गोपाल पाठा की जीवनी | Gopal Patha Biography Hindi

परिचय : प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देश के शहीदों और वीरों को याद किया जाता है. लेकिन हैरत की बात है कि इतिहास के पन्नों पर गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय (गोपाल पाठा) के बारे में जानकारी ना के बराबर है.
इन्होंने बंगाल में वर्ष 1946 में “डायरेक्ट एक्शन डे” मूवमेंट के समय, जब हिंदुओं का कत्लेआम हुआ तब, “नायक” की भूमिका निभाई थी. उनका जन्म 7 सितंबर, 1913 के दिन कलकत्ता (भारत) में हुआ. पेशे से वह कसाई (मांस का व्यवसाय करते) थे, साथ ही पहलवानी का भी शौख था. हांला की उनके काम को ले कर अपवाद भी है. 10 फरवरी 2005 में 92 साल की आयु में इन्होंने देह त्याग दिया. कहा जाता है कि 1946 में हुए हिन्दू नरसंहार में वे शस्त्र नहीं उठाते तो कई और हिन्दू मारे जाते, साथ ही बंगाल हिन्दूविहीन हो कर पाकिस्तान में मिल जाने का भी खतरा था.
बंगाल हिंसा पर बापू की चुप्पी और मुस्लिम प्रेम
कई लोगों का मानना है कि, उस समय “जब तक” सड़कों पर हिंदुओं का हनन हो रहा था “मोहनदास करमचंद गांधी” मौन रहे, लेकिन हिंदुओं ने हमले की जवाबी कार्रवाई शुरू की तो फ़ौरन बापू कलकत्ता (कोलकाता) आ कर अनशन पर बैठ गए और अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए गोपाल और अन्य हिंदुओंको हथियार त्यागने की समझाइश देने लगे.
इस सुलगते विषय पर हाल ही में एक फिल्म भी बनी है “The Bangal Files“, जिसमें “डायरेक्ट एक्शन डे” पर हुए हिन्दू नरसंहार कोंग्रेस के रवैये और गोपाल पाठा की वीरता की गाथा बताई गई है. आइये इस घटनाक्रम को आसान भाषा में समझते हैं.
दूसरा विश्व युद्ध और भारत की आज़ादी
भारत में ब्रिटिशर्स ने करीब 200 साल राज किया. दूसरे विश्व युद्ध (1939-1945) ने ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य रूप से तोड़ के रख दिया. 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” के कारण भी वे भयभीत थे. नेवल म्यूटिनी (1946) और बढ़ते जनदबाव ने हालात और ख़राब कीए. अंततः 1947 में अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्रता देने का निर्णय किया.
भारत-पाक बंटवारा
मुहम्मद अली जिन्हा और जवाहर लाल नेहरू में 36 का आंकड़ा था, दोनों ही आज़ाद देश के पहले PM बनना चाहते थे, जिन्ना मुस्लिम हितों के रक्षण और पाक कायदे-आज़म बनने के चक्कर में अलग राष्ट्र की मांग पर अड़ गया. उसे डर था कि एक बार अंग्रेज कोंग्रेस को सत्ता सौप गए तो बापू कभी बंटवारे के लिए नहीं मानेंगे, इसी लिए उसने बंगाल को रण बनाया और डायरेक्ट एक्शन डे का आंदोलननुमा षड्यंत्र किया.
सीधी कारवाई – Direct Action Day 1946 संपूर्ण घटनाक्रम
अंग्रेजों का कैबिनेट मिशन प्लान
जिन्ना का राग था, की मुस्लिमों के लिए अलग देश बने. हिन्दू-मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते. अंग्रेजों ने कैबिनेट मिशन प्लान अनुसार जब भारत को एक संघ के रूप में आजाद करने का मन बनाया, तो मुस्लिम लीग यह मानने लगी की उनके अलग इस्लामिक राष्ट्र की मांग धरी की धरी रह जाएगी. कोंग्रेस और गांधीजी भी भारत के टुकड़े हो ये “नहीं” चाहते थे. लेकिन सत्ता का भूखा मुहम्मद अली जिन्हा जानता था, के जवाहर लाल नेहरु के रहते वो भारत का पहला प्रधानमंत्री (कायदे आज़म) बनने से रहा. इसी लिए जिन्ना की मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 के दिन “Direct Action Day” आंदोलन की आड़ में अमानवीय करवाई शुरू की.
