तानाजी मालूसरे का गौरवपूर्ण इतिहास
Tanaji Malusare Life History in Hindi
नाम – तानाजी मालुसरे
- जन्म – 1600 AD
- जन्म स्थान – गोदोली गाँव, महाराष्ट्र, भारत
- पिता का नाम – सरदार कलोजी
- माता का नाम – पार्वतीबाई
- पत्नी का नाम – ज्ञात नहीं
- प्रसिद्धि – सिंहगढ़ की लड़ाई
- मृत्यु – 1670 AD
तानाजी मालुसरे एक वीर मराठा सरदार थे | उनका जन्म 17वीं शताब्दी में हुआ था | एतिहासिक तथ्यों अनुसार वह महाराष्ट्र राज्य के कोंकण प्रान्त में महाड के पास “उमरथे” से आये थे | (जन्म स्थान – गोदोली गाँव, महाराष्ट्र, भारत) |
इस महान योद्धा को सिंहगढ़ की लड़ाई में प्रचंड पराक्रम और अतुल्य साहस के लिए याद किया जाता है | उनकी अडिग निष्ठा और कर्तव्यपरायणता प्रशंसापात्र है | तानाजी और छत्रपति शिवाजी महाराज एक दुसरे के घनिष्ठ मित्र थे | यह दोनों बालपन सखा भी रहे हैं |
बचपन से ही तानाजी को तलवारबाजी का बड़ा शौक था | बड़े हो कर तानाजी मराठा सेना के किल्लेदार (सुभेदार) बने | मराठा साम्राज्य सुरक्षा और समृद्धि हेतु कोंढ़ाणा किले पर जीत हासिल करना बेहद ज़रूरी था | इसी लक्ष्य को सिद्ध करने के लिए शिवाजी महाराज नें तानाजी के नेतृत्व में कोंढ़ाणा दुर्ग अर्जित करने का निश्चय किया | इस भीषण संग्राम में मराठा सेना विजय तो हुई लेकिन तानाजी मालसुरे वीरगति को प्राप्त हुए | आइये इस महान योद्धा के पराक्रम और वीरता से जुड़ी रोचक बातें जानें |
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सिंहगढ़ की लड़ाई (सन 1670)
बात उस समय की है जब तानाजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी ज़ोरशोर से चल रही थी | इसी शुभ कार्य हेतु वह शिवाजी महाराज को आमंत्रित करने भी जाने वाले थे | तभी उन्हें पता चला कि शिवाजी कोंढाणा पर चढ़ाई करने वाले हैं | इस योजना हेतु उन्हें शिवाजी महाराज की और से बुलावा भी आ गया | उन्होंने तुरंत महाराज के पास जा कर इस साहसी कार्य को खुद करने की पेशकश की |
अपने पुत्र के विवाह जैसे महत्वपूर्ण प्रसंग को प्राथमिकता न देते हुए उन्होंने अपने कर्तव्य को चुना | इस बात से सुभेदार तानाजी की राजभक्ति और शिवाजी महाराज के प्रति गहन मित्रता का मर्म पता चलता है |
सिंह गढ़ किले पर तानाजी का आगमन
छत्रपति शिवाजी महाराज की आज्ञा एवं इच्छा अनुसार सुभेदार तानाजी 342 बेहतरीन मराठा सिपाहियों की टुकड़ी के साथ कोंढ़ाणा (सिंह गढ़) किले पर पहुंचे | इस गढ़ को जीतना किसी भी तरह से सहज नहीं था | उन्होंने रात के घुप अँधेरे में किले के पश्चिम भाग से अंदर घुसने की योजना बनाई | सिंह गढ़ किले की पश्चिमी दिशा में खड़ी चट्टान स्थित होने के कारण मुग़ल सोच भी नहीं सकते थे कि वहां से आक्रमण संभव है | इसीलिए वहां पर नाम मात्र के सुरक्षा इंतज़ाम थे |
युद्ध में घोरपड़ (मॉनिटर लिज़र्ड) की भूमिका
