Lachit Borphukan Biography In Hindi
सेनापति लाचित बोड़फुकन की जीवनी
लाचित बोड़फुकन का जीवन परिचय
भारत देश की पवित्र धरती पर कई महान योद्धाओं ने जन्म लिया है। जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर देश और मातृभूमि के लिए अपना जीवन समर्पित किया। लाचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan) भी उन्ही महानुभाव योद्धाओं में से एक थे। इनका त्याग, मातृभूमि की रक्षा का जुनून और स्वाधिन रहने की अडिंग निष्ठा अकल्पनीय थी। भारतवर्ष में इस वीर योद्धा की स्मृति को नमन करते हुए हरसाल 24 नवम्बर को “लाचित दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 ई को “अहोम साम्राज्य” के एक आला अधिकारी सेंग कालुक-मो-साई के घर में “चराइदेऊ” नामक जगह पर हुआ था। उनकी माता कुंदी मराम थीं और उनका पूरा नाम ‘चाउ लाचित फुकनलुंग’ था। उन्होंने सैन्य कौशल के साथ-साथ मानविकी तथा शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया था। बाल्यकाल से ही अत्यंत बहादुर, निडर और समझदार लाचित जल्द ही अहोम साम्राज्य के सेनापति बना दिए गए।
कई लोग यह तथ्य नहीं जानते कि “बोड़फुकन” लाचित का नाम नहीं है, बल्कि यह तो उनकी पदवी थी। उत्तर-पूर्व भारत के राजनीतिक इतिहास को खंगालने पर यह ज्ञात होता है कि “अहोम सेना” की संरचना बहुत ही व्यवस्थित हुआ करती थी। तथ्यों के अनुआर, सेना में एक देका दस सैनिकों का, बोरा बीस सैनिकों का, सेंकिया सौ सैनिकों का, हजारिका एक हजार सैनिकों का और राजखोवा तीन हजार सैनिकों का जत्था हुआ करता था।
इस प्रकार लाचित बोड़फुकन कुल 6 हजार सैनिकों का संचालन करते थे। लाचित की सेना के पास आधुनिक तकनिकी के हथियार और बड़ी सेना नहीं थी फिर भी उन्होंने कई बार मुग़ल सेना के दांत खट्टे किये थे। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 9 मार्च 2024 के दिन Holiongapar, Jorhat (Assam) में लाचित बोड़फुकन की भव्य मूर्ति का अनावरण किया गया है जहाँ असम के मुख्यमंत्री Himanta Biswa Sarma भी उपस्थित हुए थे। आइये Ahoms Kingdom और Lachit Borphukan एतिहासिक किस्सों पर बात करें।
Lachit Borphukan Biography in Hindi
Ahoms Kingdom की जानकारी
पुरे भारत में कब्ज़ा कर लेने वाले मुग़ल कभी असम राज्य को सम्पूर्ण प्राप्त नहीं सके थे। कहा जाता है कि इस राज्य पर आतताई मुग़लों ने बार बार आक्रमण किया लेकिन हर बार धूल फांकते रह गए। वे, कभी भी The Ahom Kingdom को पूरी तरह हरा नहीं सके। कभी-कभार असम का कुछ हिस्सा जीत भी लेते तो उन्हें कड़ा प्रहार कर के वहां से भगा दिया जाता था। इतिहास के पन्नों पर उज्वल अक्षरों में दर्ज इस साम्राज्य “अहोम्स” का शासन 600 साल तक रहा था।
जब की मुग़लों के साथ 1615-1682 तक में अहोम्स की कई बड़ी लड़ाइयां हुई। इस ऐतिहासिक प्रकरण में Lachit Borphukan का नाम बड़े आदरसहित अंकित है। यह Ahom साम्राज्य के बहादुर सेनापति हुआ करते थे। इतिहासकार बताते हैं कि 13वीं शताब्दी में Ahoms म्यांमार (बर्मा) से आ कर ब्रम्हपुत्र वेली में स्थाई हुए थे।
