भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में कुछ ऐसी तारीखें हैं जिन्हे कभी भी भुलाया नही जा सकता। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में घटी घटना को याद करके आज भी अंग्रेजों के क्रूर अत्याचार की तस्वीर आँखों को नम कर देती है। 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग में उपस्थित अनेक लोगों में जिनमें बच्चे और महिलाएं भी अधिक संख्या में थी, उन सबपर किये गये अमानवीय अत्याचार तथा क्रूरता का उदाहरण अन्यत्र नही मिलता।
आज भी जलियाँवाला बाग में अनगिनत गोलियों के निशान जनरल डायर की क्रूरता याद दिलाते हैं। जलियाँवाला बाग में रोलेक्ट एक्ट के विरोध में एक सभा का आयोजन हुआ था। जिसपर जनरल डायर की निर्दयी मानसिकता का प्रहार हुआ था। इस घटना ने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया था।
सर्वप्रथम ये जानना जरूरी है कि रौलट एक्ट क्या था ?
भारत में रौलट एक्ट 21 मार्च 1919 से लागु किया गया था। इसने डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट की जगह ली थी क्योंकि ये एक्ट प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही समाप्त हो गया था। रौलट एक्ट में ऐसी विशेष अदालतों की व्यवस्था की गई थी जिनके निर्णयों के विरुद्ध अपील नही हो सकती थी। मुकदमे की कारवाही बंद कमरों में होती थी। जिसमें गवाह पेश करने की भी इजाजत नही थी। प्रान्तीय सरकारों को अन्य अधिकारों के अलावा ऐसी असाधारण शक्तियां प्रदान की गईं थी कि वे किसी की भी तलाशी ले सकती थीं। उसे गिरफ्तार कर सकती थीं या जमानत मांग सकती थीं।
13 अप्रैल 1919 को राष्ट्रीय कॉग्रेस के आह्वान पर तत्कालीन केन्द्रीय असेम्बली में पारित रौलट एक्ट बिल, जो जनमत के विरोध के बावजूद पारित कर दिया गया था। उसका आम सभाओं द्वारा विरोध करने का निर्णय लिया गया था। इस बिल का उद्देश्य भारत की आजादी के लिये चल रही गतिविधियों को कुचलना था।
अतः इस बिल के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। उक्त निर्णय के तहत उस दिन पूरे देश में हङताल करना और सार्वजनिक जगहों पर सभाएं करना भी शामिल था। इसी क्रम में 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग में सभा आयोजित की गई थी जिसमें पंजाब के प्रमुख कांग्रेसी नेता डॉ. शैफुद्दीन किचलु और डॉ. सत्यपाल उपस्थित होने वाले थे, परंतु उन्हे सभा से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। पंजाब के जनरल डायर को ये आयोजन स्वीकार नही था। उसने अमृतसर के स्थानीय प्रशासन को आदेश दिया कि इस बिल के विरोध में होने वाली सभी गतिविधियों को सख्ती से कुचल दिया जाये।
जलियाँवाला बाग पर जनरल डायर गोरखा सैनिकों के साथ स्वंय गया और सैनिकों को आदेश दिया कि सभी सभाजद लोगों को घेर लो। सभा में उपस्थित लोग ये सोच भी नही पाये कि सिपाही यहाँ क्यों आये। जनरल डायर ने किसी भी प्रकार की पूर्व चेतावनी दिये बिना सिपाहियों को आदेश दिया कि सभा में उपस्थित लोगों को गोलियों से मार दो। जनरल डायर के आदेश पर सिपाहियों ने दनादन गोलीयां चलानी शुरु कर दी जिससे हर तरफ चीख पुकार के साथ भगदङ मच गई, लोग जान बचाने के लिये इधर-उधर भागने लगे। जलियाँवाला बाग चारो तरफ से मकानो से घिरा हुआ था। वहाँ से निकलने का एक ही रास्ता था, जिसे फौज ने रोक रखा था।
