दोस्तों, आपके enthusiastic participation की वजह से हमारी पहली डिबेट – “स्कूल में स्टूडेंट्स को स्मार्ट फ़ोन के इस्तेमाल की अनुमति होनी चाहिए!” बेहद कामयाब रही. Participants ने ऐसे-ऐसे तर्क रखे जो वाकई वजनी और प्रभावशाली थे. चलिए इसी उत्साह के साथ आज हम AchhiKhabar.Com(AKC) पर एक और डिबेट कंडक्ट करते हैं.
हमारा आज का टॉपिक है –
कैपिटल पनिशमेंट यानि फाँसी की सजा पर रोक लगनी चाहिए!
हमारे देश में जघन्य अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है. पर इस कठोर सजा को लेकर सभी एकमत नहीं हैं. जहाँ एक तरफ बहुत से लोग death penalty को सही मानते हैं वहीँ एक दूसरा तबका है जो किसी भी हालत में फाँसी या मौत की सजा को गलत मानता है!
इस मुद्दे पर आपका क्या सोचना है?
यदि आप सोचते हैं कि “Capital Punishment पर रोक लगनी चाहिए!” तो इसके पक्ष (FOR) में कमेंट के माध्यम से अपनी राय रखें.
और अगर आप इस बात से सहमत नहीं हैं कि “Capital Punishment पर रोक लगनी चाहिए” तो इसके विपक्ष (Against) में अपना तर्क दें.
इन बातों का ध्यान रखिये:
- कोई व्यक्ति “For” और “Against” दोनों में तर्क नहीं दे सकता. आप पहले तय कर लीजिये कि आप पक्ष में हैं या विपक्ष में और उसी के मुताबिक अपनी बात रखिये.
- आप किसी के कमेन्ट को रिप्लाई करके उसे सपोर्ट या काउंटर भी कर सकते हैं.
💡 कमेन्ट डालने के लिए इस पोस्ट के अंत में जाएं. कमेन्ट करते ही वे आपको साईट पर दिखाई नहीं देंगे. अप्प्रूव होने के बाद ही वे नज़र आयेंगे.
एक पेज पर अधिक से अधिक 10 latest comments ही दिखते हैं, पुराने कमेंट्स देखने के लिए केम्न्ट्स के अंत में दिए “Older Comments” लिंक पर क्लिक कीजिये.
एक निवेदन:
कृपया अपनी बातें numbering करके रखें. For example:
कैपिटल पनिशमेंट यानि फाँसी की सजा पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि-
- ….
- …..
ऐसा करने से मुझे debate summarize करने में आसानी रहेगी.
कब तक चलेगी डिबेट ?
यह डिबेट Saturday (27/05/17) तक ओपन रहेगी*. यानि 27 मई तक डाले गए कमेंट्स के हिसाब से ही-
- मैं यहाँ पर “For” और “Against” में दिए पॉइंट्स को summarize करूँगा.
- Review Committee फैसला करेगी कि “For” वाले जीते या “Against” वाले.
- और इस दौरान किये गए कमेंट्स में से जिसका कमेंट सबसे प्रभावशाली होगी वही बनेगा- “The Most Effective Debater”
*हमने रिजल्ट बनाते वक़्त 28 की सुबह तक आये केम्ट्स को include किया है.
इस डिबेट का रिजल्ट कब पता चलेगा ?
Winner Group और “The Most Effective Debater” का नाम 28 May को इसी पोस्ट में अपडेट कर दिया जाएगा.
So, the DEBATE is now open ….comment करना स्टार्ट करिए और दुनिया को अपनी डिबेटिंग स्किल्स दिखाइए.
All the best!
लोकतंत्र में अपनी बात रखने का अधिकार सबको है. अपना कमेन्ट ज़रूर दें!
RESULT OF THE DEBATE Updated- 28th May 2017
Wow, एक और अच्छी डिबेट. इसमें participate करने के लिए आप सभी का धन्यवाद!
हमारा टॉपिक था- “कैपिटल पनिशमेंट यानि फाँसी की सजा पर रोक लगनी चाहिए!” ज्यादातर लोगों ने इसके Against में अपने मत रखे, यानि उन्होंने फंसी की सजा को सही माना और उसे ना रोके जाने की वकालत की. लेकिन ऐसे भी कई लोग थे जिन्होंने में “For” में अपने तर्क दिए.