तानाजी नें किले की उस दिशा से अंदर प्रवेश करने के लिए कुल तीन प्रयास किए जिनमें से दो विफल रहे | उसके बाद तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिल गयी | उन्होंने “घोरपड़” की मदद से खड़ी चट्टान की चढ़ाई की | घोरपड़ एक प्रकार की छिद्रित मोनिटर छिपकली ( monitor lizard )होती है | रस्सी की सहाय से उसे दीवार पर चिपका कर खड़ी चढ़ाई संभव होती है | उस छिपकली का नाम “यशवंती” रखा गया था | तानाजी नें इसी युक्ति के बल पर किले में प्रवेश किया | हालांकि सभी इतिहासकार इस बात को लेकर एकमत नहीं हैं|
तानाजी का दिलेर युद्ध कौशल
युद्ध में तानाजी की ढाल टूट गई | तब उन्होंने अपना सिर का फेटा (पगड़ी को) खोल लिया | और उसे अपने दूसरे हाथ में लपेट लिया ताकि उसे ढाल की तरह इस्तमाल कर सकें | उसके बाद उन्होंने एक हाथ से तीव्र गति से तलवार चलाई और दूसरे हाथ पर शत्रु की तलवार के घाव लिए |
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किल्लेदार उदयभान राठौड़
उदयभान धर्म से हिन्दू था | लेकिन निजी लाभ और स्वार्थ के लिए मुघलों से जा मिला था और सत्ता पाने के लालच में धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गया था| उस समय कोंढ़ाणा किला उदयभान के नियंत्रण में था | उसको मुग़ल जनरल जय सिंह प्रथम द्वारा इस पद पर नियुक्त किया गया था |
कोंढाणा युद्ध का संक्षिप्त वृतांत ( How Tanaji Malusare Died ?)
मराठा सेना के किले में घुसते ही मुग़ल सेना में अफरातफरी का माहौल छा गया | देखते ही देखते अँधेरी रात में सिंह गढ़ किला युद्ध का मैदान बन गया | तानाजी के वीर लड़ाके 5000 मुघलों की सेना पर काल बन कर टूट पड़े | कोंढ़ाणा युद्ध में तानाजी मालुसरे और उदयभान राठौड़ के बीच घोर संग्राम हुआ | इस लड़ाई में मुग़ल सुभेदार उदयभान तानाजी पर धोखे से वार करता है | इस लड़ाई में तानाजी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और फिर उनकी मृत्यु हो जाती है | तब उनके शेलार मामा उदयभान को मौत के घाट उतार कर, तानाजी की मौत का बदला लेते हैं |
सूर्याजी मालसुरे का आक्रमण
सूर्याजी मालसुरे तानाजी के छोटे भाई थे | उन्होंने कोंढाणा (सिंह गढ़) की लड़ाई में 500 सैनिकों के साथ कल्याण द्वार से मोरचा संभाला | उन्होंने बड़ी वीरता से मुघलों को खदेड़ दिया और किले पर विजय का ध्वज लहराया |
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तानाजी की मृत्यु पर शिवाजी महाराज की मनोदशा
बचपन के मित्र और अपनी सेना के बहादुर सुभेदार को खो देने पर शिवाजी शोकमग्न हो गए | उन्होंने भावुक हो कर यह वचन कहे…
“गढ़ आला पण सिंह गेला”
“गढ़ तो जीत लिया पर मेरा सिंह नहीं रहा”
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कोंढ़ाणा (सिंह गढ़) किले का इतिहास
यह एक प्राचीन पहाड़ी किला है | पूर्व समय में यह किला कोंढ़ाणा के नाम से जाना जाता था | सिंहगढ़ का यह एतिहासिक किला महाराष्ट्र राज्य में पुणे शहर से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में स्थित है | इसे करीब 2000 वर्ष पहले निर्मित किया गया था |
सिंह गढ़ किले का एतिहासिक घटना क्रम
- ईस्वी 1328 में दिल्ली राज्य के सम्राट “मुहम्मद बिन तुगलक” ने कोली आदिवासी सरदार नाग नायक से किले पर कब्जा कर लिया |
