Mahatma Jyotiba Phule Life History in Hindi
महात्मा ज्योतिबा फुले की जीवनी

Mahatma Jyotiba Phule
महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविंदराव फुले) को 19वी. सदी का प्रमुख समाज सेवक माना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया. अछुतोद्वार, नारी-शिक्षा, विधवा – विवाह और किसानो के हित के लिए ज्योतिबा ने उल्लेखनीय कार्य किया है.
उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा महाराष्ट्र , में हुआ था. उनका परिवार बेहद गरीब था और जीवन-यापन के लिए बाग़-बगीचों में माली का काम करता था. ज्योतिबा जब मात्र एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था. ज्योतिबा का लालन – पालन सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया. सगुनाबाई ने ही उन्हें माँ की ममता और दुलार दिया.
7 वर्ष की आयु में ज्योतिबा को गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा गया. जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ा. स्कूल छोड़ने के बाद भी उनमे पढ़ने की ललक बनी रही. सगुनाबाई ने बालक ज्योतिबा को घर में ही पढ़ने में मदद की. घरेलु कार्यो के बाद जो समय बचता उसमे वह किताबें पढ़ते थे. ज्योतिबा पास-पड़ोस के बुजुर्गो से विभिन्न विषयों में चर्चा करते थे. लोग उनकी सूक्ष्म और तर्क संगत बातों से बहुत प्रभावित होते थे.
अरबी-फ़ारसी के विद्वान गफ्फार बेग मुंशी एवं फादर लिजीट साहब ज्योतिबा के पड़ोसी थे. उन्होंने बालक ज्योतिबा की प्रतिभा एवं शिक्षा के प्रति रुचि देखकर उन्हें पुनः विद्यालय भेजने का प्रयास किया. ज्योतिबा फिर से स्कूल जाने लगे. वह स्कूल में सदा प्रथम आते रहे. धर्म पर टीका – टिप्पणी सुनने पर उनके अन्दर जिज्ञासा हुई कि हिन्दू धर्म में इतनी विषमता क्यों है? जाति-भेद और वर्ण व्यवस्था क्या है? वह अपने मित्र सदाशिव बल्लाल गोंडवे के साथ समाज, धर्म और देश के बारे में चिंतन किया करते.
उन्हें इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझता कि – इतना बड़ा देश गुलाम क्यों है? गुलामी से उन्हें नफरत होती थी. उन्होंने महसूस किया कि जातियों और पंथो पर बंटे इस देश का सुधार तभी संभव है जब लोगो की मानसिकता में सुधार होगा. उस समय समाज में वर्गभेद अपनी चरम सीमा पर था. स्त्री और दलित वर्ग की दशा अच्छी नहीं थी. उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था. ज्योतिबा को इस स्थिति पर बड़ा दुःख होता था. उन्होंने स्त्री सुर दलितों की शिक्षा के लिए सामाजिक संघर्ष का बीड़ा उठाया. उनका मानना था कि – माताएँ जो संस्कार बच्चो पर डालती हैं, उसी में उन बच्चो के भविष्य के बीज होते है. इसलिए लडकियों को शिक्षित करना आवश्यक है.
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उन्होंने निश्चय किया कि वह वंचित वर्ग की शिक्षा के लिए स्कूलों का प्रबंध करेंगे. उस समय जात-पात, ऊँच-नीच की दीवारे बहुत ऊँची थी. दलितों एवं स्त्रियों की शिक्षा के रास्ते बंद थे. ज्योतिबा इस व्यवस्था को तोड़ने हेतु दलितों और लड़कियों को अपने घर में पढ़ाते थे. वह बच्चो को छिपाकर लाते और वापस पहुंचाते थे. जैसे – जैसे उनके समर्थक बढ़े उन्होंने खुलेआम स्कूल चलाना प्रारंभ कर दिया.
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Savitri Phule
स्कूल प्रारम्भ करने के बाद ज्योतिबा को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनके विद्यालय में पढ़ाने को कोई तैयार न होता. कोई पढ़ाता भी तो सामाजिक दवाब में उसे जल्दी ही यह कार्य बंद करना पड़ता. इन स्कूलों में पढ़ायें कौन ? यह एक गंभीर समस्या थी. ज्योतिबा ने इस समस्या के हल हेतु अपनी पत्नी सावित्री को पढ़ना सिखाया और फिर मिशनरीज के नार्मल स्कूल में प्रशिक्षण दिलाया. प्रशिक्षण के बाद वह भारत की प्रथम प्रशिक्षित महिला शिक्षिका बनीं.
