Guru Gobind Singh Biography in Hindi
गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी
महा ज्ञानी, महा पराक्रमी, महान संत व आध्यात्मिक गुरु- गुरु गोबिंद सिंह का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का अपार स्रोत है। 7 अक्टूबर 2017 को उन्की पुण्यतिथि है। आइये इस अवसर पर हम उनके महान जीवन के बारे में जानें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास करें।
- ज़रूर पढ़ें: गुरु गोबिंद सिंह के 30 अनमोल वचन
गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय
नाम | गुरु गोबिंद सिंह |
जन्म | 22 दिसम्बर 1666 , पटना , बिहार |
मृत्यु | 7 अक्टूबर 1708 |
विशेष | सिखों के दसवें व अंतिम गुरु, खालसा पंथ के सस्थापक, सभी सिख गुरुओं के उपदेशों को संग्रहित कर गुरु ग्रन्थ साहिब पूर्ण की, आपको भक्ति और शक्ति का अद्वितीय संगम माना जाता है. |
गुरु गोबिंद सिंह द्वारा कही गयी प्रसिद्ध पंक्ति –
“चिड़ियों सों मै बाज़ तड़ाऊँ। सवा लाख से एक लड़ाऊँ, तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ”
संक्षिप्त परिचय
गुरु गोबिंद सिंह का मूल नाम गोबिंद राय था। उनका जन्मस्थान पटना, बिहार बताया जाता है। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और उनकी माता का नाम गुजरी देवी था। उनके बाल्यकाल के प्रथम चार वर्ष पटना में बीते। उसके बाद वर्ष 1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया।
करीब दो वर्ष बाद गुरु गोबिंद सिंह का परिवार वहाँ से चक्क नानक (आनन्दपुर साहिब) हिमालय की शिवालिक पहाड़ीयों में रहने लगा। इसी स्थान पर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा, भाषा ज्ञान एवं युद्ध कौशल कला सीखी। बड़े हो कर गुरु गोबिंद सिंह नें अपने पिता के नक्शेकदम पर चल कर अत्याचारी मुग़ल शाशक औरंगज़ेब से कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा की। गुरु गोबिंद सिंह नें मुगलों और उनके साहियोगी राज्यों के साथ लगभग 14 वर्ष तक अलग-अलग युद्ध में लोहा लिया। और जीवंत रहने तक मानवसमाज कल्याण के कार्यों में जीवन व्यतीत किया।
गुरु गोबिंद सिंह का परिवार
क्र०सं० | पत्नी का नाम | विवाह तिथि | विवाह स्थान | पुत्र का नाम |
1. | माता जीतो | 21 जून 1677 | बसंतगढ़ | झुजार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह |
2. | माता सुंदरी | 4 अप्रैल 1684 | आनन्दपुर | अजित सिंह |
3. | माता साहिब दीवान | 5 अप्रैल 1700 | आनन्दपुर | कोई संतान नहीं |
गुरु गोबिंद सिंह के विशेष गुण
आम लोगों में आध्यात्मिक आनंद बांटना, लोगों को नैतिकता के पाठ पढ़ाना, भयभीत और डरे हुए लोगों को निडर और पराक्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित व जागृत करना यह सारे गुरु गोबिंद सिंह के गुण थे। गुरु गोबिंद सिंह शांति, क्षमा और सहनशीलता की मूरत थे। उन्होंने संस्कृत, पंजाबी, फारसी और अरबी भाषा का ज्ञान हासिल किया था। बहुत से लगों का मानना है कि –
गुरु गोबिंद सिंह जी भक्ति और शक्ति का अद्वितीय संगम थे .
गुरु गोबिंद सिंह को नीले घोड़े वाला भी कहा जाता था। चूँकि उनके पास एक नीला घोड़ा था। वह एक विचारक और उत्कृष्ट कवि भी थे। संगीत में भी उनकी विशेष रुचि थी। ऐसा कहा जाता है की उन्होंने इन वाद्य यंत्रों का आविष्कार किया था-
- ताऊस और
- दिलरुभा
गोबिंद सिंह कैसे बने सिखों के दसवे गुरु?
