उन्नीसवीं शताब्दी में अपना सारा जीवन दुःखी, कमजोर और असहाय लोगों की सेवा में अर्पित करने वाले स्वामी विवेकानंद सच्चे अर्थों में युगपुरूष थे। अपनी ओजस्वी वाणी से उन्होने अनेक लोगों को मानव सेवा के लिए जागरूक किया। स्वामी विवेकानंद आधुनिकता के इस दौर में आज भी लाखों युवाओं के आदर्श हैं। स्मरण शक्ति के धनि नरेन्द्रनाथ के मन में अकसर ये प्रश्न उठता था कि जब सभी धर्मों का सार मानवता को श्रेष्ठ मानता है तो विश्व में ये विषमता क्यों एवं क्या किसी ने ईश्वर को देखा है ? इस प्रकार के प्रश्न नरेन्द्रनाथ को अकसर परेशान करते थे, तभी अचानक एक दिन पड़ोसी के घर नरेन्द्रनाथ की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई।
18 फरवरी 1836 को बंगाल प्रांत में रामकृष्ण का जन्म हुआ था। आपके बचपन का नाम गदाधर था। मानवीय मुल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस कोलकता के निकट दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। अपनी कठोर साधना और भक्ति के ज्ञान से इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं उनमें कोई भिन्नता नहीं है। वे मोह-माया से विरक्त हिन्दु संत थे फिर भी सभी धर्मों की समानता का उपदेश देते थे। रामकृष्ण परमहंस के साथ भेंट के दौरान नरेन्द्रनाथ सुस्वर में एक गान गाये, जिसे सुनकर रामकृष्ण मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होने नरेन्द्रनाथ को दक्षिणेश्वर आने को कहा। नरेन्द्रनाथ भी उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुए थे अतः वे स्वयं को दक्षिणेश्वर जाने से रोक न सके। नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक नाम था। सन्यास के बाद वो स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए।
जब नरेन्द्रनाथ दक्षिणेश्वर गये तो बातचीत के दौरान ही उन्होने रामकृष्ण जी से प्रश्न करके पूछा कि, क्या ईश्वर को देखा जा सकता है?
“रामकृष्ण जी ने उत्तर दिया कि, क्यों नहीं उन्हे भी वैसे ही देखा जा सकता है जैसे मैं तुम्हे देख रहा हुँ। परन्तु इस लोक में ऐसा करना कौन चाहता है? स्त्री, पुत्र के लिए लोग घङों आँसू बहाते हैं, धन-दौलत के लिए रोज रोते हैं किन्तु भगवान की प्राप्ति न होने पर कितने लोग रोते हैं ! “
रामकृष्ण के इस उत्तर से नरेन्द्रनाथ बहुत प्रभावित हुए और अकसर ही दक्षिणेश्वर जाने लगे। मन ही मन में विवेकानंद जी ने स्वामी रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया था। विवेकानंद अपने भावी गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से अनेक बातों में पृथक थे, फिर भी उनकी बातों से विवेकानंद जी की जिज्ञासा संतुष्ट होती थी। पौरुष के धनी विवेकानंद जी घुङसवारी, कुश्ती, तैराकी आदि में दक्ष थे तथा उनका शिक्षा ज्ञान विश्वविद्यालय स्तर का था। वहीं रामकृष्ण परमहंस जी सात्विक प्रवृत्ति के थे एवं उन्होने भक्ति तथा समाधि से सिद्धि प्राप्त की थी। वे आस्थावान संत थे। जबकि नरेन्द्रनाथ के लिए आस्था अंतिम शब्द नहीं था। वे प्रत्येक तथ्य को तर्क की कसौटी पर कसना आवश्यक मानते थे। रामकृष्ण केवल भारतीय मनिषीयों से ही प्रभावित थे, वहीं विवेकानंद पाश्चात्य बौद्धिकता से भी प्रभावित थे। इतनी विविधता के बावजूद विवेकानंद पर रामकृष्ण की बातों का असर किसी जादू से कम न था। नरेन्द्रनाथ लगातार रामकृष्ण जी की और आकृष्ट होते गये। उनको आभास होने लगा था कि उनके अंदर कुछ अद्भुत घटित हो रहा है।