तो आइये सबसे पहले मैं For और Against में आये पॉइंट्स को summarize कर देता हूँ. ( मैंने पॉइंट्स as it is comments से pick कर लिए हैं, और कहीं-कहीं changes किये हैं. )
For – Capital punishment या फंसी की सजा पर रोक लगनी चाहिए
- फांसी की सजा मध्यकालीन युग की दकियानूसी सोच है, जिसकी आज के सभ्य व आधुनिक समाज में कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. अपराधी को खतम करने की बजाए अपराध को खतम करने की जरूरत है, जिसका दूसरे शब्दों में स्पष्ट अर्थ यह है कि अपराधी को सुधरने व प्रायश्चित करने का अवसर मिलना चाहिए.
- अगर वाल्मिकी को उनके अपराधों के लिए मृत्युदंड दे दिया जाता, उन्हें प्रायश्चित करने का अवसर न मिलता तो संसार ‘रामायण’ जैसे शानदार, प्रेरक व मार्गदर्शन करने वाले ग्रंथ से वंचित रह जाता. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मृत्युदंड ऐसी चीज नहीं है जिसे आधुनिक सभ्य समाजों की कानून पुस्तकों में मौजूद होना चाहिए. संसार को मृत्युदंड निरस्त करने की दिशा में बढ़ना चाहिए.
- जो कानून समय के अनुसार नहीं बदलते हैं वह इंसाफ करने की बजाए अवाम पर बोझ बनने लगते हैं. इसलिए नियमों व कानूनों को समय की जरूरतों के साथ बदलना जरूरी होता है.
- किसी भी अपराधी को मृत्युदंड की बजाए ऐसी सजा देना चाहिए जिसमें उसके लिए करने को कुछ न हो, वह अपने अपराध को याद करता हुआ पल-पल मौत का इंतजार करता रहे. मृत्युदंड से तो अपराधी एक अर्थ में सजा से ‘छुटकारा’ पा जाता है. जीवन न रहने के कारण उसे अपने किए पर अफसोस होगा ही नहीं, जबकि वह अगर बिना पेरोल के अपने जीवन के बाकी दिन सलाखों के पीछे बिना किसी अर्थ के गुजारने के लिए मजबूर होगा तो वह स्वयं भी पछतावा करेगा और दूसरे भी उसे देखकर सबक लेंगे व अपराध करने से बचेंगे.
- मृत्यु दंड मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ है. वास्तव में यह न्याय के नाम पर व्यवस्था द्वारा किसी इंसान की सुनियोजित हत्या का एक तरीक़ा है. यह जीने के अधिकार के विरुद्ध है.
- यह न्याय का सबसे क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक तरीक़ा है. मृत्यु-दंड सभ्य समाज के लिए लिए कलंक है. विकसित और विकासशील देश के लिए कलंक है, जहा फांसी देने लायक अपराध होते हैं. जहाँ इस तरह के अपराधी को अपराध होने से पहले नहीं रोका जाता है, हम इतने कमजोर हैं की इस तरह के अपराधियों को अपराध से पहले नहीं रोक पाते हैं, और अपराध के बाद फांसी दे कर जश्न मनाते हैं.
- विश्व के लगभग 140 देशों में फांसी की सजा नहीं है. मात्र 58 देशों में फांसी का प्रावधान है. जिन देशों में फांसी की सजा नहीं है, उन देशों में अपराध का ग्राफ फांसी वाले देशों से कम है. इन देशों से सीखा जा सकता है की बिना फांसी के फंदों पर लटकाए अपराधियों से कैसे निबटा जाता है.
- भारत बुद्ध, महावीर जैन और महात्मा गाँधी का देश है, जो किसी भी तरह की हिंसा को नहीं मानते थे….और फांसी देनी अपने आप में बहुत बड़ी हिंसा है. “आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी!”
- सैकड़ों देशों जिनमे डेनमार्क, फ़्रांस, Australia, जैसे देश भी शामिल हैं, मौत की सजा नहीं दी जाती.
- जीवन भगवान् ने दिया है इंसान को इंसान का जीवन लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
- एक तरफ वन्य जीवों की हत्या को अपराध मानते हैं वहीँ दूसरी तरफ हम क़ानून के नाम पर एक मनुष्य की हत्या कर देते हैं…ये कहाँ का इन्साफ है?
