सच्चाई के लिये कुछ भी छोड़ देना चाहिये, पर किसी के लिये सच्चाई नही छोड़नी चाहिये।
ऐसे उच्च विचारों वाले महान सन्यासी व युवा शक्ति के प्रतीक स्वामी विवेकानंद लोगों को मात्र संदेश नही देते थे बल्की उन विचारों को अपने जीवन में अपनाकर एक प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत करते थे।
आज ४ जुलाई; स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि के अवसर पर हम आपके साथ एक ऐसा ही प्रसंग साझा कर रहे हैं।
निर्भय सन्यासी स्वामी विवेकानंद की स्पष्टवादिता
भारत भ्रमण के दौरान मैसूर में स्वामी जी की मुलाकात मैसूर राज्य के दीवान शेषाद्री अय्यर से हुई। वो स्वामी जी से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होने स्वामी जी से आग्रह किया कि वे मैसूर महाराज श्री चामराजेंद्र वाडियार से एक बार मुलाकात करने पर विचार करें। वहीं शेषाद्री ने महाराज से कहा कि महाराज मैं आज तक जितने भी लोगों से मिला हूँ, उनमें से किसी के पास भी इस युवा सन्यासी जैसी अंर्तदृष्टी नही है, वो अद्भुत हैं।
स्वामी जी शेषाद्री के आग्रह पर मैसूर महाराज से मिलने गये। स्वामी जी को देखते ही मैसूर महाराज भी युवा संन्यासी को देखते ही रह गये, गेरुवा वस्त्र चेहरे पर तेज मानो किसी राजकुमार जैसा प्रतीत हो रहा था।
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महाराज ने स्वामी जी से पूछा कि आपको क्या चाहिये, इस प्रश्न पर स्वामी जी ने मुस्कराते हुए कहा- “मैं आपके पास याचक बनकर नही बल्की कुछ देने आया हुँ। मुझे देने वाला तो मेरा ईश्वर है। राजन! ये प्राचीन बात है जब तपस्वी आश्रम छोड़कर राजसभा में कुछ माँगने आता था। आज राजा धर्माचरण की शिक्षा के लिये आश्रम नही आता इसलिये तपस्वी को ही धर्म का पाठ पढाने दरबार में आना पड़ता है।”
महाराज को इस उत्तर की अपेक्षा नहीं थी वे चकित होकर विनम्रता से पूछने लगे, “आप मुझे क्या देंगे स्वामी जी!”
“मैं आपको वेदों और भारत माता का संदेश देने आया हूँ।”, स्वामी जी दृढ़ता से बोले।
स्वामी जी के तेजस्व विचार और अद्भुत व्यक्तित्व से महाराज वाडियार इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होने स्वामी जी को राज अतिथी के रूप में ठहरने का आग्रह किया। स्वामी जी वहां कुछ दिन ठहरे और लोगों को वेदांत के सिद्धांतों से अवगत कराया।
एक बार स्वामी जी को प्रसन्न मुद्रा देखकर माहाराज वाडियार ने पूछा कि स्वामी जी दरबारियों के विषय में आपकी क्या राय है?
एक क्षण का भी विलंब किये बिना स्वामी जी ने कहा, “महाराज का ह्रदय तो परमार्थी और उदार है, दुर्भाग्यवश आप दरबारियों से घिरे हुए हैं और दरबारी तो दरबारी ही होते हैं।”
महाराज अचम्भित स्वामी जी को देखने लगे और बोले नही महाराज वे बुद्धिमान और विश्वसनीय हैं, उन्होने आपकी बहुत तारीफ की है।
निर्भिकता से स्वामी जी ने कहा कि, “ठीक है महाराज किंतु दीवान का तो काम ही राजा को लूटना और पॉलिटकल एजेंटों का घर भरना है।”
मैसूर महाराज श्री चामराजेंद्र वाडियार ने स्वामी जी के साथ चल रही वार्तालाप को बदल कर दूसरी बातें करने लगे क्योंकि उन्हे डर था कि कहीं स्वामी जी की सत्य वाकपटुता उनके लिये परेशानी न बन जाये। किंतु स्वामी जी तो जो सच है उसी का साथ देते थे।
महाराज स्वामी जी को अपने साथ कक्ष में ले गये और समझाते हुए कहने लगे कि, मेरे प्रिय सन्यासी बहुत स्पष्टवादी रहना हमेशा सुरक्षित नही रहता। यदि आप हमेशा ऐसे ही मुखर रहे तो कोई आपको जहर दे सकता है।
स्वामी जी ओजस्वी स्वर में बोले-
“प्राणों के डर से एक सच्चा संन्यासी सत्य बोलने से डर जायेगा क्या? कल यदि आपका पुत्र मुझसे आपके विषय में पुछे तो क्या मैं उसे यह नही बताऊँगा कि अन्य अनेक राजाओं के समान आप भी अधिकांशतः अंग्रेजों की कठपुतली ही हैं। आप किसी भी क्षेत्र में न तो दवाब डालकर अपनी बात मनवा सकते थे, न मनवाने का प्रयत्न करते थे। परिणामतः उससे आपकी प्रजा का अहित ही हुआ है और देश के लिए भी यह व्यवहार कल्यांणकारी नही है।”
