Savitribai Phule Biography in Hindi
सावित्रीबाई फुले की जीवनी
नाम –सावित्रीबाई फुले
जन्म – 3 जनवरी सन् 1831
मृत्यु – 10 मार्च सन् 1897
उपलब्धि – कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए अनेक कल्याणकारी काम किये.उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है.
जन्म व विवाह
सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फुले से हुआ।
![Mahatma Jyotiba Phule Life History in Hindi](https://www.achhikhabar.com/wp-content/uploads/2016/04/Mahatma-Jyotiba-Phule-Jayanti-महात्मा-ज्योतिबा-फुले.jpg?x85639)
Mahatma Jyotiba Phule
स्वयं हुईं शिक्षित और छेड़ी महिला-शिक्षा की मुहीम
महात्मा ज्योतिबा फुले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही दलित समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय थी और उन्हें पढ़ने लिखने की अनुमति तक नहीं थी। इस रीति को तोड़ने के लिए ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने सन् 1848 में लड़कियों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला स्त्री विद्यालय था।
सावित्रीबाई फुले कहा करती थीं ( Savitribai Phule Quote in Hindi)-
Sit idle no more, go, get education
अब बिलकुल भी खाली मत बैठो, जाओ शिक्षा प्राप्त करो!
समाज का विरोध
सावित्रीबाई फुले स्वयं इस विद्यालय में लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। उन्हें लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने न केवल लोगों की गालियाँ सहीं अपितु लोगों द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों की मार तक झेली। स्कूल जाते समय धर्म के ठेकेदार व स्त्री शिक्षा के विरोधी सावित्रीबाई फुले पर कूड़ा-करकट, कीचड़ व गोबर ही नहीं मानव-मल भी फेंक देते थे। इससे सावित्रीबाई के कपड़े बहुत गंदे हो जाते थे अतः वो अपने साथ एक दूसरी साड़ी भी साथ ले जाती थीं जिसे स्कूल में जाकर बदल लेती थीं। इस सब के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी व स्त्री शिक्षा, समाजोद्धार व समाजोत्थान का कार्य जारी रखा।
विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष
स्त्री शिक्षा के साथ ही विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया। साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके। आज देश में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति को देखते हुए उस समय कन्या शिशु हत्या की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना और उसे रोकने के प्रयास करना कितना महत्त्वपूर्ण था इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
विधवाओं की स्थिति को सुधारने और सती-प्रथा को रोकने व विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी उन्होंने बहुत प्रयास किए। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति कसे साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को न केवल आत्महत्या करने से रोका अपितु उसे अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल की और समय पर डिलीवरी करवाई। बाद में उन्होंने उसके पुत्र यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और ख़ूब पढ़ाया-लिखाया जो बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना।
कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फुले
उन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखीं-
- ‘काव्य फुले’
- ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’
बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करने के लिए वे कहा करती थीं-
“सुनहरे दिन का उदय हुआ आओ प्यारे बच्चों आज
हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज”
दलित उत्थान में अतुलनीय योगदान
सावित्रीबाई फुले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने जीवनकाल में पुणे में ही उन्होंने 18 महिला विद्यालय खोले। 1854 ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने एक अनाथ-आश्रम खोला, यह भारत में किसी व्यक्ति द्वारा खोला गया पहला अनाथ-आश्रम था। साथ ही अनचाही गर्भावस्था की वजह से होने वाली शिशु हत्या को रोकने के लिए उन्होंने बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी स्थापित किया।
समाजोत्थान के अपने मिशन पर कार्य करते हुए ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ ‘सत्यशोधक समाज’ नामक संस्था का निर्माण किया। वे स्वयं इसके अध्यक्ष थे और सावित्रीबाई फुले महिला विभाग की प्रमुख। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शूद्रों और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त कराना था। ज्योतिबा के कार्य में सावित्रीबाई ने बराबर का योगदान दिया। ज्योतिबा फुले ने जीवन भर निम्न जाति, महिलाओं और दलितों के उद्धार के लिए कार्य किया। इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले ने जो योगदान दिया वह अद्वितीय है। यहाँ तक की कई बार ज्योतिबा फुले स्वयं पत्नी सावित्रीबाई फुले से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे।
मृत्यु
28 नवम्बर 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के साथ ही सावित्रीबाई फुले ने भी सत्य शोधक समाज को दूर-दूर तक पहुँचाने, अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के अधूरे कार्यों को पूरा करने व समाज सेवा का कार्य जारी रखा। सन् 1897 में पुणे में भयंकर प्लेग फैला। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए सावित्रीबाई फुले स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च सन् 1897 को उनका भी देहावसान हो गया।
उस ज़माने में ये सब कार्य करने इतने सरल नहीं थे जितने आज लग सकते हैं। अनेक कठिनाइयों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद महिलाओं का जीवनस्तर सुधारने व उन्हें शिक्षित तथा रूढ़िमुक्त करने में सावित्रीबाई फुले का जो महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है उसके लिए देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
धन्यवाद
सीताराम गुप्ता
ए डी-106- सी, पीतम पुरा,
दिल्ली-110034
फोन नं: 09555622323
Email: [email protected]
सीता राम गुप्त जी एक प्रतिष्ठित लेखक हैं. आपको अपने कविता संग्रह ‘‘मेटामॉफ़ोसिस” तथा पुस्तक ‘‘मन द्वारा उपचार” के लिए जाना जाता है. आपकी रचनाएं देश भर के प्रसिद्द अख़बारों व पत्रिकाओं में निरंतर प्रकशित होती रही हैं.
We are grateful to Sitaram Gupta Ji for sharing great Women Social Activist Savitribai Phule Biography in Hindi.
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SAVITRIBY PHULEY EAK HEERA THI JISKI CHAMAK SE HAR NARI ME ROSHNI PHALA RAHITHI. JISESE NARI SAMAJ AVAM RASHTRA ME HAR GHAR ME SHISHA KI ROSHNI JAGMAGA
TI RAHE. SAVITRIBY KE LIYE DIL SE SADA RITHI RAHEGA YE SAMAJ AVSM RASTRA. BAR BAR NAMAN.
Pranam pujyaniya Mata savitribai phule Ji ko sat-Sat naman
Mata savitribai phule ji ne jis tarah kathinayio ke samana karte hue apne samaj ko upar uthane ka kam kiye hai
AAJ hamare desh ke ladkiya har kshetra me aage hai jinka shrey sirf aur sirf pujyaniya Mata savitribai Phule ji ko jata hai.
Mata savitribai phule Ji ka jivni padkar mera man dhanya ho gya………..
Thanks
Savitribai phule ke charano me sat sat naman aap ki jivani sarahaniy h
Param Pujyaniya Savitribai Phule ji ko mera sat sat naman aaj apki jivni pad kar man me ek urja ka nirvahan hua he apne samaj ke prati our un bicchde loge ke prati jo apne upar ho rahe atyacharo ko sahan kar kar ke jivan vyapan kar rahe he.
Param Pujyaniya Jyotiba Phule ji ko sat sat naman jinhone apni patni ko aage padayi karane ko protsahit kiya. Aaj unhi ke karan Savitribai phule ko yah samman mila he.