Lord Mahavira Stories in Hindi
भगवान् महावीर की कहानियां
आप सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं. इस पावन अवसर पर आज हम आपके साथ भगवान् महावीर की तीन बेहद प्रेरणादायक व रोचक कहानियां साझा कर रहे हैं.
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चंडकौशिक सर्प की कहानी / Chandkaushik Snake Story in Hindi
ज्ञान की खोज में महावीर नंगे पाँव एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण करते हुए घनघोर तपस्या कर रहे थे. एक बार वह श्वेताम्बी नगरी जा रहे थे जिसका रास्ता एक घने जंगल से होकर गुजरता था, जिसमे चंडकौशिक नाम का एक भयंकर सर्प रहता था.उस सर्प के बारे में प्रसिद्द था कि वह सदा क्रोध में रहता था और उसके देखने मात्र से ही पक्षी, जानवर या इंसान मृत हो जाते थे.
जब महावीर उस जंगल की ओर बढे तो ग्रामीणों ने उन्हें चंडकौशिक के बारे में बताया और उधर न जाने का निवेदन किया.
पर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महावीर तो भयरहित थे. उन्हें किसी के प्रति नफरत नहीं थी, और वे डर और नफरत को स्वयम के प्रति हिंसा मानते थे. उनके चेहरे पर एक तेज था और वे साक्षात करुणा की मूर्ती थे.
उन्होंने गाँव वालों को समझाया कि वे भयभीत न हों और जंगल में प्रवेश कर गए.
कुछ देर चलने के बाद जंगल की हरियाली क्षीण पड़ने लगी और भूमि बंजर नज़र आने लगी. वहां के पेड़ पौधे मृत हो चुके थे और जीवन का नामोनिशान नहीं था.
महावीर समझ गए कि वह चंडकौशिक के इलाके में आ चुके हैं. वे वहीँ रुक गए और ध्यान की मुद्रा में बैठ गए. महावीर के ह्रदय से प्रत्येक जीव के कल्याण के लिए शांति और करुणा बह रही थी.
महावीर की आहट सुन चंडकौशिक फौरन सतर्क हो गया और अपने बिल से बाहर निकला. महावीर को देखते ही वह क्रोध से लाल हो गया
और मन ही मन सोचा, “इस तुच्छ मनुष्य की यहाँ तक आने की हिम्मत कैसे हुई?”
वह महावीर की ओर अपना फेन ऊँचा कर फुंफकारने लगा…हिस्स…हिस्स..
पर महावीर तो शांतचित्त हो अपनी ध्यान मुद्रा में बैठे रहे और जरा भी विचलित नहीं हुए.
यह देख चंडकौशिक और भी क्रोधित हो गया और उनकी ओर बढ़ते हुए अपना फन हिलाने लगा.
महावीर अभी भी शांति से बैठे रहे और न भागने की कोशिश की ना भयभीत हुए. सर्प का क्रोध बढ़ता जा रहा था, उसने फ़ौरन अपना ज़हर महावीर के ऊपर उड़ेल दिया.
पर ये क्या महवीर तो अभी भी ध्यानमग्न थे, उस घटक विष का उनपर कोई असर नही हो रहा था.
चंडकौशिक को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई मनुष्य उसके विष से बच सकता है, वह बिजली की गति से आगे बढ़ा और महवीर के अंगूठे में अपने दांत गड़ा दिए.
पर ये क्या महवीर अभी भी ध्यानमग्न थे और उनके अंगूठे से खून की जगह दूध बह रहा था.
अब महावीर ने अपनी आँखें खोली. वह शांत थे उनके मुख पर न कोई भय था ना ही क्रोध. वे चंडकौशिक की आँखों में देखते हुए बोले-
उठो!उठो! चंडकौशिक सोचो तुम क्या कर रहे हो!
उनके वाणी में प्रेम और स्नेह था.
चंडकौशिक ने इससे पहले कभी इतना निर्भय और वात्सल्यपूर्ण प्राणी नहीं देखा था, वह शांत हो गया. अचानक ही उसे अपने पिछले जन्म याद आने लगे, अपने क्रोध और अभिमान के कारण आज वह जिस स्थिति में पहुँच गया था वह उसे ज्ञात हो गया. अचानक आये इस ज्ञान से उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया वह प्रेम और अहिंसा का पुजारी बन गया.
महावीर के जाने के बाद उसने चुपचाप अपना सिर बिल के अन्दर कर लिया जबकि उसका बाकी का शरीर बहार ही था.
धीरे-धीरे यह बात सभी को ज्ञात हो गयी कि चंडकौशिक बदल गया है. बहुत से लोग उसे नाग-देवता मान कर दूध, घी इत्यादि से पूजने लगे तो कई लोग जिन्होंने उसके विष के कारण अपने प्रियजन खोये थे उस पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे.