- शिवाजी के पिता संभाजी भोसले इब्राहीम आदिल शाह प्रथम के सेनापति थे | उनके हाथ में पुणे का नियंत्रण था | स्वराज्य स्थापना हेतु उन्होंने आदिल शाह के सुभेदार सिद्दी अम्बर को परास्त किया और कोंढ़ाणा (अब सिंह गढ़) किला जीत लिया |
- इसवी 1647 में छत्रपति शिवाजी ने किले का नाम सिंह गढ़ किया |
- इसवी 1649 में शाहजी महाराज को आदिल शाह की कैद से आज़ाद कराने के लिए सिंह गढ़ किला छोड़ना पड़ा |
- इसवी 1670 में शाहजी और शिवाजी महाराज नें मिल कर सिंह गढ़ किला फिर से अर्जित कर लिया |
- संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, एक बार फिर मुग़लों नें यह किला फ़तेह किया |
- इसवी 1693 में मराठों नें “सरदार बलकवडे” के कुशल नेतृत्व की वजह से सिंह गढ़ किले को जित लिया |
- इसवी 1703 में औरंगजेब नें यह किला जीता | करीब तीन वर्ष बाद, संगोला, पतांजी शिवदेव और विसाजी चापरा की कुशल युद्धनिति के कारण मराठों नें यह किला जित लिया |
- इसवी 1818 तक इस किले पर मराठा साम्राज्य का आधिपत्य रहा | उसके बाद अंग्रेजों नें यह किला जित लिया | उन्हें यह कठिन कार्य अंजाम देने के लिए करी 90 दिन लगे |
Interesting Story Of Tanaji Malusare and Shivaji Maharaj
तानाजी मालुसरे और शिवाजी महराज से जुड़ी प्रचलित कहानी
उन दिनों मुग़ल सेना शिवाजी महाराज की खोज में लगी थी | इस लिए शिवाजी वेश बदल कर रहते थे | कुछ समय बाद विचरण करते हुए वह एक गरीब ब्राह्मण के घर पहुंचे | यह व्यक्ति अपनी माता के साथ रहता था | और भिक्षा मांग कर अपना घर चलाता था | खुद की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के बावजूद उसने यथाशक्ति शिवाजी महाराज का आदर सत्कार किया |
एक दिन सुबह विनायक (ब्राह्मण) भिक्षा मांगने घर से निकले | दुर्भाग्यवश उस दिन उन्हें बहुत कम अन्न प्राप्त हुआ | तब घर जा कर उन्होंने भोजन बनाया और अपनी माता और शिवाजी को खिला दिया | उस रात वह खुद भूखा ही सो गया |
अपने आतीथेय की इस दरियादिली को देख कर शिवाजी भावुक हो गए | उन्होंने विनायक की दरिद्रता दूर करने का निश्चय किया | इसी प्रयोजन से उन्होंने वहां के एक मुग़ल सरदार को पत्र भिजवाया |
पत्र में लिखा था कि शिवाजी महाराज इस दिन ब्राह्मण के घर पर रुके हैं | इस महत्वपूर्ण सूचना के बदले इस गरीब ब्राह्मण को 2 हज़ार अशर्फियाँ दे दें | पत्र मिलते ही मुग़ल सुभेदार पूरी बात समझ गया | चूँकि वह शिवाजी महाराज की इमानदारी और बडप्पन से भलीभांति परिचित था |
सूचना मिलते ही उसने गरीब ब्राह्मण को पुरस्कार दे दिया और शिवाजी महाराज को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया | इस प्रसंग के बाद तानाजी के माध्यम से विनायक (ब्राह्मण) को यह पता चला की उनके घर स्वयं छत्रपति शिवाजी महराज ठहरे थे |
उनके घर आश्रय लेने की वजह से शिवाजी मुग़ल सेना के हाथ लगे, इस भ्रम के कारण ब्राह्मण छाती पीट-पीट कर विलाप करने लगा | तभी तानाजी नें उसे सांत्वना दी और मार्ग में ही मुग़ल सुभेदार की टुकड़ी से संघर्ष कर के शिवाजी महाराज को मुक्त करा लिया |
