अपने अनोखे स्वर सौन्दर्य से मंत्र मुग्ध करने वाली Shamshad Begum हिन्दुस्तान की सुनहरी पहचान हैं। हिन्दुस्तानी सिनेमा में गीत संगीत का वजूद अपनी स्थापना से ही चला आ रहा है। जिस दौर में, के.एल.सहगल, सुरैया, नूरजहाँ जैसी शख्शीयतों ने हिन्दी सिनेमा में गायकी के नये युग की शुरुवात की। उसी दौर में अर्थात चालीस के दशक में शमशाद बेगम ने पार्श्व गायन के क्षेत्र में अपनी आवाज का जादू इस तरह बिखेरा कि उस आवाज की खनक सिने जगत की पहचान बन गई। उनके गाये गीतों को सुनकर आज भी यही लगता है कि मानों कल की बात हो। जबकी उनके गीतों की उम्र सत्तर सालों से भी अधिक हो चुकी है।शमशाद बेगम की आवज ने कई गीतों को उजियारे से भर दिया। उनकी आवाज एक ऐसी भोर है जहाँ अँधियारे का नामों निशा भी नही है।
Shamshad Begum Biography in Hindi
शमशाद बेगम की जीवनी
14 अप्रैल 1919 को Shamshad Begum का जन्म अविभाजित भारत के लाहौर शहर में हुआ था। घर परिवार में कोई गवैया नही था, परंतु आमतौर पर शादी-विवाह तथा पर्व-त्योहार पर गाने बजाने का रिवाज लगभग सभी घरों में था। बचपन से ही शमशाद इस तरह के गानों में बढ-चढ कर हिस्सा लेती थीं। उनकी आवाज में एक अज़ब सी कशिश थी, जो हर किसी को आकर्षित कर लेती थी। बचपन से ही ढोलक की संगत में लोकगीतों पर अपनी आवाज को लहराना तथा रमजान पर “नात” एवं मुर्हरम पर “मरसिये” गाकर उन्होने ने अपनी गायकी को जीवन के अलग-अलग भावों तथा रंगो से सजाना शुरू कर दिया था। पाँच वर्ष की उम्र में ही शमशाद अपने स्कूल तथा शहर में जाना-पहचाना नाम बन गईं थीं। कक्षा में शमशाद जब गाना गाती तो कोरस के रूप में कक्षा की सभी लड़कियां उनका साथ देतीं थीं। उनकी गायकी खुदा की नियमत है, जो किसी भी तालीम और संगीत के व्याकरण की मोहताज न थी। बड़े से बड़े कलाकार Shamshad Begum की गायकी सुनकर आश्चर्य करते थे।
बचपन से ही उनके गायन की यात्रा एक अलग अंदाज में ही शुरू हुई। कहते हैं जहाँ चाह होती है वहीं राह होती है। घर में माता-पिता शमशाद को गाने के लिये मना करते थे, किन्तु उनके चाचा चाहते थे कि शमशाद अपने हुनर को आगे बढाये। चाचा एवं उनके दोस्त शमशाद को ग्रामोफोन कंपनी ले गये। संजोग से उस दिन प्रसिद्ध संगीतकार गुलाम हैदर उस कंपनी में थे।
उन्होने Shamshad Begum को स्थाई गाने को कहा। शमशाद ने पूछा ये स्थाई क्या होता है? शमशाद का प्रश्न सुनकर हैदर अचरज में पढ गये, खैर उन्होने समझाया कि गाने की पहली पंक्ति को स्थाई कहते हैं। शमशाद ने गाना शुरू किया तो हैदर ने बीच में ही रोक दिया। शमशाद को लगा कि अब उन्हे दूसरा गाना गाने के लिये कहा जायेगा। पर खुदा ने तो उनके लिये कुछ अलग ही आसमान लिखा था। हैदर ने वहाँ उपस्थित कर्मचारी से कहा कि शमशाद के साथ 12 गानों का एग्रीमेंट साइन कर लिजीये। शमशाद को यकिन ही नही हुआ कि उनकी मुराद इतनी जल्दी पूरी हो जायेगी।
मास्टर गुलाम हैदर को हीरे की पहचान हो गई थी। उन्होने कहा कि-
शमशाद की आवाज संगीत रसिकों का सुध-बुध भुलाकर उन्हे दूसरी दुनिया में पहुँचा देगी।
Shamshad Begum का पहला रेकार्ड जब रीलीज हुआ तो उनकी आवाज का जादू पंजाब की सीमा पार करके पूरे हिन्दूस्तान पर छा गया। रातों रात ऐसा करिश्मा हुआ कि शमशाद का संगीत सफर शुरू होते ही बुलंदी पर पहुँच गया। इस रेकार्ड कंपनी के साथ उन्होने चार साल तक काम किया। उस दौर में रिकार्डिंग के लिये इंजिनीयर विलायत से आया करते थे।
