Hindi Story On Listening To Your Conscience
अंतःकरण की आवाज़ सुनने की सीख देती कहानी
शाम का वक़्त था, सोसाइटी के पार्क में ढेरों बच्चे खेलने में मस्त थे. उन्ही बच्चों में पिंकी और राजू भी शामिल थे.
पिंकी के पास टॉफ़ी का एक पैकेट था और राजू रंग-बिरंगे पत्थरों के साथ खेल रहा था.
खेलते-खेलते पिंकी की नज़र राजू के पत्थरों पर पड़ी. उसका बाल-मन उन्हें देखते ही मचल पड़ा…वह फ़ौरन राजू के पास गयी और बोली, “राजू, क्या तुम ये सारे पत्थर मुझे दे सकते हो? इनके बदले में मैं तुम्हे टॉफ़ी का ये पैकेट दे दूंगी.”
टॉफियाँ देखते ही राजू के मुंह में पानी आ गया….उसने मन ही मन सोचा, “पत्थरों से तो मैं कई दिन से खेल रहा हूँ, क्यों न इन्हें देकर सारी टॉफियाँ ले लूँ…”
उसने कहा, “ठीक है पिंकी मैं अभी तुम्हे अपने पत्थर दे देता हूँ”, और ऐसा कह कर वो दूसरी तरफ घूम कर पत्थर उठाने लगा.
अपने पसंदीदा पत्थरों को देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने कुछ पत्थर अपने जेब में छुपा लिए और बाकियों को थैले में रख दिया.
“ये लो पिंकी, मेरे सारे पत्थर तुम्हारे…अब लाओ अपनी टॉफियाँ मुझे दे दो..”, राजू बोला.
पिंकी ने फ़ौरन टॉफियों का थैला राजू को पकड़ा दिया और मजे से पत्थरों से खेलने लगी.
देखते-देखते शाम ढल गयी और सभी बच्चे अपने-अपने घरों को लौट गए.
रात को बिस्तर पर लेटते ही राजू के मन में ख़याल आया-
आज मैंने पत्थरों के लालच में चीटिंग की…
उसका मन उसे कचोटने लगा…फिर वह खुद को समझाने लगा…क्या पता जिस तरह मैंने कुछ पत्थर छुपा लिए थे पिंकी ने भी कुछ टॉफियाँ छिपा ली हों…” और यही सब सोच-सोच कर वह परेशान होने लगा…और रात भर ठीक से सो नही पाया.
उधर पिंकी पत्थरों को हाथ में पकड़े-पकड़े कब गहरी नींद में चली गयी उसे पता भी नही चला.
अगली सुबह दरवाजे की घंटी बजी. पिंकी ने दरवाजा खोला. सामने राजू खड़ा था.
राजू अपने जेब से पत्थर निकाले हुए बोला, ” ये लो पिंकी इन्हें भी रख लो….” और उन्हें देते ही राजू अपने घर की ओर भागा.
उस रात राजू को भी अच्छी नींद आई!
दोस्तों, भगवान् ने हम इंसानों को कुछ ऐसे design किया है कि जब भी हम कुछ गलत करते हैं हमारा conscience हमें आगाह कर देता है…ये हम पर है कि हम उस आवाज़ को सुनते हैं या नज़रअंदाज कर देते हैं. सही मायने में इस कहानी का हीरो राजू है क्योंकि गलती तो सबसे होती है पर उसे सुधारने की हिम्मत सबमे नहीं होती. हमारा भी यही प्रयास होना चाहिए कि हम अपने अंतःकरण की आवाज़ को अनसुना ना करें और एक guilt free life जियें.
याद रखिये-
शुद्ध अंतःकरण ही सबसे नर्म तकिया होता है.
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Abhinav Kumar says
Bahut Hi Achhi Story hai