होली पर निबंध
Holi Essay in Hindi
2023 Holi Date – 8 March, Wednesday
हमारे देश मे हर एक प्रसंग के लिए अलग त्योहार है। भारतवर्ष त्योहारों का देश है। हर एक फेस्टिवल का अपना अनोखा महत्व होता है। इन सारे त्योहारो मे से ही एक त्योहार है होली। जी हाँ, होली त्योहार है खुशियो का। बुराई पर अच्छाई की विजय का। पुराने गिले-शिकवे भुला कर एक दूसरे के रंग में रंग जाने का। होली के अवसर पर रिश्तेदार, पड़ोसी, मित्रवर्ग, हर्ष और उल्लास से एक दूसरे से मिलते है। एक दूजे को रंग लगाते है। नृत्य गान करते है। ढोलक मंजीरा एवम अन्य संगीत वादक बजा कर मनोरंजन करते है।
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कब और कैसे मनाई जाती है होली / When and How Holi is played ( in Hindi ) :
होली का पावन त्योहार एक प्राचीन भारतीय त्योहार है। भारत देश के अलग अलग हिस्सो मे होली के त्योहार को अलग अलग नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के तौर पर होलिकापूजन, होलिकादहन, धुलेडी, धुलिवन्दन, धुरखेल वसंतोत्सव वगैरह। होली का पर्व हर साल के फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
मुख्यत: होली का त्योहार दो चरण मे मनाया जाता है:
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पहला चरण:
पहले चरण में होली के एक दिन पहले रात को सार्वजनिक चौक पर होलिका सजा कर उसका दहन किया जाता है। होलिका सजाने के लिए लोग स्वेच्छा से चंदा देते हैं और मिलजुलकर दहन करने के लिए सुखी लकड़ियों की व्यवस्था करते हैं।
होलिका दहन में पूजन सामाग्री – इस पवित्र विधि के लिए एक लोटा शुद्ध जल, कुमकुम, हल्दी, चावल, कच्चा सूत, पताशे, मूंग, चने, गुड़, नारियल, अबीर- गुलाल, हल्दी, कच्चे आम, जव, गेहूं, मसूर दाल, आदि पूजन सामाग्री लगती है।
होलिका दहन विधि: सर्वप्रथम अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है। उसके बाद धार्मिक मंत्रोच्चार के साथ पूर्व दिशा मे मुख कर के पूजा सामाग्री के साथ प्रज्वलित होली की पूजा अर्चना कर के नारियल, चने, मूंग, दाल, गेहूं, इत्यादि प्रज्वलित होली मे अर्पण किए जाते है। और विधिवत होली की प्रदक्षिणा की जाती है। और पवित्र प्रज्वलित होली से सुख शांति, अच्छे धन-धान्य, तथा समृद्ध जीवन की कामना की जाती है। कई जगहों पर इस दौरान पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य भी किये जाते हैं और लोग एक दुसरे को गुलाल लगा कर अभिनन्दन करते हैं।
दूसरा चरण:
और फिर अगली सुबह सब लोग हर्षोल्लास के साथ एक दुसरे से मिलते हैं और रंग-गुलाल लगाते हैं। होली खेलने के दौरान विभिन्न पकवानों का दौर भी चलता रहता है। बाकी त्योहारों की तरह इस पर्व में भी बच्चे बहुत ज्यादा आनंद लेते हैं और गुब्बारों व पिचकारियों में रंग भर कर धमा-चौकड़ी मचाते हैं । इस मौके पर बाजारों में तरह-तरह की पिचकारियाँ लोगों को ख़ासा आकर्षित करती हैं, आज-कल चाईनीज पिचकारियाँ काफी प्रचलन में हैं।
अमूमन होली खेलने के लिए लोग छोटे-छोटे समूहों में निकलते हैं और किसी ख़ास जगह एकत्रित होकर एक बड़ा जुलूस भी निकालते हैं। इस दौरान शहर के प्रमुख चौराहों पर मटकी फोड़ने की परम्परा भी है। मटकी को रस्सी के द्वारा ऊँचाई पर लटका दिया जाता है और युवा सम्मिलित प्रयास से इसे फोड़ते हैं।
