संस्कृत श्लोक
Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi
श्लोक 1 :
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||
अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
———
श्लोक 2 :
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
———
श्लोक 3 :
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
अर्थात् : जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |
———
इसे ज़रूर पढ़ें : विद्याथियों हेतु 20 संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
श्लोक 4 :
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
अर्थात् : जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |
———
श्लोक 5 :
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति |
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||
अर्थात्: अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है |(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |
———
श्लोक 6 :
चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||
अर्थात् : संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
———
Watch Sanskrit Slokas on YouTube
श्लोक 7 :
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |
अर्थात् : यह मेरा है,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |
———
श्लोक 8 :
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||
अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |
———
श्लोक 9 :
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन,
दानेन पाणिर्न तु कंकणेन,
विभाति कायः करुणापराणां,
परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अर्थात् :कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
———
श्लोक 10 :
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम् |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
अर्थात् : पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
———
श्लोक 11 :
विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च |
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ||
अर्थात् : ज्ञान यात्रा में,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |
———
श्लोक 12 :
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् |
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ||
अर्थात् : अचानक ( आवेश में आ कर बिना सोचे समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है | ( इसके विपरीत ) जो व्यक्ति सोच –समझकर कार्य करता है ; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |
———
श्लोक 13 :
( अर्जुन उवाच )
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ||
अर्थात् : ( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह ( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ |
———
श्लोक 14 :
(श्री भगवानुवाच )
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते ||
अर्थात् : ( श्री भगवान् बोले ) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है |
New Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi Added ( 01/09/16)
श्लोक 15 :
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
अर्थात् : कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं| कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता|
———
श्लोक 16 :
दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।
एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ॥
अर्थात् : बिना दया के किये गए काम का कोई फल नहीं मिलता, ऐसे काम में धर्म नहीं होता| जहाँ दया नही होती वहां वेद भी अवेद बन जाते हैं|
———
श्लोक 17 :
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
अर्थात् : विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म के कार्य करते हैं और हमे सुख सुख मिलता है|
———
श्लोक 18 :
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
अर्थात् : जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते वे शत्रु के सामान हैं| बुद्धिमानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पाता, वहां वह हंसों के बीच बगुले के समान होता है|
———
श्लोक 19 :
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
अर्थात् : सुख चाहने वाले यानि मेहनत से जी चुराने वालों को विद्या कहाँ मिल सकती है और विद्यार्थी को सुख यानि आराम नहीं मिल सकता| सुख की चाहत रखने वाले को विद्या का और विद्या पाने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए|
———
श्लोक 20 :
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थात् : गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; ऐसे गुरु का मैं नमन करता हूँ।
———
श्लोक 21 :
अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात् ।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित् ॥
अर्थात् : आग से सींचा गए पेड़ कभी बड़े नहीं होते, जैसे सत्य के बिना धर्म की कभी स्थापना नहीं होती|
———
—- पढ़ें 20 और संस्कृत श्लोकों का अर्थ सहित संग्रह—–
रजनी सडाना
रजनी जी का ब्लॉग: https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/AatmBodh/
भारतीय चिंतन की ज्ञान भरी बातों को बताती इन पोस्ट्स को ज़रूर पढ़ें:
- विद्याथियों हेतु 20 संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
- कबीर दास के अर्थ सहित दोहे
- रहीम दास के दोहे – अर्थ सहित
- चाणक्य नीति- इन तीन चीजों से बना कर रखें उचित दूरी
- दूसर दीपक – चाणक्य नीति पर हिंदी कहानी
- महात्मा विदुर की निति
- तुलसी दास के दोहे अर्थ सहित
We are grateful to Mrs. Rajni Sadana for sharing these 14 Sanskrit Slokas with Hindi meaning in the beginning of 2014 .
रजनी जी द्वारा लिखे अन्य लेख पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
GUJRATHI KUSHAL says
NICE SHLOKAS WHICH PROVIDES SATISFACTION TO MIND SOUL AND BODY .LEAD A PERSON TO A RIGHT PATH INSTEAD OF THE WRONG.
Shivani bhati says
Very good 😊🤗🤔🤗
It helps me .😇👩📱📗📖
yamish says
thankyou for these shloks and there beautiful meanings
aparna yadav says
Good sholakas thankyou for showing this this had help me very much ☺😁😄☺😊📚
Bhawes Kumar says
Thanks for these beautiful shloks with it’s meaning
Hindi World says
विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोकों को अर्थ सहित उपलब्ध कराकर आपने बड़ा पुनीत कार्य किया है। हार्दिक शुभकामनाएं।
Sanskruti says
It is AN amazing website thank you so much that I can find my questions answer easily through this website
Arun kashyap says
Jab bhi mai yaha kuchh parhta hu, mujhe mere sawalo K jawab mil jate hai. Thank you very much for making this type blog
Ajay says
? ओ३म् जी ?
अप्रतिम … अभिनंदन ,
शुभ इच्छुक
अजय दीप आर्य
chaitanya sain says
thanks for these beutiful shloks and thier meanings!!