- यदि किसी को फांसी दी जाती है तो वो तो अपनी guilt feeling, suffering… हर चीज से मुक्त हो जाता है लेकिन उसके परिवार का क्या होता है…कई बार प्रतिशोध में मुजरिम के घर का बच्चा भी अपराधी बन जाता है…इसलिए पाप को ख़त्म करो पापी को नहीं!
- हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत में भ्रष्टाचार चरम पे है…कितने बार ही झूठे साक्ष्य पेश करके और पुलिस और जजों को खरीद कर फैसला अपने पक्ष में कर लिया जाता है….बस एक बार इतना सोचिये कि आपके किसी प्रिय को गलत तरीके से फंसा कर फांसी की सजा दे दी जाए तो आपको कैसा लगेगा? चूँकि हमारा सिस्टम त्रुटियों से भरा है इसलिए हम किसी को भी फांसी की सजा देने की गलती नहीं कर सकते!
- Faansi ki saza is not the solution because: dande ka asar sharir par hota hai zameer par nhi kuch aisa kare Jo dimag ki gandigi aur gandi soch ko flush out karde.
- koi bhi incident par ek dum se react Karna jaldbaazi hogi isliye is par capital punishment ek aggressive reaction hoga Hume react nhi respond Karna hai than solution aa jayega jisse samajh ki soch badlegi.
- suppose koi insaan rapist hai than saza aisi honk chaiye ki use lage ki Maine itna galat kiya Jo mujhe ye sza mil rhi hai kaash agar Maine ye na kiya hota to acha hota For example – wanted film me Mumbai police commissioner jab gani Bhai ko pakad ke Lata hai to apne special cell ke logo se khta hai ki ye kuch bhi kare Karne dena but ise some mat dena so vo toot jata hai is type ki koi sza honi chaiye.
- Apraadhi ko faasi de kar apradh ko km nhi kiya ja skta blki hme dekhna h ki apraadh kha se or kse create ho rha h tb hme apraadh ko fasi deni h n ki apraabhi ko.
- भगवान् बुद्ध ने अंगुलिमाल को समझाया था-“यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने का भी तुम्हे कोई अधिकार नहीं है।” और आगे चल कर अंगुलिमाल बहुत बड़ा सन्यासी बना और अहिंसका के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हर इंसान के अन्दर अंगुलिमाल है और हर इंसान के अन्दर अहिंसका भी है….किसी को मौत की सजा देकर हम उससे उसके सुधरने का अधिकार छीन लेते हैं.
- fasi ki saja par rok lagani chahiye kyo ki ye kudrat ke aur insaniyat ke khilf hai.
- jis taraha hum canser ke marij ka ilaj karte hai use fasi nahi dete, usi taraha muzrimka ilaj hona chahiye na ki use fasi deni chahiye.
- fansi ki saja dene ke bajaye mujrim ko achhe sanskar diye jane chahiye. Jis taraha majahab ya dharm ke naam par achhe logoko aatankwadi banaya ja sakta hai, usi taraha ek aatankwadi ko achha insan banaya ja sakta hai.
- Google पर सर्च कर के देख लीजिये भारत में हर तरह का अपराध बढ़ रहा है, वो भी तब जब फांसी की सजा का प्रावधान है. इसका मतलब अपराध और फांसी की सजा का सीधा रिश्ता नहीं है. हमारे यहाँ दिक्कत judiciary system में है जहाँ केस जवानी में होता है और सजा बुढापे में मिलती है…ज़रुरत है speedy judgement की, वही क्रिमिनल्स के लिए सबसे बड़ा डर हो सकता है.
Against – Capital punishment या फंसी की सजा पर रोक नहीं लगनी चाहिए.
- जिस प्रकार प्रकृति का नियम है कि जो जीवधारी प्रकृति के अनुकूल स्वयं को अनुकूलित नही कर पाता है ,प्रकृति उसके अस्तित्व को समाप्त कर देती हे जैसे डायनासोर जो की प्रकृति के लिए क्षयकारी प्रजाति थी, ठीक उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति मानव प्रजाति के लिए क्षयकारी हो जाए तो उसे मृत्युदण्ड देना ही चाहिये।
- जिस प्रकार भगवान श्री राम ने रावण और कृष्ण ने कंस के कुकृत्य की सजा मृत्यु दी ठीक उसी प्रकार राष्ट्र समाज मानवता के अस्तिव को बचाये रखने के लिये मृत्युदण्ड जेसे कड़े प्रावधान रखने होंगे.