होली खेलना अक्सर सुबह से दोपहर २-३ बजे तक चलता रहता है जिसके बाद रंग छुडाने का संघर्ष जारी होता है। रंग छुडाने को लेकर लोग बहुत से नुस्खे बताते हैं- कुछ खेलने से पहले शरीर में खूब सारा तेल लगाने की सलाह देते हैं तो कुछ खेलने के बाद किसी ख़ास ब्रांड का साबुन-शैम्पू लगाने को कहते हैं।
शाम के वक्त लोग नए कपड़े पहन कर एक-दूसरे के यहाँ मिलने जाते हैं, हालांकि , अब इस परंपरा में कुछ कमी आ गयी है और मिलना-जुलना पहले से कम हो गया है।
होली त्योहार से जुड़ी पौराणिक (धार्मिक) मान्यता / Story of Hiranyakashyap and Prahlad in Hindi
पौराणिक मान्यता की नज़र से होली का पर्व, एक ऐसे धार्मिक प्रसंग के मद्दे नज़र मनाया जाता है, जहाँ अटूट श्रद्धा, पवित्र भक्ति, बुराई का अंत, अच्छाई की विजय, यह सब केंद्र बिन्दु है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल मे हिरण्यकश्यप नाम का एक अति बलशाली राक्षस राजा था। उसे ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि न उसे कोई नर मार सकता है न कोई जानवर, न देवता न दैत्य, न उसे दिन में मारा जा सकता है न रात में, न घर के भीतर न बाहर, और न उसे जमीन, पानी, या हवा में मारा जा सकता है।
इस वरदान के घमंड में हिरण्यकश्यप तीनों लोकों मे खुद को सर्वशक्तिमान के रूप में स्थापित करना चाहता था और स्वयं को भगवान समझता था। अपने राज्य मे अगर किसी भी नागरिक को अपने आलावा किसी और की उपासना करते देखता या सुनता तो उसे तत्काल मृत्यु दंड दे देता था।
पर एक कहावत है ना, जो किसी से नहीं हारता अपनी औलाद से हारता है । हिरण्यकश्यपके साथ भी वही हुआ था।
अत्याचारी अतिबलशाली हिरण्यकश्यप के घर ही उसके पुत्र स्वरूप मे महान विष्णु उपासक प्रह्लाद ने जन्म लिया। प्रह्लाद एकनिष्ठ विष्णु भक्त था। उसे किसी मनुष्य, पशु, राक्षस, देव, दानव, आदि का भय नहीं लगता था।
हिरण्यकश्यप अपने पुत्र के विष्णु भक्त होने के बारे मे जानता था। सो उसे साम दाम दंड भेद हर प्रकार से विष्णु भक्ति त्याग करवाने का प्रयास करता। पर लाख कोशिशों के बाद भी प्रह्लाद अपनी विष्णु भक्ति नहीं त्यागते। अंत मे हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मार देने का निश्चय करता है। और प्रह्लाद को मारने के हेतु कई प्रयास करता है- कभी पहाड़ से नीचे फेंकवा देता है, कभी ज़हर दे देता है, तो कभी घने जंगल में छोड़ देता है.. तो कभी पानी मे डुबो देता। पर विष्णु कृपा से प्रह्लाद को कोई क्षति नहीं पहुँचती।
होली पर निबंध / Hindi Essay on Holi Festival
परेशान होकर हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका की सहायता लेता है। होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि भस्म नहीं कर सकती, इसलिए हिरण्यकश्यप होलिका को आदेश देता है कि वो प्रहलाद को अपने गोद में बैठा कर अग्नि की चिता पर बैठ जाए ताकि वरदान के प्रताप से वो खुद बच जाए और प्रह्लाद जल कर भस्म हो जाए।
होलिका ने ऐसा ही किया, पर बुराई कितनी भी आगे निकल जाये अच्छाई के पीछे ही रहती है।
होलिका भूल गयी कि उसका वरदान अकेले अग्नि में प्रवेश करने पर काम करता, और वह प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठ जाती है। प्रहलाद लगातार “नारायण-नारायण” का जाप करते रहते हैं और विष्णु कृपा से उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंची जबकि होलिका वहीँ जल कर भष्म हो जाती है। तभी से होलिका दहन की परम्परा है और उसके अगले दिन हर्षोल्लास के साथ होली मनाने की प्रथा है।
