Christopher Columbus Biography in Hindi
क्रिस्टोफर कोलंबस की जीवनी व इतिहास
आज हम आपको बताएँगे दुनिया के सबसे महान यात्री के बारे में जिसने बचपन से समुद्र की यात्रा का सपना देखा था। शुरू से ही उसके मन में एक इच्छा अंकुरित हो रही थी कि वो ऐसा कुछ करेगा जिससे पूरी दुनिया उसका नाम फक्र से लेगी…. समुद्र और जहाज़ों के सपनो में खोये रहने वाले उस महान यात्री का नाम था कोलंबस। जी हाँ, वही कोलंबस जिसने अमेरिका की खोज करके सही मायने में दुनिया को बदल दिया।
कोलंबस की साहसिक यात्राओं के कारण ही यूरोप के देशों को पहली बार पता लगा कि, इस धरती पर और भी दुनिया है। वहां भी विपुल सम्पदा है। अदम्य साहसी और महत्त्वाकांक्षी कोलंबस का मानना था कि-
जब तक आप किनारा छोड़ कर आगे नही बढ़ेंगे तब तक अपने सपनों के समुन्दर को पार नही कर पायेंगे।
कोलंबस का जन्म व बचपन
इटली में पैदा हुए कोलंबस के पास विरासत में कोई धन नही था। उसका सबसे बड़ा धन था साहसिक प्रवृत्ति, जिसके बल पर उसने सिद्ध किया कि दुनिया गोल है। उस दौरान प्रचलित मान्यताओं में पांच महाद्वीप माने जाते थे। यूरोप के देशों को पहली बार पता लगा कि इस धरती पर एक दुनिया और भी है। जब कोलंबस ने अमेरिका की खोज की तो, अमेरिका को छठा माद्वीप माना गया। हालांकि कोलंबस हमेशा भारत और चीन आना चाहता था। यही वजह है कि कोलंबस अमेरिका की खोज के बाद भी यात्रायें करता रहा।
कोलबंस के जन्म को लेकर कोई ठोस जानकारी नही है। माना जाता है कि 1451 में अगस्त से अक्टूबर के बीच में कभी उसका जन्म हुआ था। जन्म इटली में हुआ था इस बात का पुख्ता सबूत इटली के उत्तरी जिले जिनेवा से प्राप्त होता है। कोलंबस का जन्म पुनर्जागरण काल (Renaissance) में हुआ था। इसी काल में नई खोज के साथ कला, संस्कृति और साहित्य की नई बयार बहनी शुरु हुई थी। 15 वीं सदी को बदलाव की सदी भी कहा जाता है और इसी सदी में कोलंबस ने अपनी खोज से स्पेन को न केवल अकूत धन दौलत से मालामाल किया बल्कि स्पेन के साम्राज्य को अमेरिका के बड़े भूभाग तक पहुँचा दिया।
कोलंबस का परिवार मामूली हैसियत वाला था। दो भाईयों में छोटे कोलंबस की एक बहन भी थी। पिता बुनकर थे लिहाजा वे कोलंबस को भी यही पेशा अपनाने को कहते थे। बचपन में पढाई-लिखाई के लिये स्कूल जरूर गये थे किन्तु बहुत आगे तक शिक्षा प्राप्त नही कर सके। फिर भी उनको किताबें पढने, नई-नई जानकारियों और दुनियाभर की बातों में दिलचस्पी थी। कोलंबस को खास तौर से समुद्री दुनिया की जानकारी बचपन से ही बहुत लुभाती थी।