एक बार वार्तालाप के दौरान रामकृष्ण का हाँथ नरेन्द्रनाथ से स्पर्श हो गया, नरेन्द्रनाथ तत्काल बेहोश हो गये। उन्हे लगा कि वे किसी अन्य लोक में चले गये। विवेकानंद जी ने अपने उस दिन के अनुभव का वर्णन करते हुए कहा कि, “उस समय मेरी आँखें खुली हुई थी, मैने देखा था कि दीवारों के साथ कमरे का सभी सामान तेजी से घुमता हुआ कहीं विलीन हो रहा है। मुझे लगा कि सारे ब्रह्माण्ड के साथ मैं भी कहीं विलीन हो रहा हूँ। मैं भय से काँप उठा। जब मेरी चेतना लौटी तो मैने देखा कि, प्रखर आभा मंडल का तेज लिए ठाकुर रामदेव मेरी पीठ पर हाँथ फेर रहे हैं। “
इस घटना का नरेन्द्रनाथ पर बहुत गहरा असर हुआ। उन्होने सोचा कि जिस शक्ति के आगे मेरी जैसी दृणइच्छा शक्ति वाला बलिष्ठ युवक भी बच्चा बन गया, वह व्यक्ति निश्चय ही अलौकिक शक्ति से संपन्न है। रामकृष्ण परम्हंस के प्रति नरेन्द्रनाथ की श्रद्धा और अधिक आंतरिक हो गई। लगभग पाँच वर्ष की घनिष्ठता के बाद नरेन्द्रनाथ औपचारिक रूप से स्वामी रामकृष्ण परमहंस के विधिवत शिष्य बन गये और योग्य गुरु को योग्य उत्तराधिकारी मिल गया। उन्होने विवेकानंद को ध्यान समाधि में श्रेष्ठ बना दिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के समाधि लेने के पश्चात नरेन्द्रनाथ ने सन्यास ले लिया। नरेन्द्रनाथ देश सेवा का व्रत ले सम्पूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानंद के नाम से वंदनीय हो गये। स्वामी विवेकानंद जी का प्रमुख प्रयोजन था रामकृष्ण मिशन के आदर्शों को जन-जन की आवाज बनाना। मानवता के प्रति स्वामी विवेकानंद की अटूट आस्था थी, अतः उन्होने जाति-पाती, ऊँच-नीच, छुआ-छूत आदि का विरोध किया। स्वामी विवेकानंद जी में राष्ट्र प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। उनका प्रयास था कि प्रत्येक भारतवासी में राष्ट्र प्रेम का भाव समाहित हो। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण के आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एवं दलितों की सेवा हेतु रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। आज भी ये संस्था लोक सेवा के कार्य में लगी हुई है। जिसका मूल मंत्र है, मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।
आज ४ जुलाई को स्वामी विवेकानंद जी के समधिस्त पुण्य तिथी पर ये संकल्प करें कि, उनकी शिक्षाओं को स्वयं भी पालन करते के हुए पूरे विश्व में प्रसारित करेंगे।
जय भारत
अनिता शर्मा
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We are grateful to Anita Ji for sharing the inspirational lives of Shri Ram Krishana Paramhansa and Swami Vivekananda
aparna chaturvedi says
very nice
dinesh Choudhary says
good article sir
Ravi kumar sah says
very good life line topic
suraj sadhve says
Thanks to you i am most impresd
Room Address free online classified says
really good information
Pulkit Trivedi says
बहोत ही बढ़िया लेख है….
Shubham Yadaw says
Dear Gopal Mishra jee Namaskar.
Main kai dino se apki website se judha hun mujhe apki yah website bahut hi jyada pasand hai main raat ko sone se pahle apke lekh padhkar hi sota hun.
Mishra jee apke aaj ka post bahut achha hai. Hamne Kiran Sahu jee ki kahaniyan bhi padhi thi bahut achhi lagi.. Kya aapne unki website ko banaya hai Please hame Bhi Apke site jaise banane ka tips dijiye jaisa aapne Kiran jee ka banaya hai.
Shubhkamnaon sahit
Dhanyawad
Pradip says
Thanks
Anil Balan says
स्वामी विवेकानंद जी दे बारे में बहुत ही अच्छा लेख पढ़ने का अवसर मिला.
ग्रेट सर जी