इसलिये जन समूह अपने को गोलियों की मार से बचाने में असर्मथ था। बाग के बीच में एक कुआँ भी था, जिसमें भागते समय अनेक लोग गिरकर मर गये। एक अनुमान के अनुसार इस घटना में 800 से अधिक लोग मारे गये और हजारों ज़खमी हुए। जखमी लोगों को किसी प्रकार की मेडिकल सहायता नही दी गई, यहाँ तक की घायलों को पीने का पानी भी नही दिया गया। इस घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया और सभी बङे-बङे नेताओं को गिरफ्तार करके बगैर मुकदमा चलाये जेल में बंद कर दिया गया। महात्मा गाँधी इस जाँच हेतु अमृतसर जाना चाहते थे लेकिन उन्हे भी वहाँ जाने से रोक दिया गया।
जलियाँवाला बाग की इस अमानवीय घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है। इस घटना के विरोध का स्वर भारत में ही नही बल्की इंग्लैंड में भी हुआ किन्तु ‘ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लाडर्स’ में जनरल डायर की प्रशंसा की गई। जब इस नृशंस घटना की गूंज लंदन की संसद में भी सुनाई दी तब अंग्रेज सरकार को इस घटना की जाँच हेतु विवश होना पङा। दीनबन्धु एफ. एण्ड्रूज ने इस हत्याकांड को ‘जानबूझकर की गई क्रूर हत्या कहा।‘ इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई, रवीन्द्र नाथ टैगोर ने क्षुब्ध होकर अपनी ‘सर’ की उपाधि वापस कर दी। इस काण्ड के बारे में थॉम्पसन एवं गैरट ने लिखा कि “अमृतसर दुघर्टना भारत-ब्रिटेन सम्बन्धों में युगान्तकारी घटना थी, जैसा कि 1857 का विद्रोह।”
इस घोर नरसंहार को उधमसिहं ने अपनी आँखों से देखा था क्योकि वे उस समय वहाँ उपस्थित लोगों को पानी पिला रहे
थे। उधमसिंह पर इस बर्बरता का मानसिक असर इतना अधिक पङा कि उन्होने उसी वक्त ये प्रण कर लिया था कि वे इस खून का बदला खून से लेंगे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उधमसिंह एक ऐसा नाम है जिसने अपने देश के लोगों की मौत का बदला लंदन जाकर लिया और पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को गोलियों से भून दिया। भारत माता के ऐसे वीर सपूत को भी आज याद किये बिना शब्दों की ये श्रद्धांजली अधुरी है।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को तात्कालीन पटियाला रियासत में हुआ था। उनके पिता का नाम टहर सिंह था वे रेलवे में चौकीदार की नौकरी करते थे। उनके बङे भाई का नाम साधु सिंह था। पिता की बिमारी की वजह से ये लोग अमृतसर आ गये थे। यहीँ अत्यधिक बिमारी के कारण पिता की मृत्यु हो गई और दोनो भाई को अनाथ आश्रम में रहना पङा। वहीं उन्होने दसवीं तक की शिक्षा ग्रहण की एवं कुछ दस्तकारी सीखी। अमृतसर में ही उधम सिंह की मुलाकत एक लकङी के ठेकेदार से हुई जो उसे अफ्रिका ले गया।
अफ्रिका से उधम सिंह अमेरिका चले गये। जहाँ उन्होने अपनी मेहनत से कुछ पैसे कमा लिये। अमेरिका में रहते हुए ही उनका पत्र व्यवहार सरदार भगत सिंह से हुआ। उन्ही की प्रेरणा से वे भारत वापस चले आये। आते समय वो कुछ रिवाल्वर और कुछ पिस्तोलें अपने साथ ले आये। भारत आने पर उन्होने अपने केश और ढाङी कटवा दी तथा अपना नाम बदलकर राम मुहम्मद आजाद रख लिया। जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। वे हथियारों सहित लाहौर पहुँचने में सफल रहे किन्तु लाहौर में तलाशी के दौरान एक पुलिस ने उनके हथियारों को जब्त कर लिया। इस अभियोग में उन्हे चार साल की सजा हुई।
1932 में जेल से रिहा हुए। जलियाँवाला बाग की घटना उनके मन मस्तिष्क में निरंतर धधक रही थी इसलिये उन्होने किसी नाम से एक पासपोर्ट बनवाया और 1933 में भारत छोढकर इंग्लैंड चले गये। इंग्लैंड पहुँच कर उनका लक्ष्य था जनरल डायर की हत्या और वे उपयुक्त अवसर की तलाश करने लगे। भारत के इस महान योद्धा को जिस मौके का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओ डायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।
उधमसिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए और सभा में जनरल ओ डायर के सामने बैठ गये। जब जनरल डायर सभा को संबोधित करने के लिये खङा हुआ तथा भारत के बारे में कुछ अपशब्द ही बोल पाया था कि उधमसिंह ने खङे होकर अपनी पिस्तौल से उसे भून डाला। होम सेक्रेटरी जो उस सभा में मौजूद थे वो भी घायल हुए। सभा में उपस्थित लोगों ने उधमसिंह को पकङ कर पुलिस से हवाले कर दिया।
उधमसिंह के इस सफल प्रयास की प्रशंसा पूरे भारत में की गई। आखिरकार अनगिनत मासूम लोगों की हत्या का बदला उधमसिंह ने ले लिया था। इस बदले से उनका 13 अप्रैल 1919 में लिया गया संकल्प पुरा हो गया था। इस हत्या के कारण उधमसिंह पर लंदन की एक विशेष अदालत में मुकदमा चलाया गया। उधमसिंह विरता पूर्वक सिर को ऊँचा रखते हुए इस हत्या को स्वीकार किये और बोले मुझे इस कार्य पर गर्व है। सैकङों निर्दोष भारतीयों के हत्या के हत्यारे जनरल डायर को मार कर मैने राष्ट्रीय अपमान का बदला लिया है। अंग्रेज अदालत ने उन्हे फाँसी की सजा दी जिसे वे हँसते-हँसते स्वीकार किये।
12 जून 1940 को भारत माता के इस वीर सपूत को फाँसी दे दी गई। शहीद उधमसिंह के इस कृत्य से हजारों निर्दोष लोगों की आत्मा को शान्ति मिली। शहीद उधमसिंह के इस योगदान को भारत कभी भी भुला नही सकता। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उधमसिंह के अवशेष को भारत को सौंप दिया। आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग़ स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को किया गया था।
भारत की स्वतंत्रता में बलिदान की अमरगाथा जलियाँवाला बाग को भारत के इतिहास में कभी भी भुलाया नही जा सकता। उधमसिंह और जलियाँवाला बाग में शहीद हुए अनगिनत लोग अमर हैं। आज १३ अप्रैल के दिन हम इन वीर शहीदों का स्मरण कर इन्हे श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
ऊँ शान्ती
जय भारत
अनिता शर्मा
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We are grateful to Anita Ji for sharing this very informative and heart touching Hindi article on Jallianwala Bagh Massacre and the heroics of Shaheed Udham Singh
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Devindra Pandey says
Jai uddham Singh we are proud for you always & always
Tuleshwar Pandro says
Mera bharat mahan hain!
Or fkra hain ki maine is desh ki mitti me janm liya JAI HINDU JAI HINDUSTAN!
KRISHNA MOHAN LAL says
JAI HINDU…JAI HINDUSTAN
Raj kumar ahir says
जय हिन्द जय भारत जय श्री राम
vikas jain kherot says
जय हिन्द जय भारत
Vikas jain kherot
Yogesh Prajapati says
Jai hind jai bharat jai jawan jai kisan
Kajal Singh says
Jallianwala bagh ek aisa smarak bana jaha na Umar ka antar tha na hi admi aurat ka… Bas Har taraf desh bhakt tha jo apni matra bhumi ki swatantrata k liye jai jai kaar ka udhghosh karte hue apni matra bhumi ki goad me hamesha k liye so gaya…. Is kaamna k saath k vo dubara isi mitti se paida hokar Har janam yuhi desh k naam Kar sake……
Har ek bhed bhav ko mita Kar hum bhi apne swadesh prem ki alakh ko jagae rakhe… Yahi un veero k liye hmari shraddhanjali ho sakti hai
Jai Bharat
SHANKAR HOTA says
very nice.thanks for this.
gyanipandit says
भारत माता के वीर सपूत को श्रद्धांजली ! keep it up, going on!
Umang Prajapati says
जय हिन्द जय भारत