- हाँ ये जरूर है की एक व्यक्ति के गुनाह पर मृत्युदंड देने से उसके परिवार की स्थिति चिंतनीय होती है लेकिन आप उसी गुनहगार के माता पिता और भाई बहन से पूछिये क्या वे उस व्यक्ति को समाज और परिवार में रखना पसन्द करते है, जब एक भाई ही बहन का बलात्कार करे, जब एक पिता ही अपनी बेटी का बलात्कार करे, जब एक पुत्र ही अपनी माँ की हत्या करे…………..तब पूछता हूँ क्या उसके परिवार को 1 करोड़ की सहायता देनी चाहिए ??? साहब ऐसा करेंगे तो रोज घर में ही बलात्कार और हत्याए होंगी।
- साधारण सी बात बताइये बिस्किट को चाय में ज्यादा देर तक डुबोये रखने पर क्या होगा? वह गल जाएगा जी हां ठीक उसी प्रकार संविधान में आवश्यकता से अधिक लचीलापन संविधान की उपयोगिता को कम कर देगा.
- आप विश्व के कई देशो के संविधान में पायएंगे की जघन्य अपराधो की सजा मात्र मृत्युदण्ड नही है, उसके साथ-साथ कई प्रकार की शारीरिक यातनाये भी दी जाती है । लेकिन अपना संविधान मात्र उन को मृत्युदण्ड दे रहा है न की साथ में शारीरिक यातनाये जो की उचित प्रावधान है।
- कैंसर के मरीज को तो आप इलाज से बचा सकते है लेकिन ये बताइये की एक हत्यारे ने जिसकी हत्या की है उसे फिर से कैसे जिंदा करेंगे ……. वो जिसकी आबरू लूटी गयी उस बहन की आबरू केसे लोटेयेंगे । क्या उन पीडितो को न्याय नही मिलना चाहिये ???? और आपकी जानकारी के लिए बताता दूँ कैंसर के इलाज में वृद्धि कर रही कोशिकाओ को उपचार के माध्यम से नष्ट किया जाताहै तो क्या समाज में ऐसे लोगों मृत्यदण्ड देकर नष्ट नही कर देना चाहिए?
- कुछ लोग कहते है की मृत्युदण्ड के बदले उम्रकैद होनी चाहिये । यानी उनका ये मानना है कि एक अपराधी को हमारा राष्ट्र जेल में घर जमाई बनाकर रखे और आवभगत करे । मान लीजिये उसे मृत्युदण्ड के स्थान पर उम्रकैद की सजा दी गयी और उसे वहा अच्छी शिक्षा भी दी गयी तो बताइये क्या आप मानते हे वो सुधर जाएगा?? सवा सौ करोड़ की आबादी के इस राष्ट्र में लाखो ऐसे परिवार हे जिन्हें मुलभूत आवश्यकताए *शिक्षा, आवास, भोजन इत्यादि * उपलब्ध नहीं हैं ऐसी स्थिति में भी आप कहेंगे की हम उन्हें उम्रकैद की सजा देकर उन पर पैसे खर्च करें.
- जिस प्रकार एक किसान अपने खेत में बोई गयी फसल के साथ उगने वाली अनावश्यक खरपतवार को नष्ट कर देता हे ठीक उसी प्रकार हमरा दायित्व बनता हे की समाज में उपस्थित उस खरपत वार को मृत्युदण्ड दे देना चाहिये।
- भारत में पहले ही rarest of rare cases में ही कैपिटल पनिशमेंट का प्रावधान है उसे भी ख़त्म करना कोई समझदारी नहीं होगी….कभी-कभी जान बचाने के लिए डॉक्टरों को भी शरीर का एक अंग काट के अलग करना पड़ता है…इसी तरह समाज में ऐसे कुह कीड़े हैं जिन्हें समाज के हित के लिए मार डालना ही उचित है.
- जघन्य अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान होना चाहिए क्योंकि भविष्य में कोई भी जघन्य अपराध करने वालों को एक बार अपने मृत्यु का भय रहेगा। अपराधी को मृत्यु दंड देने की कानूनी प्रक्रिया में ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए ।
- फांसी की सजा अपराध नियंत्रण के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि जिंदा रहने के लिए सांस लेना।
- आप जितने अच्छे होते हैं उतने ही कमजोर होते हैं क्योंकि आपका अच्छा व्यवहार बुराई करने वाले का हौसला भी बढ़ता है। सीधा पेड़ सबसे पहले काटा जाता है।
- जब अपराधी देखता है है कि कुछ भी कर लो अपनी जान तो बची रहेगी तो वो निडर हो कर और भी जघन्य अपराध करता है.
