श्रेय-मार्ग पर चलकर करें अपने सपनों को साकार
वस्तुतः, इस धरा पर ‘मनुष्य’ ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट सृष्टि है |मनुष्य, सच में महान् है क्योंकि केवल वही अपने मन, बुद्धि, ज्ञान, शक्ति और सामर्थ्य के उपकरणों द्वारा प्रकृति की धीमी गतिसे चलने वाली, क्रमिक-विकास प्रणाली को तीव्र गति प्रदान कर पाता है|विकास ही तो मानव का चरम लक्ष्य होता है| लेकिन अपने ॠषियों के इन वचनों से भी तो मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि आत्मा ही वह तत्व है जो ईश्वर के रूप में इस सम्पूर्ण प्रकृति का नियामक अर्थात् शासक है| इस प्रकार हमारे शरीर, मन और बुद्धि का अधिष्ठाता यह ‘आत्मा’ ही हमें चेतन बनाता है एवं समस्त कार्य-व्यापर करने के लिए प्रेरित करता है | दरअसल, मनुष्य की सुख-प्राप्ति की बलवती इच्छा ही समस्त प्राणी-जगत् के सम्पूर्ण कार्य-व्यापार के चलने का प्रमुख कारण है |
हम सभी इस तथ्य से भलीभाँति परिचित हैं कि जीवन का कोई भरोसा नहीं होता|यह तो इतना अधिक अप्रत्याशित है कि कोई भी नहीं जानता कि कब हमारे सामने कौन सी चुनौती आ उपस्थित होगी या फिर हम कब किस संघर्ष का सामना करने के लिए विवश हो जायेंगे| वस्तुतः, काल के प्रवाह में हम क्षण प्रति क्षण विभिन्न परिस्थितियों के ऐसे भंवरजाल में फस जाते हैं कि ‘यह करें या न करें ‘का निर्णय लेना कठिन हो जाता है |कभी-कभी तो प्रलोभन के ऊपर प्रलोभन हमें भ्रमित सा कर देते हैं और काल की गति तो इतनी अधिक तीव्र होती है कि समीपस्थ भविष्य ही वर्तमान बनकर हमें बहा ले जाता है और वही बीते हुए ‘कल’ में विलीन हो जाता है| हमें प्रत्येक क्षण शीघ्रता से अपनी बुद्धि तथा विचार-शक्ति के सहारे इस जड़-चेतन सृष्टि के साथ अपने व्यवहार के संबंध में निर्णय लेना पड़ता है |
चुनौती भरे क्षणों का सामना करते हुए हमें अनुसरण के लिए दो मार्ग दिखाई देते हैं-पहला ‘श्रेय’ तथा दूसरा ‘प्रेय’ का मार्ग |विवेकी मनुष्य संघर्षपूर्ण परिस्थिति के विभिन्न पक्षों को धैर्य-पूर्वक परख कर, श्रेय के मार्ग का अनुसरण करने का दृढ़ निश्चय करता है और सत्य, दया, प्रेम, सहिष्णुता जैसे शाश्वत नैतिक-मूल्यों के पथ पर चलते-चलते अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करता है |दूसरी ओर, प्रेय-मार्ग पर वे लोग चलते हैं जो सदा किसी न किसी वस्तु के पीछे भागती हुई अपनी इंद्रियों को रोक नहीं पाते और अपनी इच्छाओं तथा आशाआों के दास बनकर अविवेकी निर्णयों के कारण, अनुचित मार्ग पर चलते हुए अक्सर अपने लक्ष्य से विचलित हो जाते हैं | इस प्रकार प्रेय-मार्ग सुखकारी और श्रेय का मार्ग कल्याणकारी है |अब, जो कल्याणकारी है –वह सदा प्रिय लगे ऐसा होना आवश्यक नहीं है लेकिन इसके बावजूद जो विवेकी है,सच्चा साधक है,परिवार और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझता है, वह श्रेयस् के मार्ग पर चलता रहता है| चरम-लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में आनेवाली बाधाओं,विघ्नों और कष्टों से विचलित नहीं होता तथा यथेच्छ भौतिक सुखों के न मिलने पर भी दुःखी नहीं होता |इस तरह धीरे-धीरे वह अपने अन्तःकरण की शुद्धि के माध्यम से नित्य-आनंद, सुख एवं मानसिक-शांति प्राप्त करने लगता है और आगे आने वाले जीवन में अपने कार्यों को और अच्छी तरह से करने की कुशलता प्राप्त कर लेता है लेकिन प्रेय-मार्गी तो इस संसार की चमक-दमक से ऐसा आकर्षित होता है कि येन-केन प्रकारेण अर्थात् जैसे-तैसे भी धन-संग्रह करने या फिर शीघ्र इच्छा-पूर्ति करने में इतना अधिक तल्लीन हो जाता है कि उसे इसका आभास ही नहीं होने पाता कि कब उसने स्वयं ही अपने लिए दुखों को न्योता दे डाला क्योंकि सब इच्छाएं तो किसी की भी पूरी हो नहीं पातीं| अधूरी इच्छाएँ उसे न केवल निराशा देती हैं अपितु उसे मानसिक-स्तर पर भी असंतुष्ट बना देतीं हैं क्योंकि अब धीरे-धीरे उसे अपनी उन भूलों का अहसास होने लगता है जो उसने अपने परिवार अथवा समाज के प्रति की होती हैं |
अंततः, ऋषिगणों के वचनामृत तो इसी ओर संकेत करते हैं कि जीवन की चुनौतियों के चौराहे पर खड़े हम मनुष्यों को ईश्वर न तो प्रेय-मार्ग का अनुसरण करवा कर भौतिक सुख-साधनों के होते हुए भी असंतुष्ट रहने के लिए विवश करते हैं और न श्रेय-मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते हैं|दरअसल, मनुष्य को बाह्य सृष्टि के चक्र को बदलने की पूर्ण और सर्वत्र स्वतंत्रता नहीं है लेकिन फिर भी जगत् के संपर्क में क्षण-प्रतिक्षण सद्व्यवहार या दुराचरण करने के लिए मनुष्य स्वतन्त्र है और उसे अपने आचरण के सम्बंध में मिली उसकी यही स्वतंत्रता उसकी ‘मुक्तिसाधना’ है |इसी मुक्तिसाधना के सदुपयोग से श्रेय-मार्गी तो एक अच्छी ज़िंदगी व्यतीत करता है लेकिन प्रेय-मार्गी इसके दुरूपयोग द्वारा अपने सौभाग्य के क़दमों की आहट को ही अनसुना कर देता है| दरअसल, आपको नहीं लगता कि कुछ हद तक हम स्वयं ही अपने भाग्य के रचयिता हैं ?
ईश्वर करे, हम यथासंभव श्रेय-मार्ग पर चलकर ही अपने सपनों को साकार कर सकें |
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I am grateful to Mrs. Rajni Sadana for sharing this brilliant article with AKC. Thanks Rajni Ji.
sachmuch yahi geevan ka satya hai………
thanks for its very intresting and motivational page
GREAT IN FEW WORD SHARED. KEEP IT UP
very nice………….useful..
thanks , nice
प्रेरक पोस्ट..
very nice
Sometimes what you need, you get to know about it, it comes to your way by the grace of God through His people.. yes Gops I am talking about this article only…
Lekin SHRAY ka marg chun na bada kathin hota hai jab saaamne praya-marg bhi hota hai choices me…. us ke liye hame sochna hoga ki sach me hamara sapna kya hai… uttar saamne hoga
thanks to share great article
some nice advice on fulfilling our dreams… inspirational !!!