नई जगह में ढलने और अपना आधिपत्य जमाने में इन्हें बहुत लंबा अरसा लगा। फिर 16वीं शताब्दी आते आते इन्होने सदिया किंगडम को परास्त कर दिया और The Ahom Kingdom की स्थापना की। समय बीतने के साथ यह राज्य बहुत शक्तिशाली बनने लगा। आनेवाले समय में उन्होंने साऊथ असम के डीमासा एम्पायर और वेस्ट असम के बारु भुयार एम्पायर को भी जीत लिया। जैसे जैसे Ahoms अपनी सिमेओं को बढ़ाते जा रहे थे, उनके दुश्मन भी बढ़ते जा रहे थे। इसी कड़ी में अफ़ग़ान रूलर्स और टर्कस् के इन पर कई आक्रमण भी हुए।
Ahoms और Mughals में क्यों था 36 का आंकड़ा
दरसल यह बात सब जानते थे की मुग़ल कैसी विकृत इम्पीरीलिज़्म (जबरन अपना साम्राज्यवाद थोपना) वाली मानसिकता रखते थे। वह लोग छल, बल, मित्रता, या शत्रुता किसी भी रास्ते सब कुछ अपने आधीन कर लेने को उतारू रहते थे। इसी नापाक इरादे को आगे बढ़ाते हुए मुग़ल Ahoms को मिटा कर North East को पूरी तरह हथिया लेना चाहते थे।
ताकि वहां की राजनीती और समस्त संपत्ति पर उन्ही का कब्ज़ा हो जाए। लेकिन Ahoms बहुत ही स्वाभिमानी लोग थे, उन्हें पृथ्वी पर किसी के आधीन होना स्वीकार्य नहीं था। इसी लिए इन्होंने दशकों तक जंग के मैदान में मुग़लों से लोहा लिया और कई बार उन्होंने अपनी मातृभूमि से उन्हें दूर खदेड़ा था।
असम के लिए लाचित बोड़फुकन का महत्व
लाचित बोड़फुकन जैसे पराक्रमी योद्धा के रहते मुगल आक्रांता हिंदुस्तान के उत्तर-पूर्व क्षेत्र को अपने अधीन नहीं कर सके थे। वीर लड़ाके लाचित ने शक्तिशाली मुगलों से टक्कर ली और उन्हें हरा कर, उनके अभिमान और अभियान को तहस-नहस करते हुए उत्तर-पूर्व विजय के उनके अरमान को हमेशा के लिए चकनाचूर कर दिया था। मुगल आक्रांताओं से उत्तर-पूर्व भारत की पवित्र भूमि की रक्षा करने वाले महान योद्धा “लाचित बरपुखान” का जीवनचरित्र और व्यक्तित्व साहस, शौर्य, स्वाभिमान, समर्पण और देशभक्ति का पर्याय रहा है।
उनकी वीरता और मौलिक रणनीति के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे। इसी लिए उन्हें पश्चिम भारत के “छत्रपति शिवाजी“ भी कहा जाता था। इतिहास गवाह है कि, राजपुताना में महाराणा प्रताप, पंजाब में गुरु गोबिंदसिंह और पश्चिम भारत में शिवाजी महाराज ने क्रांति की वो आग जला रखी थी की मुग़लों की नाक में इन्होंने दम कर दिया था।
ब्रह्मपुत्र नदी पर अहोम सेना और मुगलों के बीच हुई ऐतिहासिक लड़ाई
उस समय लाचित बहुत बीमार हो गए थे। लेकिन जख्मी शेर जैसे और ज्यादा खतरनाक हो जाता है वैसे इन्होंने भी मुग़लों की ईंट से ईंट बजा दी। 1671 में सराईघाट की लड़ाई में अहोम्स योद्धाओं ने 4000 मुग़ल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। यह नौसेना युद्ध की नई तकनीक थी। मुग़ल भले ही संख्या में अधिक थे लेकिन लाचित की सेना की भौगोलिक-मानविकी ज्ञान और गुरिल्ला युद्ध के सामने वह सब बौने साबित हो गए।