अक्सर बंदरगाह पर जहाजों को देखते और सोचते थे कि जिनेवा से बाहर के शहर कैसे होंगे, वहां के लोग कैसे होंगे। उन दिनो यूरोप में जहाज परिवहन ने बड़े उद्योग की शक्ल ले ली थी। यूरोप का पूरा व्यपार इसी के जरिये होता था, इसलिये बंदरगाह पर तमाम बड़े जहाज आते-जाते थे। इस पर यात्रा करने वाले जहाजी, बालक कोलंबस के गुरु के समान थे। जो कोलंबस की जिज्ञासा को शांत करते थे। कोलंबस को इन लोगों का आत्मविश्वास बहुत आर्कषित करता था। यही वजह है कि कोलंबस में आत्मविश्वास बचपन से ही पल्लवित हो गया था।
Christopher Columbus Biography in Hindi
जहाजी बनने का सफ़र
जीवन आगे बढ रहा था। उनको अपने पिता के साथ काम करने में बोरियत महसूस होने लगी थी। कोलबंस को स्कूली शिक्षा से ये फायदा हो गया था कि उनको लेटिन पढनी एवं यूरोप में प्रचलित कैस्टिलियन भाषा लिखनी आ चुकी थी। अपना ज्ञान बढाने के लिये कोलंबस एक किताब की दुकान पर क्लर्क की नौकरी कर लिये। उस दौरान प्रिटिंग शुरु ही हुई थी फिर भी जिनेवा में अच्छी किताबें उपलब्ध थीं। युवा कोलंबस ने ढेरों किताबें पढी और अपनी लेटिन भाषा को काफी दुरस्त कर लिया।
चौदह साल की उम्र में कोलंबस के कदम उसी ओर चल पड़े जहाँ उसकी नियती ले जाना चाहती थी। 1474 में कोलंबस को एक मेडिटेरियन शिप जो ग्रीस के पूर्व में स्थित एक द्वीप चिओस जा रहा था पर साधारण जहाजी की नौकरी मिल गई। 1476 में जब उसका जहाज इंग्लैंड की ओर जा रहा था तब पुर्तगाल के पास फ्रेंच समुद्री लुटेरों ने जहाज पर हमला किया और उसमे आग लगा दी तब कोलंबस किसी तरह से अपनी जान बचाकर तैरते हुए पुर्तगाल के बंदरगाह केपसेंट पहुँच गया।
पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाल समुद्र परिवहन, भूगोल, जहाज संचालन एवं कला के अध्ययन का केन्द्र था। कोलंबस ने वहां एक जहाज सञ्चालन संस्थान में प्रवेश ले लिया और बहुत कुछ सीखा। समुद्र की यात्राएं अनुभव एवं समुद्री ज्ञान से कोलंबस काफी मजबूत बन चुका था। उसके ज्ञान के कारण लिस्बन में उसकी गिनती मास्टर जहाजी के रूप में होने लगी थी।
कोलंबस की शादी फेलिपा के साथ हुई थी। फेलिपा अमीर एवं अभिजात्य वर्ग से थी। समुद्र के प्रति दीवानगी देखकर फेलिप की माँ ने कोलंबस को ऐसे चार्ट और उपकरण दिये जो उसके समुद्री शौक में बहुत उपयोगी थे।
भारत खोजने की इच्छा
कोलंबस ने पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय के सामने भारत की खोज करने का प्रस्ताव रखा। दरअसल कोलंबस को लग रहा था कि, पुर्तगाल पूर्व में व्यापार और उपनिवेश की संभावनाओं को तलाश रहा है। कोलंबस की योजना को पुर्तगाल के विद्वानों ने असंभव करार देते हुए उसे सपनो में रहने की संज्ञा दे दी। लिहाजा कोलंबस स्पेन चला गया। कहते हैं इंतजार कभी-कभी इतना लंबा हो जाता है कि उम्मीदें डावांडोल हो जाती है। कोलंबस भी निराश हो रहा था, उसका धैर्य टूटने लगा था।
लेकिन कहते हैं ना-
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती..
