भारत में एवं विश्व के अनेक देशो में अनगिनत महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों से अपने देश का नाम रौशन किया है। कुछ महिलाएं अपने कार्य तथा अपनी सोच के कारण हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। जनहित और राष्ट्र कल्याण के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करने वाली मैडम क्युरी समस्त विश्व के लिए एक आर्दश उदाहरण हैं। लिंग और सिमाओं से परे हर किसी के लिए मैरी क्युरी प्रेरणा स्रोत हैं।

मैडम क्युरी
मैडम क्युरी एक रशियन महिला थीं। उनका जन्म वारसा (पोलैंड) में 7 नवंबर 1867 को हुआ था। माता पिता सुयोग्य अध्यापक थे। माँ अध्यापिका तथा पिता प्रोफेसर थे। माता-पिता की शिक्षाओं का असर मैरी क्युरी पर भी पड़ा। वे बचपन से ही पढाई लिखाई में तेज थीं। माता पिता के प्रोत्साहन तथा पढाई में रुची के कारण वे सभी प्रारंभिक कक्षाओं में अवल्ल रहीं। परंतु बचपन में ही घर की तंग आर्थिक स्थिति के कारण उन्हे अपनी बहन के पास पढने के लिए पेरिस जाना पड़ा। आर्थिक तंगी का वास्तविक कारण था, पिता का शासन की शोषण नीति के विरुद्ध आवाज उठाना। मैरी के पिता देशभक्त थे उन्हे जनता के प्रति हो रही नाइंसाफी पसंद नही थी। उनकी इस विद्रोहात्मक नीति के कारण उनकी तनख्वाह आधी कर दी गई थी।
पेरिस के स्कूल में पढते हुए मैरी क्युरी ने अपने अखंड अभ्यास के बलपर अनेक छात्रवृत्ति प्राप्त की, जिससे उनकी पढाई के खर्च का बोझ मैरी क्युरी की बहन पर नही पड़ा । अपनी शिक्षा का मार्ग स्वयं ही प्रशस्त करते हुए अपनी प्रतिभा के कारण सभी अध्यापकों की प्रिय शिष्या थीं।
मैरी क्युरी फ्रांस में डॉक्टरेट पूरा करने वाली पहली महिला हैं। उनको पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने वाली पहली महिला होने का भी गौरव प्राप्त हुआ। यहीं उनकी मुलाकात पियरे क्यूरी से हुई जो उनके पति बने। इस वैज्ञानिक दंपत्ति ने 1898 में पोलोनियम की महत्त्वपूर्ण खोज की। कुछ ही महीने बाद उन्होंने रेडियम की भी खोज की। जो की चिकित्सा विज्ञान और रोगों के उपचार में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी खोज साबित हुई। 1903 में मेरी क्यूरी ने पी-एच.डी. पूरी कर ली। इसी वर्ष इस दंपत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। 1911 में उन्हें रसायन विज्ञान के क्षेत्र में रेडियम के शुद्धीकरण (आइसोलेशन ऑफ प्योर रेडियम) के लिए रसायनशास्त्र का नोबेल पुरस्कार भी मिला। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली मैरी क्युरी पहली महिला वैज्ञानिक हैं।
मैरी क्युरी का सफर इतना आसान नही था। शुरुवात से उन्होने संघर्ष किया था। घर की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु अध्ययन काल में ही कुछ बच्चों को ट्युशन पढाती थीं। वैवाहिक जीवन में भी पति की असमय मृत्यु ने उनकी जिम्मेदारियों को और बढा दिया। दो बेटीयों का भविष्य और पति द्वारा देखे सपनो को सफल बनाना, मैरी क्युरी का उद्देश्य था। शोध कार्य के दौरान एकबार उनका हाँथ बहुत ज्यादा जल गया था। फिर भी मैरी क्युरी का हौसला नही टूटा। उनका कहना था कि,
“There is nothing to fear in life. That’s the only thing you need to understand.”