चंडकौशिक न क्रोधित हुआ न किसी का विरोध नहीं किया और लुहू-लुहान उसी अवस्था में पड़ा रहा. रक्त, दूध, मिष्टान आदि कि वजह से जल्द ही वहां चींटियों के झुण्ड के झुण्ड आ पहुंचे. चींटियों के काटने के बावजूद वह अपने स्थान से नहीं हिला कि कहीं कोई चींटी दब कर मर ना जाए.
अपने इस आत्म संयम और भावनाओं पर नियंत्रण के कारण उसके कई पाप कर्म नष्ट हो गए और मृत्युपरांत वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ.
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चंदनबाला और भगवान् महावीर की कहानी / Chandanbala & Mahaveer Swami Story in Hindi
वसुमती चम्पा नगरी की राजकुमारी थी. अचानक हुए एक युद्ध में चंपा के राजा की मृत्यु हो गयी और राजकुमारी बंधक बना ली गयीं. बाद में उन्हें कौशाम्बी नागर में धन्ना सेठ नाम के एक प्रसिद्द व्यापारी ने खरीद लिया और उनका नाम चंदनबाला रख दिया.
सेठ राजुकुमारी को अपनी पुत्री की तरह मानता था पर उसकी पत्नी मूला को डर था कि कहीं सेठ राजकुमारी के प्रेम में ना पड़ जाए.
एक बार जब सेठ व्यापार के सिलसिले में किसी दूसरे नगर गया हुआ था तब मूला ने राजुमारी का सिर मुंडवा कर बेड़ियों से बंधवा दिया. तीन दिनों तक राजकुमारी को भूखा-प्यासा रखा गया और अंत में उन्हें भुने हुए चने खाने को दिए गए.
इधर महावीर कठोर तपस्या में लगे हुए थे और अपने पांच महीने के उपवास को तोड़ने के लिए घर-घर जाकर भिक्षा मांग रहे थे.
अब तक उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फ़ैल गयी थी और हर कोई इस तपस्वी को अच्छा से अच्छा भोजन कराने के लिए आतुर था; पर महावीर परिस्थिति और भोजन देखने के बाद आगे बढ़ जाते और कहीं भी अन्न ग्रहण ना करते.
लोगों के लिए महावीर का यह व्यवहार समझ से परे था. वे ये नहीं जानते थे कि कुछ ख़ास परिस्थितियां पूर्ण होने पर ही वे अपना उपवास तोड़ते हैं, फिर चाहे ऐसा होने में महीनों ही क्यों न लग जाएं. महावीर मानते थे कि यदि प्रकृति उन्हें जीवित रखना चाहती है तो वह उनका प्रण ज़रूर पूरा करेगी.
अपनी तपस्या के ग्यारहवें साल में महावीर कौशाम्बी में थे, और उन्होंने प्रण किया था कि वे तभी अन्न ग्रहण करेंगे जब वह किसी राजकुमारी द्वारा दिया जाए –
जिसेक बाल मुंडे हुए हों, जो बंधनों में जकड़ी हुई हो, जिसकी आँखों में आंसू हों और वह खाने के लिए भुने हुए चने दे.
ऐसी शर्त पूरा होना बहुत कठिन था और महावीर पांच महीने पच्चीस दिनों तक कौशाम्बी में एक घर से दूसरे घर भटकते रहे.
चन्दनबाला को भी यह बात पता थी कि महावीर अपना उपवास तोड़ने के लिए घर-घर भिक्षा मांग रहे हैं. और जैसे ही तीन दिनों की यातना के बाद उसे खाने के लिए चने दिए गए, उसके मन में यही विचार आया कि काश वह इसे उस तपस्वी को दान दे पाती और वह उसे स्वीकार कर लेते.
वह ऐसा सोच ही रही थी कि महावीर सेठ के द्वार पर भिक्षा मांगते हुए पहुंचे. उन्हें देखते ही चंदनबाला प्रसन्न हो गयी और स्वयम भूख से व्याकुल होने के बावजूद वह उन्हें खाने के लिए चने देने को आतुर हो गयी.
महावीर ने देखा कि इस बार खाने को लेकर उनकी सभी शर्तें पूरी हो रही हैं, सिवाय इसके कि चंदनबाला की आँखों में आंसू नहीं थे.
महावीर इस बार भी वह अन्न ग्रहण किये बिना वापस जाने लगे. यह देख चंदनबाला को बहुत दुःख हुआ और वह रोने लगी. जब महावीर ने पलट कर उसे देखा तब वह वापस उसके पास गए और चने खाकर अपना प्रसिद्द व्रत तोड़ा.
कालांतर में जब भगवान् महावीर को ज्ञान प्राप्त हुआ तब चंदनबाला ही 36000 जैन साध्वियों की पहली प्रमुख बनी.
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भगवान् महावीर और राजा प्रसेनजित / Prasenjit and Lord Mahavira Story in Hindi
ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान् महावीर की ख्याति चारों दिशाओं में फ़ैल गयी थी. समाज के विभिन्न वर्गों से लोग उनके दर्शन पाने और उनका शिष्य बनने के लिए एकत्रित होने लगे.