इस युद्ध में सेनापति लाचित ने रातोंरात अपनी सेना की सुरक्षा हेतु मिट्टी से दृढ़ तटबंधों का निर्माण कराया था। लाचित एक ऐसे योद्धा थे जिनका हर कार्य राज्य और मातृभूमि कल्याण को केंद्र में रख कर होता था, वे निजी संबंधों को इस पर कभी प्राथमिकता नहीं देते थे। इसी लिए उन्होंने युद्ध में अपने खुद के मामा की लापरवाही को गंभीर अपराध मान कर उन्हें मृत्यदंड दे दिया था।
लाचित के शब्द : “लाचित जियाइ थका माने गुवाहाटी एरा नाही” (अर्थ: जब तक लाचित ज़िंदा है, उससे गुवाहटी कोई छीन नहीं सकता)
“Battle Of Samdhara” / समधारा का युद्ध
छूटमुट हमले तो 1613 से मुग़ल करने लगे थे। लेकिन 1616 में इन्होंने ऑर्गेनाइज्ड हमला किया था जो “Battle Of Samdhara” के नाम से प्रचलित हुआ था। दरसल Ratan Singh नाम के एक अनाधिकृत व्यापारी का पता चला था जो अहोम्स राज्य में सक्रिय था। इस पर तुरंत प्रभाव से एक्शन लेते हुए Ahoms द्वारा उसकी सारी गैरकानूनी संपत्ति जप्त कर ली गई फिर उसे वहां से तड़ीपार कर दिया गया।
अब मुग़ल वैसे भी Ahoms पर वार करने का मौका खोज रहे थे, उन्हें यह बहाना मिल गया। इसके बाद अबू बकर और भुसना के किंग सत्रजीत की अगुआई में मुग़ल सेना ने असम की पुरानी राजधानी बारनागर की तरफ कूच करना शुरू किया और इस जगह को हथिया लिया। फिर वे आगे बढ़ते हुए “भरालि संगम” तक जा पहुंचे।
लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह मुग़लों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। दरसल अहोम्स ने उन पर सरप्राइज अटैक कर दिया था। समधारा के पास हुई इस भीषण लड़ाई में मुग़लों की कमर तोड़ दी गई, उन्हें वहां से सिर पर पैर रख कर भागना पड़ा। उस समय, यह पहला मौका था जब, जग मशूहर मुग़ल सेना को करारी हार का सामना करने पर बड़ी प्रतिष्ठा हानि हुई थी। इसके बाद भी इन्होंने छोटे बड़े आक्रमण जारी रखे जिसका अहोम्स पर कोई असर नहीं हुआ।
Ahoms और Mughals के बिछ “ट्रीटी जॉफ असूरार”
पहली करारी हार को करीब दो दशक बीत चुके थे। फिर 1636 में मुग़लों ने अहोम्स के “कामरूप” पर अटैक कर दिया। शुरुआती चरण में Ahoms के पैर उखड़ते गए और कुछ हद तक मुग़ल अपनी सिमेओं को विस्तृत करने में सफल हुए। लेकिन इन आक्रांताओं की खुशी केवल 2 साल टिकी, चूँकि 1638 में अहोम्स ने शानदार पलटवार किया। समधारा के पास हुई इस लड़ाई में असम के नेवी चीफ की मृत्यु हो गई, लेकिन फिर भी इस बहादुर सेना ने मुग़लों को असम की धरती से खदेड़ दिया।
इस लड़ाई के बाद दोनों पक्ष शांति प्रस्ताव पर राज़ी हुए चूँकि दोनों पक्षों को भयंकर आर्थिक नुकसान हुआ था, साथ में कई सारे सैनिक भी मारे गए थे। शांति समझौता मुग़ल कमांडर अल्लाहयार खान और अहोम जनरल मोमाई तामुरी बोरबरुआ के बीच हुआ। यह समझौता “ट्रीटी जॉफ असूरार” कहा गया। इस लिखित समझौते में मुग़लों द्वारा अहोम राज्य की स्वतंत्रता को स्वीकार किया गया। जहाँ गुआहाटी से शुरू होने वाला वेस्टन असम मुग़लों के पास आ गया और बाकि का असम को हासिल करने का सपना छोड़ना पड़ा।
अहोम साम्राज्य के राजा जयध्वज सिंघा को सदमा
मुगल सेनापतियों दिलेर खान और मीर जुमला द्वारा किए गए हमले में अहोम साम्राज्य परास्त हुआ था। इस साम्राज्य के कई किले तो बिना कोई लड़ाई लड़े ही हाथ से निकल गए थे। इसके बाद अहोम साम्राज्य के राजा “जयध्वज सिंघा” को इस युद्ध में पीछे हट करनी पड़ी, और उसके पश्चात उन्होंने पूर्वोत्तर का एक बड़ा भाग इस युद्ध में गवा दिया।
