राजा शिवि की कहानी
Raja Shivi Story in Hindi
शीनर पुत्र महाराजा शिवि बड़े ही दयालु और शरणागतवत्सल थे। एक बार राजा एक महान यज्ञ कर रहे थे। इतने में एक कबूतर आता है और राजा की गोद में छिप जाता है। पीछे से एक विशाल बाज वहाँ आता है और राजा से कहता है –
राजन् मैने तो सुना था आप बड़े ही धर्मनिष्ठ राजा हैं फिर आज धर्म विरुद्ध आचरण क्य़ो कर रहे हैं। यह कबूतर मेरा आहार है और आप मुझसे मेरा आहार छीन रहे हैं।
इतने में कबूतर राजा से कहता है –
महाराज मैं इस बाज से डरकर आप की शरण में आया हूँ। मेरे प्राणो की रक्षा कीजिए महाराज।
राजा धर्म संकट में पड़ जाते हैं। पर राजा अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करके कहते हैं –
राजा – तुमसे डर कर यह कबूतर प्राण रक्षा के लिए मेरी शरण में आया हैं। इसलिए शरण में आये हुए इस कबूतर का मैं त्याग नहीं कर सकता। क्य़ोकि जो लोग शरणागत की रक्षा नहीं करते उनका कहीं भी कल्य़ाण नहीं होता।
बाज – राजन् प्रत्येक प्राणी भूख से व्याकुल होते हैं। मैं भी इस समय भूख से व्याकुल हूँ। यदि मुझे इस समय य़ह कबूतर नहीं मिला तो मेरे प्राण चले जायेंगे। मेरे प्राण जाने पर मेरे बाल-बच्चो के भी प्राण चले जाय़ेंगे। हे राजन्! इस तरह एक जीव के प्राण बचाने की जगह कई जीव के प्राण चले जाय़ेंगे।
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राजा – शरण में आये इस कबूतर को तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। किसी और तरह तुम्हारी भूख शान्त हो सकती हो तो बताओ। मैं अपना पूरा राज्य़ तुम्हें दे सकता हूँ, पूरे राज्य़ का आहार तुम्हें दे सकता हूँ, अपना सब कुछ तुम्हें दे सकता हूँ पर य़ह कबूतर तुम्हें नही दे सकता।
बाज – हे राजन् । यदि आपका इस कबूतर पर इतना ही प्रेम है, तो इस कबूतर के ठीक बराबर का तौलकर आप अपना मांस मुझे दे दीजिए मैं अधिक नही चाहता।
राजा – तुमने बड़ी कृपा की। तुम जितना चाहो उतना मांस मैं देने को तैयार हूँ। यदि यह शरीर प्राणियों के उपकार के काम न आये तो प्रतिदिन इसका पालन पोषण करना बेकार है। हे बाज मैं तुम्हारे कथनानुसार ही करता हूँ।
यह कहकर राजा ने एक तराजू मंगवाया और उसके एक पलडे में उस कबूतर को बैठाकर दूसरे में अपना मांस काट-काट कर रखने लगे और उस कबूतर के साथ तौलने लगे। कबूतर की रक्षा हो और बाज के भी प्राण बचें, दोनो का ही दुख निवारण हो इसलिए महाराज शिवि अपने हाथ से अपना मांस काट-काट के तराजू में रखने लगे।
तराजू में कबूतर का वजन मांस से बढता ही गया, राजा ने शरीर भर का मांस काट के रख दिया परन्तु ककबूतर का पलडा नीचे ही रहा। तब राजा स्वयं तराजू पर चढ गये।
जैसे ही राजा तराजू पर चढे वैसे ही कबूतर और बाज दोनो ही अन्तर्धान हो गये और उनकी जगह इन्द्र और अग्नि देवता प्रगट हुए।
इन्द्र ने कहा- राजन् तुम्हारा कल्याण हो। और यह जो कबूतर बना था यह अग्नि है। हम लोग तुम्हारी परीक्षा लेने आये थे। तुमने जैसा दुस्कर कार्य किया है, वैसा आज तक किसी ने नहीं किया। जो मनुष्य अपने प्राणो को त्याग कर भी दूसरे के प्राणो की रक्षा करता है, वह परम धाम को प्राप्त करता है।
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अपना पेट भरने के लिए तो पशु भी जीते हैं, पर प्रशंसा के योग्य जीवन तो उन लोगो का है जो दूसरों के लिए जीते हैं।
इन्द्र ने राजा को वरदान देते हुए कहा- तुम चिर काल तक दिव्य रूप धारण करके पृथ्वी का पालन कर अन्त में भगवान् के ब्रह्मलोक में जाओगे। इतना कहकर वे दोनो अन्तर्धान हो गये।
दोस्तों, भारत वह भूमि है जहाँ राजा शिवि और दधीचि जैसे लोग अवतरित हुए हैं, जिन्होंने परोपकार के लिए अपना जिन्दा शरीर दान दे दिया। और एक हम लोग हैं जिन्दा की तो बात छोड़िए मरने के बाद भी अंग दान नहीं करते।
दोस्तो मरने के बाद यह शरीर कूड़ा हो जाता है, उसमें से बदबू उठने लगती है, घर और परिवारी जन जल्द से जल्द उसे घर से बाहर ले जाते हैं। अगर वह शरीर काम का होता तो वह उसको जलाते या गाडते क्यों?
पर आपके लिए जो काम का नहीं है, वह किसी को जीवन दे सकता है। किसी को रोशनी दे सकता हैं। और मेडिकल साइंस को एक नई दिशा दे सकता है। और ऐसा तब हो सकता है जब आप इस मृत शरीर को दान करें। इसलिए दोस्तो अब समय आ गया है अंतेष्टि क्रिया को बदलने का और अंगदान कर परोपकार के भागीदार बनने का। कृपया इस बात पर विचार करें और अपना निर्णय लें।
धन्यवाद।सुधांशुल आनन्द
इटावा (उ॰प्र॰)
इस प्रेरणादायक कहानी और अंत में अंग-दान का महत्वपूर्ण सन्देश देने के लिए हम सुधांशुल जी के आभारी हैं. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
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Paresh rupareliya says
Bahut badhiya he agar bharat apne etihas ko pathyaputako me sathan de sakte to har ek balak k pas esi prena dayak kahani ja sakti or vo apne etihas yad karke garv mahsus kar sakte
God says
Very good story for childrens
Anam says
Excellent story thanks