बहुत जद्दोज़हद के बाद कोलंबस का सपना साकार होता नजर आने लगा था।
कोलंबस की पहली समुद्री यात्रा
कोलंबस ने अपनी पहली यात्रा तीन अगस्त 1492 को स्पेन के पालोस बंदरगाह से शुरु की। उस दिन बंदरगाह की रंगत कुछ और ही थी। स्पेन के राजा-रानी समेत हजारों लोग उस दिन एक ऐसे अभियान को हरी झंडी दिखाने आये थे, जो अगर कामयाब हो जाता तो आने वाले सालों में पूरे स्पेन की किस्मत बदल सकता था। बंदरगाह पर जो जहाज निकले थे उनका नाम था:
- सांता मारिया,
- नीना, और
- पेंटा
सफर के दौरान कोलंबस अपनी यात्रा का विवरण लिखता रहा। 6 सितंबर को जहाज अफ्रिका के निकट केनेर द्वीप पहुँचा। एक महीना बीतते -बीतते भोजन का समान खत्म होने लगा था। बरहाल कोलंबस अपने साथियों का मनोबल बढाते हुए निरंतर यात्रा कर रहा था। आखिरकार लम्बी यात्रा के बाद 10 अक्टूबर को यात्रा के सत्तर दिन पूरे हो गये तब उन्हें एक चिड़िया उड़ती नज़र आई, लगा की गल्फ की खाड़ी आ पहुंची है।
अमेरिका की खोज
11 अक्टूबर को कोलंबस ने घोषणा की, कि दूर उन्हे रौशनी टिमटिमाते दिखी है उन्होने रौशनी का पीछा किया। 12 अक्टूबर की रात दो बजे जहाजी चिल्लाने लगे, जमीन-जमीन जहाज पर उत्सव का माहौल बन गया था। जहाज रुकने के बाद कोलंबस उस धरती पर सबसे पहले उतरा। कोलबंस ने घोषणा की कि आखिर मैने सिद्ध कर दिया कि पश्चिम से यात्रा करके पूरब तक पहुँचा जा सकता है।
कोलंबस ने सोचा कि, वह इंडिया आ गया है जबकी वह दक्षिण अमेरिका की ओर पहुँच गया था। लिहाज़ा ये भी उसके लिये नई दुनिया थी। वहाँ के स्थानिय लोगों ने उसका स्वागत किया और उपहार में सोने चाँदी दिया। चुंकि कोलंबस इंडिया की खोज में निकला था, तो उसने वहाँ के निवासियों को इंडियन कहा था, इसलिये आज भी दक्षिण अमेरिका के मूल निवासी को रेड इंडियन कहा जाता है।
💡 आज हम जिस अमेरिका को जानते हैं हकीकत में कोलंबस वहां नहीं पहुंचा था, बल्कि उसने आस-पास के द्वीपों और साउथ अमेरिकामें कदम रखे थे। लेकिन चूँकि ये सभी जगहें आस-पास या आपस में कनेक्टेड हैं इसलिए डिस्कवरी ऑफ़ अमेरिका का क्रेडिट कोलंबस को जाता है।
कुछ दिन यहाँ रुकने के बाद उसका काफिला आगे बढा और कोल्बा पहुँचा जिसे आज क्यूबा के नाम से जाना जाता है। क्रिसमस के दिन कोलंबस सांता मारिया पहुँचा उसने इस जगह को इस्तापोलियाना नाम दिया। यहाँ उसने लकड़ी का एक विशाल भवन बनवाया था। सफर के दौरान हैती में उसकी मुलाकात तैनियो अरावांक कबीले के लोगों से हुई, यहाँ से उसने अपार धन सम्पदा स्पेन ले गया। उसके आगमन का राजा-रानी ने भी स्वागत किया और जश्न भी मनाया गया। कोलंबस का सपना साकार हो गया था। उसे अनेक सम्मान के साथ एडमिरल कोलंबस की पदवी से नवाज़ा गया।
कोलंबस की दूसरी समुद्री यात्रा और क्रूरता के आरोप
महत्वाकांक्षी कोलंबस अपनी इस उपलब्धी से उत्साहित होकर दूसरी यात्रा की तैयारी करने लगा। एडमिरल कोलंबस 23 सितंबर 1493 को 17 जहाज और 1500 लोगों के साथ दूसरी यात्रा पर निकला। इसबार उसका बड़ा इस्तापोलियाना जल्दी पहुँच गया क्योंकि पूर्व की यात्रा से रास्ता पता चल चुका था। इसबार इस्तापोलियाना में उसको संघर्ष का सामना करना पड़ा। पिछला घर टूट जाने से उसने वहाँ अपना एक नया घर बनाया, जिसका नाम इसाबेला रखा।
