स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण पूर्व संघर्ष
Swami Vivekananda Struggle Before Chicago Speech in Hindi
स्वामी विवेकानन्द के विश्व प्रसिद्ध शिकागो भाषण को तो हम सभी जानते है, पर वहां तक पहुँचने के लिए उन्होने जो संघर्ष किया उसके बारे में कम लोग ही जानते है। इस लेख में हम उसके बारे में ही बात करने वाले हैं।
1- स्वामी जी को विश्व धर्म संसद में भाषण देने के लिए बुलाया नही गया था। मद्रास के विद्यार्थी और कुछ देसी रिय़ासतो के राजाओं जिनमें खेतङी नरेश का नाम मुख्य है, के कहने पर स्वामी जी अमेरिका जाने के लिए तैयार हो गये थे।
2- 31 मई, 1893 को बॉम्बे से शिप पर वे भारत से अमेरिका के लिए रवाना हो गये। स्वामी विवेकानंद सीलोन के रास्ते होते हुए पेनांग, सिंगापुर, हांगकांग, कैंटन और नागासाकी तक गये। वहां से वह जमीन के रास्ते से ओसाका, क्योटो और टोक्यो को देखकर योकोहामा तक पहुँच गये। योकोहामा से जहाज वैंकूवर के लिए रवाना हुआ और अन्त में ट्रेन से वह जुलाई के अंत में शिकागो पहुँचे।
3- शिकागो आने के कुछ दिनों बाद स्वामी जी कोलंबियाई सूचना ब्यूरो में गये जहाँ उनकी उम्मीदों को करारा झटका लगा जब उन्हें यह पता चला धर्म संसद सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू होगी और किसी को भी उचित संदर्भ के बिना एक प्रतिनिधि के रूप में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। और एक प्रतिनिधि के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराने का समय अब समाप्त हो चुका है।
4- स्वामी जी के लिए यह एक अप्रत्याशित झटका था। उन्हें लगा उन्होंने भारत को बहुत जल्दी छोड़ दिया था, और यहाँ उन्हें यह भी पता चला कि उन्हें एक मान्यता प्राप्त संगठन के प्रतिनिधि के रूप में आना चाहिए था। फिर, उनके पास जो पैसे थे वे भी धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे। स्वामी जी अवसाद से घिर गये। इन परिस्थितियों में उन्होंने मद्रास के दोस्तों को मदद् के लिए तार किया और एक धार्मिक समाज के अधिकारी को आवेदन किया उन्हें एक धर्म प्रतिनिध के रूप में नियुक्ति प्रदान की जायें।
पर दोनो से ही स्वामी जी को निराशा ही हाथ लगी। मद्रास के मित्रों ने और आर्थिक मदद् कर पाने में अपनी अक्षमता प्रकट की और धार्मिक समाज के अधिकारी ने उन्हें इस प्रकार के किसी नियुक्ति पत्र देनें से मना कर दिया।
5- ऐसी हतोत्साहित करने वाली परिस्थिति में स्वामी जी नें बोस्टन जाने का निर्णय लिया जो शिकागो की तुलना बहुत कम महंगा था। बोस्टन जाने वाली ट्रेन में स्वामी जी नें अपना पहला अमेरिकी दोस्त बनाया था जो कि मैसाचुसेट्स की एक अमीर महिला थी। जो उनके महान व्यक्तित्व और तेजोपूर्ण वाणी से प्रभावित हो गयी थी। उसने स्वामी जी को अपने घर में अतिथि के रूप में पधारने का निमन्त्रण दिया। इस विकट परिस्थिती में यह निमन्त्रण स्वामी जी के लिए ईश्वर का प्रसाद ही था।
6- उसनें स्वामी जी को प्रोफेसर जे.एच. राइट से मिलवाया, जो हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ग्रीक विभाग में प्रोफेसर थे। स्वामी जी की प्रोफेसर के साथ सभी विषयों पर चार घंटे तक चर्चा हुई। प्रोफेसर उनकी दुर्लभ क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने स्वामी जी से जोर देकर कहा कि उन्हें धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। स्वामी जी नें उन्हें अपनी समस्याओ के बारे में बताया और कहा कि उनके पास कोई रिफरेन्नस नही है। प्रोफेसर राइट नें उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए कहा-
आपसे आपकी साख के बारे में पूछना सूरज को चमकने के अपने अधिकार के बारे में पूछने जैसा है!
