सभ्यता क्या है , उसकी पहचान क्या है , इन बातोँ पर मैँ अक्सर सोचा करता था । लोँगोँ के मुख से जो सुनता था और नैतिक शिक्षा की किताबोँ मेँ जो बातेँ लिखी होती थीँ , मैँ उनसे न जाने क्योँ सहमत नही हो पाता था, दरअसल, मुझे स्कूल मेँ बताया गया कि सभ्यता के लिए इंसान को टिप-टाप दिखना चाहिए । उसके नाखून कटे होँ , कपङे बिल्कुल साफ सुथरे होँ । लेकिन मैँ इस पर इत्तेफाक नही कर पाया ।
कई बार खेलने के दौरान मेरी शर्ट गंदी हो जाती , तो टीचर कहते कि इतने गंदे कपङे पहने हो , सभ्यता बिल्कुल नही है । एक दिन मैँने टीचर से पूछ ही लिया-क्या जीवन के लिए इस तरह की सभ्यता आवश्यक है? अगर कोई गरीब है, उसके कपङे फटे हुए हैँ , तो क्या वह सभ्य नही है? मेरे ये सवाल सुनकर उन्होँने मुझे बङे प्रेम से समझाया ,`देखो , कपङे फटे होँ , तो कोई बात नही , किँतु वे धुले हुए साफ-सुथरे और प्रेस किए हुए होने चाहिए ।` अध्यापक की यह बात भी मेरे गले नही नही उतरी। मैँ सोचने लगा , यह कैसी सभ्यता ? जिसके पास खाने को भी पैसे न होँ, वह फटे कपङे सिलवाकर , धुलवाकर , और प्रेस करवा कर कैसे पहन सकता है ? अगर वह ऐसा नही कर सकता तो क्या वह असभ्य हो जायेगा ?
अपनी किताबोँ मेँ भी मुझे सभ्य होने की यही पहचान लिखी हुई मिली । घर के बङे लोग भी कहते- सभ्य लोग ऐसा नही करते , वैसा करते हैँ । इस तरह की हिदायतेँ सुनने को मिलतीँ , लेकिन एक दिन मेरी जिँदगी मेँ एक घटना घट गई , जब मैँने सभ्यता का अर्थ तो जाना ही , जीवन की मेरी दिशा ही बदल गई ।
एक दिन जब मैँ अखबार पढ़ रहा था , तो मेरी नजर एक छोटी सी खबर पर टिक गई । उस खबर मेँ लिखा था कि किस तरह एक महिला का प्रसव सङक पर हुआ और किसी भी व्यक्ति ने उस महिला की मदद नही की । मैँ यह खबर पढ़ कर आश्चर्यचकित हो गया कि सभ्यता की चादर ओढ़े ये समाज इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है ? । मेरे मन मेँ यह खयाल आया कि उस समय सभ्य लोग कहां थे , जिन्होँने धुले हुए प्रेस किए हुए कपङे पहने थे ? शायद वे अपने कपङे गंदे होने के डर से मदद नही कर सके होँगे । शायद उनकी वह ‘ सभ्यता ‘ आङे आ गई होगी ।उस खबर का मुझ पर इतना ज्यादा प्रभाव पङा कि मुझे यह समझ मेँ आ गया कि सभ्यता भीतर की चीज है , वह बाहरी आवरण नही । इस घटना के कारण ही मुझमेँ यह बदलाव आया कि जहां भी किसी की मदद करने का अवसर मिलता , वहां मैँ तत्परता से पहुंच जाता था । मैँने कभी इस बात की चिँता नही की कि मेरे कपङे गंदे हो जाएंगे और मुझ पर असभ्य होने का टैग लग जाएगा । मैँ अंततःसमझ गया था कि सभ्य होने का अर्थ संवेदनशील होना है ।
भान उदय
नोनापुर -पुखरायाँ, कानपुर, उ.प्र.
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Nice story sir Yeah sabhayta ka meaning hi sabhya dekhna sabhya kam nahi karna
sahi kaha sir apane sabhyata koi kapade se nahi karmo se jani jati hai
Thanks for beutiful article..
उत्तम लेख, इंसानियत को अपने जीवन में सदैव अपनाना ही सच्ची सभ्यता है।
sabhyata ka prabhav bhi background she milta hair agr ap ke bade ke andar ye hai chote ko bhi hogi.
सही समझा आपने….
परिभाषित सभ्यता छोड़ने वाला ही सभ्य हो पाता है 🙂 सटीक ।
Thank YOu!
Wakai Dil ko chhu jane wali article…. Bhan Uday jee ne Sabhyata ka matlab bahut hi achhi tarah se bataya* Thank you so much…
arre yehi artile same to same sunday (20th july,gurgaon) ko danik jagran mein aaya tha tho ye wha se copy h ya wo yaha se !!!!!
Bhan Uday ji, please clarify, kya aapne is article ko khud likha hai ya kahin se liya hai.
बहुत ही अच्छी पोस्ट शेयर की सर जी आपने. सभ्यता कोई बाहर दिखाने की वस्तु नहीं हैं और ना ही उसका ढोल पिटने की आवश्यकता हैं. वो तो मनुष्य के भीतर होती हैं. जो कुछ ही लोगों को देखने को मिलती हैं
Thanks Sir Jee