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तानाजी और सिंह गढ़ किले से जुड़े तथ्य / Interesting Facts Related to Tanaji Malusare in Hindi
- तानाजी मालसुरे के बलिदान को ध्यान में रखते हुए शिवाजी महाराज नें कोंढाणा किले को सिंहाडा (सिंह गढ़) नाम दिया |
- प्रचंड पराक्रम और अतुल्य साहस के लिए तानाजी मालसुरे की मूर्ति सिंह गढ़ किले में स्थापित की गयी है |
- यह ऐतिहासिक किला पुणे का लोकप्रिय पर्यटन स्थल बना |
- पुणे शहर के “वाकडेवाडी” नामक भाग का नाम बदल कर “नरबीर तानाजी वाडी” कर दिया गया | इसके अलावा पुणे में तानाजी के अनेकों स्मारक बनाए गए |
- सिंह गढ़ किला राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी, खडकवासला में प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी कार्यरत हुआ |
- मध्यकालीन युग में तुलसीदास नाम के प्रसिद्ध कवि ने तानाजी मालसुरे की वीरता और बहादुरी को बताती कविता “पोवाडा” की रचना की |
- वीर सावरकर नें तानाजी के जीवन पर एक गीत लिखा जिसका नाम “बाजी प्रभु” था | ब्रिटिश सरकार नें इस रचना पर प्रतिबंध लगाया | फिर 24 मई, 1946 में उन्होंने यह प्रतिबंध हटा लिया |
- इस गौरव गाथा से प्रेरित हो कर Tanaji – The Unsung Warrior नाम की फिल्म बनी है| जिसमें अजय देवगन, सैफ अली खान और काजोल जैसे मंजे हुए कलाकार नें अभिनय किया |
- तानाजी के जीवन पर एक पुस्तक लिखि गयी | इस Book को “गढ़ आला पण सिंह गेला” नाम दिया गया |
निष्कर्ष – आज हम तानाजी मालसुरे की बात कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने निज सुख, स्वार्थ, भोग विलास को परे रख कर राष्ट्रभक्ति, मित्रता और कर्तव्यपरायणता का पालन किया | मातृभूमि की अनन्य सेवा करने वाले इस वीर योद्धा को हमारा शत-शत नमन |
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Raith bhai sachi baat hai
एक महान शूरवीर तानाजी मालूसरे
ताना जी मानुसारे का जीवन वास्तव में प्रेरणा स्रोत है। इनके जीवन से सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। बहुत बढ़िया लेख। धन्यवाद् अच्छी खबर।
बहुत ही शानदार और ज्ञानवर्धक जानकारी प्रदान की है, आपका धन्यवाद।
बेहद interesting ऐतिहासिक कहानी।
पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
IS BAAT SE KOI FARK NAHI PADTA….WO EK MAHAN SENAPATI THE JO DESH KE LIYE NIJI SUKHO KA TYAG KAR SHAHEED HUYE….VEER KI KOI JAAT YA DHARM NAHI HOTA
बेहद रोमांचकारी ऐतिहासिक कहानी।
कृपया आप मेरे इस पोस्ट को भी पढ़ें।
—https://www.manojkiawaaz.com/2019/06/subhas-chandra-bose.html
aapne sahi samay par behatrin jankari share ki hai sir. thanks.
सुन्दर प्रस्तुति
तानाजी एक क्षत्रिय महादेव कोली थे मराठा नहीं थे तानाजी को मराठा साम्राज्य का सेनापति बनाया गया था इसलिए उनको मराठा कहते थे पर वो क्षत्रिय महादेव कोली थे