महाराज वाडियार ने कहा कि, “किंतु ये आपके हित में नही है।”
स्वामी जी ने शांतभाव से कहा कि, “मैं अपने हित साधने के लिये कुछ नही करता महाराज! आपके प्रिय तिप्पेस्वामी बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं! परंतु प्रजा में उनकी छवि तनिक भी शुभ नही है। जिस समय जिस काम की प्रतिज्ञा करो , ठीक उसी समय उसे करना चाहिये, नही तो लोगों का विश्वास आप पर से उठ जाता है।”
महाराज ने कहा कि, राजदरबार में तिरस्कार या निंदा करने वालों के लिये प्राणों का संकट उत्पन्न हो सकता है इसलिये मैं नही चाहता किआप जैसे अद्भुत सन्यासी जिनके कंधों पर भारत के स्वाभिमान की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है अतः आप पर संकट नही आना चाहिये।
स्वामी जी मुस्कराते हुए कहने लगे, “मैं असत्य भाषण न करता हूँ और न सत्य को छिपाने के लिये मौन रहता हूँ। वैसे आपकी छत्रछाया में मुझे कैसा संकट।”
स्वामी जी संसार की रीति से अलग, स्पष्ट और सत्य की राह पर चलते थे। वे व्यक्ति के मुखपर ही उसके दोष बताते थे और लोगों की अच्छाईयों को पीठ पीछे बताते थे। विवेकानंद जी तो संसार की रीत सीखने नही बल्की संसार को नीति सिखाने अवतरित हुए थे।
स्वामी जी के इस अद्भुत विचारों से महाराज ही नही बल्की उनके दरबारी भी विवेकानंद जी के भक्त हो गये। दीवान तो ऐसे भक्त हुए कि वे उनके पीछे पड़ गये कि कुछ तो उपहार ले लें। दीवान पहले ही सुन चुके थे कि कोल्हापुर की रानी से स्वामी जी ने कुछ नही लिया था, बल्की बहुत मनुहार करने पर सिर्फ एक जोड़ी भगवा वस्त्र ग्रहण किये थे। दीवान जी तो चाहते थे कि वो स्वामी जी को कुछ ऐसा दें जो संसार में स्मरण रखा जाये। मैसूर के दीवान ने अपने एक अधिकारी को आदेश दिया कि वो स्वामी जी को शहर की सर्वश्रेष्ठ दुकान पर ले जायें और वहां स्वामी जी जो भी पसंद करें वो उन्हे दिला दें।
स्वामी विवेकानंद जी अजीब स्थिती में थे वो कुछ लेना नही चाहते थे और दीवान जी के असीम आग्रह को मना भी नही कर पा रहे थे। अपने अतिथेय को हताशा से बचाने के लिये स्वामी जी उस सचिव के साथ बाजार चले गये। स्वामी जी बाजार में एक उत्सुक बच्चे की तरह सब कुछ बड़े ध्यान से देख रहे थे, तभी उनकी नज़र चुरुट (सिगार) पर पड़ी। सचिव से उन्होने कहा कि, “बंधु दीवान जी ने कहा है कि मैं अपनी पसंद का सामान खरीद सकता हूँ, तो तुम मुझे यहाँ उपलब्ध सबसे श्रेष्ठ चुरुट खरीद कर दे दो।”
सचिव ने एक रूपये का चुरुट खरीद कर स्वामी जी को दे दिया। स्वामी जी बाहर आये और उन्होंने चुरुट सुलगाया, उनके चेहरे पर संतोष का भाव देखकर सचिव को भी चैन आया।
बाजार से वापस आने पर महाराज ने स्वामी जी को अपने कक्ष में बुलाया, दीवान जी भी उनके साथ गये। महाराज वाडियार ने बिना किसी औपचारिकता के सीधे ही पूछा कि, मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ। स्वामी जी सीधे उत्तर नही दिये बल्की वार्तालाप करने लगे और इसी दौरान उन्होने कहा कि भारत की संपत्ति, उसका आध्यात्म और दर्शन है। किंतु आज हमारे देश की आवश्यकता आधुनिक वैज्ञानिक विचारों की भी है। राजा स्तब्ध होकर स्वामी जी के विचारों को सुन रहे थे। विवेकानंद जी ने कहा कि मैं स्वंय वेदांत के प्रचार के लिये अमेरिका जाना चाहाता हूं और वहाँ के ज्ञान से भारत के युवाओं को कृषी, उद्योग तथा अन्य तकनीकी ज्ञान से लाभान्वित करवाना चाहता हूँ।
महाराज उत्सुक होते हुए बोले क्या ये संभव है। स्वामी जी दृणता से बोले हाँ सब संभव है। महाराज खुश होते हुए बोले तो आप चले जाइये। स्वामी जी तो जैसे यही सुनना चाहते थे। उन्होने महाराज वाडियार से कहा लेकिन एक समस्या है, वहाँ जाने और रहने का खर्च। महाराज वाडियार ने कहा कि वो सब मुझपर छोड़ दिजिये मैं सब व्यवस्था कर दूंगा । मैं वचन देता हूँ कि ऐसे श्रेष्ठ कार्य के लिये जो भी आवश्यकता होगी वो पूरी होगी।
