
Sunrise Candles Founder Bhavesh Bhatia
Sunrise Candles founder Bhavesh Bhatia (भावेश चंदू भाई भाटिया) , एक blind entrepreneur हैं। इन्होने अपनी अक्षमता को अपनी शक्ति का साधन बनाया और सन राइज कैंडल कंपनी की स्थापना की, जो आज 25 करोड़ की कम्पनी है। यह कंपनी Visually Disabled लोगो द्वारा ही चलायी जाती है। आइये जानते हैं भावेश भाटिया की कहानी।
Sunrise Candles Founder Bhavesh Bhatia Biography in Hindi
Bhavesh Bhatia का जन्म retina muscular deterioration बीमारी के साथ हुआ। जन्म के साथ ही इनकी आँखों की दृष्टि कमजोर थी। इनकी माता एक गृहणी थी, और भावेश की बाल्य अवस्था से ही कैंसर से पीड़ित थी। इनके पिताजी एक गेस्ट हाउस में केयर टेकर का कार्य करते थे।
भावेश जब अपनी mid twenties में थे तो उनपर तीन भारी विपत्तियाँ आ गयीं –
- उनकी आँखों की रौशनी पूरी तरह से चली गयी
- इसी वजह से उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया, और
- उनकी कैंसर ग्रस्त माँ भी कुछ समय बाद चल बसीं।
माँ को खो देने पर Bhavesh Bhatia कहते हैं –
मैं उनके बिना बेसहारा हो गया, वो खुद बहुत पढ़ी लिखी नहीं थीं, लेकिन मुझे पढ़ाने के लिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की।मैं ब्लैकबोर्ड पर लिखा नहीं पढ़ पाता था। पढ़ते वक्त वो मेरे साथ घंटों बैठा करती थीं , और ऐसा उन्होंने मेरी पोस्ट ग्रेजुएशन तक जारी रखा।
भावेश बताते हैं कि जीवन की सबसे अच्छी सलाह भी उन्हें अपनी माँ से ही मिली, उनकी माँ कहा करती थीं –
इससे क्या कि तुम दुनिया नहीं देख सकते? कुछ ऐसा करो कि तुमको दुनिया देखे।
शायद इन्ही शब्दों की ताकत थी कि ऐसी परिस्थितियों में; जो किसी को भी तोड़ सकती हैं; भावेश आगे बढ़ते गए।
दृष्टिहीन होने के कुछ दिनों बाद भावेश ने सन 1993 में National Association for Blind(NAB), Mumbai में प्रवेश लिया, और वहाँ से कुल 4 महीने मोमबत्ती बनाने का प्रशिक्षण लिया। इसके अलावा भावेश ने वहाँ से acupressure therapy और braille* का भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। इन सब प्रशिक्षण को प्राप्त करने के बाद भावेश खुद का व्यापार शुरू करना चाहते थे। परन्तु धन के आभाव के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए।
धन जुटाने के लिए उन्होंने महाबलेश्वेर के होटलों में मसाज और acupressure therapist का काम शुरू किया, इस जॉब से उनके पास कुछ पैसे बचने लगे। बचे हुए पैसे से वे 5 kg मोम और उसका सांचा खरीद कर लाये और साधारण सा कैंडल बनाना शुरू कर दिया। वे इसे अपने होटल के समीप स्थित होली क्रॉस चर्च के सामने एक ठेले पर बेचने लगे।
वे प्रायः प्रतिदिन 25 रुपये बचा लिया करते, और उस 25 रुपये को अगले दिन मोम खरीदने के लिए प्रयोग करते। भावेश लोगों से सहायता की उम्मीद करते परन्तु लोगों द्वारा किसी प्रकार की तकनीकी अथवा आर्थिक सहायता नही मिल पाती। वे लोगों द्वारा केवल सहानुभूति ही प्राप्त कर पाते। बैंक ने भी लोन देने से मना कर दिया। वे किसी के द्वारा मोमबत्ती बनाने की विकसित तकनीकी काज्ञान प्राप्त करना चाहते थे, पर उन्हें कोई कुशल तकनीकी सहायता देने वाला नही मिला।
Turning Point in Bhavesh Bhatia’s Life

अपनी पत्नी के साथ भावेश भाटिया
