कविन्द्र रबीन्द्रनाथ टैगोर उन विरल साहित्यकारों में से एक हैं, जिनके साहित्य और व्यक्तित्व में अद्भुत साम्य है। अपनी कल्पना को जीवन के सब क्षेत्रों में अनंत अवतार देने की क्षमता रवीन्द्रनाथ टैगोर की खास विशेषता थी ।
विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगपुरुष थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। ऐसे एकमात्र कवि हैं जिनकी रचनाएँ दो देशों में राष्ट्रगान स्वरूप आज भी गाई जाती है। भारत का राष्ट्र-गान “जन गण मन” और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान “आमार सोनार बाँग्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही स्वदेश वापस आ गए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।
बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी। पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। परन्तु अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया। टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की है। रविन्द्र संगीत, बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है।
आइंस्टाइन जैसे महान वैज्ञानिक, श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘‘रब्बी टैगोर’’ के नाम से पुकारते थे। हिब्रू भाषा में ‘‘रब्बी’’ का अर्थ होता है ‘‘मेरे गुरू’’। यहूदी धर्म गुरू को भी ‘‘रब्बी’’ कहा जाता है। आइंस्टाइन और गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर के बीच हुए पत्र व्यवहार में ‘‘रब्बी टैगोर’’ का साक्ष्य मिलता है। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर से अल्बर्ट आइंस्टाइन की मुलाकात सम्भवतः तीन बार हुई। यह तीनों मुलाकात अलग-अलग समय में बर्लिन में हुई थी। सर्वप्रथम टैगोर जी ने ही गाँधी जी को महात्मा कहकर पुकारा था। और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस रविन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर ही गाँधी जी से मिले थे। 1919 में हुए जलियाँवाला काँड की रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने निंदा करते हुए विरोध स्वरूप अपना ‘सर’ का खिताब वाइसराय को लौटा दिया था। रबीन्द्रनाथ टैगोर का वैश्विक मंच पर मानवता का मूल्य निर्धारण करने वाला सार्वभौमिक विचार आज भी विचारणीय है।
महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर प्रथम भारतीय थे, जिन्हें वर्ष 1913 में उनके कविता संग्रह ‘गीतांजली’ के अंग्रेजी अनुवाद पर साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना सिर्फ पांच छात्रों को लेकर की थी। इन पांच लोगों में उनका अपना पुत्र भी शामिल था। 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने वाले विश्वभारती में इस समय लगभग छह हजार छात्र पढ़ते हैं। इसी के ईर्द-गिर्द शांतिनिकेतन बसा था। जहाँ उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन साहित्य, संगीत और कला की शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना जाता है। इंदिरा गाँधी जैसी कई प्रतिभाओं ने शान्तिनिकेतन से शिक्षा प्राप्त की है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर भारत माता के अनमोल रत्नों में से थे, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से देश का नाम रौशन किया। कला और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को भविष्य में भी एक धरोहर की तरह पूजा जायेगा| भावना, ज्ञान और कर्म जब एक सम पर मिलते हैं तभी युगप्रर्वतक साहित्यकार का जन्म होता है। ऐसे ही महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर 7 अगस्त 1941 को कलकत्ता में सारश्वत नियमानुसार इह लोक त्यागकर परलोक में विलीन हो गये। परन्तु साहित्यिक दुनिया में रबीन्द्रनाथ टैगोर सूर्य की भाँति सदैव प्रकाशमान हैं और इन्द्रधनुषी का तानाबाना लिये रवीन्द्र साहित्य की छटा आज भी चहुँ ओर विद्यमान है।
भारत के इस अनमोल रत्न को हमारा शत-शत नमन ।
अनिता शर्मा
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रबिन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल विचार
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