25 दिसंबर 2014 को भारत सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 90 वें जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाया गया और आधिकारिक तौर पर हर वर्ष इस दिन को सुशाशन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर जनता के लाभ के लिए अनेक योजनायें शुरू की गईं। इसी के साथ सुशासन सभी रेडियो एवं टीवी चैनलो पर चर्चा का विषय बना और सुशासन शब्द जन-जन की जुबान पर छाया रहा।
वास्तव में सुशासन की अवधारणा का विकास कौटिल्य, अरस्तु तथा प्लेटो के दर्शन शास्त्र में देखा जा सकता है। राम राज्य के रूप में सुशासन की अवधारणा भारत में प्राचीन काल से विकसित है। परंतु आधुनिक लोक प्रशासन की शब्दावली में ये शब्द 1990 के दशक में प्रविष्ट हुआ। विश्व बैंक के एक दस्तावेज में सुशासन शब्द का प्रयोग एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में किया गया है जिससे शासन शक्ति का प्रयोग राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक संसाधनो का प्रबंध करने के लिये किया जाता है। 1994 में विश्व बैंक ने सुशासन के अभिप्राय को इस प्रकार व्यक्त किया था। “सुशासन, भविष्यवाणी योग्य, खुला और प्रबुद्ध, नीति-निर्माणय, एक नौकरशाही जो व्यवसायिक गुणों से लबरेज है, एक कार्यपालिका जो अपने कार्यों में भाग लेता है। खास बात ये है कि ये सभी विधि के शासन में अपना कार्य करते हैं।“
आधुनिक भारत में संविधान के माध्यम से सुशासन की अवधारणा को स्वाभाविक वैधता प्रदान की गई है। सुशासन में विद्यमान अनेक विशेषताएं जैसे कि, सहभागिता, विधि का शासन, पारदर्शिता, अनुक्रियाशीलता, आम सहमति, न्याय संगत, प्रभावशीलता, जवाबदेही और सामरिक दृष्टी की वजह से इसका महत्व बढ जाता है। वर्तमान में समाज, वैज्ञानिक, राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय संस्थायें तथा स्वंय नागरिक समाज इस बारे में चिंतित है कि भारत में सुशासान की व्यवस्था किस प्रकार सुचारु रूप से चले। ये कहना अनुचित न होगा कि भारत में गंणतंत्र के 6 दशक बाद भी सुशासन की अवधारणा व्यवहार में नही है। अनेकता में एकता की पहचान लिए भारत में आज सुशासान को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, सामप्रदायिकता तथा रुढीवादिता जैसी अनेक चुनौतियों का सामना करना पङ रहा है। सामाजिक दूरियों के साथ जातिगत और धार्मिक उन्माद भी बढा है। 20वीं सदी के अंतिम दशकों में राजनैतिक अस्थिरता, क्षेत्रिय एवं साम्प्रदायिक दलों के उदय ने राजनैतिक वातावरण को बहुत दुषित किया है जिससे सुशासन को अपने अस्तित्व के लिये अनेक मुश्किलों का सामना करना पङ रहा है।
सुशासन के आधार को मजबूत करने के लिये भारत में कुछ सुधार की आवश्यकता है। सुशासन की प्राशमिकता को समझते हुए भारत में संवैधानिक और प्रशासनिक सुधारों को मान्यता देनी चाहिये। संविधान के 73 वें एवं 74 वें संशोधन के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को जिस तरह स्थापित किया गया है, उसे गुंणवत्ता प्रदान करनी चाहिये। व्यवस्थापिक एवं कार्यपालिका की तरह न्यायपालिका को भी सुशासन के हित में जवाबदेह बनाना चाहिये। लोक सेवा आर्पूति की गुणवत्ता में सुधार आने से सुशासन का आधार मजबूत होगा।
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया टीकी है; हम भी उम्मीद करते हैं कि एक दिन हम सब सम्मिलित प्रयास से भारत में पुनः राम राज्य जैसा वातावरण निर्मित का सकेंगे और सुशासन महज एक दिवस का मोहताज न होकर जीने का एक तरीका हो जायेगा।
जय भारत
अनिता शर्मा
Educational & Inspirational Videos (10 lacs+ Views): YouTube videos
Blog: http://roshansavera.blogspot.in/
E-mail ID: [email protected]
क्या आप blind students की हेल्प करना चाहते हैं ? यहाँ क्लिक करें या इस फॉर्म को भरें
-————
We are grateful to Anita Ji for sharing this very informative Hindi Essay On Good Governance / Sushashan
अनिता जी के बारे में और अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें या उनके ब्लॉग पर विजिट करें.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks.
अच्छा लिखा है