इतना ही नहीं, इसके बाद इन्हें मुगल साम्राज्य के साथ एक अपमानजनक संधि के लिए मजबूर किया गया, जिसके तहत उन्हें धन दौलत, पशु, ज़मीन के साथ साथ अपनी 6 साल की मासूम बच्ची को मुग़ल हरम में देना पड़ा। अब आप जान गए होंगे की फिल्मों में महान और बहादुर बताए जाने वाले मुग़ल किस किस्म के लोग थे। सम्राट जयध्वज सिंघा यह अपमान बर्दाश्त नहीं कर सके, जिसके कारण कुछ ही समय में उनकी मौत हो गई
Ahoms और Mughals की लड़ाई का घटना क्रम
- 1615 की लड़ाई : इस लड़ाई के प्रारंभ में मुगलों को लाभ हुआ लेकिन वे पकड़ मजबूत करने में नाकाम हुए। तब अहोमों ने अपनी खोई हुई चौकियाँ पुनः प्राप्त कर लीं थीं।
- 1615 में अन्य लड़ाइयाँ : इसी वर्ष बड़नगर, हाजो, कजली और समधारा पर मुघलों नें कब्ज़ा किया लेकिन Ahoms नें यह सभी चौकियां वापिस हासिल कर ली।
- 1619 में मुग़ल हावी हुए : इन्होने फिर आक्रमण कर के कई चौकियों पर पुनः कब्ज़ा किया।
- 1625 : हाजो में युद्ध विराम हुआ, अब मुग़ल सेना को पीछेहट करनी पड़ी।
- 1636 : कपटी मुघलों नें फिर लड़ाई छेड़ते हुए चौकियां हथिया ली।
- 1637 : अहोम योद्धाओं नें फिर मुग़ल सेना को खदेड़ते हुए उनकी जगह दिखा दी।
- 1638 : अहोमों ने किले पर पुनः कब्ज़ा कर लिया, मुग़ल सैनिक पीछे हट गए, इसी वर्ष “असुरर अली” की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- 1648 : फिर एक बार असम फतह करने के नाकाम सपने देख रही मुग़ल सेना की हार हुई।
- 1662 : मीर जुमला द्वितीय का अभियान हुआ। तब जयध्वज सिंह , अहोम राजा युद्ध से पीछे हट गए, उन्होंने अपनी राजधानी को ही छोड़ दीया।
- 1662 : इसी वर्ष Ahoms नें आक्रमण कर के कामरूप से मुग़लों को भगा दिया और गोवाहाटी और मथुरापुर युद्ध में भी अहोम की विजय हुई।
- 1663 : दोनों पक्ष युद्ध से बुरी तरह थक चुके थे फिर “घिलाझरीघाट की संधि” पर हस्ताक्षर हुए।
- 1667 : इस वर्ष अहोम ने अपनी कई महत्वपूर्ण चौकियाँ खो दीं लेकिन गुवाहाटी में रणनीतिक वापसी की थी।
- 1667 : इसी वर्ष में इताखुली, हाजो, असम बंगाल और गुवाहाटी में लड़ाइयाँ हुई जहाँ सब जगह Ahoms जीते थे।
- 1669 : इस वर्ष तेजपुर और सुआलकुची में युद्ध हुए जिसमें संघर्ष के बाद मुघलों को हार मिली।
- 1670 : इस लड़ाई को अलाबोई की लड़ाई कहा गया जिसमें मुग़ल विजय हुए थे।
- 1671 : इसे “सरायघाट” का की लड़ाई के नाम से जाना गया इसमें Ahoms की निर्णायक जीत हुई।
- 1682 : इसे इताखुली की लड़ाई कहा गया और इसमें अहोम सेना नें ने मानस नदी तक कामरूप पर पुनः अपना अधिकार जमा लिया। इसके बाद 1826 में अंग्रेजों के आगमन तक इस क्षेत्र पर Ahoms का एक चक्री शासन रहा था।
औरंगजेब के सेनापति दिलेर खान और मीर जुमला
