Inspirational Hindi Story on Donation
दान पर प्रेरणादायक कहानी
कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांचों पांडव भाईयों ने एक महान दान यज्ञ का आयोजन किया और गरीबों को बहुत बड़े उपहार दिए। सभी लोगों ने महानता और समृद्धि पर विस्मय व्यक्त किया और कहा कि इस तरह का दान दुनिया में पहले कभी नहीं देखा।
लेकिन, समारोह के बाद, वहाँ एक नेवला आया, जिसका आधा शरीर सुनहरा था, और आधा भूरे रंग का। और वह समारोह हॉल के फर्श पर लोटने लगा। और उसने आसपास के लोगों से कहा-
आप सभी झूठे हैं; यह कोई महान दान नहीं है।
“क्या!”, सभी ने अचरज से कहा।
दान पर कहानी
“तुम कहते हो कि यह कोई बड़ा दान नहीं है; क्या तुम नहीं जानते कि यहाँ आने वाले गरीबों को कैसे पूर्णतः सन्तुष्ट किया गया, हर एक की झोली बेशकीमती उपहारों से भर दी गयी? ऐसा महान दान ना पहले हुआ है और ना कभी होगा।
लेकिन नेवला उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ। वह बोला –
“एक बार एक छोटा सा गाँव था, उसमें एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, बेटे और बहू के साथ रहता था। वे बहुत गरीब थे और जीवन-यापन के लिए वे उपदेश के बदले में मिलने वाले दान पर निर्भर रहते थे।
लेकिन एक बार उस गाँव में तीन साल का अकाल पड़ा। गरीब ब्राह्मण के परिवार का निर्वाह होना बहुत कठिन हो गया।
आखिर में गरीब ब्राह्मण बड़ी मुश्किल से भूख से बिलखते अपने परिवार के लिए कहीं से जौ का आटा लेकर आया। बिना किसी देरी के परिवार ने इससे रोटियां तैयार कीं, आटा कम होने के कारण चार रोटियां ही बन पायीं. सभी के हिस्से में एक-एक रोटी आई.
मैं चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ ये सब देख रहा था कि काश मुझे भी कुछ खाने को मिल जाए।
पर होनी में तो कुछ और ही लिखा था…चारों रोटी खाने को तत्पर हुए कि तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।
पिता ने दरवाजा खोला, वहां एक अतिथि खड़ा था।
अतिथि ने ब्राह्मण से कहा कि मैं कई दिनो से भूखा हूँ, मुझपर कृपा करिए, मेरे प्राण भूख से बचा लीजिए।
अतिथि को भगवान का दर्जा देने वाला ब्राह्मण फ़ौरन बोला, “आपका स्वागत है, कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये, मैं अभी आपको भोजन कराता हूँ।” और ऐसा कह कर उस निर्धन ब्राहमण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि के सामने परोस दी.
अतिथि तो मानो बरसों से भूखा था, पलक झपकते ही उसने रोटी ख़तम कर दी और बोला, “ओह, आपने तो मुझे मार ही दिया; मैं दस दिनों से भूखा हूँ, और एक रोटी से मेरा कुछ नहीं होने वाला, इससे तो मेरी भूख और भी बढ़ गयी… जल्दी से और रोटियां लाइए।”
पिता असमंजस में पड़ गया। वह अपने भूख से तड़पते परिवार को अपने हिस्से की रोटी देने के लिए नहीं कह सकता था.
लेकिन तभी पत्नी ने पति से कहा, “उन्हें मेरा हिस्सा भी दे दीजिये,”
पति ने इनकार कर दिया.
तब पत्नी ने ने जोर देकर कहा, “यह मेरा एक पत्नी के रूप में कर्तव्य है।”
फिर उसने अतिथि को अपना हिस्सा दे दिया.
उसे खाने के बाद अतिथि और रोटियाँ मांगने लगा.
इस बार बेटा आगे बढ़ा और यह बोलते हुए अपनी रोटी अतिथि को परोस दी कि, “यह एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सम्मान रखने में कोई कसर ना छोड़े।”
अतिथि ने बेटे का हिस्सा भी खाया, लेकिन फिर भी असंतुष्ट रहा। तब बेटे की पत्नी ने भी उसे अपना हिस्सा भी दे दिया।
अथिति अब संतुष्ट था उसे उसकी पर्याप्त खुराक मिल चुकी थी। वह उन्हें आशीर्वाद दे वहां से चला गया।
लेकिन अतिथि के जाने के कुछ देर बाद ही उन चारों अभागों की भुखमरी से मौत हो गई।
फिर नेवला आगे बोला-
उन चारों को मरा देख मैं वहां से घबरा कर भागा तभी मेरे शरीर का कुछ भाग जमीन पर गिरे आँटो के कणों से छू गया और जैसा कि आप देख सकते हैं, तभी से मेरा आधा शरीर सुनहरा हो गया।
तब से मैं पूरे देश का भ्रमण कर रहा हूँ कि कहीं तो मुझे उस तरह का एक और महान दान देखने को मिल जाए, और वहां की पवित्र भूमि पर लोट कर मैं अपना बाकी का शरीर भी सोने में बदल सकूँ। लेकिन अब तक मुझे उस उच्च कोटि का दान देखने को नहीं मिला, इसलिए मैं कहता हूं कि यह कोई महान दान नहीं है।
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धन्यवाद
Sudhanshulanand (सुधान्शुलानंद)
इटावाह, उत्तर प्रदेश
फोन नं: 9456251005
Email: anshulgupta25.npti@gmail.com
सुधान्शुलानंद जी पेशे से एक Electrical Engineer हैं. इन्हें योग, ध्यान, आध्यात्म और दर्शन में गहन रूचि है. इसके साथ-साथ उन्हें संगीत, साहित्य, कला का भी शौक है | सुधान्शुलानंद जी कविता, कहानी, भजन, पद्य, दोहे, इत्यादि मन की प्रसन्नता के लिए लिखते हैं. इन्होने ध्यान और योग को अपना जीवन माना है और वह प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्म और वास्तविक धर्म के करीब लाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं.
We are grateful to Sudhanshulanand Ji for sharing this very inspirational Hindi Story On Donation.
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मैं पहली बार आया आपकी हिंदी वेबसाइट पर, काफी रोचक पोस्ट लिखी है। में भी थोड़ा बहुत नॉलेज शेयर करता हु. लगे रहो क्युकी हिंदी है हम.