Sister Nivedita Biography in Hindi
भगिनी निवेदिता की जीवनी
मित्रों आज हम एक ऐसी महान शिष्या के जीवन में झाँक रहे हैं जिसने अपने ऊपर गुरु स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गये भरोसे को सही साबित किया और अपना सारा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में लगा दिया। आइये आज AchhiKhabar.Com (AKC) पर हम जानते हैं उस महान शिष्या भगिनी निवेदिता की कहानी।
Profile Snapshot
नाम – मार्गरेट नोबेल
जन्म – 28 अक्टूम्बर, 1867
जन्म स्थान – (डुंगानोन ) को-टाइरोन
पिता – सैमुएल रिचमंड नोबेल
माता – इसाबेल नोबेल
गुरु – स्वामी विवेकानन्द
कार्य स्थल- भारत
विवाह – अविवाहित
भगिनी निवेदिता का इतिहास
जन्म
भगिनी नेवेदिता का बचपन का नाम मार्गरेट एलिज़ाबेथ नोबेल था। मार्गरेट का जन्म 28 अक्टूम्बर, 1867 को काउंटी टाईरोन, आयरलैंड में हुआ था। मार्गरेट के पिता का नाम श्री सैमुएल रिचमंड नोबेल और माता का नाम मैरी इसाबेल था। मार्गेरेट के पिता चर्च में पादरी थे, जिन्होंने उन्हें सिखाया था कि-
मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है।
शिक्षा
मार्गरेट ने अपनी शिक्षा हेलिफेक्स कॉलेज से पूर्ण की जिसमे उन्होंने कई विषयों के साथ-साथ संगीत और प्राकृतिक विज्ञान में दक्षता प्राप्त की। मार्गरेट ने 17 वर्ष की आयु में शिक्षा पूर्ण करने के बाद अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। उनके मन में धर्म के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा थी।
स्वामी विवेकानन्द से मुलाकात
मार्गरेट को एक बार पता चला की स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में ओजस्वी भाषण देने के बाद इंग्लैड पधारे है तो मार्गरेट ने उनसे मिलने का निश्चय किया और वो लेडी मार्गसन के आवास पर स्वामी से मिलने गई। स्वामी जी के तेजस्वी व्यक्तित्व से वो बहुत प्रभावित हुई। मार्गरेट नोबेल स्वामी जी के वेदांत दर्शन से इतनी अधिक प्रभावित हुई की उनका हृदय आध्यात्मिक दर्शन की ओर प्रवृष्ट हो गया।
Bhagini Nivedita Quick Biography in Hindi
- भगिनी निवेदिता का वास्तविक नाम मार्गरेट नोबेल था।
- वे आयरिश मूल की रहने वाली थी।
- उनके के पिता एक चर्च में उपदेशक थे।
- वो सर्वप्रथम 1896 में भारत आई।
- 25 March 1898 को उन्होंने ब्रह्मचार्य के व्रत को अंगीकार किया।
- उन्होंने ग्रामीण बल विधवाओं को कलकत्ता में लाकर शिक्षित किया।
- उन्होंने बालिका शिक्षा के लिए कलकत्ता में एक school भी खोला।
- उनकी मृत्यु 13 अक्टूम्बर, 1911 को दार्जलिंग में हुई और उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज से किया गया।
प्रेरक प्रसंग
स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में कहा “मुझे सभी से आशा नहीं है, मुझे कुछ चुने हुए 20 लोग चाहिए जो अपना सम्पूर्ण जीवन संसार सेवा में न्योछावर कर सकें”
अगले ही दिन सुबह ही एक चेहरा उनके सामने था स्वामी जी ने कहा बताये आपकी क्या सेवा करूँ.