एक दिन राजा प्रसेनजित अपने सेवकों के साथ भगवान् महावीर से मिलने पहुंचे. महावीर के मुखमंडल पर व्याप्त शांति और शरीर से विकीर्ण होती आभा को देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ.
वह भगवान् के सम्मुख जमीन पर बैठ गए और उन्हें नमन करने के बाद बोले, “हे प्रभु!मेरे पास वो हर एक चीज है जो कोई मनुष्य इस दुनिया में प्राप्त करना चाहता है. दौलत, आदर, प्रेमपूर्ण परिवार, विशाल साम्राज्य, सौंदर्य… हर एक चीज है मेरे पास… अब ऐसा कुछ भी नहीं जो मैं प्राप्त करना चाहता हूँ… अब मेरी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है.
लेकिन फिर भी जब मैंने आपके बारे में सुना तो मुझे लगा जैसे कि मैं अपूर्ण हूँ… अधूरा हूँ. मैंने सुना है कि आपने “समाधी” जैसी कोई चीज प्राप्त कर ली है. क्या मैं भी इसे प्राप्त कर सकता हूँ? मैं इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हूँ.”
राजा की बात सुनकर महावीर मुस्कुराए और बोले, “यदि आप “समाधी” प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने राज्य की राजधानी जाएं जहाँ एक बेहद गरीब व्यक्ति रहता है, उसने भी समाधी हासिल कर ली है और वह गरीब होने के कारण हो सकता है वो उसे आपको बेचना चाहे. मुझसे अधिक वो आपकी मदद कर सकता है.”
यह जानकार प्रसेनजित प्रसन्न हो गया और महावीर की आज्ञा लेकर उस व्यक्ति की तलाश में निकल पड़ा. जल्द ही उसका काफिला एक टूटी-फूटी झोपड़ी के सामने जाकर रुका.
सैनिकों की आवाज पर एक व्यक्ति झोपड़ी में से निकला.
राजा बोले, “इन बैलगाड़ियों में अपार धन व हीरे-जवाहरात हैं… तुम ये सब ले लो… और चाहिए तो वो भी बोलो…लेकिन इन सबके बदले तुम मुझे “समाधी” दे दो!”
गरीब व्यक्ति राजा की बात सुन अचरज में पड़ गया और बोला, “यह सम्भव नहीं है महाराज!”
“लेकिन क्यों?”, प्रसेनजित चौंक कर बोले!
गरीब व्यक्ति ने समझाया-
“समाधी” एक मनः स्तिथि है जो निरंतर आध्यात्मिक अभ्यास से प्राप्त की जाती है. दुनिया की सारी दौलत भी इसे खरीद नहीं सकती. आप ही बताइये, क्या आप प्रेम को खरीद सकते हैं? क्या आप किसी का स्नेह क्रय कर सकते हैं? आप एक महान राजा हैं…मैं आपसे प्रेम करता हूँ, आपका आदर करता हूँ, मैं आपके लिए अपना जीवन दे सकता हूँ…लेकिन भला मैं आपका अपनी भावनाएं कैसे दे सकता हूँ?
राजा समझ गए कि “समाधी” कोई वस्तु नहीं जिसे खरीदा जा सके उसे तो अपने तप के बल पर ही प्राप्त किया जा सकता है. वे फ़ौरन भगवान् महावीर के पास वापस लौटे और उसी दिन से उनके शिष्य बन गए.
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Aman Shrivastav says
nice great
kailash Mehra says
aati sundar lekh..!!
Laxmi says
bahut hi sunder post, agar insan ise aatmsat kar le to uska jivan bhi sunder ho jay
Vaibhav Mishra says
हमारे देश में महान संतो में से एक भगवान महावीर जी थे उनके आदर्शों पर चलकर हुम् भी अपना जीवन अच्छा बना सकते है बहुत ही अच्छी पोस्ट…
Rajbir Sehrawat says
Sir Your Stories are very Good. I am a regular reader.
You are very motivated. I am reading your stories from 2016.
Thanks for making this website
Gyani Pandit says
हमारे देश में बहुत से महान संतो जन्म लिया इसलिए भारत भूमि बहुत ही पवित्र मणि जाती है और इनमें से हर एक संत जीवन से हम जीवन जीने के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, बहुत अच्छे.
Juhi says
You guys are on amazing path, you guys can change someone life, mind mayne a SOUL.
Shivlal nishad says
Bahut preranadayak jankari di apne.shukriya aisi jankari share karne ke liye.
Kiran Gupta says
भगवान महावीर की बहुत ही बढ़िया कहानिया प्रस्तुत की है आपने ..बहुत बहुत धन्यवाद् …ऐसे ही शिक्षाप्रद कहानिया प्रस्तुत करते रहिये ….