नन्द घेर आनंद भयो जै कन्हैयालाल की ...... श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन-पर्व पर “अच्च्छीखबर” के सभी पाठकों को हार्दिक-बधाई एवं शुभकामनाएँ | श्रद्धा, प्रेम, आस्था और उम्मीदों के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व ,कान्हा जी करें कि हमारे जीवन को भी मानवीय-मूल्यों के प्रति आस्था से भर दे एवं एक श्रेष्ठ-जीवन के प्रति हमारी उम्मीदों को कभी भी कम न होने दे |अपने भक्तों के परम हितैषी, दरिद्र ब्राह्मण सुदामा के परम धन, मीरा के गिरिधरगोपाल ,सूरदास जी के नेत्र, रसखान के हृदय ,ब्रज के ग्वाल-बालों के बाल-सखा, … [Read more...]
योग-क्षेम
योग-क्षेम मित्रों, अक्सर ऐसा होता है कि हम जब भी किसी महत्वाकांक्षा अथवा उच्च आदर्श को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं तो हमें अनेकों कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है| अनेकों प्रलोभित और आकर्षित करने वाली ऐसी योजनाएं सामने आ खड़ी होती हैं कि जिनके बारे में सोच-सोच कर हम अपनी मानसिक और शारीरिक, दोनों ही शक्तियों का अपव्यय करके, उनको व्यर्थ नष्ट करके इतने थक जाते हैं कि कई बार चुने हुए कार्य को पूरा करना काफ़ी हद तक मुश्किल हो जाता है | दरअसल, “आत्मसंयम” का अभाव ही इसका मूल कारण होता … [Read more...]
सफल और संतुष्ट जीवन के तीन तप
सफल और संतुष्ट जीवन के तीन तप मित्रों,आज के इस भौतिकवादी युग में धन, सुख, समृद्धि, यश, प्रतिष्ठा,अच्छा परिवार और ओहदा होने के बावजूद भी न जाने क्यों अधिकांश लोगों के चेहरे प्रफुल्लित एवं प्रसन्न नहीं दिखाई देते |एक खिंचाव और तनाव सा बना रहता है |थोड़ी सी भी प्रतिकूलता असहनीय हो जाती है और मन अत्यधिक चिंतित और तन शिथिल होने लगता है |एक असमंजस के शिकार होते देर नहीं लगती |न जाने क्यों हम भूल जाते हैं कि ‘‘ मन के जीते जीत है और मन के हारे हार |’’दरअसल,जीवन का हर क्षण एक दैवी आनंद ,स्फूर्ति और … [Read more...]
स्वयं करें अपना उद्धार
स्वयं करें अपना उद्धार केवल बौद्धिक क्षमताओं के कारण ही प्राणियों की सृष्टि में मानव को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है | प्रकृति के इस विशिष्ट उपहार के सदुपयोग द्वारा ही मानव अपने मन में उठने वाले विक्षेपों अर्थात् बेचैनी, चिंता, भय, दुविधा, कशमकश, संशय, आलस्य, प्रमाद, क्रोध, भ्रान्ति और वासनाओं को नष्ट करने में समर्थ बन जाता है और शुद्ध एवं स्थिर-चित्त हो कर वर्तमान में उपलब्ध परिस्थितियों का लाभ उठाकर उन्नत भविष्य का निर्माण करता है |उसे यह आत्मानुभूति हो जाती है कि वर्तमान में अकुशलता से कार्य … [Read more...]
कर्मशीलता
कर्मशीलता मानव-जीवन का सबसे बड़ा सत्य यह है कि हम मानव एक क्षण के लिए भी निष्क्रिय हो कर नहीं रह सकते क्योंकि निष्क्रियता तो जड़ पदार्थ का धर्म होता है |दरअसल, हम प्रतिपल प्रकृति के तीन गुणों-सत्व, रज और तम के प्रभाव में रहने के कारण ही, निरंतर कर्म करने के लिए विवश होते हैं |शरीर से कोई कर्म न करने पर भी हम मन और बुद्धि से तो क्रियाशील रहते ही हैं|हाँ, जब हम निद्रावस्था में होते हैं, तब अवश्य हमारी विचार-प्रक्रिया शांत हो जाती है| सत्व, रज और तम वस्तुतः, ये तीनों गुण, तीन विभिन्न प्रकार के … [Read more...]
आज ही क्यों नहीं ?
आज ही क्यों नहीं ? एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता … [Read more...]
श्रेय-मार्ग पर चलकर करें अपने सपनों को साकार
श्रेय-मार्ग पर चलकर करें अपने सपनों को साकार वस्तुतः, इस धरा पर ‘मनुष्य’ ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट सृष्टि है |मनुष्य, सच में महान् है क्योंकि केवल वही अपने मन, बुद्धि, ज्ञान, शक्ति और सामर्थ्य के उपकरणों द्वारा प्रकृति की धीमी गतिसे चलने वाली, क्रमिक-विकास प्रणाली को तीव्र गति प्रदान कर पाता है|विकास ही तो मानव का चरम लक्ष्य होता है| लेकिन अपने ॠषियों के इन वचनों से भी तो मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि आत्मा ही वह तत्व है जो ईश्वर के रूप में इस सम्पूर्ण प्रकृति का नियामक अर्थात् शासक है| इस प्रकार … [Read more...]
गुरु-दक्षिणा
Hindi Story on Guru Shishya गुरु - शिष्य पर हिंदी कहानी एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’ गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया- पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक … [Read more...]
आपके विचारों में होती है दिव्य-शक्ति
आपके विचारों में होती है दिव्य-शक्ति हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के वचनामृत हैं कि हमारे विचारों में एक दिव्य-शक्ति हुआ करती है| यही कारण है कि यह असाधारण और अलौकिक शक्ति हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व की परिचायिका है| अक्सर लोगों को कहते सुना है कि जैसा हम सोचते हैं वैसे ही हम बनते हैं पर कभी-कभी हम किसी अन्य व्यक्ति की विचारधारा से इतना अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि हमारा व्यक्तित्व मात्र उसी व्यक्ति का प्रतिबिम्ब बन कर रह जाता है और कभी-कभी इसके विपरीत कोई अन्य भी हमारे विचारों से … [Read more...]
व्यक्तित्व = शरीर ,मन, बुद्धि और आत्मा
दोस्तों, आज मैं आपके साथ व्यक्तित्व के विषय में लिखा गया एक बेहेतरीन लेख share कर रहा हूँ. यह लेख Mrs. Rajni Sadana ने लिखा है. रजनी जी सूरत, गुजरात की रहे वाली हैं, उन्हें 14 वर्ष का संस्कृत पढ़ाने का अनुभव है, और फिलहाल वो एक गृहणी हैं. व्यक्तित्व = शरीर ,मन, बुद्धि और आत्मा ‘अच्छीखबर’ के अच्छे –अच्छे मित्रों से लेखन –द्वारा आज यह पहली भेंट हो रही है | ‘ज़िंदगी’ की यात्रा में यह भेंट चिरायु हो ,ऐसी मेरी कामना है | हमारे ऋषियों का मत है कि मानव एक ही समय में शारीरिक रूप में जीने के साथ-साथ … [Read more...]