इसाबेला पर अब स्पेन का अधिकार हो गया था। सफर के दौरान जहाँ भी कोलंबस रुका वहाँ उसने स्पेन का झंडा लगा दिया। इस तरह स्पेन का अधिकार क्षेत्र बढता जा रहा था। लेकिन इसके साथ ही हर जगह काफी कत्लेआम भी कोलंबस के द्वारा हुआ, जिसकी शिकायतें स्पेन लगातार पहुँच रही थी। कोलंबस के खिलाफ भ्रष्टाचार, क्रूरता एवं स्थानीय लोगों को दास बनाकर बेचने के आरोप थे। इस कारण दूसरी यात्रा की वापसी पर उसका स्वागत बहुत ठंडा रहा।
कोलंबस की तीसरी समुद्री यात्रा और गिरफ्तारी
इसी बीच ये खबर आ रही थी कि, पुर्तगाल नाविक वास्कोडिगामा (Vasco Da Gama) भारत की खोज पर निकल चुका है। लिहाजा स्पेन को कोलंबस की जरूरत थी इसलिये नई खोज के लिये वो अपनी तीसरी यात्रा के लिये निकला। हालांकी कोलंबस के नाम अमेरिका और वेस्टइंडीज के तमाम द्वीपों और देशों को खोजने का श्रैय इतिहास के पन्ने पर लिखा जा चुका था।
कोलंबस के क्रूरता पक्ष का अवलोकन तीसरी यात्रा में देखा जा सकता है। अटलांटिक से आगे बढने पर जहाज में ही विद्रोह हो गया था। जहाजियों ने कोलंबस के साथ काम करना मना कर दिया था। परंतु कोलंबस ने उनको साथ में काम करने के लिये मना लिया। सफर आगे बढने पर कोलंबस को तीन पहाड़ियों के बीच जमीन दिखी, जिसे उसने त्रिनिडाड नाम रखा। इसी बीच इस्तापोलियाना में हालात बहुत बिगड़ चुके थे, जहाँ कोलंबस को जाना पड़ा, जबकि वो अब वहाँ जाना नही चाहता था।
वैसे इसबार इस्तापोलियाना की बिगड़ी स्थिती को काबू करने में कोलंबस असर्मथ रहा और वहाँ की स्थिती काबू करने के लिये ईमानदार उच्चाधिकारी बोबाडिला को भेजा गया। सबूतों के आधार पर कोलंबस और उसके भाई को हथकड़ी बाँधकर स्पेन ले जाया गया।
उस समय कोलंबस की उम्र 53 साल हो गई थी। कोलंबस ने अपनी खोज के कारण जो प्रसिद्धी पाई थी वो उसकी क्रूरता के कारण धुमिल हो गई थी। हालांकी स्पेन के साथ-साथ कोलंबस ने भी धन खूब कमाया था। स्पेन पहुँचकर कोलंबस ने माफी की गुहार की, जिससे वहाँ के राजा ने माफ कर दिया तथा तत्काल हथकड़ी खोलने का आदेश भी दिया। राजा ने माफ तो कर दिया परंतु चौथी यात्रा पर उसे जाने का आदेश दे दिया जबकी उम्र कीअधिकता के कारण कोलंबस यात्रा पर जाना नही चाहता था। फिर भी उसे चौथी यात्रा के लिये निकलना पड़ा।
कोलंबस की चौथी समुद्री यात्रा
कोलंबस अपने अनुभव तथा समुद्री ज्ञान की वजह से तुफानों की गणना एंव मौसम की भविष्यवाणी बहुत सटीक करता था। यात्रा की शुरुवात में ही कोलंबस ने भविष्यवाणीं कर दी थी कि, बहुत भयकंर तूफान आने वाला है और ये तुफान इतिहास का सबसे खतरनाक तूफान था।कोलंबस के मना करने पर भी बोबाडीला अनेक जहाजों का काफीला लेकर स्पेन के लिये निकला, जिसमें से 27 जहाज डूब गये। बोबाडीला किसी तरह से बचते हुए स्पेन पहुँचा, लेकिन स्पेन के पास ही उसका जहाज जो तमाम जेवरातों से लदा हुआ था डूब गया। उसके खजाने की खोज वर्तमान में भी जारी है।
वहीं कोलंबस तुफानी खतरे को देखते हुए रियो जेना में रुक गया था और तूफ़ान गुजरने के बाद यात्रा आरंभ की। इस यात्रा के दौरान कोलंबस जमैका में डेढ साल तक रुका रहा। उसने घोषणा की थी कि, 29 फरवरी, 1504 को सूर्यग्रहण होगा और ऐसा ही हुआ। कोलंबस समुद्री हलचल के साथ सूर्य और चन्द्रमा की गतिविधियों का भी ज्ञाता था।