अहोम राजवंश ने सेकड़ो वर्षों तक खिलजी, तुगलक, इलियास शाही, लोदी और बंगाल सुल्तानों के आक्रमण से सफलतापूर्वक अपनी मातृभूमि की रक्षा की। लेकिन 1648 में मुगलों के एक भीषण आक्रमण में हारकर उन्हें बड़ी आर्थिक हानि झेलनी पड़ी थी। फिर 1658 में वहशी औरंगवजेब मुग़ल बादशाह बना और 1661 में उसने अपने राज्य के दो प्रमुख सेनापतियों मीर जुमला और दिलेर खान को बंगाल और उसके बाद असम पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था।
बड़े लंबे समय तक मुग़लों से झुज रहे अहोम साम्राज्य की शक्ति और शौर्य लगातार लड़ाइयां लड़ने के बाद अब क्षीण होने लगे थे। इस लिए इस बार उन्हें मुग़लों से हार मिली।
Interesting Facts लाचित बोड़फुकन
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को “लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक” से सम्मानित किया जाता है। लाचित बोड़फुकन की स्मृति को अमरत्व प्रदान करने के लिए उनके समाधि स्थल जोरहाट से 16 किमी दूर हुलुन्गपारा में “स्वर्गदेव उदयादित्य सिंह द्वार” का निर्माण किया गया है।
मुगल आक्रांताओं को धूल चटा कर स्वराष्ट्र के स्वाभिमान और गौरव की रक्षा करने वाले महान योद्धा लाचित बरपुखान जैसे प्रेरणास्पद पूर्वजों से प्रभावित होकर मनीराम दीवान, गोपीनाथ बारदोलोई, कुशल कुँवर, कनकलता बरुआ, तिरोत सिंह, नंगबाह, पा तागम संगमा, वीरांगना रानी रुपलियानी, रानी गाइदिन्ल्यू आदि स्वतंत्रता सेनानियों ने आगे चलकर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध निडरता पूर्वक संघर्ष किया था।
अपने शरीर पर लगे गंभीर घावों के बावजूद, लाचित बोड़फुकन अहोम सेना की पीछे हटने के बाद एक, विशाल रैली के साथ एकजुट करने में सफल हुए। उन्होंने अपने लड़ाकों से कहा की आप जब चाहें तब मैदान छोड़ सकते हैं लेकिन मैं असह्य दर्द के बावजूद, मौत से लड़ने का इरादा रखता हूं। उन्होंने फिर कहा की राजा चक्रध्वज तक यह संदेश भेजा जाए कि, “मैं आखरी दम तक पूरी ताकत के साथ लड़ता रहा था।”
सरायघाट महायुद्ध, जिसके लिए लाचित बोड़फुकन प्रसिद्ध है वह युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी के पास हुआ था। जहाँ, मुगल सेना में लगभग 1,000 तोपें और 5,000 सैनिक थे, साथ ही 30,000 पैदल सेना, 15,000 तीरंदाज और 18,000 तुर्की घुड़सवार सेना भी मौजूद थी। बोरफुकन जानते थे की पारंपरिक लड़ाई से जीत संभव नहीं है, इसी लिए इस साहसी नेता ने गुरिल्ला युद्ध रणनीतियों को अपनाया और भौगोलिक परिस्थिति का लाभ लेते हुए Ahoms को विजयी बनाया था।
मुगल यह देखकर हैरान रह गए कि लाचित बोड़फुकन के नेतृत्व वाली सेना तकनीकी रूप से उनकी तरह सक्षम नहीं थी। और इसलिए, उनके राजा ने असमिया सैनिकों को युद्ध के लिए तोपखाने देने की पेशकश की तब लाचित बोड़फुकन ने कहा था…
” जब तक हमारी रगों में खून की एक बूंद भी रहेगी हम लड़ने के लिए तैयार हैं “
Lachit Borphukan Maidam Development Project Inauguration By PM Modi
मुग़ल आक्रांताओं से असम राज्य की रक्षा करने वाले बहादुर जनरल Lachit Borphukan (The Pride Of India) की मूर्ति का अनावरण भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 9 मार्च 2024 के दिन किया गया। जहाँ असम के Chief Minister Himanta Biswa Sarma भी उपस्थित थे। साहस के प्रतीक और दूरदर्शी लीडर के तौरपर प्रसिद्ध लाचित बारफुकान के स्टैच्यू और अन्य समीप इमारतों की डिटेल्स कुछ इस प्रकार है।