कहते हैं, “हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है।” ये बात भावेश भाटिया के case में बिलकुल फिट बैठती है।
एक दिन जब भावेश अपने ठेले पर मोमबत्तियां बेच रहे थे तभी एक लड़की वहां मोमबत्तियां खरीदने आई। उनका नाम नीता था। उनका विनम्र स्वाभाव और हंसी भावेश को भा गयी, जल्द ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी और वे घंटों बातें करने लगे। दोस्ती प्रेम में बदली और दोनों ने शादी करने का फैसला किया। पर नीता के घर वाले उनकी शादी एक गरीब, कैंडल बेचने वाले अंधे आदमी से करने को तैयार नही थे। पर नीता परिवार वालों के दबाव के आगे नहीं झुकीं और दोनों ने शादी कर ली।
नीता ने कभी किसी चीज के लिए शिकायत नहीं की यहाँ तक कि गरीबी के कारण भावेश जिस बर्तन में मोम पिघलाते उसी में खाना भी बनाते तो भी नीता मुस्कुराती रहतीं। वे हर तरह से भावेश का साथ देने लगीं। उन्होंने कहीं से एक दो-पहिया गाड़ी की व्यवस्था कर ली और उसपर भावेश को लेकर जगह-जगह जातीं और कैंडल बेचने में मदद करतीं। बाद में जब स्थिति सुधरी तो एक साथ अधिक candles carry करने के लिए उन्होंने van चलाना भी सीखा।
नीता के साथ ही भावेश मोमबत्तियों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए वे बाज़ार जाया करते और कई प्रकार की मोमबत्तियों को छूकर महसूस करते, और घर आकर वे घंटों experiment करते और मार्केट में मौजूद कैंडल्स से भी अच्छी कैंडल्स बनाने का प्रयास करते। अपनी जी तोड़ मेहनत और कुछ कर गुजरने की तीव्र इच्छाशक्ति से वे विभिन्न रंगों और विभिन्न आकृतियों के मोमबत्तियों को तैयार करने लगे।
सनराइज कैंडल की स्थापना
भावेश को NBA द्वारा नेत्रहीन लोगों के लिए चलाई गई विशेष स्कीम के तहत सतारा बैंक के से 15000 रुपये प्राप्त हुए।
Bhavesh Bhatia ने उस पैसे से 15 किलो मोम, विभिन्न आकृतियों के सांचे और अन्य ज़रूरी उपकरण खरीदे । उनके दोस्तों में, एक दोस्त उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ और भावेश के लिए एक वेबसाइट बना कर उन्हें भेंट कर दी। वेबसाइट पर भावेश के उत्पादों के सचित्र वर्णन उपलब्ध थे। और अब उस वेबसाइट के द्वारा उन्हें कई बड़े बड़े आर्डर प्राप्त होने लगे। उनके स्थान की समस्या को हल करने के लिए उनके एक दोस्त जो एक बिल्डर हैं, ने उन्हें एक छोटा से स्थान प्राप्त करवाया और उसमे एक छोटा कैंडल मेकिंग सेण्टर खोल कर उनकी सहायता की।
अब धीरे धीरे वे नई तकनीकी विकसित करते। नये-नये रंग-रूप के मोमबत्ती बनाते। इसी क्रम में अब उनके पास काम का बोझ बढ़ने लगा। उन्हें अन्य सहायकों की भी ज़रुरत पड़ने लगी।
भावेश को अपनी असहायता का मलाल सदैव रहता। उससे उबरने के लिए उन्होंने यह निर्णय किया कि वे केवल दृष्टिबाधित सहायकों को ही अपने पास रखेंगे और उन्हें सिखा कर आत्मनिर्भर बनाएंगे।
इसी विकास के क्रम में उन्होंने अपना उद्योग सनराइज कैंडल नाम से खोला।
सनराइज कैंडल एक नज़र-
- सनराइज कैंडल में 225 दृष्टिबाधित सहायक कार्य करतें हैं।
- सनराइज कैंडल का रॉ मैटेरियल उत्तराखंड से आता है और कुल 9000 से भी अधिक प्रकार के कैंडल का उत्पाद करता है। जिनमे मुख्य – पीलर कैंडल, फ्लोटिंग कैंडल, जैल कैंडल, टॉय कैंडल, ट्रेडिशनल कैंडल, इत्यादि हैं.