कोलंबस की मृत्यु व विवाद
7 नवम्बर 1504 को कोलंबस स्पेन पहुँच गया था। वित्तिय तौर पर मजबूत कोलंबस उस समय स्वाथ्य से बेहद कमजोर हो गया था। मलेरिया जैसी कई बिमारियों ने उसे जकड़ लिया था। 20 मई 1506 में 55 साल की उम्र में कोलंबस इहलोक से परलोक की यात्रा पर निकल गया। कोलंबस के मन में ये कसक रह गयी थी कि, स्पेन के राजा ने वादे के अनुसार उसके द्वारा लूट की हुई सम्पत्ती का दसवां हिस्सा नही दिया।
कोलंबस का भारत की खोज का सपना भी पूरा न हो सका क्योंकि पुर्तगाल निवासी वास्कोडिगामा ने 1498 में भारत की खोज पूर्ण कर ली थी। जीवनभर यात्रा करने वाले कोलंबस को कब्र में भी चैन से रहने नही दिया गया। ये जानकर हैरानी होगी कि, जन्म की तरह उसकी कब्र का कोई स्थाई साक्ष्य नही है। उसकी कब्र को कईबार खोदा गया। कई बार उसे अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया। दरअसल आज किसी को भी पता नही है कि, कोलंबस कहाँ दफन है।
कोलंबस की मृत्यु के बाद उसके अवशेष स्पेन के मठ कारटूजा में रखे हुए थे। 100 साल बाद इसे सेंट डोमिंगो में दफन कर दिया गया था। 1795 में जब फ्रांस सरकार ने इस्तापोलियाना पर कब्जा कर लिया तो, कब्र को खोदकर कोलंबस के अवशेष को क्यूबा में दफनाया गया। 1897 में अमेरिका और स्पेन के युद्ध के बाद क्युबा स्वतंत्र हो गया। कोलबंस की कब्र फिर खुदी और इसे स्पेन के सेविले के कैथेड्रेल भेज दिया गया। बाद में लोगों ने शक जाहिर किया कि, कोलंबस के अवशेष असली नही हैं और डीएनए की मांग की गई। परंतु सेंट डेमिंगो की सरकार इसके लिये राजी नही हुई और मान लिया गया कि, दोनो ही जगह कोलंबस की कब्र है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, कोलंबस की अमेरिका खोज का दुनिया पर व्यापक असर पड़ा। वेस्टर्न दुनिया, जो पन्द्रहवी सदी का तक सबके लिये अनजानी थी। अचानक कोलंबस की मेहनत की वज़ह से कामयाब हो गई। आज जो दुनिया दिख रही है उसमें कोलंबस का अहम योगदान है। यूरोप में भले ही किसी जमाने में उसकी छवी को दागदार माना गया हो। फिर भी कोलंबस वो महानायक है जिसने विश्व के मानचित्र में ऐसे द्विपों और देशों का परिचय करवाया जिससे दुनिया अंजान थी। कोलंबस यूरोप की महान सम्मानित शख्सियतों में से एक है। आज भी पूरे अमेरिका में लोग अक्टूबर के दूसरे सप्ताह के सोमवार को कोलंबस दिवस मनाते हैं। इस दिन अमेरिकी सरकार ने सार्वजनिक अवकाश भी घोषित कर रखा है।
जितने द्वीप और क्षेत्र कोलंबस ने अपने जीवन में खोजे और जितनी यात्राएं की, उतनी मानव इतिहास में किसी ने न की होगी। इतिहास के पन्नों में कोलंबस के साहसिक खोज को सम्मान से लिखा गया है। कोलंबस ने सिद्ध कर दिया कि –
सफलता उनको ही मिलती है जिनमें अपने सपनों को पूरा करने के लिये जोश एवं जुनून होता है।
- Read History of Columbus on Wikipedia (English)
अनिता शर्मा
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We are grateful to Anita Ji for sharing great maritime explorer Christopher Columbus Biography in Hindi.
