अकबर बीरबल की कहानियां
अकबर-बीरबल के किस्से कहानियां सदियों से हमारा मनोरंजन करते आ रहे हैं। आज ऐसी ही असंख्य किस्सों में से हम आपके साथ 5 बेहद मनोरंजक कहानियां साझा कर रहे हैं।
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कहानी #1: तोते की मौत
एक बार बादशाह अकबर किसी व्यापारी के पास से तोता खरीद कर लाये। वह तोता देखने में अत्यंत सुंदर था और उसकी बोली भी बड़ी मीठी थी। अकबर ने उस तोते की रखवाली के लिए एक सेवक को नियुक्त कर दिया, और उसे साफ़ हिदायत दे दी कि –
अगर तोता मरा तो तुम्हें मृत्यु दंड दे दूंगा। और इसके अलावा जिसने भी अपने मुंह से कहा कि ‘तोता मर चुका है‘ उसे भी मौत की सज़ा मिलेगी । इसलिए तोते की रखवाली अच्छे से करना।
सेवक तोते को ले कर चला गया। और बड़े उत्साह से उसकी देखभाल करने लगा। उसे कहीं ना कहीं यह डर सता रहा था कि अगर कहीं बादशाह का तोता मरा तो उसकी जान पर बन आएगी। और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ। तोता अचानक मर गया। अब सेवक के हाथ पाँव फूलने लगे। उसे बादशाह अकबर की कही बात याद थी। वह तुरंत दौड़ कर बीरबल के पास गया। और पूरी बात बताई।
बीरबल ने उस सेवक को पानी पिलाया और कहा, “चिंता मत करो। मै बादशाह से बात करूंगा.. तुम बस इस समय उस तोते से दूर हो जाओ। “
थोड़ी देर बाद बीरबल अकेले बादशाह के पास गए और बोले कि-
मालिक, आप का जो तोता था….वह…
इतना बोल कर बीरबल ने बात अधूरी छोड़ दी।
अकबर बादशाह तुरंत सिंहासन से खड़े हुए और बोले, क्या हुआ? तोता मर गया?
बीरबल बोले, “मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि आप का तोता ना मुंह खोलता है, ना खाता है, ना पीता है, ना हिलता है, ना डुलता है। ना चलता है, ना फुदकता है। उसकी आँखें बंद है। और वह अपने पिंजरे में लेटा पड़ा है। आप आइये और ज़रा उसे देखिये।”
अकबर और बीरबल फ़ौरन तोते के पास गए।
“अरे बीरबल ‘तोता मर चुका है।’ ये बात तुम मुझे वहीं पर नहीं बता सकते थे।”, अकबर क्रोधित होते हुए बोले।”उस तोते का रखवाला कहाँ है? मैं उसे अभी अपनी तलवार से सजाये मौत दूंगा।”
तब बीरबल बोले, “जी मैं अभी उस रखवाले को हाज़िर करता हूँ लेकिन ये तो बताइये कि आपको मृत्यु देने के लिए मैं किसे बुलाऊं।”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”, अकबर जोर से चीखे।
“जी, आप ही ने तो कहा था कि जो कोई भी बोलेगा कि ‘तोता मर चुका है’, उसे भी मौत की सजा दी जायेगी, और अभी कुछ देर पहले आप ही के मुख से ये बात निकली थी।”
अब अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया।
बीरबल की इस चतुराई से अकबर हंस पड़े और वे दोनों हँसते-हँसते दरबार लौट गए। अकबर ने तुरंत घोषणा कर दी की सेवक पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। तोता अपनी मौत मरा है, उसमें किसी का कोई दोष नहीं है।
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कहानी #2: आदमी एक खूबियाँ तीन
एक बार अकबर और बीरबल बागीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इन्सान को खोज सकते हो जिसमें अलग-अलग बोली बोलने की खूबी हों?