श्री कृष्ण भगवान के पूतना वध से जुड़ी होली उत्सव की धार्मिक मान्यता / Lord Krishna Putna Vadh Story in Hindi
मथुरा का अत्याचारी अधर्मी राजा कंस जब दिव्य भविष्यवाणी सुनता है कि उसका वध उसकी अपनी ही बहन देवकी का आठवा पुत्र करेगा। तब कंस देवकी के सारे पुत्रो को एक एक करके मार देते है। पर आठवे पुत्र धरतिधर श्री कृष्ण को अवतार लेने से नहीं रोक पाता है। और उसी प्रसंग से होली की मान्यता भी जुड़ी है। जब कंस श्री कृष्ण वध के लिए राक्षसी पूतना को विश युक्त दुग्धपान कराने के लिए भेजते है, तभी कृष्ण भगवान दुग्धपान करते करते राक्षसी पूतना के प्राण भी ले लिए और पूतना का शरीर भी अदृश्य कर दिया था। और इसी दिव्य प्रसंग को याद करते हुए मथुरावासियों द्वारा राक्षसी पूतना का पुतला बना कर जलाया जाने लगा। और हर साल मथुरा मे होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
और होली पर रंग उत्सव मनाए जाने के पीछे भी यह मान्यता जुड़ी है के भगवान श्री कृष्ण अपने सांवले वर्ण के कारण हमेशा अपनी माता यशोदा से पूछते रहते थे कि ” राधा क्यूँ गोरी मे क्यूँ काला”। तब एक दिन अपने लाडले कृष्ण को माता यशोदा कहती हैं कि तुम राधा को उस रंग मे रंग दो जो तुम्हें मनभावन लगे।
अपनी माता का यह सुझाव श्री कृष्ण को अति पसंद आता है, और नटखट कृष्ण अपनी राधा को मनभावक रंग से रंगने चल देते है। और इसी तरह होली के रंग उत्सव का उदभव हुआ।
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होली समानता का प्रतीक
जैसे प्रकृति किसी भी भेद भाव के बिना अपनी पवन, अपनी वर्षा, धूप, सब लोगो मे समान बांटती है। वैसे ही होली के रंग भी बिना किसी भेदभाव के खेलने वालों को समान रूप से एक जेसा रंग देता है । अबीर- गुलाल और रंग-बिरंगे रंगो मे रंग कर सारे होली खेलने वाले एक जैसे रंग-बिरंगे बन जाते हैं। और तब ऐसा प्रतीत होता है, के सारे भेद भाव उंच-नीच मिट गए हैं। इस तरह होली सब के एक समान होने का संदेश देती है।
होली पर मिठाईयां और मनोरंजन
हर उम्र के व्यक्ति होली के उत्सव को हर्ष और उल्लास से मनाते है। इस त्योहार पर घर की स्त्रीयां बड़े लज़ीज़ व्यंजन बनाती है। जेसे के लड्डू, खीर, पूरी, वडा, गुझिया, खजूर,ठेकुआ इत्यादि । हर प्रदेश मे होली के अलग अलग गीत गाये जाते है। ढोलक मंजीरा, इत्यादि संगीत वादक यंत्र बजा कर नाच-गान के साथ इस उत्सव का लुफ्त उठाया जाता है। बच्चे बाज़ार से खरीदी हुई पिचकारियों से एक दूसरों को रंग कर अपना मनोरंजन करते है। सगे सम्बन्धी एक दूसरों को मिठाईया भेट करते है। बच्चे और बड़े अपने बुजुर्गो का आशीर्वाद लेते है। वसंत की शुरुआत की खूशिया इस तरह बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। और ऐसा कहा जाता है के प्रथम पुरुष मनु का जन्म भी वसंत आने की तिथि मे हुआ था इस लिए होली का उत्सव उसका भी प्रतीक है।
प्रचलित होली
वैसे तो होली हर जगह बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। पर व्रज, मथुरा, वृन्दावन, बरसाने की लट्ठमार होली, श्रीनाथजी, काशी, इन जगहो की होली काफी प्रख्यात मानी जाती है। भारत के कुछ प्रान्तों में होली पांच दिन तक मनाई जाती है जो होलिका के साथ शुरू होकर रंग पंचमी के दिन ख़त्म होती है।
