भगवान विष्णु की कहानी
एक बार नारायण; जिन्हें हम भगवान विष्णु भी कहते हैं; ने सोचा कि वो अपने इष्ट देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें एक हजार कमल के पुष्प अर्पित करेंगे. पूजा की सारी सामग्री एकत्रित करने के बाद उन्होंने अपना आसान ग्रहण किया. और आँखे बंद कर के संकल्प को दोहराया. और अनुष्ठान शुरू किया.
यथार्थ में शिव जी के इष्ट नारायण है, और नारायण के इष्ट शिव जी है.
किन्तु आज इस क्षण भगवान शंकर भगवान की भूमिका में थे और भगवान नारायण भक्त की. भगवान शिव शंकर को एक ठिठोली सूझी. उन्होंने चुपचाप सहस्त्र कमलो में से एक कमल चुरा लिया. नारायण अपने इष्ट की भक्ति में लीन थे. उन्हें इस बारे कुछ भी पता न चला. जब नौ सौ निन्यानवे कमल चढ़ाने के बाद नारायण ने एक हजारवें कमल को चढ़ाने के लिए थाल में हाथ डाला तो देखा कमल का फूल नहीं था.
कमल पुष्प लाने के लिए न तो वे स्वयं उठ कर जा सकते थे न किसी को बोलकर मंगवा सकते थे. क्यों की शास्त्र मर्यादा है की भगवान की पूजा अथवा कोई अनुष्ठान करते समय न तो बीच में से उठा जा सकता है न ही किसी से बात की जा सकती है. वो चाहते तो अपनी माया से कमल के पुष्पों का ढेर थाल में प्रकट कर लेते किन्तु इस समय वो भगवान नहीं बल्कि अपने इष्ट के भक्त के रूप में थे. अतः वो अपनी शक्तियों का उपयोग अपनी भक्ति में नहीं करना चाहते थे.
नारायण ने सोचा लोग मुझे कमल नयन बोलते है. और तब नारायण ने अपनी एक आँख शरीर से निकालकार शिव जी को कमल पुष्प की तरह अर्पित कर दी. और अपना अनुष्ठान पूरा किया.
नारायण का इतना समर्पण देखकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए, उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु निकल पड़े . इतना ही नहीं, नारायण के इस त्याग से शिव जी मन से ही नहीं बल्कि शरीर से भी पिघल गए. और चक्र रूप में परिणित हो गए. ये वही चक्र है जो नारायण हमेशा धारण किये रहते है. तब से नारायण वही चक्र अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में धारण करते है. और इस तरह नारायण और शिव हमेशा एक दूसरे के साथ रहते है.
रश्मि दुबे
इंदौर
ब्लॉग: Mind and Soul Food
रश्मि जी एक ISO Consultant हैं और उन्हें धार्मिक व पौराणिक कहानियां पढने का शौक है. अपने ब्लॉग Mind and Soul Food पर वह ऐसी ही कहानियां व आत्म विकास से सम्बंधित अन्य विषयों पर लिखती हैं. AKC पर भगवान विष्णु की यह कहानी साझा करने के लिए हम उनके आभारी हैं.
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रश्मि जी एक कथा के अनुसार सुदर्शन चक्र एवं त्रिशूल की उत्पत्ति सूर्य देव के धूलकण से हुई है, ये जो कथा आपने लिखी है ये काल्पनिक है इसमें कोई सच्चाई नहीं है और मैंने भी जो लिखी है वो भी काल्पनिक है जिसे वैष्णव व शवैस्य को मानने वले लोगो ने लिखा है ! दरसल सुदर्शन चक्र और त्रिशूल एक रहस्मय शक्ति है जिसकी कोई सीमा नहीं नही ….ये सस्त्र अदि और अनंत है नारायण और शिव की कुंडलिनी शक्ति है ,ब्रम्हास्त्र, ब्रम्ह्सिर ब्रम्ह दंड,वज्र,पशुपतास्ता,वैष्णव अस्त्र इन सभी अश्त्रो की उत्पति हुई है पर सुदर्शन और त्रित्रिशुल की उत्पति का कोई ज्ञान नहीं किसी को क्युकी ये कुंडलिनी शक्ति है !
Great story sir thanks
बहुत ही रोचक कहानी. धन्यवाद रश्मि जी.
Thank you so much to tell about the story of “Shri Vishnu and Shri Shiv Shankar”.