7- प्रोफेसर ने अपने एक मित्र, डॉ बैरो, जो धर्म संसद समिति के अध्यक्ष थे, को एक पत्र भेजा जिसमें लिखा- मेरे पास एक व्यक्ति है जो हमारे सभी प्रोफेसरों की तुलना में अधिक ज्ञान रखता है। चयन करते समय इसे ध्यान में रखें।
8- उन्होंने स्वामी जी को शिकागो का एक टिकट दिया और एक परिचय पत्र भी दिया जो समिति के समक्ष प्रस्तुत करना था। और समिति तक पहुँचने का पता भी दिया। स्वामी जी नें एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया।
9- लेकिन शिकागो स्टेशन पर उन्होनें पाया कि समिति का वह पता खो गया था और पता नहीं था कि कहाँ जाना है। कोई भी अमेरिकन एक अश्वेत भारतीय को रास्ता बताने के लिए तैयार नही था। स्वामी जी असहाय से इधर-उधर घूम रहे थे। रेलवे माल ढुलाई में उन्होनें एक बड़ी खाली माल गाङी में सर्द रात बिताई।
10- सुबह वह भोजन के लिए घर-घर भटकते रहे, पर महानगर के फैशनेबल निवासियों से अपमान और फटकार के अलावा कुछ नही मिला। थककर स्वामी जी सड़क के किनारे भगवान की इच्छा पर सब कुछ छोङकर चुपचाप बैठ गये।
11- इस मोड़ पर, एक अच्छे घर का दरवाजा खुला और एक महिला नीचे उतर कर बोली- सर, क्या आप धर्म संसद के प्रतिनिधि हैं? उसने स्वामी जी को अपने घर बुलाया और वादा किया कि नाश्ते के बाद वह खुद उनके साथ धर्म संसद के कार्यालय जाएँगी। इस महिला का नाम था श्रीमती जॉर्ज डब्ल्यू हेल (Mrs. George W. Hale)। स्वामी जी अपने उद्धारकर्ता के लिए शब्दों से परे कृतज्ञ थे।
12- श्रीमती हेल के साथ वे धर्म संसद के अधिकारियों से मिले जहाँ उन्हें खुशी-खुशी एक प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया गया।
13- अब स्वामी जी अपने आप को धर्म संसद में आये 1200 प्रतिनिधियों और लाखों की भीङ के बीच पाते है।
14- पर स्वामी जी नें पहले कभी ऐसा सार्वजनिक भाषण नही दिया था इसलिए वे बार-बार संचालक से अपनी बारी टालने के लिए कहते रहे, पर lunch के बाद संचालक नें अपने आप उनका नाम बोल दिया और फिर – “Sisters & Brothers of America” के साथ स्वामी जी ने अपना प्रसिद्द भाषण दिया.
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धन्यवाद
Sudhanshulanand (सुधान्शुलानंद)
इटावा, उत्तर प्रदेश
फोन नं: 9456251005
Email: anshulgupta25.npti@gmail.com
सुधान्शुलानंद जी पेशे से एक Electrical Engineer हैं. इन्हें योग, ध्यान, आध्यात्म और दर्शन में गहन रूचि है. इसके साथ-साथ उन्हें संगीत, साहित्य, कला का भी शौक है | सुधान्शुलानंद जी कविता, कहानी, भजन, पद्य, दोहे, इत्यादि मन की प्रसन्नता के लिए लिखते हैं. इन्होने ध्यान और योग को अपना जीवन माना है और वह प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्म और वास्तविक धर्म के करीब लाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं.
We are grateful to Sudhanshulanand Ji for sharing this inspirational struggle story of Swami Vivekananda in Hindi.
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Thanks for posting this amazing post of Swami Vivekanand. Very good collection of quotes and thoughts.
SWAMI JI YUVA LOGO KE LIYE GREAT INSPIRATION THEY, AUR AAJ BHI HAI.
THANKS
very Good Information sir
Thanks sir! For providing the best motivational quotes and speeches in hindi.
Bahut hi Badiya
धन्यवाद बेस्ट
विवेकानंद जी लाखों युवाओं के आदर्श हैं, उन पर लेख प्रकाशित कर आपने सराहनीय कार्य किया है। आपका धन्यवाद।
Nice