बीरबल ने कहा, क्यों नहीं, मै एक आदमी जानता हूँ जो तोते की बोली बोलता है, शेर की बोली बोलता है, और गधे की बोली भी बोलता है। अकबर इस बात को सुन कर हैरत में पड़ गए। उन्होने बीरबल को कहा किअगले दिन उस आदमी को पेश किया जाये।
बीरबल उस आदमी को अगले दिन सुबह दरबार में ले गए। और उसे एक छोटी बोतल शराब पीला दी। अब हल्के नशे की हालत में शराबी अकबर बादशाह के आगे खड़ा था। वह जानता था की दारू पी कर आया जान कर बादशाह सज़ा देगा। इस लिए वह गिड़गिड़ाने लगा। और बादशाह की खुशामत करने लगा। तब बीरबल बोले की हुज़ूर, यह जो सज़ा के डर से बोल रहा है वह तोते की भाषा है।
उसके बाद बीरबल ने वहीं, उस आदमी को एक और शराब की बोतल पिला दी। अब वह आदमी पूरी तरह नशे में था। वह अकबर बादशाह के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया। उसने कहा कि आप नगर के बादशाह हैं तो क्या हुआ। में भी अपने घर का बादशाह हूँ। मै यहाँ किसी से नहीं डरता हूँ।
बीरबल बोले कि हुज़ूर, अब शराब के नशे में निडर होकर यह जो बोल रहा है यह शेर की भाषा है।
अब फिर से बीरबल ने उस आदमी का मुह पकड़ कर एक और बोतल उसके गले से उतार दी। इस बार वह आदमी लड़खड़ाते गिरते पड़ते हुए ज़मीन पर लेट गया और हाथ पाँव हवा में भांजते हुए, मुंह से उल-जूलूल आवाज़ें निकालने लगा। अब बीरबल बोले कि हुज़ूर अब यह जो बोल रहा है वह गधे की भाषा है।
अकबर एक बार फिर बीरबल की हाज़िर जवाबी से प्रसन्न हुए, और यह मनोरंजक उदाहरण पेश करने के लिए उन्होने बीरबल को इनाम दिया।
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कहानी #3: तीन रूपये, तीन चीज़ें
एक मंत्री की उदास शक्ल देख बादशाह अकबर ने उसकी उदासी का कारण पूछा। तब मंत्री बोले कि आप सारे महत्वपूर्ण कार्य बीरबल को सौप कर उसे महत्ता देते हैं। जिस कारण हमें अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका ही नहीं मिलता है। इस बात को सुन कर अकबर ने उस मंत्री को तीन रूपये दिये और कहा कि आप बाज़ार जा कर इन तीन रुपयों को तीन चीजों पर बराबर-बराबर खर्च करें…यानी हर एक चीज पर 1 रुपये।
लेकिन शर्त यह है कि-
पहली चीज यहाँ की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहाँ की होनी चाहिए। और तीसरी चीज ना यहाँ की होनी चाहिए और ना वहाँ की होनी चाहिए।
दरबारी मंत्री अकबर से तीन रूपये ले कर बाज़ार निकल पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे। वह एक दुकान से दुसरे दुकान चक्कर लगाने लगा लेकिन उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो इस शर्त के मुताबिक एक-एक रूपये वाली तीन चीज़ें दे सके। वह थक हार कर वापस अकबर के पास लौट आया।
अब बादशाह अकबर ने यही कार्य बीरबल को दिया।
बीरबल एक घंटे में अकबर बादशाह की चुनौती पार लगा कर तीन वस्तुएँ ले कर लौट आया। अब बीरबल ने उन वस्तुओं का वृतांत कुछ इस प्रकार सुनाया।
पहला एक रुपया मैंने मिठाई पर खर्च कर दिया जो यहाँ इस दुनिया की चीज है। दूसरा रुपया मैंने एक गरीब फ़कीर को दान किया जिससे मुझे पुण्य मिला जो वहाँ यानी ज़न्नत की चीज है। और तीसरे रुपये से मैंने जुवा खेला और हार गया… इस तरह “जुवे में हारा रुपया” वो तीसरी चीज थी जो ना यहाँ मेरे काम आई न वहां ,ज़न्नत में मुझे नसीब होगी।
बीरबल की चतुराईपूर्ण बात सुनकर राजा के साथ-साथ दरबारी भी मुस्कुरा पड़े और सभी ने उनकी बुद्धि का लोहा मान लिया।
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कहानी #4: सबसे बड़ा मनहूस कौन?