गुरु तेग बहादुर यानि गोबिंद सिंह के पिता जी सिखों के नौ वे धर्म गुरु थे। जब कश्मीरी पण्डितों को ज़बरदस्ती इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर किया जा रहा था तब गुरु तेगबहादुर जी ने इसका पुरजोर विरोध किया और हिन्दुओं की रक्षा की। उन्होंने खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से इनकार कर दिया। इस कारण से उन्हे हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगज़ेब नें चांदनी चौक विस्तार में उनका सिर कलम करवा दिया।इसी घटना के बाद उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवे गुरु नियुक्त किए गए।
खालसा पन्थ स्थापना
खालसा शब्द का अर्थ शुद्धता होता है। मन वचन और कर्म से समाजसेवा के लिए कटिबद्ध व्यक्ति ही खुद को खालसापंथी कह सकता है। गुरु गोबिंद सिंह नें वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। उनके द्वारा एक खालसा वाणी-
“वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह”
की स्थापना की गयी और साथ साथ उन्होने खालसा पन्थ के मूल सिद्धांतों की स्थापना भी की।
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’
1. कभी अपने सिर के बाल नहीं काटना।
2. लकड़ी का कंघा धारण करना जो स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है।
3. हाथ में कड़ा पहनना।
4. घुटने तक आने वाला अंतर्वस्त्र (कच्छा ) अथवा बाहरी वस्त्र पजामा पहनना।
5. कृपाण रखना (छोटी तलवार गरीब और मज़लूम वर्ग की रक्षा के लिए)।
इसे एक लाइन में कहते हैं –
कच्छा, केश, कृपाण, कंघा, कड़ा
चमकौर युद्ध – 1704 में
मुगल शाही सेना के दस लाख सैनिक का सामना गुरु गोबिंद सिंह नें सिर्फ चालीस सिख लड़ाकू सैनिक के साथ किया था। इस प्रचंड युद्ध में उनके दो पुत्र झुजार सिंह और अजित सिंह शहीद हुए थे। इनके अलावा दो और पुत्रों को यानि फतेह सिंह और जोरावर सिंह को शत्रुओं नें बाद में दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया था। इस घटना के समयकाल में ही उनकी माता गुजरी देवी जी का भी स्वर्गवास हुआ था।
अन्य प्रमुख लड़ाइयाँ:
- 1688 – भांगानी की लड़ाई
- 1691 – नंदौन की लड़ाई
- 1696 – गुलेर की लड़ाई
- 1700 – आनंदपुर की पहली लड़ाई
- 1701 – आनंदपुर साहिब की लड़ाई
- 1702 – निर्मोहगढ़ की लड़ाई
- 1702 – बसोली की लड़ाई
- 1704 – आनंदपुर की लड़ाई
- 1704 – सरसा की लड़ाई
प्रमुख रचनाएं:
- जाप साहिब
- अकाल उस्तत
- बचित्र नाटक
- ज़फ़रनामा
- खालसा महिमा
गुरु गोबिंद सिंह की अंतिम संगत
अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर गुरु गोबिंद सिंह नें संगत बुला कर सिख धार्मिक पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब को सिख गुरु की गद्दी पर स्थापित किया। और कहा की अब आगे कोई जीवित व्यक्ति इस गद्दी पर नहीं बिराजमान होगा। फिर उन्होने कहा कि-
आनेवाले समय में सिख समाज को गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक से ही मार्गदर्शन और प्रेरणा लेनी है।
इसके साथ साथ उन्होने सिख समाज को दीन-दुखियों की सहायता करने और सदैव मर्यादित आचरण करने की सीख दी। इस तरह गुरु गोबिंद सिंह सिख समाज के अंतिम जीवित गुरु बने।
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु
जब औरंगज़ेब मृत्यु को प्राप्त हुआ तब हिंदुस्तान के अगले बादशाह बहादुर शाह बने थे। उन्हे गद्दी दिलाने के लिए गुरु गोबिंद सिंह नें भी मदद की थी। उसी कारण हेतु उन दोनों के संबंध मित्रतापूर्ण थे। बहादुरशाह और गुरु गोबिंद सिंह के मैत्रीभाव से घबड़ा कर सरहद के नवाब वजीद खाँ नें दो पठान द्वारा गुरु गोबिंद सिंह की धोखे से हत्या करवा दी थी। गुरु गोबिंद सिंह नें 7 अक्तूबर 1708 के दिन नांदेड़ साहिब, महाराष्ट्र में अंतिम श्वास ली। गुरु गोबिंद सिंह का जीवनकाल 42 वर्ष का रहा। गुरु गोबिंद सिंह के दोनों हत्यारों में से एक को गुरुजी नें खुद ही अपनी कटार से मौत के घाट उतार दिया था। और दूसरे को सिख समूह नें मार दिया था। दिल पर कटार का तेज वार उनकी मृत्यु का कारण बना था।
विशेष
गुरु गोबिंद सिंह नें सभी सिख गुरुओं के उपदेशों का संकलन कर के गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक में संग्रहित कर के उसे पूरा किया। सिखों के नाम के साथ सिंह शब्द लगाने की परंपरा भी गुरु गोबिंद सिंह नें ही शुरू करी थी। गुरु गोबिंद सिंह सभी धर्म और वर्ण के लोगों का सम्मान करते और आवश्यकता पड़ने पर हमेशा उनकी मदद करते थे। केवल नौ वर्ष की उम्र में गोबिंद सिंह नें कश्मीरी हिन्दूओं की रक्षा करने और बलिदान देने के लिए अपने पिता गुरु तेग बहादुर को प्रेरित किया था।
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गुरु गोबिंद सिंह जी के बारे में Wikipedia पर यह लेख पढ़ें
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सर जी गुरु गोविंद सिंह जी को पढ़ने के बाद मन रोमांचित हो उठा , बहुत ही प्रेरित करने वाली जीवनी है उनकी ,वीरता ,शौर्यता ,अनुशासित रहना , संयमित रहना , इकट्ठे होकर रहना ,एक नेता के अधीन रहना,और अपने जीवन मूल्यों को बनाये रखना ,सतत संघर्ष करना , और अपने धर्म के लिए बलिदान होना , आदि कई बातें हम सबको गुरु गोविंद सिंह जी की जीवनी सिखा रही है।
Very brave ..and real ideal of our nation
Sat sat naman?
Mrityu Aam logo ki hoti hai, Guru Gobind Singh g jaise paviter Atma k liye likhna chahiye Jyoti Jot smana, plz mrityu word na use kre ??
Thanks sir g shri guru gobind singh ke bare me likhne ke liye
waheguruji da khalsa shri waheguruji di Fateh
हर वीर की हत्या धोखे और चल कपट से ही होती है… शत नमन
Guru Gobind Singh kaa jeevan kaafi snghrspurn or chunotipurn rahaa or unhone jan kalyan ke liye kaafi ladaiya bhi ladi,nice story
thanking u. nice
NICE TRUE STORY
nice