क्लास 6th के बच्चे बड़े उत्साहित थे , इस बार उन्हें पिकनिक पे पास के वाइल्डलाइफ नेशनल पार्क ले जाया जा रहा था . तय दिन सभी बच्चे ढेर सारे खाने -पीने के सामान और खेलने -कूदने की चीजें लेकर तैयार थे . बस सुबह चार बजे निकली और 2-3 घंटों में नेशनल पार्क पहुँच गयी .
वहां उन्हें एक बड़ी सी कैंटर में बैठा दिया गया और एक गाइड उन्हें जंगल के भीतर ले जाने लगा . मास्टर जी भी बच्चों के साथ थे और बीच -बीच में उन्हें जंगल और वन्य – जीवों के बारे में बता रहे थे . बच्चों को बहुत मजा आ रहा था ; वे ढेर सारे हिरनों , बंदरों और जंगली पक्षियों को देखकर रोमांचित हो रहे थे .
वे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे कि तभी गाइड ने सभी को शांत होने का इशारा करते हुए कहा , “ शशशश…. आप लोग बिलकुल चुप हो जाइए … और उस तरफ देखिये …. यह एक दुर्लभ दृश्य है , एक मादा जिराफ़ अपने बच्चे को जन्म दे रही है ….”
फिर क्या था ; गाड़ी वहीँ रोक दी गयी , और सभी बड़ी उत्सुकता से वह दृश्य देखने लगे .
मादा जिराफ़ बहुत लम्बी थी और जन्म लेते हुए बच्चा करीब दस फुट की ऊंचाई से जमीन पर गिरा और गिरते ही अपने पाँव अंदर की तरफ मोड़ लिए , मानो वो अभी भी अपनी माँ की कोख में हो …
इसके बाद माँ ने सर झुकाया और बच्चे को देखने लगी . सभी लोग बड़ी उत्सुकता से ये सब होते देख रहे थे की अचानक ही कुछ अप्रत्याशित सा घटा , माँ ने बच्चे को जोर से एक लात मारी , और बचा अपनी जगह से पलट गया .
कैंटर में बैठे बच्चे मास्टर जी से कहने लगे , “ सर, आप उस जिराफ़ को रोकिये नहीं तो वो बच्चे को मार डालेगी ….”
पर मास्टर जी ने उन्हें शांत रहने को कहा और पुनः उस तरफ देखने लगे .
बच्चा अभी भी जमीन पर पड़ा हुआ था कि तभी एक बार फिर माँ ने उसे जोर से लात मारी …. इस बार बच्चा उठ खड़ा हुआ और डगमगा कर चलने लगा…. धीरे -धीरे माँ और बच्चा झाड़ियों में ओझल हो गए .
उनके जाते ही बच्चों ने पुछा , “ सर , वो जिराफ़ अपने ही बच्चे को लात क्यों मार रही थी …अगर बच्चे को कुछ हो जाता तो ?”
मास्टर जी बोले , “ बच्चों , जंगल में शेर -चीतों जैसे बहुत से खूंखार जानवर होते हैं ; यहाँ किसी बच्चे का जीवन इसी बात पर निर्भर करता है की वो कितनी जल्दी अपने पैरों पर चलना सीख लेता है . अगर उसकी माँ उसे इसी तरह पड़े रहने देती और लात नहीं मारती तो शायद वो अभी भी वहीँ पड़ा रहता और कोई जंगली जानवर उसे अपना शिकार बना लेता .
बच्चों , ठीक इसी तरह से आपके माता – पिता भी कई बार आपको डांटते – डपटते हैं , उस वक़्त तो ये सब बहुत बुरा लगता है , पर जब आप बाद में पीछे मुड़कर देखते हैं तो कहीं न कहीं ये एहसास होता है की मम्मी -पापा की डांट की वजह से ही आप लाइफ में कुछ बन पाये हैं . इसलिए कभी भी अपने बड़ों की सख्ती को दिल से ना लें ,बल्कि उसके पीछे जो आपका भला करने की उनकी मंशा है उसके बारे में सोचें .”
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Anurag Pathak says
आपने बिलकुल सही लिखा लेकिन जब हम बड़े होते हैं हमें realize होता है, पेरेंट्स सही डाँटते थे| लेकिन तब तक समय निकल गया होता है| किसी ने सही कहा है हम सब सिर्फ अपने अनुभव से ही जीवन को अनुभव कर पाते हैं|