Note: This article may be used to write Christopher Columbus’ Life Sketch or History in Hindi.
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kumar says
bahut badhiya sir ye to history k lesson se bhi jyada rochak h thanks history ko achhe se yad kavane k liye
Pundrik Rai says
nice article, thank you for sharing and keeps us learning..
Gurjit kathgarh[punjab] says
Very Good_artical
[best of luck]_future
gyanipandit says
thank you for sharing this Christopher Columbus Biography
shilpa k says
Christopher Columbus ek mahan vyakti the, Christopher Columbus Biography padhakar achcha laga.
Surendra Mahara says
Great Info About columbus. Columbus was an Important person Indian History. thanx for sharing this nice article here.
pranav kumar says
sir apke article wakai me bahut hi prerak hote hain.
aapne logon ko yah itna achcha platform diya hai uske liye apko bahut bahut shubhkamnayen.
dhanyabaad
Purshotam sahu says
कोलंबस की कहानी बहुत ही अच्छी लगी आप ऐसे ही कहानी लिखते रहिये.
VISHAL says
सपने उन्ही के पुरे होते है
जिनके सपनो में जान होती है
पंखो से कुश नहीं होता
होसलो से उड़न होती है
क्रिस्टोफ़र कोलबस दुनिया की महान हस्तियों में से एक है
Vishnu Kant Maurya says
अनीता जी आपने बहुत ही रोचक ढंग से कोलम्बस के बारे में बताया उसके लिए सबसे पहले बहुत बहुत धन्यवाद।
आपने जो वॉइस फॉर ब्लाइंड की मुहिम चलाया है वह काबिले तारीफ है।
आज के समय में लोगों को खुद से ही फुरसत नहीं मिलाती है सब अपने ही परेशानियों में फंसे हुए हैं।
लेकिन आप ऐसे लोगों के लिए काम कर रहीं है जो किसी कारणवश इस खूबसूरत दुनिया को देख नहीं सकते।
मैं सोचा हूँ की मरणोपरान्त नेत्र दान करूँगा जिससे मेरे जाने के बाद मेरी आँखों से कोई इस खूबसूरत जहान को देख सके।
जान कर अच्छा लगा की आप हमारे शहर बनारस में भी कुछ दिन सेवा कि है,मैं जब सेंट्रल हिन्दू स्कूल में पढ़ता था तो रामकृष्ण मिशन में जाया करता था।
वहाँ पर एक अजीब तरह की शांति का वातावरण होता है।
और अगर किसी की सेवा करते है तो एक अलग तरह की ही अनुभूति होती है।
मैं रामकृष्ण मिशन की पुस्तकालय में जा कर घण्टों किताबे पढ़ा करता था और वो कुछ घण्टे मेरे पुरे दिन का सबसे बेस्ट समय में से एक होता था।
वहाँ के लोगों से मिलता था और बातें करता था और जो हो सकता था थोड़ा बहुत जरूरतमंद की मदद कर देता था।
और किसी की निःस्वार्थ भाव से मदद करने के बाद जो सुकून मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
आपकी सोच और निःस्वार्थ भाव से कर रहे कामों के लिए मेरा शत् शत् नमन।
धन्यवाद्
Anita Sharma says
धन्यवाद विष्नु जी, हो सकता है आपको पता हो कि विवेकानंद जी ने राम कृष्ण मिशन की शुरुवाती स्थापना बनारस से ही की थी। अपने दृष्टीबाधित बच्चों के लिये आप भी सहयोग देना चाहते हैं ये जानकर प्रसन्नता हुई। शिक्षा की इस मुहीम में आपका एवं औरभी जो सेवाभावी जुङना चाहते हैं सबका स्वागत है। आज-कल रेकार्डिंग का कार्य बहुत ज्यादा है। अतः निवेदन है कि, किताबों को रेकार्ड करने के इच्छुक सदस्य कृपया अपनी आवाज में एक पैराग्राफ हिन्दी या अंग्रेजी या दोनो भाषा में रेकार्ड करके हमें मेल करें. [email protected]
गोपाल जी आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया, जो आप दृष्टीबाधितों हेतु सहयोग संदेश को निरंतर आगे बढा रहे हैं।
धन्यवाद