- जो लोग अपराधी को नहीं अपराध को ख़त्म करने की idealistic बाते करते हैं वे जान लें कि भारत के जेलों की हालत बहुत बुरी है जेल में जाकर अपराधी सुधारते नहीं और भी खतरनाक हो जाते हैं. यदि भविष्य में हमारे कारागारों का infrastructure सुधरा तो ऐसी बातें सोची जा सकती हैं पर अभी तो बिलकुल भी नहीं.
- फांसी की सजा होनी चाहिए और फ़ास्ट ट्रैक के माध्यम से जल्द से जल्द होनी चाहिए. अगर किसी अपराधी को जुर्म करने के 10 दिन के अन्दर जा हो जाती तो सबको संदेश जाता कि अपराध की सजा 10 दिन में मिल जाएगी इस कारण संभावित 10 अपराधी भी अपराध करने का इरादा छोड़ देंगे।
- अगर फांसी को उम्र कैद में बदला जाता है तो बहुत से किडनैपर करोड़ों की फिरौती के चक्कर में या पैसा लेकर हत्या करने के लिए तैयार हो जाते हैं…सोचते हैं कि उन पैसों से उतने दिन परिवार आराम से जियेगा और बाद में जेल से निकल कर अपनी लाइफ भी अच्छी कटेगी.
- फांसी का न होना मतलब लाखों नए मुजरिम हर साल पैदा करना। 1 फांसी पर 1 अरब जनता को पता चलता है कि अपराध के कारण किसी को फांसी मिली। जबकि उम्र कैद के बारे में ये मैसेज 1 लाख लोगों तक भी नही पहुँच पता।
- माफ़ करिएगा जैसा कि आपने कहा फाँसी की सज़ा इंसानियत के खिलाफ़ है तो क्या अपराध महापाप नहीं है? अपने स्वार्थ के खातिर किसी भी हद तक जाना कहाँ की इंसानियत है? क्या इंसान होकर इंसान को चोट पहुँचाना इंसानियत है?
- मरीज का इलाज किया जा सकता है लेकिन पथभ्रष्ट को सुधारना बहुत मुश्किल है.
- जिसे बुरा करने की आदत हो गयी हो फिर उससे अच्छाई की अपेक्षा करना व्यर्थ है और फांसी की सजा होने पर भी बहुत से अपराधी निडर हैं अगर इसे ख़त्म कर दिया तो दिन-दहाड़े अपराधों की संख्या बढ़ जायेगी.
- अंहिसा हमे कायरता नही सिखाती यह सन्देश भी स्वयम गांधी जी ने ही दिया है।अतः यदि बात राष्ट्रहित की हो तो उचित कार्यवाही होगी अब आप उसे हिंसा की संज्ञा नही दे सकते। अपराध जितना जघन्य होगा सजा भी उतनी ही क्रूर होगी।।यह न्याय प्रणाली का सिद्धान्त कहता है।
- हर राष्ट्र अपनी समस्याओ का समाधान अपने राष्ट्र के लोगों की जनसँख्या और राष्ट्र की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए करता है।आपने जिन देशों के उदाहरण दिए हैं उनकी व्यवस्था प्रणाली की भारत जैसे विशाल देश से तुलना करना बचकाना होगा।
- इस बात को समझिये कि सजा-ए-मौत की सजा का भय होने पर भी यदि वह हत्या करने से नही रुका अर्थात उसने परिणाम की चिंता नही की तो भविष्य में वह और अधिक नीच कार्य करने में भी नही हिचकिचायेगा।
- सबसे महत्वपूर्ण समाज में गुंडाराज कायम हो जायेगा!!आरोपियों को खुद की म्रत्यु का भय ही नही रहेगा!!