- उनके क्लाइंट की लिस्ट में रिलायंस इंडस्ट्रीज, बिग बाज़ार, रोटरी क्लब, नारद इंडस्ट्रीज, रैन्बोक्सी इत्यादि हैं।
- कंपनी का turnover 25 करोड़ रूपये है।
इसके अलावा Bhavesh Bhatia ने मलेश्वर गाँव में दृष्टिबाधितों के लिए एक कोचिंग सेण्टर खोला। यह कोचिंग विभिन्न प्रकार की मोमबत्तियों को बनाने का प्रशिक्षण प्रदान करता हैं। यह प्रशिक्षण दृष्टिबाधित प्रतिशतता के आधार पर अलग-अलग प्रदान किया जाता है।
भावेश आज अपनी उद्यमिता के कारण जाने जातें हैं और उन्हें बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमे प्रमुख हैं :
- National award for best self-employed 2014 में।
- Best handicraft award शिवसेना की तरफ से 2010 में।
- Piloo D Khambatta award for best blind entrepreneur NAB की तरफ से, 2009 में।
- Best Blind Self Employment award मुकेश अम्बानी की तरफ से, 2008 में।
- Ashavadi trophy Rotary club की तरफ से,2006 में।
- उन्हें Satyamev Jayte program में भी बुलाया जा चुका है।
Bhavesh Bhatia को शुरू से स्पोर्ट्स में रूचि थी पर परिस्थियोंवश वे इसमें हिस्सा नहीं ले पाते थे। पर बाद में उन्होंने न सिर्फ इनमे हिस्सा लेना शुरू किया बल्कि बहुत सारे पदक भी जीते। उन्होंने जेवलिन थ्रो, शॉटपुट , डिस्कस थ्रो, इत्यादि खेलों में भाग लिया और paralympic games में वे अब तक 109 पदक जीत चुके हैं ।
दोस्तों, भावेश ने जिस तरह गरीबी और नेत्रहीनता के अभिशाप के बावजूद सफलता पा कर दिखाई है वो एक बार फिर साबित करता है कि इंसान अपनी मेहनत और जज़्बे से कुछ भी हासिल कर सकता है। और जब वो ऐसा करने का प्रयास करता है तो भगवान् भी उसे “नीता” रूपी कोई न कोई मदद ज़रूर भेज देते हैं। इसलिए कभी अपनी परिस्थितियों दुखी भले होइए पर मायूस मत होइए, उम्मीद जगाये रखिये और अपनी मंजिल की और बढ़ते रहिये…एक दिन वो ज़रूर मिलेगी !
Thanks !
विकास पाण्डेय
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर एवं ब्लॉगर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
ब्लॉग लिंक – hindipratishtha.blogspot.com
We are grateful to Mr. Vikas Pandey for sharing a very inspiring story about a Blind Entrepreneur Mr. Bhavesh Bhatia in Hindi.
*ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है।
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Dil Chu hai bhai
इससे क्या कि तुम दुनिया नहीं देख सकते? कुछ ऐसा करो कि तुमको दुनिया देखे।
mujhe esi post padh k ashu aane lagte hai…. love u sir….one day change my life
Thanku bahut accha
aapki real story pad kar bahut aachya laga
Very Nice story…& very motivation story