एक बार अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े पानी मांगे जा रहे थे। आसपास कोई खास निजी सेवक था नहीं। सो महल का कूड़ा कचरा साफ करने वाले निम्न दर्जे के मामूली नौकर ने हिम्मत कर के बादशाह को पानी का गिलास दिया। अकबर उसे अपने कमरे में देख कर चौक गए। लेकिन प्यास इतनी लगी थी कि वे खुद को रोक नहीं पाए और पानी ले लिया।
तभी वहां अकबर के खास सेवक आ पहुंचे। उन्होने फौरन उस कचरा साफ करने वाले नौकर को कमरे से बाहर कर दिया। और सभी अकबर की चापलूसी करने लगे।
दोपहर हुई तो अकबर का पेट खराब हो गया। हकीम को बुलाया गया। पर फिर भी अकबर की हालत में सुधार नहीं हुआ। अब राज वैद्य आए, उनके साथ राज्य ज्योतिष भी थे। उन्होने कहा की शायद आप पर किसी मनहूस व्यक्ति का साया पड़ा है, इसीलिए आप की तबीयत खराब हुई है।
अकबर बादशाह को तुरंत उस कचरा साफ करने वाले नौकर का खयाल आया। उन्होने कहा कि आज सुबह मैंने उस कचरा साफ करने वाले के हाथ से पानी पिया था इसीलिए मेरे साथ यह सब हुआ है। उन्होने गुस्से में उस नौकर को मौत की सज़ा दे दी। थोड़ी ही देर में सिपाहीयों ने उस नौकर को कारागार में बंद कर दिया।
बीरबल को जब इस बात का पता लगा तो वह उस नौकर के पास गए और उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह उसे बचा लेंगे।
बीरबल तुरंत अकबर के पास गए और उनका हाल-चाल लिया। तब अकबर ने बताया कि-
हमारे राज्य का सब से बड़ा मनहूस मुझे बीमार कर गया।
यह बात सुन कर बीरबल हंस पड़े। तब अकबर को गुस्सा आया और वह बोले कि तुम्हें मेरी यह हालत देख कर मज़ा आ रहा है? तो बीरबल ने कहा कि नहीं नहीं महाराज एक बात पूछनी थी। अगर मैं उस नौकर से बड़ा मनहूस आप को ढूंढ कर दूँ तो आप क्या करेंगे? क्या आप इस नौकर को सज़ा से मुक्ति दे देंगे? अकबर ने तुरंत बीरबल की यह शर्त मान ली। और पूछा की बताओ उस नौकर से बड़ा मनहूस कौन है?
अब बीरबल बोले, “उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप खुद हैं। उस नौकर के हाथ पानी पीने से आप की तबियत खराब हुई, आप बिस्तर पर आ गए। लेकिन उसका तो सोचिए, वह तो आप की प्यास बुझाने आया था। आप की खिदमद कर रहा था। सुबह सुबह आप की शक्ल देखने से उसकी तो जान पर बन आई है। उसे तो मौत की सज़ा मिल गयी। तो इस लिए उस से बड़े मनहूस तो आप हुए। अब आप खुद को मौत की सज़ा मत दीजिएगा। चूँकि हम सब आप से बहुत प्यार करते हैं।”
बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुन कर, अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े हंसने लगे। उन्होने उसी वक्त उस गरीब नौकर को छोड़ देने के आदेश दिये। और उसे इनाम भी दिया। और मनहूसियत का अंधविश्वासी सुझाव देने वाले राज्य ज्योतिष को उसी वक्त घोड़े के तबेले में मुनीमगिरी के काम में लगा दिया गया।
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कहानी #5: अकबर का साला
अकबर का साला हमेशा से ही बीरबल की जगह लेना चाहता था। अकबर जानते थे कि बीरबल की जगह ले सके ऐसा बुद्धिमान इस संसार में कोई नहीं है। फिर भी जोरू के भाई को वह सीधी ‘ना’ नहीं बोल सकते थे। ऐसा कर के वह अपनी लाडली बेगम की बेरुखी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होने अपने साले साहब को एक कोयले से भरी बोरी दे दी और कहा कि-
जाओ और इसे हमारे राज्य के सबसे मक्कार और लालची सेठ – सेठ दमड़ीलाल को बेचकर दिखाओ , अगर तुम यह काम कर गए तो तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।
अकबर की इस अजीब शर्त को सुन कर साला अचंभे में पड़ गया। वह कोयले की बोरी ले कर चला तो गया। पर उसे पता था कि वह सेठ किसी की बातो में नहीं आने वाला ऊपर से वह उल्टा उसे ही चूना लगा देगा। हुआ भी यही सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक ढेला भी देने से इनकार कर दिया।
साला अपना सा मुंह लेकर महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली.