- न्याय की दृष्टि में हत्यारोपी को सुधरने का मौका देने का अर्थ पीड़ित के घाव पर नमक छिड़कने जैसा होगा!!अतः पीड़ित भी इस घिनोने ज़ुर्म को करने के लिये मज़बूर होने लगेगा।
- जिन देशों में मृत्युदंड का उन्मूलन किया गया है,वे पाश्चात्य एवम अतिविकसित देश है।वहाँ लोग कानून का पालन करते है,राज्यों की स्थिति मजबूत है। उनके पास पर्याप्त संसाधन है। जिससे वे खतरनाक अपराधियों को भी सुधार सकते है। वहीं हमारे देश की वर्तमान परिदृश्य में जब संगठित अपराध एवं आंतकवाद बढ़ रहे है, परिस्थिति ऐसी नही है कि फांसी की सजा पर रोक लगा दिया जाए।
- देश मे मृत्युदंड विरलतम मामलों में ही दिया जाता है। 1980 में बच्चनसिंह बनाम पंजाब में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की पीठ ने व्यवस्था दी कि दुर्लभतम मामलों में ही मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।
- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने भी कहा है कि मृत्युदंड समाप्त करने का अर्थ अपराधियों को एक प्रकार का जीवन बीमा देना होगा कि तुम चाहे जितने भी अपराध कर लो ,जितनी भी बर्बरता करो, हम तुम्हें मारेंगे नही।
- नियम हमारे भले के लिये बने है और जहाँ नियम का तोड़ने पर सज़ा का डर ही ना हो ऐसे में लोग नियम पालन ही क्यों करेंगे? फासी की सज़ा से किसी बेगुनाह को सज़ा न हो, इस बात का खास ध्यन रख कर सज़ा बरकरार रखे।
- क्योंकि कुछ लोग इतने गलत होते है कि वो पीड़ित के साथ इतना अन्याय जानबूझकर कर देते है कि पीड़ित को मृत्यु से भी ज्यादा पीड़ा होती है इसलिए उनकी धरती पर कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि वो बड़ी परेशानी है।
- ईश्वर ने इन्सान बनाया और इन्सान इन्सान के जीते जी जीवन नर्क बना दे उसे जीने का कोई अधिकार नहीं । जैसे – कसाब, धनञ्जय और निर्भिया कांड के अपराधी।
- बलात्कार (rape), हत्या, आतंकवाद जैसे गुनाहों के बदले अपराधी को पुचकारा नहीं जा सकता…बस लटकाया जा सकता है.
- Agar hum sirf Mahatha Gandhi k adarsha par chalte tho sayadh humara des ajad hi nahi hota, Bhagat Singh aur Netaji Subhash Chandra Bose jaise vyakti ka bhi hona jaroori tha,,matlab hinsa k badle pratihinsa,,arthat crime k badle fashi.
- चलिए, एक बार मान लिया कि फांसी की सजा नहीं होगी….अब उस छोटी बच्ची के बारे में सोचिये जिसके साथ बलात्कार हुआ था….उस औरत के बारे में सोचिये जिसे दहेज़ के लिए जिंदा जला दिया गया था….उस युवक की माँ के बारे में सोचिये जिसके बुढापे के एकमात्र सहारे को बदमाशों ने गोली मार दी हो….क्या आप इनसे नज़र मिला पायेंगे…मिला पायेंगे तो मत दीजिये फांसी की सजा…
- Capital punishment honi chahiye kyuki agar capital punishment nhi di jayegi to criminal ke Man Me koi dar nhi rahega jisse crime aur badne ka khatra bna rahega Example ke tor pr rape case Me last bar 2004 Me capital punishment di gyi thi iske Bad abhi nirbhya Case Me yh sja sunayi gyi h Iss duration Me crime bhut jyada bd Gya h.
- fansi ki saja dene se shoshit vyakti ko sahi mayne me santushti milegi aur vah dobara achhi life jeene k lie taiyar hoga.
- Fasi ek dand hai Jo prachin kaal se chala a raha hai.ye hinsa nahi hai.dharma Ki Raksha ke liye hinsa bhi jaruri hai.
- अगर आप किसी आतंकवादी को मौत की सजा नहीं देते और उसे जेल का दामाद बना कर रखते हैं तो क्या होता है?? तो बाहर बैठे आतंकवादी उसे छुडाने के लिए विमान हाइजैक कर लेते हैं और सैकड़ों लोगों की जान पे बन आती है….फांसी की सजा हो और जल्दी हो.
RESULT
हमारी रिव्यु कमिटी ने पक्ष और विपक्ष में रखे गए तर्क के अनुसार निर्णय लिया है कि –
विजेता वो ग्रुप है जिसने विपक्ष यानि AGAINST में अपने तर्क रखे.
यानि कमिटी का मानना है कि “ कैपिटल पनिशमेंट यानि फाँसी की सजा पर रोक लगनी चाहिए!” के खिलाफ अपना पक्ष रखने वाले लोग WINNER हैं.
