अपने प्रयोजन में दृणविश्वास रखने वाले महात्मा गाँधी, इतिहास का रुख बदलने की क्षमता रखते थे। आज के दौर में भी उनके विचारों की प्रासंगिता उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी आजादी के पूर्व थी। शांति आंदोलन हो या पर्यावरण आंदोलन, स्वछता की बात हो या लोकतंत्र की, हर तरफ गाँधी जी के विचारों की सार्थकता नजर आती है।
आज देश में कुटीर उद्योग और खादी उद्योग की बढती प्रसिद्धी गाँधी जी की दूरदृष्टि का स्पष्ट उदाहरण है। गाँधी जी के विचारों को सार्थक रूप देने में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष योगदान है। आज देश गाँधी जी के संदेशों को आत्मसात करते हुए उनकी 150वीं जयंती मना रहा है।
इस अवसर पर गाँधी जी के कुछ प्रसंग सांझा करने का प्रयास कर रहे हैं:
गांधी – एक महात्मा
महात्मा गाँधी का भारतीय राजनीति में प्रवेश एक अभूतपूर्व घटना थी। भारत आने से पहले गाँधी जी दक्षिण अफ्रिका में मजदूरों के हित के लिये संघर्ष कर रहे थे। उन्होने वहाँ अप्रवासी भारतीयों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवज बुलंद की और इस आंदोलन को सत्याग्रह का रूप दिया।
उनके इसी मानवीय रूप को देखकर रबीन्द्रनाथ टैगोर ने उनको महात्मा कहा था। दरअसल दक्षिण अफ्रिका से भारत लौटने के पूर्व नेटाल में भारतीयों ने गाँधी जी के सम्मान में एक समारोह रखा था, उसमें गुजराती में लिखे अभिनंदन पत्र में सबसे पहले उनको महात्मा शब्द से सम्बोधित किया गया था।
गौरतलब है कि, भारतीय राजनीति में एक व्यक्ति ऐसा भी था जो गाँधी जी को महात्मा नही मानता था। जिन्ना गाँधी जी को महात्मा नही मानते थे। नागपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में गाँधी जी को जिन्ना द्वारा मिस्टर गाँधी समबोधित किया गया था। इसके बावजूद 1927 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका के नेता ही नही बल्की महात्मा थे। वे तीस करोङ भारतीय जनता के नेता बन चुके थे।
गाँधी जी को सार्वजनिक रूप से महात्मा बनाने का श्रेय एक मध्यम किसान राजकुमार शुक्ल को जाता है। किस्सा कुछ इस प्रकार है… राजकुमार शुक्ल गाँधी जी को चंपारण ले जाना चाहते थे किंतु गाँधी जी को ये पता नही था कि चंपारण कहाँ है, पता चलने पर भी गाँधी जी हिमालय की तराई में जाने को तैयार नहीं थे।
परंतु राजकुमार शुक्ल उनको वहां लेजाने के पिछे पङे हुए थे। गाँधी जी जहाँ भी जाते राजकुमार शुक्ल भी उनके पिछे-पिछे जाते आखिर गाँधी जी चंपारण जाने को मान गये। राजकुमार शुक्ल जब गाँधी जी को लेकर आधी रात को स्टेशन पर उतरे तो वहाँ उनको देखने के लिये सुशिक्षित युवाओं की भारी भीङ एकत्रित थी।
लोग गाँधी जी को पहले और दूसरे दर्जे के डिब्बे में ढूंढ रहे थे, तभी राजकुमार शुक्ल ने उन युवाओं को पास बुलाकर कहा कि, मेरे बगल में खङे माहात्मा गाँधी जी हैं। इस तरह पहली बार गाँधी जी को आम जनता के समक्ष महात्मा से समबोधित किया गया था।
गाँधी जी का पहला भाषण
भारत आने के बाद गाँधी जी ने अपना पहला भाषण 6 फरवरी 1916 को बनारस में दिया था, जहां लार्ड हार्डिंग ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का
शिलान्यास किया था। इस अवसर पर वहाँ देशभर से कई राजा-महाराजा शामिल हुए थे, वहाँ एनी बेसेंट भी उपस्थित थीं।