रैली आंदोलन शुरू : छूटमूट घटनाएं दंगों में बदली
16 अगस्त 1946 को ऑल-इण्डिया मुस्लिम लीग ने “डायरेक्ट एक्शन डे” घोषित करती है, मांग : अलग मुस्लिम राष्ट्र, बहाना, हड़ताल और आंदोलन.
धार्मिक तनाव और भड़काऊ रिपोर्टिंग का माहौल बन गया, छोटी मोटी झड़प ने उग्र रूप ले लिया, हड़ताल धीरे धीरे हिंसा का रूप लेने लगी.
राजाबाजार, कॉलेज स्ट्रीट, कोलूटोला जैसे उत्तर-मध्य इलाके सबसे पहले आग में झुलसे, मुस्लिम लीग के कार्यकर्ता और स्थानिक मुस्लिम लाठी-डंडे, ईंट-पत्थर और छोटे हथियारों से लैस थे। दावा यह भी था कि अन्य शहरों से भी पाक राष्ट्र समर्थक मुस्लिम भीड़ बुलाई गई.
सुनियोजित दंगे से बेखबर हिन्दू कौम
संदेहजनक गतिविधियों की भनक हिंदुओं तक भी पहुंची, उन्होंने भी स्व-बचाव की तैयारियां शुरू की, लेकिन संगठित नहीं थे इस लिए अधिक शिकार बन रहे थे.
आम नागरिक सख्ते में थे. धार्मिक स्थल, दुकानें, अस्पताल, छात्रालय किसी भी जगह को बख्शा नहीं जा रहा था. जहाँ देखो वहां लूटपाट, हत्या और आगजनी का मंज़र था.
सरकार की बागड़ोर जिन्ना के कट्टर समर्थक, बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री “हुसैन शाहिद सुहरावर्दी” के हाथ में थी, तो पुलिस-बल की कार्यवाही हिन्दू विरुद्ध ज़्यादा दिखी. सार्वजानिक छुट्टी का आईडिया भी उल्टा पड़ गया.
चार दिनों के आतंक की आग में सैकड़ों हजारों लोग मरे और घायल हुए. इस साम्प्रदायिक घटनाओं की निंदा पुरे विश्व ने की.
बंगाल का शेर गोपाल पाठा मैदान में उतरा
आलोचना से सुरक्षा नहीं मिलती. बंगाल में हिंदुओं के पास न हथियार थे, ना ही उन्हें पता था कि वे षड्यंत्र में फंसे हैं. धीरे धीरे मामला समझ आया तो वहां की गली मोहल्लों से गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय नामक लीडर उभरा.
कुछ लोग इन्हें नायक बताते हैं तो कुछ यह भी कहते हैं कि वे असामाजिक प्रवृति (गुंडागीरी) में भी लिप्त थे, जो भी हो, उस समय वे बंगाल के हिंदुओं के लिए रक्षक बन कर आगे आए.
उन्होंने राक्षक-दल का गठन किया, महिलाओं, बच्चों को सुरक्षित स्थान पर भेजने का इंतज़ाम किया और चौकियां बना कर मोहल्ले सुरक्षित किए. जो स्वस्थ थे युवा थे उन्होंने मोर्चा संभाला, जो लड़ नहीं पा रहे थे वो पीड़ितों की मदद के लिए कार्यरत हुए.
बार बार इस्लामिक भीड़ हिंदुओं पर वार कर रही थी. उनके हमले बर्बर होते थे, लेकिन गोपाला पाठा ने अपने लोगों को साफ़ निर्देश दिए की, जवाबी हमले करो, लेकिन बच्चों और महिलाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. रावण ने यह पाप किया था और वो नष्ट हो गया था.
सत्ता पाने में गड़बड़ी ना हो इस लिए प्रशासन ने ढील दी

दोनों पक्षों के वार-पलटवार के चलते प्रशासन लाचार हो गया. उपचार, पुनर्वास और भुख की समस्या चरम पर पहुंची. ब्रिटिश वैसे ही भारत की बर्बादी चाहते थे, हिन्दू राजनीती गद्दी को केंद्र स्थान पर रख कर फुंक फुंक कर कदम बढ़ा रही थी और जिन्ना की मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग के लिए दंगे पर उतारू थी. इस लिए आम जनता पीस गई.
ये वो समय था जब, गोपाल पाठा का नाम भारत में गूंजा, स्थानीय नेताओं ने भी शांति बहाल के प्रयास किये. कई समझौते हुए, शांति प्रार्थनाओं का दौर चला.