और
THE MOST EFFECTIVE DEBATER
का खिताब जाता है—- यहाँ पर fight थी Mani Kant Mishra (For) और Ravi Kumar (Against) जी के बीच में …. but ultimately the most effective debater बने हैं –
रवि कुमार
रवि जी ([email protected]) आपको बहुत-बहुत बधाई!
Thank You everybody for your participation. हम जल्द ही एक नयी डिबेट के साथ हाज़िर होंगे! धन्यवाद.
जघन्य अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान होना चाहिए क्योंकि भविष्य में कोई भी जघन्य अपराध करने वालों को एक बार अपने मृत्यु का भय रहेगा । अपराधी को मृत्यु दंड देने की कानूनी प्रक्रिया में ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए ।
फांसी की सजा अपराध नियंत्रण के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि जिंदा रहने के लिए सांस लेना।
आप जितने अच्छे होते हैं उतने ही कमजोर होते हैं क्योंकि आपका अच्छा व्यवहार बुराई करने वाले का हौसला भी बढ़ता है। सीधा पेड़ सबसे पहले काटा जाता है।
दूसरा जघन्य अपराध इसलिये होता है क्योंकि अपराधी पहले अपराध के बाद आशावान होता है कि उसके जीवन को अपराध करने से कोई खतरा नही है।
समय पर सजा न होना गई हर नए अपराध का कारण है।
मान लीजिये की 1 रेप या कत्ल के 5 साल बाद अपराधी को 10 साल की सजा होती है तो वो सजा के 5 साल बाद ही बाहर होगा फिर नए साथी बनाने और नए अपराध करने को। वो 5 साल तक 1 निरपराध की तरह समाज के सामने उदाहरण बना रहा और जब तक सजा मिली लोग उसके अपराध और उसको भी भूल जाते हैं और जो उसके अपराध के गवाह या साथी थे वे निश्चगिन्त हो गए कि अपराध की सजा देना कानून के लिए बहुत मुश्किल काम है। इस विश्वास से वो भी अपराध करने के लिए प्रेरित होते हैं और यही सिलसिला चलता रहता है जब तक पहला अपराधी सजा पाता है 10 नयों को प्रेरणा दे चुका होता है वो 10 फिर 100 को। ये सिलसिला 10 गुना रफ्तार से फैलता रहता है किस वजह से क्योंकि सजा में देरी हुई।
अगर उसी अपराधी को 10 दिन में सजा हो जाती तो सबको संदेश जाता कि अपराध की सजा 10 दिन में मिल जाएगी इस कारण संभावित 10 अपराधी भी अपराध करने का इरादा छोड़ देते हैं।
सजा अगर फांसी है वो भी तुरंत 3 माह के फ़ास्ट ट्रैक से तो करोड़ों के लालच में भी अपराधी जान का रिस्क नही लेता पर अगर बात 20 साल जेल की है तो 10 में से 2 अपराधी ये खतरा मोल लेने के लिए तैयार रहते हैं। और ये 2 अपराधी 1 अरब जनसंख्या में लाखों की तादात में हो जाते हैं।
फांसी का न होना मतलब लाखों नए मुजरिम हर साल पैदा करना। 1 फांसी पर 1 अरब जनता को पता चलता है कि किस अपराध में किसको फांसी मिली। जबकि उम्र कैद के बारे में ये मैसेज 1 लाख लोगों तक भी नही ओएहुँच पता।
Fansi ki saja jarur honi chahiye.kyo ki ghor apradh jaise Rape me mile is Saja se log aage is kaam ko karne se pehle apni Saja ke baare me sochenge aur unhe apni maut dikhayi degi or yakin maniye maut ke darr se bara koi darr nhi hota aur yahi tarika hai aise apradh ko rokne ka.
संगीन ज़ुर्म (किसी निर्दोष की हत्या) में फाँसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए।
क्योंकि-
1.हत्यारोपी को किसी निर्दोष का जीवन समाप्त करने का अधिकार नही होता।
2.फाँसी के भय से भी यदि वह हत्या करने से नही रुका है अर्थात उसने परिणाम की चिंता नही की तो भविष्य में वह और अधिक नीच कार्य करने में भी नही हिचकिचायेगा।
3.इस श्रेणी के आरोपी राष्ट्रहित की कदापि सोच नही सकते।वे आवेश में किसी भी स्तर पर राष्ट्रके लोगों की ज़िन्दगी खतरे में ला देंगे।
4.सबसे महत्वपूर्ण समाज में गुंडाराज कायम हो जायेगा!!आरोपियों को खुद की म्रत्यु का भय ही नही रहेगा!!