उनके इस कार्य से समाज के लोग कुपित हो उठे. जब सावित्री बाई स्कूल जाती तो लोग उनको तरह-तरह से अपमानित करते. परन्तु वह महिला अपमान का घूँट पीकर भी अपना कार्य करती रही. इस पर लोगो ने ज्योतिबा को समाज से बहिष्कृत करने की धमकी दी और उन्हें उनके पिता के घर से बाहर निकलवा दिया.
गृह त्याग के बाद पति-पत्नी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. परन्तु वह अपने लक्ष्य से डिगे नहीं. अँधेरी काली रात थी. बिजली चमक रही थी. महात्मा ज्योतिबा को घर लौटने में देर हो गई थी. वह सरपट घर की ओर बढ़े जा रहे थे. बिजली चमकी उन्होंने देखा आगे रास्ते में दो व्यक्ति हाथ में चमचमाती तलवारें लिए जा रहे है. वह अपनी चाल तेज कर उनके समीप पहुंचे. महात्मा ज्योतिबा ने उनसे उनका परिचय व इतनी रात में चलने का कारण जानना चाहा. उन्होने बताया हम ज्योतिबा को मारने जा रहे है.
महात्मा ज्योतिबा ने कहा – उन्हें मार कर तुम्हे क्या मिलेगा ? उन्होंने कहा – पैसा मिलेगा, हमें पैसे की आवश्यकता है. महात्मा ज्योतिबा ने क्षण भर सोचा फिर कहा- मुझे मारो, मैं ही ज्योतिबा हूँ, मुझे मारने से अगर तुम्हारा हित होता है, तो मुझे ख़ुशी होगी. इतना सुनते ही उनकी तलवारें हाथ से छूट गई. वह ज्योतिबा के चरणों में गिर पड़े, और उनके शिष्य बन गए.
महात्मा ज्योतिबा फुले ने ”सत्य शोधक समाज” नामक संगठन की स्थापना की. सत्य शोधक समाज उस समय के अन्य संगठनो से अपने सिद्धांतो व कार्यक्रमो के कारण भिन्न था. सत्य शोधक समाज पूरे महाराष्ट्र में शीघ्र ही फ़ैल गया. सत्य शोधक समाज के लोगो ने जगह – जगह दलितों और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले. छूआ-छूत का विरोध किया. किसानों के हितों की रक्षा के लिए आन्दोलन चलाया.
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-
- तृतीय रत्न,
- छत्रपति शिवाजी,
- राजा भोसला का पखड़ा,
- ब्राह्मणों का चातुर्य,
- किसान का कोड़ा,
- अछूतों की कैफियत.
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी. 28 नवम्बर सन 1890 को उनका देहावसान हो गया.
Mahatma Phule the greatest Shudra of modern India who made the lower classes of Hindus conscious of their slavery to the higher classes who preached the gospel that for India social democracy was more vital than independence from foreign rule.महात्मा फुले मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र थे जिन्होंने पिछड़ी जाति के हिन्दुओं को अगड़ी जातिके हिन्दुओं का गुलाम होने के प्रति जागरूक कराया, जिन्होंने यह शिक्षा दी कि भारत के लिए विदेशी हुकूमत से स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक लोकतंत्र कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है.
पूरे जीवन भर गरीबों, दलितों और महिलाओ के लिए संघर्ष करने वाले इस सच्चे नेता को जनता ने आदर से ‘महात्मा’ की पदवी से विभूषित किया. उन्हें समाज के सशक्त प्रहरी के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा.
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Thanks to Mr.surendra for life history of mahatma in Hindi
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very nice surendra sir ji
Rastra pita to mahamanav mahmatma jyotivaphule hai
Nice information about jyotiba phule.
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Surendra ji u r genius…..superb thoughts on the great social reformer Jyotiba Phule.
a great person
महामानव ज्योति राव फुले का व्यक्तत्व ही कि आज हम भारत मे सम्मान का जीवन जीने का मौका मिला है।
उनके त्याग व बलिदान को कोटि कोटि नमन
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आज मुझे जोतिबा फूलेजी की पूरी जानकारी मिली मेरा जीवन में एक नई आशा की किरण जागी। ओमप्रकाश माली नारायणगढ़ m.p.india o8962777250
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महात्मा ज्योतिबा फुलेजी के जीवन एवं महान कार्यों पर प्रकाश डालने के लिए आपको बहुत धन्यवाद सुरेन्द्रजी।