उसने कहा ” स्वामी जी अपने कल 20 लोगो के बारे में बात की थी 19 लोगो का तो पता नहीं पर 1 मै हूँ ”
“और वह थी भगनी निवेदिता”
भारत आगमन
स्वामी विवेकानन्द का मानना था की भारत की मुक्ति महिलाओं के हाथ में है इसलिए उन्हें शिक्षा द्वारा जागृत करना बहुत जरुरी है। स्वामी जी एक ऐसे व्यक्ति की खोज में थे जो भारतीय महिलाओं को जागृत करके उनमे राष्ट्रीय चेतना की भावना विकसित कर सके।
स्वामी जी को मार्गरेट में इन गुणों का समावेश दिखाई दिया जिनकी उनको तलाश थी और इसलिए उन्होंने मार्गरेट से आग्रह किया कि –
वो भारत आकर उनकी मदद करे और जो उनकी महिलाओं के लिए योजनाएँ है या जैसा वो सोचते हैं उसे यथार्थ में करने में मदद करें।
मार्गरेट नोबेल ऐसा अवसर को कैसे चूक सकती थीं उन्होंने तुरंत ही हाँ बोल दिया। वे 1896 में भारत आईं और यहाँ की गतिविधियों में भागीदारी करने लगी। 25 मार्च 1898 को स्वामी जी ने मार्गेट नोबेल को ब्रह्मचर्य की शपथ दिलाते हुए दीक्षा प्रदान की और उनका नाम निवेदिता रख दिया। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा-
जाओ और उसका अनुसरण करो, वो जिसने बुद्ध की दृष्टि प्राप्त करने से पहले 500 बार जन्म लिया और अपना जीवन न्योछावर कर दिया
आगे चल कर मार्गरेट नोबेल भगिनी निवेदिता ( Sister Nivedita) नाम से विख्यात हुईं।
भगिनी निवेदिता ने महिला शिक्षा के माध्यम से भारत की महानता को पुन: स्थापित करने का प्रयास किया और उन्हें इसमें सफलता भी मिली। मार्गरेट ‘बसु पद्धति’ से काफी प्रभावित थीं। उस समय ग्रामीण बंगाल में विधवाओं पर कठोर अनुशासन थोपे जाते थे जो की एक उदार व्यक्ति के हृदय को व्यथित करने के लिए काफी था। इसलिए मार्गरेट विधवा महिलाओं को कलकत्ता लाकर उन्हें बसु पद्धति से शिक्षा देतीं और उन्हें प्रशिक्षित करके गाँवो में वापस भेज देतीं ताकि वे और लोगो को शिक्षित कर सकें।
भगिनी निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद के साथ कई स्थानों पर भ्रमण किया और स्वामी जी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए बालिका शिक्षा के लिए कलकत्ता में एक स्कूल खोला। बालिका शिक्षा में जब भी सिस्टर निवेदिता को धन की जरूरत हुई तो उसके लिए श्रीमती बुल ने उनकी आर्थिक मदद की।
जब भारत में प्लेग और कालरा रोग फैल गया था तब अंग्रेजों ने कोई कार्य नहीं किया लेकिन भगिनी निवेदिता ने विषम हालात में भी रोग पीड़ितों की हर सम्भव मदद की थी। स्वामी विवेकानन्द के देह त्यागने के बाद उनके मिशन को संचालित करने का दायित्व भगिनी निवेदिता ने सम्भाला और उसे अच्छी तरह निभाया।
वो एक अच्छी लेखिका भी थी और उन्होंने- “द मास्टर एज आई सॉ हिम”, “ट्रेवल टेल्स”, “क्रेडल टेल्स ऑफ़ हिंदूइजम” आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ है।
मृत्यु
भगिनी निवेदिता ने 13 अक्टूबर, 1911 को अपना देह त्याग दिया। उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से किया गया। ऐसी अद्भुत नारी, जिसने विदेशी होते हुए भी अपना पूर्ण जीवन भारत की सेवा में बिताया, हम सभी को हेमशा-हेमशा के लिए याद रहेगी। हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।
विरम सिंह
विरम जी एक ब्लॉगर हैं और वे अपने ब्लॉग GyanDrashta.Com पर मोटिवेशनल पोस्ट्स पब्लिश करते हैं।
AKC पर सिस्टर निवेदिता की जीवनी शेयर करने के लिए हम उनके आभारी हैं। Thank You!
Read more about Bhagini Nivedita on Wikipedia
इन महान समाज-सेवकों के बारे में भी ज़रूर पढ़ें:
- महान प्रेरणा स्रोत – स्वामी विवेकानंद ( जीवनी)
- अँधेरे में रौशनी की किरण – हेलेन केलर
- नेत्रहीन लोगों के जीवन में प्रकाश बिखेरती अनिता शर्मा
- महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय
- महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले
Did you like the Sister Nivedita Biography in Hindi /भगिनी निवेदिता की जीवनी ? Please share your comments.
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Puran Mal Meena says
बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है आपने
alka says
thanks for this very good essay on bhagini nivedita but this essay is on bhagini nivedita not on a bharat bhakti of bhagini nivedita
Sripad says
Please correct the date of death : She died in Darjeeling on 13 October 1911.
sky says
great human……