Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi
स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी व इतिहास
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान देशभक्त व उच्च श्रेणी के समाजसेवी थे। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व और असीम ज्ञानकोश उन्हें इतिहास में विशेष स्थान प्रदान करता है। ज्ञान गुणवान सर्व सम्पन्न स्वामीजी का सम्पूर्ण जीवन समाज कल्याण कार्यों में बीता था। वे मूर्तिपूजा में आस्था नहीं रखते थे। बाल्यकाल से ही उन्होंने सभी वेद और उपनिषदों का निरंतर अभ्यास किया। स्वामी दयानंद सरस्वती वैदिक धर्म के प्रबल समर्थक रहे, उनका जीवनचरित्र अत्यंत रोचक व प्रशंसनीय है।
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संक्षिप्त परिचय
नाम | महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (मूल शंकर तिवारी) |
जन्म | 12 फ़रवरी, 1824 टंकारा, गुजरात |
मृत्यु | 30 अक्टूबर, 1883 (59 वर्ष), अजमेर |
माता / पिता | अमृत बाई / करशनजी लालजी तिवारी |
कार्यक्षेत्र | समाज सुधारक, देशभक्त, सन्यासी, महान चिंतक |
उपलब्धि | आर्य समाज के संस्थापक। ‘स्वराज्य’ का नारा देने वाले पहले व्यक्ति , जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया. रुढ़िवादी सोच को बदला तथा कई कुरीतियों को मिटाने के प्रयत्न किये। |
प्रारंभिक जीवन
एक समृद्ध ब्राहमण परिवार में जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था। उनके पिताजी एक टैक्स-कलेक्टर व माताजी गृहणी थीं। स्वामी जी का बचपन सुविधा-सम्पन्न था और उन्हें किसी प्रकार का अभाव न था। प्रारम्भ से ही उन्होंने वेदों-शाश्त्रों, धार्मिक पुस्तकों व संस्कृत भाषा का अध्यन किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन में परिवर्तन लाने वाली घटना
बचपन से पिता के साथ धार्मिक क्रिया-कलापों में सक्रिय शामिल होने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती (मूलशंकर तिवारी) के पिता शिव-भक्त थे। एक बार शिवरात्रि पर जब उपवास, व्रत और जागरण के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती अपने पिता के साथ शिव मंदिर में थे तब अर्धरात्री में उन्होने देखा की कुछ चूहों का समूह शिवजी का प्रसाद खा रहे थे। तब स्वामी दयानंद सरस्वती के बालमन ने सोचा कि-
जब ईश्वर अपने भोग की रक्षा नहीं कर सकते हैं तो वह हमारी रक्षा कैसे करेंगे।
इस प्रसंग के बाद स्वामी दयानंद सरस्वती का विश्वास मूर्ति पूजा से उठ गया था। और युवा अवस्था में आते-आते उन्होंने ज्ञान प्राप्ति हेतु घर त्याग दिया था।
ज्ञान प्राप्ति की खोज
स्वामी जी के माता-पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे। पर उनकी सोच तो कुछ और ही थी, और वे 1846 में अपना घर-बार छोड़ कर भाग गए। अगले 25 साल उन्होंने हिमालय की पहाड़ियों में भटकते, ज्ञानार्जन करते और अपने गुरु की सेवा करते हुए बिताये।
स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरु श्री विरजानंद
स्वामी जी ने योग विद्या एवं शास्त्र ज्ञान श्री विरजानंद से प्राप्त किया था। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत जब स्वामी दयानंद सरस्वती नें गुरुदक्षिणा देने की बात कही तब उनके गुरु विरजानंद ने समाज में व्याप्त कुरीति, अन्याय, और अत्याचार के विरुद्ध कार्य करने और आम जनगण में जागरूकता फ़ैलाने को कहा। यही श्री विरजानंद की गुरुदक्षिणा थी।
स्वामी विरजानंद नें स्वामी दयानंद सरस्वती को ज्ञान तो दिया पर उसका मोल मांगने की बजाये स्वामी जी को समाज कल्याण का रास्ता बता दिया जिसके कारण स्वरूप आज भी हम स्वामी दयानंद सरस्वती को याद करते हैं। उनका सम्मान करते हैं। गुरु श्रेष्ठ श्री विरजानंद को हमारा हार्दिक नमन।
Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi
आर्यसमाज स्थापना
स्वामी दयानंद सरस्वती नें गुड़ी पड़वा दिवस पर मुंबई में, सन 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। इसकी नीव परोपकार, जन सेवा, ज्ञान एवं कर्म के सिद्धांतों को केंद्र में रख कर बनाई गयी थी। स्वामीजी का यह कल्याणकारी ऐतिहासिक कदम मील का पत्थर साबित हुआ। शुरूआत में बड़े-बड़े विद्वान और पंडित, स्वामी दयानंद सरस्वती के विरोध में खड़े हुए। परंतु स्वामी जी के सटीक तार्किक ज्ञान और महान समाज कल्याण उद्देश की लहर के आगे विरोधाभासियों को भी नतमस्तक होना पड़ा।
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा बताए गए दर्शन के चार स्तंभ
- कर्म सिद्धान्त
- पुनर्जन्म
- सन्यास
- ब्रह्मचर्य
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा उठाए गए समाज कल्याण के मुद्दे
1. पति की मृत्यु के बाद पत्नी को अपने पति की चिता के साथ जीवित ही प्राण त्यागने की अमानवीय कुप्रथा (सती प्रथा) का पुरज़ोर विरोध।
2. शास्त्रज्ञान अनुसार जीवन के प्रथम पच्चीस वर्ष अविवाहित रह कर ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। इसी तर्क से प्रोत्साहित हो कर स्वामीजी नें बालविवाह प्रथा के विरुद्ध मुहिम छेड़ी थी।
3. स्वामी दयानंद सरस्वती नारी जाति को समृद्ध समाज का आधार मानते थे। इसी कारण महिला शिक्षा और सुरक्षा की ओर उनका विशेष ध्यान रहा था। उनका यह भी मानना था की महिलाओं को पुरुष समकक्ष अधिकार मिलने चाहियें।
4. उनके समय में पति की मृत्यु के बाद स्त्री की स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती थी, उन्हें प्राथमिक सामान्य मानवीय अधिकारों से भी उन्हे वंचित कर दिया जाता था। स्वामी दयानंद सरस्वती नें इसका प्रखर विरोध किया।
5. स्वामी जी के द्वारा जातिवाद और वर्णभेद की कुप्रथा का भी प्रखर विरोध किया गया था। उन्होने समस्त वर्ग के लोगों को समान अधिकार देने की अपील की थी।
6. अंदरूनी लड़ाई का लाभ शत्रु ले जाता है। इसीलिए स्वामी दयानंद सरस्वती का यह नारा था कि, सभी धर्म के अनुयायी एक ध्वज तले एकत्रित हो जाएँ ताकि आपसी गृहयुद्ध की स्थिति से बचा जा सके। और देश में एकता की भावना बनी रहे।
7. स्वामी दयानंद सरस्वती हिन्दी भाषा के समर्थक और प्रचारक भी थे। स्वामी जी वैदिक भाषा संस्कृत में भी प्रवीण थे। बाल्यकाल से संस्कृत का अभ्यास होने के कारण उनकी वक्तृत्व शैली अत्यंत सुदृढ़ और प्रभावी थी।
1857 क्रांति (विप्लव) में स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान
स्वामी जी जब देश का भ्रमण कर रहे थे तब उन्होने देखा की ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों पर बहुत ज़ुल्म कर रही है। उन्होने इस अनीति और अत्याचार के विरुद्ध लोगों को जागरूक करना शुरू किया। और पूर्ण स्वराज हासिल करने के लिए लोगों को एकजुट करना शुरू किया।
1857 की क्रांति असफल रही थी। तब स्वामीजी नें कहा था-
इस हार से निराश होने की ज़रूरत नहीं है। यह तो खुश होने की बेला है। आने वाले समय में बहुत जल्द एक और आज़ादी की लड़ाई की लहर उठेगी। जो ज़ालिम अंग्रेजी हुकूमत को किनारे लगा देगी।
स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी दयानंद सरस्वती के योगदान को देखते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था-
भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।
वीर सावरकर ने भी महर्षि दयानन्द सरस्वती को स्वाधीनता संग्राम का सर्वप्रथम योद्धा माना था।