पं. मदन मोहन मालवीय जी के आग्रह पर गाँधी जी बोलने के लिये खङे हुए उनके पहले भाषण से वहां उपस्थित श्रोता हतप्रभ हो गये, उन्होने काशी में फैली गंदगियों और राजा महाराजाओं की वेषभूषा पर कटाक्ष किया।
हीरे जङित वेषभूषा और राजाओ की जीवनशैली की भर्तसना करते हुए कहा कि, ये जेवर दरिद्र जनता की अमानत हैं। उन्होने कहा था कि, जब भी देश में किसी शहर में भव्य आवास बनने की खबर सुनता हूं तो अनायास ही निकल पङता है कि, किसानों के धन का दुरुपयोग है। उन्होने घोषित किया था कि भारत को आजादी वकिलों, डाक्टरों, धनपतियों और समृद्ध जागीरदारों से नही बल्की किसानों के हाँथो होगी।
भाषण में जब उन्होने अपनेआप को अराजकतावादी कहा तो वहां उपस्थित लोग विस्मित हो गये। अहिंसा में विश्वास रखने वाले गाँघी जी का ये रूप आश्चर्यजनक था। भाषण के दौरान श्रीमति बेसेंट ने रोकने की कईबार कोशिश की यहां तक कि सभा की अध्यक्षता कर रहे दरभंगा के महाराज ने 5 मिनट में भाषण खत्म करने को कहा लेकिन गरीबों के मसीहा गाँधी जी तो तातकालीन अव्यवस्था को उजागर करते हुए विस्तार से बोले। परिणामस्वरूप अलवर के राजा वहाँ से चले गये, उनका अनुसरण करते हुए श्रीमति बेसेंट भी वहाँ से चली गईं। इस तरह गाँधी जी का पहला भाषण देशभक्ति से परिपूर्ण था।
इससे पहले वायसराय के सामने ऐसा भाषण किसी ने नही दिया था। श्रीमति बेसेंट ने बाद में माना था कि, गाँधी जी का भाषण विद्यार्थियों के लिए बारूद जैसा विस्फोटक सिद्ध हो सकता है। ऐसे ओजस्वी और निर्भिक वक्ता के लिये अलबर्ट आइंसटाइन ने कहा था कि-
आने वाली पीढियां बङी मुश्किल से विश्वास कर पायेगी कि, संसार में ऐसा व्यक्ति भी था।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, गाँधी जी भारतीय नोट पर छपी एक तस्वीर नही हैं बल्की उन्नत भारत का सपना हैं। उनके सिद्धांत उनके
आंदोलन आज भी देशहित के लिए प्रासंगिक है। महात्मा गाँधी का नाम ब्राजील, रूस, मैक्सिको, फ्रांस, घाना, अमेरिका, मिस्र, अरब देशों, जापान और ब्रिटेन के साहित्य को भी सुविकसित कर रहा है।
गाँधी जी की प्रसिद्धी और प्रासंगिता का अमुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, उनके जीवित रहते समय जितनी उनकी जीवनियां लिखी गई उससे कहीं अधिक उनकी मृत्यु के बाद लिखी गई है। यूरोप की विभिन्न भाषाओं में लगभग 500 जीवनियां हैं।
इनमें भी सर्वाधिक अंग्रेजी भाषा में है। पिछले कुछ वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गाँधी जी के प्रति इतनी उत्सुकता बढी है कि आज के अनेक महत्पूर्ण लेखक उनके जीवन कार्य और उनके विचारों पर लेखन कर रहे हैं। आज भारत ही नही बल्की पूरे विश्व में गाँधी जी के विचारों को मूर्तरूप देने की आवश्यकता है।
गाँधी जी को निम्न पंक्तियों से नमन करते हुए अपनी कलम को विराम देते हैं……
ऐसा मानव हुआ पूर्व कब, ढूंढ रहा इतिहास
जैसा हुआ एक भारत में गाँधी मोहन दास
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धन्यवाद !
अनिता शर्मा
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राजेन सिंह says
आपने इस आर्टिकल में वाकई गहरी जानकारी दी है, चाहे वो गांधीजी के पहले भाषण से रीलेटेड हो या ,
उन्ही के सिद्धान्तों को वर्तमान से जोड़कर देखा जाए,
क्योकिं हमें उस वक़्त की बातों को आज अपनाना चाहिए ।