5.फलस्वरूप निर्दोष और कमजोर लोगों का जीवन समाप्त होने की कगार पर होगा!!
6.न्याय की दृस्टि में हत्यारोपी को सुधरने का मौका देने का अर्थ पीड़ित के घाव पर नमक छिड़कने जैसा होगा!!अतः पीड़ित भी इस घिनोने ज़ुर्म को करने के लिये मज़बूर होने लगेगा।।
7.सभी पीड़ितों को न्याय चाहिए!!अतः यदि अपराध हत्या का है तो उसका न्याय का एक मात्र मार्ग यही बच जाता है।
सजा ऐ मौत!!
Apraadhi ke liye Capital panisment shi nhi h kyoki,
1. Apraadhi ko faasi de kar apradh ko km nhi kiya ja skta blki hme dekhna h ki apraadh kha se or kse create ho rha h tb hme apraadh ko fasi deni h n ki apraabhi ko.
2. Apraadhi ko apni gltiyo ka ahsaas hone ke liye jinda rahna jaroori h kyoki pschyataap ke aansu bde se bde paap ko dha kr ek ratnakar jse raksas ko bhi valmiki bna sakte h.
saza aisi honi chahiye ki pyaar aur saja ek sath milti rahe mujrim taki use pata chale ki usne kitna galat kiya h fansi dene se bus bat ko daba rahe h na ki solution hoga bahut difficult h
1) fasi ki saja par rok lagani chahiye kyo ki ye kudrat ke aur insaniyat ke khilf hai.
2) jis taraha hum canser ke marij ka ilaj karte hai use fasi nahi dete, usi taraha muzrimka ilaj hona chahiye na ki use fasi deni chahiye.
3) Umra kaid ki saja dekar us muzrim par achhe sanskar kiye jane chahiye.Jis taraha majahab ya dharm ke naam par achhe logoko aatankwadi banaya ja sakta hai, usi taraha ek aatankwadi ko achha insan banaya ja sakta hai.
माफ़ करिएगा जैसा कि आपने कहा फाँसी की सज़ा इंसानियत के खिलाफ़ है तो क्या अपराध महापाप नहीं है? अपने स्वार्थ के खातिर किसी भी हद तक जाना कहाँ की इंसानियत है? क्या इंसान होकर इंसान को चोट पहुँचाना इंसानियत है?
मरीज का इलाज किया जा सकता है लेकिन पथभ्रष्ट को सुधारना बहुत मुश्किल है
जिसे बुरा करने की आदत हो गयी हो फिर उससे अच्छाई की अपेक्षा करना व्यर्थ है और जब तक अपराधियों को फाँसी की सज़ा नहीं दी जायेगी तब तक अपराधों बढ़ोत्तरी ही होती रहेगी|
fansi ki saja honi chahiye. hum logo ne bahut bardasht kiya hai gutter saaf karne ke liye Insaan ko hi utarna padta hai. Jai Hind
Fans ki sajah honi chahiye. Pr agar ise hataya jaye to manav darindagi ko law me Lana chahiye jisase criminal ko jinda rakh kr uske sath darindagi ki jaye
Faansi ki saza is not the solution because
1- dande ka asar sharir par hota hai zameer par nhi kuch aisa kare Jo dimag ki gandigi aur gandi soch ko flush out karde
2- koi bhi incident par ek dum react Karna ye jaldbaazi hogi isliye is par capital punishment ek aggressively reaction hoga Hume reaction nhi respond Karna hai than solution AA jayega jisse samajh ki soch badle
3-suppose koi insaan rapist hai than saza aisi honk chaiye ki use lage ki Maine itna galat kiya Jo mujhe ye sza mil rhi hai kaash agar Maine ye na kiya hota to acha hota 4- example deta hu wanted film me Mumbai police commissioner jab gani Bhai ko pakad ke Lata hai to apne special cell ke logo se khta hai ki ye kuch bhi kare Karne dena but ise some mat dena so vo toot jata hai is type ki koi sza honi chaiye
5 – aur ek advise hai ki victims ki family ko 1 crore ya ek us family me se ek ko naukri deni chaiye kyuki us parivar ki life chal sake us Larki ke sath Jo much nhi hua uski bharpayi koi nhi kar sakta