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स्वामी दयानंद सरस्वती की हत्या का षड्यंत्र
स्वामी जी एक ऐसी हस्ती थे जिनके हर एक बोल में तर्क छुपा होता था। उनके वक्तव्य आम लोगों के मन पर गहरा असर छोड़ते थे। स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रभाव से ब्रिटिश हुकूमत भी खौफ खाती थी। उनके देशप्रेम, निडरता और जोशीलापन अंग्रेजों की आँख में खटकने लगा था। इसीलिए उन्हे विष दे कर मारने का षड्यंत्र किया गया था। हठ योगविद्या में निपुण होने के कारण स्वामीजी विष प्रभाव से सुरक्षित रहे।
स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु
राजा यशवंतसिंह जब जोधपुर की गद्दी पर थे। तब स्वामी जी उनके मेहमान बने थे। यशवंतसिंह का संबंध तब एक नन्ही जान नाम की नर्तकी के साथ थे। स्वामी दयानंद सरस्वती नें जब यह दृश्य देखा तो उन्होने राजा यशवंतसिंह को बड़ी विनम्रता से इस अनैतिक संबंध के गलत और असामाजिक होने की बात उन्हे समझाई। स्वामी दयानंद सरस्वती के नैतिक ज्ञान से राजा की आँखें खुल गयी और उन्होंने नर्तकी नन्ही जान से अपने गलत रिश्ते खत्म कर के उस पर सदैव के लिए पूर्ण विराम लगा दिया।
राजा से संबंध टूटने के कारण नर्तकी नन्ही जान इस कदर नाराज़ हुई कि उसने रसोईये से मिल कर स्वामी दयानंद सरस्वती के भोजन में काँच के बारीक टुकड़े मिलवा दिये। उस भोजन को ग्रहण करने के उपरांत स्वामीजी की तबियत खराब होने लगी। जांच पड़ताल होने पर रसोइये ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया। और तब विराट हृदय वाले स्वामी दयानंद सरस्वती नें उसे भी क्षमा कर दिया। इस घात से स्वामी जी बच नहीं पाये। उन्हे विशेष उपचार हेतु 26 अक्टूबर के दिन अजमेर लाया गया। परंतु 30 अक्टूबर के दिन उनका स्वर्गवास हो गया।
स्वामी जी के अंतिम शब्द: “प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।”
लेखन व साहित्य
स्वामी जी के प्रमुख लेखन कार्य निम्नलिखित हैं:
सोर्स: Wikipedia
स्वामी जी के नाम से शिक्षण संस्थान
- रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय
- अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय
- जालंधर डीएवी विश्वविद्यालय
- DAV कॉलेज प्रबंध समिति के अंतर्गत 800 से अधिक स्कूलों का संचालन
स्वामी दयानंद सरस्वती विशेष
समाज में व्याप्त कुरीति और दूषणों से लोहा लेने वाले युगपुरुष स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवनचरित्र अत्यंत प्रेरणादायी था। स्वामीजी ने समाज के नैतिक जीवन मूल्यों का जतन करने के साथ-साथ उनमें मौजूद अन्यायपूर्ण क्षतियां दूर करने के लिए प्रयास किए। मानवतावाद, समानता, नारी विकास, एकता और भाईचारे की भावना को बल दिया। देश की आज़ादी के लिए निडरता से कटाक्ष पूर्ण भाषण दिये। पूरा भारत देश और मानवसमाज स्वामी दयानंद सरस्वती के अमूल्य योगदान के लिए उनका आभारी रहेगा।
हम ऐसी महान शख्सियत को शत-शत नमन करते हैं।
Team AKC
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Ravi Bhardwaj says
स्वामी दयानंद जी की बहुत ही सारगर्भित जीवनी हैं|आपके इस लेख को पढ़कर बहुत ही सुखद अनुभव हुआ|
Haroon Rashid says
Main bahut abhari hoon ki aapke itne mahan vyakti ke jeevan ke bare me apne blog me likha .Jo log nahi jante unke liye ye jaroori that.
viram singh says
bahut achhi jankari.
is post ke lie ki gai apki mehnt saf jhlk rahi h.
Ravi Mehta says
My name is Ravi Kumar Mehta
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Anuj Mishra says
Kafi achhi post hai, maja aagya, par ek bat samajh me nahi aaya ki kya aadmi ko gyan himalay ki pahadiyon me jane ke bad milta hai