“जीवन में कुछ भी नहीं जिससे डरा जाए। आपको बस यही समझने की ज़रुरत है।”
मैरी क्युरी की आर्दश शिक्षा का ही परिणाम था कि उनकी दोनों बेटीयों को भी नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ। बड़ी बेटी आइरीन को 1935 में रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को 1965 में शांति के लिए नोबल पुरस्कार मिला। मैरी क्युरी का एक मात्र ऐसा परिवार है जिसके सभी सदस्यों को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
मैरी क्युरी के द्वारा पेरिस में क्यूरी फाउंडेशन का सफल निर्माण किया गया, जहां उनकी बहन ब्रोनिया को निदेशक बनाया गया। अपने पति पियरे क्युरी के सपनो को पुरा करने के उद्देश्य से मैरी क्युरी अमेरीका गई, जहाँ उन्हे बहुत सम्मान प्राप्त हुआ और उन्हे प्रयोगशाला हेतु लगभग एक लाख डॉलर का चंदा मिला एवं वहाँ के प्रेसीडेंट ने उन्हे रेडियम की वह अनमोल धातु, जो संसार में कम और मूल्यवान वस्तु है, अहदनामे के रूप में प्रदान की, जिसके अंर्तगत ये अधिकार दिया गया कि इस सम्पत्ती पर मैडम क्युरी के बाद उनकी संतानो का परंपरागत अधिकार होगा। परंतु त्याग एवं उदारता की प्रतीमूर्ति मैडम क्युरी ने इस अहदनामें की शर्त में परिवर्तन करा के इसे फ्रांस की प्रयोगशाला में जमा करा दिया। शर्त में ये लिखवा दिया कि इसका उपयोग सार्वजनिक लाभ के लिए संसार भर में किया जायेगा। उनका कहना था कि,
“Radium is not to enrich any one. It is an element for all people.”
“रेडियम किसी को समृद्ध बनाने के लिए नहीं है। यह तत्व सभी लोगों के लिए है।”
दया और करुणा की भावना से ओत-प्रोत, मानवता की मशाल को सदैव प्रज्वलित करने वाली मैडम क्युरी ने नोबल पुरस्कार से प्राप्त राशी को सार्वजनिक कार्यों हेतु दान कर दिया था। उन्होने ने जेनिया के अस्पताल में बच्चों की सहायता हेतु काफी धनराशी दान कर दी तथा 1914 के विश्व युद्ध में पिङित लोगों की सहायता के लिए स्वीडन में दान दिया। युद्ध के मोर्चों पर वे स्वंय गईं और वहाँ उन्होने रेडियम तथा एक्स-रे उपचार के अनेक केन्द्र खोले। घायलों की सक्रिय सेवा हेतु उन्होने एक बङी गाङी में चलता-फिरता अस्पताल खोला था। जिसके माध्यम से लगभग डेढ-दो लाख रोगियों की सेवा उन्होने स्वंय की थी। अनेक उपलब्धियों तथा धन-दौलत की अधिकता के बावजूद उनका जीवन सरल और साधारण था। नए शोधों के प्रति उनकी कर्मठशीलता तथा निरंतर कार्य की वजह से 1934 में ही अतिशय रेडिएशन के प्रभाव के कारण मैरी क्यूरी का निधन हो गया। सादा जीवन और उच्च विचार की भावना लिए मैरी क्युरी का कहना था कि,
“व्यक्ति मात्र के विकास के बगैर हम विश्व को सुंदर नहीं बना सकते। इस लक्ष्य के लिए हमें सदा प्रयासरत रहना होगा, मानवता के लिए भी अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। हमारा प्रमुख कर्तव्य उनके लिए हो, जिनके लिए हम सर्वाधिक उपयोगी हो सकते हैं।“
मैडम क्युरी आज भले ही इस संसार में नही हैं किन्तु उनके द्वारा किये गए कार्य तथा समर्पण को विश्व कभी नही भूल सकता। आज भी समस्त विश्व में मैरी क्युरी श्रद्धा की पात्र हैं तथा उनको सम्मान से याद करना हम सबके लिए गौरव की बात है। मैरी क्युरी को महिला दिवस के उपलक्ष पर शब्दों की भावांजली से शत्-शत् नमन करते हैं।
अनिता शर्मा
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We are grateful to Anita Ji for sharing the inspirational Hindi article on Life of Madam Marie Curie on the occasion of International Women’s Day
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Nice story
Wow mam bahut achchhi jankari di aapne mane padh kar likh bhi liya ise achchhi jankari dene k liye aapko dhanyavad
Bahut achchhi jankari di maam aapne. ……….Dhanyavada…..
Very Nice post
Isse hame bahut hi achchha jankari mila.Lal
Very good and informatic
nice story it is everyone should be think like her
nice post, i salute to madam curie. thx for this post sir.
nice story date 8/3/2015
Nice story
nice post,but madam curie ka dob 07/11/1867 hai to polonium ki khoj 1818 me kaise ki
Thanks , corrections done , it is 1898
wow mam,
kya saandar post hai ye. dunia me aisa kuch bhi nahi jisse dra jaye, maja aa gaya padh kar.
thanks
very good post……..
Bahut achchhi jankari di maam aapne. ……….Dhanyavada…..