अब अकबर ने वही काम बीरबल को करने को कहा।
बीरबल कुछ सोचे और फिर बोले कि सेठ दमड़ीलाल जैसे मक्कार और लालची सेठ को यह कोयले की बोरी क्या मैं सिर्फ कोयले का एक टुकड़ा ही दस हज़ार रूपये में बेच आऊंगा। यह बोल कर वह तुरंत वहाँ से रवाना हो गए।
सबसे पहले उसने एक दरज़ी के पास जा कर एक मखमली कुर्ता सिलवाया। हीरे-मोती वाली मालाएँ गले में डाली। महंगी जूती पहनी और कोयले को बारीक सुरमे जैसा पिसवा लिया।
फिर उसने पिसे कोयले को एक सुरमे की छोटी चमकदार डिब्बी में भर लिया। इसके बाद बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और एक मेहमानघर में रुक कर इश्तिहार दे दिया कि बगदाद से बड़े शेख आए हैं। जो करिश्माई सुरमा बेचते हैं। जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज दिख जाते हैं और यदि उन्होंने कहीं कोई धन गाड़ा है तो उसका पता बताते हैं। यह बात शहर में आग की तरह फ़ैली।
सेठ दमड़ीलाल को भी ये बात पता चली। उसने सोचा ज़रूर उसके पूर्वजों ने कहीं न कहीं धन गाड़ा होगा। उसने तुरंत शेख बने बीरबल से सम्पर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने की पेशकश की। शेख ने डिब्बी के 20 हज़ार रुपये मांगे और मोल-भाव करते-करते 10 हज़ार में बात तय हुई।
पर सेठ भी होशियार था, उसने कहा मैं अभी तुरंत ये सुरमा लगाऊंगा और अगर मुझे मेरे पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूँगा।
बीरबल बोला, “बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं, चलिए शहर के चौराहे पर चलिए और वहां इसे जांच लीजिये।”
सुरमे का चमत्कार देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो गयी।
तब बीरबल ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ये सेठ अभी ये चमत्कारी सुरमा लगायेंगे और अगर ये उन्ही की औलाद हैं जिन्हें ये अपना माँ-बाप समझते हैं तो इन्हें इनके पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े धन के बारे में बताएँगे। लेकिन अगर आपके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की होगी और आप उनकी असल औलाद नहीं होंगे तो आपको कुछ भी नहीं दिखेगा।
और ऐसा कहते ही बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।
फिर क्या था, सिर खुजाते हुए सेठ ने आँखें खोली। अब दिखना तो कुछ था नहीं, पर सेठ करे भी तो क्या करे!
अपनी इज्ज़त बचाने के लिए सेठ ने दस हज़ार बीरबल के हाथ थमा दिये। और मुंह फुलाते हुए आगे बढ़ गए।
बीरबल फ़ौरन अकबर के पास पहुंचे और रुपये थमाते हुए सारी कहानी सुना दी।
अकबर का साला बिना कुछ कहे अपने घर लौट गया। और अकबर-बीरबल एक दूसरे को देख कर मंद-मंद मुसकाने लगे। इस किस्से के बाद फिर कभी अकबर के साले ने बीरबल का स्थान नहीं मांगा।
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Sangeeta gupta says
Bahut achchi kahaniyan h Akbar birbal Ki kahani hum bachpan me suna krte hain or apne bachcho Ko sunate h to hume hamara bachpan yaad aa jata h