बहुत समय पहले की बात है जंगल के करीब एक गाँव में दुखिया और सुखिया नाम के दो लकड़हारे रहते थे. एक सुबह जब वे जंगल में लकड़ियाँ काटने गए तो उनकी आँखे फटी की फटी रह गयी.

लकड़ी की तस्करी करने वाली गैंग ने बहुत सारे पेड़ काट दिए थे और बड़े-बड़े ट्रक्स में लकड़ियाँ भर ले गए थे.
ये देखते ही दुखिया क्रोधित हो गया, “देख सुखिया क्या किया उन तस्करों ने… मैं उन्हें छोडूंगा नहीं…. मैं गाँव के हर घर जाऊँगा और इस घटना की शिकायत करूँगा… क्या तुम भी मेरे साथ चलोगे…”
“तुम चलो मैं बाद में आता हूँ.”, सुखिया बोला.
“बाद में आता हूँ??? क्या मतलब है तुम्हारा इतनी बड़ी घटना हो गयी और तुम हाथ पे हाथ धरे बैठे रहोगे… चल के सबको इसके बारे में बताओगे नहीं?”, दुखिया हैरान होते हुए बोला.
“जो मन करे वो करो.. मैं तो चला…”
और फ़ौरन दुखिया गाँव के प्रधान के पास जा कर बोला, “आप यकीन करेंगे उन दुष्टों ने रातों-रात सैकड़ों पेड़ काट डाले… मैं कुछ नहीं जानता उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए….किसी भी तरह से उनका पता लगाइए और उन्हें पुलिस के हवाले करिए…”
और इसके बाद दुखिया घर-घर जाकर यही बात बताने लगा और साथ में सुखिया की भी शिकायत करने लगा कि इतना कुछ हो जाने पर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा और वो इसके लिए कुछ भी नहीं कर रहा है.
गाँव वाले भी क्या करते उसके बात सुनते और ढांढस बंधा कर अपने-अपने काम में लग जाते.
ये सब करते-करते शाम हो गयी और दुखिया अपने घर लौट आया.
अगली सुबह वह फिर से सुखिया के पास गया और कहा, “आज मैं इस घटना की शिकायत करने कोतवाली जा रहा हूँ…क्या तुम नहीं चलोगे?”
“मैं चलना तो चाहता हूँ पर क्या हम दोपहर को नहीं चल सकते?”, सुखिया बोला.
“समझ गया… तुम टाल-मटोल कर रहे हो मैं अकेले ही चला जाता हूँ…”, और दुखिया गुस्से में वहां से निकल गया.
अगली सुबह दुखिया के दिमाग में आया कि इस घटना को लेकर गांधी चौक पर धरना दिया जाए…. और वह अपनी योजना लेकर सुखिया के घर पहंचा.
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“खट-खट खट-खट”, दुखिया ने सुखिया को आवाज़ देते हुए दरवाजा खटखटाया
“बापू जंगल गए हैं!”, अंदर से आवाज़ आई.
दुखिया मन ही मन सोचने लगा कि ये सुखिया भी कितना पागल है… अब जब हमारे मतलब के पेड़ ही नहीं रहे तो वो जंगल में क्या करने गया है!
वह फ़ौरन सुखिया को बुलाने के लिए जंगल की ओर बढ़ गया.
वहां पहुँच कर उसने देखा कि सुखिया उस जगह को साफ़ कर उसमे नए पेड़ लगा रहा है.
दुखिया बोला, “ये क्या कर रहे हो? अभी बहुत से लोगों को इस घटना के बारे में पता नहीं चला है…. और तुम यहाँ नए पेड़ लगाने में समय बर्बाद कर रहे हो… क्यों कर रहे हो ऐसा?”
“क्योंकि बस शिकायत करने से पेड़ वापस नहीं आ जायेंगे!”, सुखिया बोला.
दोस्तों, कुछ बुरा होने के बाद जो काम सबसे आसान होता है वो है शिकायत करना. और शायद इसीलिए हर कोई इस आसान काम को करने में ही लगा रहता है. कुछ हद तक ऐसा करना natural भी लगता है पर problem ये है कि हम बस यही करने में अपनी पूरी energy… अपना पूरा focus लगा देते हैं…हम ये नहीं सोचते की जो समस्या पैदा हुई है उसके समाधान में हम खुद क्या कर सकते हैं…
क्या गली में कचरा फैलने पर हम खुद एक डस्टबिन लगा सकते हैं?
क्या ट्रैफिक जाम कम करने के लिए हम कार की जगह मेट्रो से जा सकते हैं?
क्या जंगल कटने पर हम पेड़ लगा सकते हैं?
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Bahut hi achhi kahani h , it is reality
To kya hame un gunahgaro ko sabak sikhne ke liye kuch nh karna chahiye ase me o aur v bura kam karne lagenge
bohut acchi kahani hai sir, really like this.
Bahut badhiya kahani hai
bahut hi achhi kahani
ये बहुत ही ज्ञानवर्द्धक और प्रेरणादायक कहानी है।
bhut achchhi kahani hai
bahut sunder aur gyanvardhak kahani, is kahani me bilkul sahi kaha ki kuch bhi ho jaye log sirf aur sirf shikayat hi karte rahte hain.
Bahut hi raasta dekhne wali post hai sir..jab Tak jimmedari nahi aati hei tab Tak akal rhikhne pe nahi aati
शिकायत करना इंसान की फितरत बन गई है है।परिवार समाज राजनैतिक सामाजिक शैक्षणिक धार्मिक ……किसी भी प्रकार की संस्था हो शिकायत करना एक मानसिक दस्त जैसा हो गया है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है ….इस मानसिकता से उबरकर जब तक जिम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे परिवार समाज देश की उन्नति असम्भव है ।खासकर युवा पीढ़ी को इस बीमारी से बचाना अत्यंत आवश्यक है…..एक प्रेरणादायी प्रयास ….साधुवाद।