, चौहान राजपूत सेनापति गौरा और बादल की युक्ति
चित्तौड़ राज्य के महाराज को अलाउद्दीन खिलजी की गिरफ्त से सकुशल मुक्त कराने के लिये रानी पद्मावती, गौरा और बादल नें मिल कर एक योजना बनाई। इस योजना के तहत किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह पैगाम भेजना था की रानी पद्मावती समर्पण करने के लिये तैयार है और पालकी में बैठ कर किले के बाहर आने को राज़ी है। और फिर पालकी में रानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों दासीयों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धा भेज कर बाहर मौजूद दिल्ली की सेना पर आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा रावल रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की कैद से मुक्त करा लिया जाये।
रानी पद्मावती के इंतज़ार में बावरा हुआ अलाउद्दीन खिलजी
कहा जाता है की वासना और लालच इन्सान की बुद्धि हर लेती है। अलाउद्दीन खिलजी के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब चित्तौड़ किले के दरवाज़े एक के बाद एक खुले तब अंदर से एक की जगह सैकड़ों पालकियाँ बाहर आने लगी। जब यह पूछा गया की इतनी सारी पालकियाँ क्यूँ साथ हैं तब अलाउद्दीन खिलजी को यह उत्तर दिया गया की यह सब रानी पद्मावती की खास दासीयों का काफिला है जो हमेशा उनके साथ जाता है।
अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती पर इतना मोहित था की उसने इस बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है। और इस तरह चित्तौड़ का एक पूरा लड़ाकू दस्ता नारी भेष में किले के बाहर आ पहुंचा। कुछ ही देर में अलाउद्दीन खिलजी नें रानी पद्मावती की पालकी अलग करवा दी और परदा हटा कर उनका दीदार करना चाहा। तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया। उसी वक्त चित्तौड़ सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया और वहाँ मची अफरातफरी में बादल नें राजा रावल रत्न सिंह को बंधन मुक्त करा लिया और उन्हे अलाउद्दीन खिलजी के अस्तबल से चुराये हुए घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। इस लड़ाई मे राजपूत सेनापति गौरा और पालकी के संग बाहर आये सभी योद्धा शहीद हो गये।
अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण
अपनी युक्ति नाकाम हो जाने की वजह से बादशाह अलाउद्दीन खिलजी झल्ला उठा उसनें उसी वक्त चित्तौड़ किले पर आक्रमण कर दिया पर वे उस अभेद्य किले में दाखिल नहीं हो सके। तब उन्होने किले में खाद्य और अन्य ज़रूरी चीजों के खत्म होने तक इंतज़ार करने का फैसला लिया। कुछ दिनों में किले के अंदर खाद्य आपूर्ति समाप्त हो गयी और वहाँ के निवासी किले की सुरक्षा से बाहर आ कर लड़ मरने को मजबूर हो गये। अंत में रावल रत्न सिंह नें द्वार खोल कर आर- पार की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया और किले के दरवाज़े खोल दिये। किले की घेराबंदी कर के राह देख रहे मौका परस्त अलाउद्दीन खिलजी ने और उसकी सेना नें दरवाज़ा खुलते ही तुरंत आक्रमण कर दिया।
इस भीषण युद्ध में पराक्रमी राजा रावल रत्न सिंह वीर गति हो प्राप्त हुए और उनकी पूरी सेना भी हार गयी। अलाउद्दीन खिलजी नें एक-एक कर के सभी राजपूत योद्धाओं को मार दिया और किले के अंदर घुसने की तैयारी कर ली।
चित्तौड़ की महारानी पद्मावती और नगर की सभी महिलाओं नें लिया जौहर करने का फैसला
युद्ध में राजा रावल रत्न सिंह के मारे जाने और चित्तौड़ सेना के समाप्त हो जाने की सूचना पाने के बाद रानी पद्मावती जान चुकी थी कि अब अलाउद्दीन खिलजी की सेना किले में दाखिल होते ही चित्तौड़ के आम नागरिक पुरुषों और बच्चों को मौत के घाट उतार देगी और औरतों को गुलाम बना कर उन पर अत्याचार करेगी। इसलिये राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें जौहर करने का फैसला लिया।
जौहर की रीति निभाने के लिए नगर के बीच एक बड़ा सा अग्नि कुंड बनाया गया और रानी पद्मावती और अन्य महिलाओं ने एक के बाद एक महिलायेँ उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि दे दी।
इतिहास में राजा रावल रत्न सिंह, रानी और पद्मावती, सेना पति गौरा और बादल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है और चित्तौड़ की सेना वहाँ के आम नागरिक भी सम्मान के साथ याद किये जाते हैं जिनहोने अपनी जन्म भूमि की रक्षा के खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया।
Team AKC
Also read:
- अशोक महान का गौरवमयी इतिहास
- चाणक्य की जीवनी
- शूरवीर महाराणा प्रताप का गौरवमयी इतिहास व जीवन
- महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय की जीवनी
- पराक्रमी राजा पोरस की जीवन गाथा व इतिहास
- भारत के 10 महान शासक
We are grateful to Mr. Paresh Barai for sharing Rani Padmavati Histoy in Hindi.
Note: The Rani Padmavti Biography in Hindi is based upon Malik Muhammad Jayasi’s poem Padmavati written in the 15th century. However, many historians believe it to be a work of fiction.
Note: Padmavati is also an upcoming Indian movie directed by Sanjay Leela Bhansali. Deepika Padukone will be playing the role of Padmavati in this film. Although its story may not be same as mentioned in this article.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Anam says
We proud on Rani Padmavati
SONU says
भारतीय संस्कृति के इतिहास को जिस प्रकार आप अपने शब्दों में बयान करते हैं.. वह सराहनीय है
Shilpa K says
चित्तोड़ की राणी पद्मावती की शूरवीरता की कहानी अच्छी लगी, हमारे देश का इतिहास में बहुत शूरता से भरा हैं.
Lakhbir Singh says
असली सच क्या है? ये तो clear करें
NEHA says
AAPKE BLOG ME HAMESHA PERTICULER CAST KO NEECHA OR BURA DIKHAYA JATA HAI……..
HAR BAR KUCH BHI HO SIRF EK SINGLE CAST KO BURA NHI KHA JA SAKTA..
Gopal Mishra says
ऐसा बिलकुल भी नहीं है. आपको ऐसा क्यों लगा, कृपया clear करें.
Ak says
Bhartiye itihaskar khas kar aarya lekhak batate hai ki rani padmawati ne jauhar kiya aur muslim itihaskar kahte hai ki alauddin khilji ne rani ko delhi le gaya.. Ab kiski bat sahi hai aur kaun galat ye chintan ka bishay hai
Surender Singh says
Thank you Sir. This is great.
Sachin says
हमें गर्व है रानी पद्मावती पर।
देश में ऐसी ही वीरांगनाओं की जरूरत है ।
एक बात आपसे गोपाल जी, आपके ब्लॉग की speed कम क्यों है ?
Parth says
Proud of such a great Indian past.
sushil jaiswal says
adbhut! apni maryaada ko banaye rakhne ke liye apne prano ki bali de di.chittod ki veer sena ko mera naman.