गोपाल जी के वंशज दादा के परिचय चित्रण से है “नाराज़”
बंगाल के असहाय हिंदुओं के रक्षक गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय के वंशज (पोते) ने हाल ही में इस बात पर एतराज जताया है कि उनके दादा का पात्र दर्शाती फिल्म “द् बंगाल फाइल्स” में उनका पेशा कसाई बताया गया, यह गलत है, उन्होंने कहा वे पहलवान थे. आज बंगाल का वो शेर हमारे बीछ नहीं है, लेकिन “ग्रेट कोलकाता किलिंग्स” के वक्त हाजरो हिंदुओं की Life बचाने के लिए देश और मानवता उनका उपकार भूलेंगे नहीं.
गांधी Vs बंगाल का शेर “गोपाल पाठा” संवाद

बंगाल का शेर “गोपाल पाठा” :
मैं पहले एक सवाल पूछना चाहता हूँ…
अगर मैंने अपने हथियार दे दिए…
समर्पण कर दिया…
और वो हथियार ले कर, हमारी बहन बेटियों को उठा ले जाए, तो… क्या करना चाहिए?
मोहनदास करमचंद गांधी :
हिन्दू महिलाओं को अपने आपको असहाय या कमजोर नहीं समझना चाहिए।
अगर कोई भी रावण किसी भी महिला के एक भी बाल को हाथ लगाता है… तो उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए।
और वो ऐसा, अपनी जीभ को काट कर, या अपने प्राणों को रोक कर कर “अपने प्राण त्याग सकती है”। …. वोही असली साहस है.
बंगाल का शेर “गोपाल पाठा” :
मैं अपना हथियार समर्पण नहीं कारुंगा.
इसको छोड़ो, अगर मैंने अपने भाई बहनों की रक्षा के लिए एक सुई का भी इस्तमाल किया हो,
एक कील का भी इस्तमाल किया हो, वो भी समर्पण नहीं करूंगा.
तुमने हमें तुम्हारी ज़िद्द और मेरे धर्म के बीछ में चुनने को कहा है, मैंने अपना “धर्म” चुना है.
Dilog Credit : The Bengal Files (विवेक अग्निहोत्री निर्देशित फिल्म 2025)
एक्टर जॉन इब्राहिम का बयान

एक्टर जॉन अब्राहम के विवादित बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके फ़िल्मी पात्रों की पसंद पर सवाल उठे.
यूजर्स कह रहे की, दोस्ताना फिल्म में मर्द से मर्द के जोड़े पर हांस्य कहानी, धूम फिल्म में बैंक लुटेरा हीरो, गरम मसाला में महिलाओं को आनंद का साधन जैसा दर्शाने वाली फिल्म का सहायक नायक, ये इन जनाब का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है.
और इन्हें कश्मीर फाइल्स और बंगाल फाइल्स जैसी सत्यघटना पर आधारति फिल्मों पर दिक्कत है, महाराज कहते हैं कि इनसे समाज में घर्षण होगा.
जब की कश्मीर फाइल्स और द् बंगाल फाइल्स नामक फिल्म्स का एक-एक सीन हिस्टोरिक प्रूफस (With Refrence) के सबूत के आधार पर बनाया गया है.
खुद कुछ कर नहीं पाते और अगर कोई ऐतिहासिक सच्चाई उजागर करे तो नाराज़ हो जाते हैं, यह है हमारा Bollywood और उसके So Cold Stars.
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Aise logo ke baare me school me padhaya kyo nahi jata.
सत्ता के खेल में सिर्फ राजनेता ही नायक पेश किए जाते हैं, लोकशाही की आड़ में छिपी तानाशाही कभी यह बर्दाश्त नहीं कर पाती है कि कोई आम व्यक्ति नायक बन कर उभरे, पॉलिटिशन ऐसे लोगों को संभावित खतरा (कल का नेता) जान कर, उसकी छवि धूमिल कर देते हैं या उसे गुमनामी के दलदल् में धकेल देते हैं।
उस समय बंगाल के जो हालात थे, अगर गोपाल पाठा और अन्य हिन्दू बहादुरी ना दिखाते तो आज बंगाल भारत की जगह पाकिस्तान का हिस्सा होता, बड़े दुःख की बात है कि राजनैतिक उठापटक और षड्यंत्रों के कारण आजकी युवा पीढ़ी को ऐसे महावीर के बारे में फिल्मों से जानकारी मिलती है, इतिहास में सिर्फ गांधी और नेहरू जैसे पॉपुलर नेता के बारे में ही अधिक पढ़ाया जाता है.