Shamshad Begum के संगीत सफर का अगला पड़ाव ऑल इंडीया रेडियो था। जिससे वे दो साल तक जुड़ी रहीं। रेडियो की वजह से शमशाद की पहचान घर-घर पहुँच गई। कहते हैं जब इंसान की काबलियत को शोहरत के पंख लग जाते हैं तो उसकी खुशबु चारों दिशाओं में फैल जाती है। उस समय के नामी निर्माता दलखुश एम. पंचौली ने शमशाद को अपनी फिल्म में काम करने का न्योता भेजा। शमशाद ये मौका गँवाना नही चाहती थीं, लिहाजा उन्होने स्क्रीन टेस्ट दे दिया लेकिन डर भी था कि घर वाले इजाज़त नही देंगे. वही हुआ जब पंचोली ने उनके पिता जी से बात की तो उन्होने मना कर दिया। ये दौर था लगभग 1935 का। समय अपनी रफ्तार से आगे बढ रहा था। गुलाम हैदर एक पंजाबी फिल्म “यमला जट” में झंडे खाँ के साथ संगीत दे रहे थे. उस फिल्म में उन्होने गाने के लिये शमशाद को बुलाया, इस तरह शमशाद का फिल्मों से नाता जुड़ा। उनकी पहली पंजाबी फिल्म थी “खजांची” जो 1941 में रीलीज हुई। इस फिल्म के सभी 9 गाने गाकर उन्होने ऐसा शमा बाँधा कि, आने वाले ढाई दशक तक उनके गाने का जादू सर चढकर बोलता रहा, जिसका असर आज भी सुनने पर हो जाता है।
शमशाद को लाहौर से मुम्बई लाने का श्रेय निर्माता निर्देशक महबूब खाँ को जाता है। उन्होने बहुत ही जद्दो ज़हद करके शमशाद के पिता जी को मना लिया था। इसतरह शमशाद का सफर बम्बई के लिये शुरु हुआ। मुम्बई आने के बाद उनकी पहली फिल्म थी तकदीर जो 1943 में रीलीज हुई थी। इस फिल्म के लगभग सभी गाने शमशाद ने गाये थे। शमशाद के इस फिल्मी सफर में संगीतकार नौशाद के साथ ने एक नई इबारत लिख दी। चालीस और पचास के दशक में शमशाद बेगम ने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ गाने गाये। उन्होने अपनी आवाज में गीतों के सभी भावों को बहुत ही सुरीले अंदाज में अभिव्यक्त किया है।
“होली आई रे कन्हाई” ” पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली” और ” छोड़ बाबुल का घर मोहे आज पी घर जाना पड़ा” जैसे गाने आज भी मन को भावुक कर देते हैं। ऐसे गीत जो समय से आगे निकल जाते हैं, वो विरले ही जन्म लेते हैं। मुकेश के साथ गाया गाना ” धरती को आकाश पुकारे” मोहम्द रफी के साथ “मेरे पिया गये रंगून वहाँ से किया टेलीफोन” और लता तथा आशा के साथ मुगले आजम की मशहूर कव्वाली “तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे” जैसे गीत फिल्मी इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखे गये हैं। उनके सभी गाने अपना एक विशेष मुकाम रखते हैं जिनको शब्दों में बाँधा नही जा सकता। उन्होने अनेक भाषाओं में गैर फिल्मी गीत भी गाये।
शमशाद की प्रसिद्धी का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, जब बाकी गायक और गायिकाओं को पचास या सौ रूपये एक गाने का पारिश्रमिक मिलता था तब शमशाद को एक गाने का एक हजार या ढेड़ हजार मिलता था। शमशाद जितना अच्छा गाती थीं वो उतनी अच्छी इंसान भी थीं। उनकी नेकदिली और मिलनसार व्यक्तित्व के सभी कायल थे। उनका कभी भी किसी से मन मुटाव नही हुआ। उन दिनों संघर्षरत लोग जो उनकी फीस नही दे सकते थे, शमशाद ने उनके लिये भी गाने गाये।
Shamshad Begum का एक किस्सा आप सबसे सांझा करना चाहेंगे, चालीस के दशक की बात है। गायक मुकेश तबियत खराब होने की वजह से अक्सर स्टूडियो से अनुपस्थित रहते थे। एक दिन शमशाद ने उनसे पूछा की मूकेश भाई क्या प्रॉबलम है? आप अक्सर गायब रहते हैं। दरअसल उन दिनों मुकेश के पेट में असहनीय दर्द उठता था, जो अनेक इलाज के बाद भी ठीक नही हो रहा था। शमशाद को जब उनकी इस परेशानी का पता चला तो उन्होने कहा कि अंगुठे में धागा बाँधिये आपका नाड़ा उखड़ गया है। ऐसा करने पर मुकेश को आराम मिला और उसके बाद शमशाद की ही सलाह पर उन्होने एक अँगुठी भी बनवा कर पहन ली थी. ऐसे ही शमशाद की नेक व्यवहारिकता के किस्से अनगिनत है।