होली का नकारात्मक पहलू:
होली एक पावन पर्व है लेकिन आधुनिक युग में कुछ लोग इस त्यौहार की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते नज़र आ जाते हैं। इस शुभ दिन कई लोग भांग-शराब आदि का नशा करके हुडदंग मचाते हैं और बाकी लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर देते हैं। इसके आलावा मुनाफा कमाने के लालच में बहुत से दुकानदार मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचकर भी इस उत्सव का स्वाद बिगाड़ने से बाज नहीं आते। रंगों में भी अत्यधिक कैमिकल्स का प्रयोग होली के रंग में भंग डालने का काम करता है।
मित्रों, होली एक पवित्र धार्मिक मान्यताओ से जुड़ा हुआ खुशियो का त्योहार है। आइये हम सब मिलकर इस त्योहार की गरिमा को बनाये रखें और रंगों के इस उत्सव को धूम-धाम से मनाएं।
धन्यवाद!
Paresh Barai
Porbandar, Gujarat
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परेश जी एक सफल online entrepreneur बनना चाहते हैं , उनकी रूचि blogging, affiliate marketing, तथा online store building में है।
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We are grateful to Mr. Paresh Barai for sharing Holi Essay in Hindi (Holi Par Nibandh )
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gaurav kumar says
होली से जुड़ा ये लेख वाकई बहुत बढ़िया ह
sameer says
होली से जुड़ा ये लेख वाकई बहुत बढ़िया ह लेकिन क्या हम होली के पर्व पर बड़कुलिया का महत्त्व जानते है ? उन्हें कैसे और क्यों बनाया जाता है. इसके अलावा होली से जुडी कई छोटी छोटी बाते जो हम जान सकते है. थैंक्स फॉर शेयरिंग
Anjali Gupta says
बहुत ही बढिया . हैप्पी होली आप सभी को हमारी तरफ से
Websopp says
Bohut achha article,bohut kuch janne ko mila.Thanks for sharing this article…
Rahul says
nice post nd sir apke bahut kuch sekhne ko mila
Bharat Ki Shan says
गोपाल जी , आपको होली की हार्दिक शुभकामनाये | यह पोस्ट वाकई में होली के सभी विषयों को Touch करने वाली है | इस अद्भुत पोस्ट के लिए धन्यवाद !! साथ ही परेश जी का भी धन्यवाद जिन्होंने इतनी अच्छी जानकारी हमसे Share की |
sachhiprerna says
होली से जुड़ा ये लेख वाकई बहुत बढ़िया ह लेकिन क्या हम होली के पर्व पर बड़कुलिया का महत्त्व जानते है ? उन्हें कैसे और क्यों बनाया जाता है. इसके अलावा होली से जुडी कई छोटी छोटी बाते जो हम जान सकते है. थैंक्स फॉर शेयरिंग
Asween says
Holi se smbndhit yah essay bahut hi interesting he,yah tyohar kitne charan me or kyo manaya jaata he vah jaankari bahut hi prsnsniy he or yah jaankar bhi dukh hota he ki kai log is enjoyment ke tyohar ko galat trikese celebrate kar iski grima ko lanchhan lgate he.
Hum bhi jab chhote the tab dopahar tak rango se holi khelte the or baadme color ko nikalne ke liye nadi par jaate the,vaha jaakar ghnto tak nhaate the or apne upar lge color ko nikalte the lekin color itna pkka hota tha ki humari lakh koshiso ke baavjud nahi niklta tha or 5-6 din tak humare sharir par lga rehta tha,holi ke baad jab hum school jaate the tab dusre ldke or teachers humara majaak bhi udate the ki iski haalt to dekho lgta he isine holi kheli he.