उसके बाद स्वामी विवेकानंद वहाँ से रामेश्वरम् के लिये निकल गये और महाराज वाडियार को आश्वस्त कर दिये कि आप तैयारी किजीये जैसे ही माँ का आदेश होगा मैं अमेरिका प्रस्थान करुँगा।
गौरतलब है कि स्वामी विवेकानंद जी माँ शारदा(रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) की आज्ञा से ही कुछ नया करते थे। इस तरह स्वामी विवेकानंद अपनी स्पष्टवादिता और सत्य के बलपर अनेक लोगों के प्रिय बनकर भारत भ्रमण करते हुए शिकागो भी गये और वहाँ भी उन्होने अपने विश्व प्रसिद्ध भाषण से भारत को गौरवान्वित किया।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि स्वामी विवेकानंद जी जहाँ भी गये उनके अद्भुत व्यक्तित्व और विचारों के लाखों लोग अनुयायी बन गये। आज भी उनके संदेश और विचार हम सभी के लिये प्रेऱणा स्रोत हैं। उनके संदेश के साथ अपनी कलम को विराम देते हैं….
कभी मत सोचो कि आत्मा के लिये कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विर्धम है। अगर कोई पाप है, तो वह यह कहना है कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
विनम्र बनो साहसी बनो शक्तिशाली बनो!
दृष्टिबाधित बच्चों की मदद के लिए पाठकों से एक विनम्र निवेदन
प्रिय पाठकों नमस्कार,
जैसा कि बहुत से पाठक जानते हैं; स्वामी विवेकानंद जी के दिये संदेश को आत्मसात करते हुए मैं दृष्टीबाधित (ब्लाइंड) बच्चों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही हूँ। इसके अंर्तगत उनकी पाठ्यपुस्तकों की ऑडियो रिकॉर्डिंग करना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा 9वीं तथा 11वीं का पाठ्यक्रम बदल जाने से पूर्व की रिकार्डेड पाठ्यपुस्तक अब काम नही आयेगी।
अतः वर्तमान में नई पुस्तकों की रिकॉर्डिंग समय पर पूरा करना अहम कार्य है। आप सबसे निवेदन है कि जो पाठक इस कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं वो हमें [email protected] पर मेल करें। शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है। कृपया मदद के लिए आगे आएं और दृष्टिबाधित बच्चों को अपना सहयोग दें।
अनिता शर्मा
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अनिता जी दृष्टिबाधित लोगों की सेवा में तत्पर हैं। उनके बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें – नेत्रहीन लोगों के जीवन में प्रकाश बिखेरती अनिता शर्मा और उनसे जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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We are grateful to Anita Ji for sharing another very inspirational article related to Swami Vivekanand.
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Rakesh Gupta says
Good
Amaze Rakesh Gupta
Govind soni says
अनिता जी आपका बहुत बहुत आभार की ऐसी अमुल्य जानकारी आपने हम सब से शेयर की और हम सब पढ पाये
pushpendra dwivedi says
swami vivekananad ji ke baare me bahut hi behtareen jankari hai apke blog me padkar achha laga
arvind says
इनती कम उम्र में कितने ही महान कर्म कर गये स्वामी विवेकानन्द.
भारत की धरती भरी हुई है ऐसे तेजस्वी पुरुषों से, जरुरत है कि हम अपने महान इतिहास को भूले नहीं.
सुन्दर लेख
Avinash Chauhan says
स्वामी जी के महान विचार सदैव हमारा एवं सम्पूर्ण मानव समाज का मार्ग दर्शन करते रहेंगे|Thank You so much Anita Ji for sharing a nice article about Swami Vivekananda.
Jugnu Nagar says
स्वामी जी के बारे में हमेसा ही पढ़ना बहुत अच्छा लगता हैं,इनके विचार हमेसा आपको ऊर्जा और जोश से भर देते हैं। में बहुत शुक्रगुजार हूँ आज ऐसा ही एक स्वामी जी का प्रेरणादायक संवाद पढ़ने को मिला। धन्यवाद अनीता जी इतना अच्छा आर्टिकल शेयर करने के लिए और आशा करता हूँ आप दृष्टिबाधित लोगों के लिए जो नेक काम कर रही है उसपर भगवान की कृपा बानी रहे।
Akshat Jain says
Bahut Accha Article Likha hai Aapne.. Mjaa Aa gya.. Thanks for Share