सिने जगत में शमशाद बेगम की आवाज सबसे अलग और ठसके दार रही। उनकी आवाज में एक तरह की कशिश, तीखापन और गीतों को प्रकृति के हिसाब से गाने का गज़ब का हुनर था। उन्होने जीवन के सभी नौ रसों को अपने गाने मे ऐसा ढाला कि गीत जिवंत हो गये। गायकी में सांसों के उतार चढाव का अहम रोल होता है। शमशाद को अपनी सांसो पर अनोखी पकड़ थी। एक ही सांस में लम्बी तान हो या बिना सांस तोड़े गीत की कई पंक्तियों को गाने में उनको मुश्किल नही होती थी। गुलाम मोहम्द के संगीत निर्देशन में फिल्म “रेल का डिब्बा” का गीत ” ला दे मोहे बालमा आसमानी चूडिंया” एक ऐसा गाना था जिसकी चौदह पंक्तियाँ शमशाद ने एक ही सांस में गाई थी। इस गीत में उनके साथी गायक मोहम्द रफी थे। बिना किसी संगीत तालीम के शमशाद की गायकी और भावों की खूबसूरत अदायगी किसी करिश्मे से कम नही है। गायकी के प्रति लगन और मेहनत उनकी इबादत है। उनकी इसी इबादत का अंजाम है कि हम आज भी उनके गानों में हम सब खो जाते हैं।
संगीतकार ओ.पी.नैयर ने कहा था-
शमशाद बेगम की आवाज मंदिर में बजने वाली घंटी की तरह है।
Shamshad Begum के गाए गीतों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, आज भी हिंदी गानों की रिमिक्स बनाने वालों के लिए शमशाद के गाने पहली पसंद हैं। शमशाद के ओरिजनल गाने जितने हिट हुए उतने ही रिमिक्स गाने भी हिट हुए। “कजरा मोहब्त वाला” गाना तो सोनू निगम की आवाज में रिमिक्स किया गया। उदारता की प्रतिमूर्ती शमशाद बेगम ने रिमिक्स बनाने पर कभी भी एतराज नही किया। खनखनाती हुई आवाज की धनी शमशाद बेग 23 अप्रैल 2013 को अल्लाह को प्यारी हो गईं। पद्मभूषण से सम्मानित शमशाद की आवाज भारत की धरोहर है। अद्भुत आवाज की अदाकारा शमशाद बेगम को हम नमन करते हैं।
Read more about Shamshad Begum on Wikipedia (English)
धन्यवाद
अनिता शर्मा
Educational & Inspirational Videos (14 lacs+ Views): YouTube videos
Blog: http://roshansavera.blogspot.in/
E-mail Id: [email protected]
क्या आप blind students की हेल्प करना चाहते हैं ? यहाँ क्लिक करें या इस फॉर्म को भरें
We are grateful to Anita Ji for sharing the biography of great singer Shamshad Begum in Hindi.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks.
Qamre Alam says
hmmmmm nice Article
Pankaj chaturvedi says
Kahne ke liye savd nahi hai bas mahsoos kar leta hun
alok kulshreshtha says
A good write up on Shamshad Begum, suron ki malika..
priyanka pathak says
सर
आपके ब्लॉग में कुछ तो खास जरुर है. हमेशा कुछ नया मिलता है. और जो आप लिंक देते हैं वो भी बहुत उसे फुल होती हैं.
Thank you for every post.
priyanka pathak http://dolafz.com/
Hindi-Mind says
Nice life story of shamshad begum
Prakash Kumar Nirala says
शमशाद बेगम की आवाज मंदिर में बजने वाली घंटी की तरह है. वास्तव में ये वाक्य उनके बारे में सही व्याख्या करती है. उनकी आवाज को कोई नहीं भूल सकता. उनकी बायोग्राफी प्रेरित करने बाली है. #जीवनदर्पण
Prachi DAndekar says
Very nice and inspirational post of Shmshad Begum. Thanks for sharing this post.
NITIN says
wonder ful & right
Rahul chauhan says
very very use full sites for given information about greatest person of the world,thank you.
Amul Sharma says
Very impressive biography of shamshad begum…..thanks for share it….