नाप :
कद – ऊंचाई : 125 फीट (मूर्ति का पूरा स्ट्रक्चर)
कद – ऊंचाई – मूर्ति : 84 फिट
कद – ऊंचाई – पेडस्टल (मूर्ति की चौकी) – 41 फीट
अन्य : लाचित बारफुकान और ताई अहोम म्यूजियम
सिटिंग : 500 सीट का ऑडिटोरियम
सुविधा : हॉस्टल – हाऊसिंग (G+2)
खासियत : Lachit Borphukan के सम्मान में बनी इस मूर्ति और अन्य आकर्षण के फल स्वरूप सैलानी टूरिजम बढ़ेगा। साथ ही युवा पीढ़ी साहस, वीरता और दूरदर्शिता के गुणों की गाथा जान कर प्रेरित होगी। (PM Modi Unveils 125-Foot Bronze Statue Of Ahom General Lachit Borphukan)
उद्घाटन की जानकारी :
स्थान : Holiongapar, Jorhat (Assam)
दिन : 9 मार्च, 2024
समय : 12 PM (दो पहर में)
FAQs ( Lachit Borphukan Life Story )
Q – Lachit Borfukan कौन थे?
A – लाचित बोड़फुकन Ahoms साम्राज्य में सेनापति थे।
Q – Ahoms राजाओं ने Assam पर कितने वर्ष राज्य किया?
A – अहोम्स राजाओं ने करीब 600 वर्ष असम पर राज किया था। (1228 से 1828 तक)
Q – Lachit Borfukan के पिता कौन थे?
A – लाचित के पिता मोमई तामुली बारबरुआ अहोम साम्राज्य में चीफ कमांडर के पद पर थे।
Q – अहोम्स और मुग़लों के बीच कब तक लड़ाई का दौर चला था?
A – मुग़ल और अहोम साम्राज्य के बीच 1615 से ले कर 1682 तक कई बड़ी लड़ाइयां हुई थीं।
Q – भारत में Lachit Divas कब मनाया जाता है ?
A – लाचित दिवस India में हर साल “24 नवंबर” के दिन मनाया जाता है।
Q – Ahoms और Mughals के बिछ हुई सब से पहली भीषण लड़ाई किस नाम से जानी जाती है ?
A – इस महायुद्ध युद्ध को “Battle of Samdhara” नाम दिया गया था।
Q – वीरता और साहस के धनी लाचित बोड़फुकन को क्या उपनाम मिला था ?
A – उन्हें पश्चिम भारत के “छत्रपति शिवाजी” का उपनाम दिया गया था।
Q – ट्रीटी जॉफ असूरार शांति समजौता किसके बिछ हुआ था ?
A – यह शांति समझौता मुग़ल कमांडर अल्लाहयार खान और अहोम जनरल मोमाई तामुरी बोरबरुआ के बीच हुआ था।
Q – Ahom योद्धाओं ने Mughals को कितनी बार हराया था ?
A – अहोम के वीरों नें मुघलों को 17 बार युद्ध में हार का स्वाद चखाया था।
Read Also :
- जवाहरलाल नेहरु की जीवनी
- ज्योतिबा फुले बायोग्राफी
- कबीर दास का जीवनचरित्र
- करवा चौथ ki जानकारी
- कृष्ण जन्माष्टमी निबंध
- चाणक्य पर निबंध
- चार्ली चैपलिन लाइफ स्टोरी
- अल्बर्ट आइंस्टीन की जीवनी
- ज्योतिबा फुले की बायोग्राफी
- कबीर दास की जीवनी
Did you like “Lachit Borphukan Biography in Hindi ? / “लाचित बोड़फुकन की जीवनी” पर आधारित यह लेख आप को कैसा लगा ? Please share your comments.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है: [email protected] .पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Vaibhav says
Salute and Respect
Vinay says
dil se slaaam
Hemant says
My hero
Ashok Thamba says
What a great man
David Jonson says
Great Article Thanks For Sharing Information…