Hindi Story on Patience | धैर्य व सब्र पर प्रेरणादायक कहानी
Hindi Story on Patience
अरविन्द के अन्दर धैर्य बिलकुल भी नहीं था. वह एक काम शुरू करता…कुछ दिन उसे करता और फिर उसे बंद कर दूसरा काम शुरू कर देता. इसी तरह कई साल बीत चुके थे और वह अभी तक किसी बिजनेस में सेटल नहीं हो पाया था.
अरविन्द की इस आदत से उसके माता-पिता बहुत परेशान थे. वे जब भी उससे कोई काम छोड़ने की वजह पूछते तो वह कोई न कोई कारण बता खुद को सही साबित करने की कोशिश करता.
अब अरविन्द के सुधरने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी कि तभी पता चला कि शहर से कुछ दूर एक आश्रम में बहुत पहुंचे हुए गुरु जी का आगमन हुआ. दूर-दूर से लोग उनका प्रवचन सुनने आने लगे.
एक दिन अरविन्द के माता-पिता भी उसे लेकर महात्मा जी के पास पहुंचे.
उनकी समस्या सुनने के बाद उन्होंने अगले दिन सुबह-सुबह अरविन्द को अपने पास बुलाया.
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अरविन्द को ना चाहते हुए भी भोर में ही गुरु जी के पास जाना पड़ा.
गुरु जी उसे एक बागीचे में ले गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बोले.
बेटा तुम्हारा पसंदीदा फल कौन सा है.
“आम” अरविन्द बोला.
ठीक है बेटा ! जरा वहां रखे बोरे में से कुछ आम की गुठलियाँ निकालना और उन्हें यहाँ जमीन में गाड़ देना.
अरविन्द को ये सब बहुत अजीब लग रहा था लेकिन गुरु जी बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं था.
उसने जल्दी से कुछ गुठलियाँ उठायीं और फावड़े से जमीन खोद उसमे गाड़ दीं.
फिर वे अरविन्द को लेकर वापस आश्रम में चले गए.
करीब आधे घंटे बाद वे अरविन्द से बोले, “जरा बाहर जा कर देखना उन गुठलियों में से फल निकला की नहीं!”
“अरे! इतनी जल्दी फल कहाँ से निकल आएगा… अभी कुछ ही देर पहले तो हमने गुठलियाँ जमीन में गाड़ी थीं.”
“अच्छा, तो रुक जाओ थोड़ी देर बाद जा कर देख लेना!”
कुछ देर बाद उन्होंने अरविन्द से फिर बाहर जा कर देखने को कहा.
अरविन्द जानता था कि अभी कुछ भी नहीं हुआ होगा, पर फिर भी गुरु जी के कहने पर वह बागीचे में गया.
लौट कर बोला, “कुछ भी तो नहीं हुआ है गुरूजी…आप फल की बात कर रहे हैं अभी तो बीज से पौधा भी नहीं निकला है.”
“लगता है कुछ गड़बड़ है!”, गुरु जी ने आश्चर्य से कहा.
“अच्छा, बेटा ऐसा करो, उन गुठलियों को वहां से निकाल के कहीं और गाड़ दो…”
अरविन्द को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वह दांत पीस कर रह गया.
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कुछ देर बाद गुरु जी फिर बोले, “अरविन्द बेटा, जरा बाहर जाकर देखो…इस बार ज़रूर फल निकल गए होंगे.”
अरविन्द इस बार भी वही जवाब लेकर लौटा और बोला, “मुझे पता था इस बार भी कुछ नहीं होगा…. कुछ फल-वाल नहीं निकला…”
“….क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूँ?”
“नहीं, नहीं रुको…चलो हम इस बार गुठलियों को ही बदल कर देखते हैं…क्या पता फल निकल आएं.”
इस बार अरविन्द ने अपना धैर्य खो दिया और बोला, “मुझे यकीन नहीं होता कि आपके जैसे नामी गुरु को इतनी छोटी सी बात पता नहीं कि कोई भी बीज लगाने के बाद उससे फल निकलने में समय लगता है….आपको बीज को खाद-पानी देना पड़ता है ….लम्बा इन्तजार करना पड़ता है…तब कहीं जाकर फल प्राप्त होता है.”
गुरु जी मुस्कुराए और बोले-
बेटा, यही तो मैं तुम्हे समझाना चाहता था…तुम कोई काम शुरू करते हो…कुछ दिन मेहनत करते हो …फिर सोचते हो प्रॉफिट क्यों नहीं आ रहा! इसके बाद तुम किसी और जगह वही या कोई नया काम शुरू करते हो…इस बार भी तुम्हे रिजल्ट नहीं मिलता…फिर तुम सोचते हो कि “यार! ये धंधा ही बेकार है!
एक बात समझ लो जैसे आम की गुठलियाँ तुरंत फल नहीं दे सकतीं, वैसे ही कोई भी कार्य तब तक अपेक्षित फल नहीं दे सकता जब तक तुम उसे पर्याप्त प्रयत्न और समय नहीं देते.
इसलिए इस बार अधीर हो आकर कोई काम बंद करने से पहले आम की इन गुठलियों के बारे में सोच लेना …. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उसे पर्याप्त समय ही नहीं दिया!
अरविन्द अब अपनी गलती समझ चुका था. उसने मेहनत और धैर्य के बल पर जल्द ही एक नया व्यवसाय खड़ा किया और एक कामयाब व्यक्ति बना.
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Sarabjeet kaur says
Aapki post hume hmesha inspire karti hai, thanks
Vijay Chandora says
NYC post bro
Good motivate tips
Parth says
very good story on patience
Deepa says
Very inspiration story
Rakesh Gupta says
बहुत ही प्रेरक कहानी
Yogacharya Santosh Kumar says
Nice one
vikas Kumar says
inspirational story
Nikhil Kumar says
very nice story
Ujjwal Gupta says
Hello Sir आपका ये Artical मुझे बहुत अच्छा लगा है और मुझे इससे कुछ सीखने के लिए मिला है आप sir इसी तरह का आर्टिकल पोस्ट करिएगा
vikash gupta says
bahut
achhi kahani hai
Gopal Mishra says
धन्यवाद विकास जी