30 जनवरी 1948 के दिन बिड़ला हॉउस, नयी दिल्ली में महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गयी थी। लकिन आज उनहत्तर साल बाद भी गाँधी जी का दर्शन व उनके सिद्धांत करोड़ों हिन्दुस्तानियों को प्रेरणा दे रहे हैं। आइये आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर हम जानते हैं:
महात्मा गाँधी के 7 सिद्धांत
Mahatma Gandhi Life Principles in Hindi
1. सत्य
गांधी जी सत्य के बड़े आग्रही थे, वे सत्य को ईश्वर मानते थे। एक बार वायसराय लार्ड कर्जेन ने कहा था कि सत्य की कल्पना भारत में यूरोप से आई है। इस पर गांधी जी बड़े ही क्षुब्ध हुए और उन्होंने वायसराय को लिखा, “आपका विचार गलत है। भारत में सत्य की प्रतिष्ठा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। सत्य परमात्मा का रूप माना जाता है।”
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“सत्य मेरे लिए सर्वोपरी सिद्धांत है। मैं वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना करने का प्रयत्न करता हूँ। परम सत्य तो परमात्मा हैं। परमात्मा कई रूपों में संसार में प्रकट हुए हैं। मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित और अवाक हो जाता हूँ। मैं सत्य के रूप में परमात्मा की पूजा करता हूँ। सत्य की खोज में अपने प्रिय वस्तु की बली चढ़ा सकता हूँ।”
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2. अहिंसा
अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है। वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
साँस लेने में अनेकों सूक्ष्म जीवों की हत्या हो जाती है। आँख की पलक उठाने, गिराने से ही पलकों पर बैठे जीव मर जाते हैं। सांप। बिच्छु को भी न मारें, पर उन्हें पकडकर दूर तो फेंकना ही पड़ता है। इससे भी उन्हें थोड़ी बहुत पीड़ा तो होती ही है।
मैं जो भी खाता हूँ, जो कपडे पहनता हूँ, यदि उन्हें बचाऊँ तो मुझसे जिन्हें ज्यादा जरूरत है, वे उन गरीबों के लिए काम आ सकते हैं। मेरे स्वार्थ के कारण उन्हें ये चीजें नहीं मिल पाती। इसलिए मेरे उपयोग से गरीब पडोसी के प्रति थोड़ी हिंसा होती है। जो वनस्पति मैं अपने जीने के खाता हूँ, उससे वनस्पति जीवन की हिंसा होती है। बच्चों को मारने, पीटने, डांटने में हिंसा ही तो है। क्रोध करना भी सूक्ष्म हिंसा है।
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3. ब्रम्हचर्य
जो मन, वचन और काया से इन्द्रियों को अपने वश में रखता है, वही ब्रम्हचारी है। जिसके मन के विकार नष्ट नहीं हुए हैं उसे पूरा ब्रम्हचारी नहीं कहा जा सकता। मन, वचन से भी विकारी भाव नहीं जागृत होने चाहिए। ब्रम्हचर्य की साधना करने वालों को खान-पान का संयम रखना चाहिए। उन्हें जीभ का स्वाद छोडना चाहिए और बनवट तथा श्रृंगार से दूर रहना चाहिए। संयमी लोगों के लिए ब्रम्हचर्य आसान है।
4. अस्तेय (चोरी न करना )
यह पांच व्रतों में से एक है। दूसरे की चीज उसके इजाजत के बिना लेना चोरी है। जो चीज हमें जिस काम के लिए मिली हो उसके सिवाय दूसरे काम में उसे लेना या जितने समय के लिए मिली हो, उससे ज्यादा समय तक उसे काम में लेना भी चोरी है। अपनी कम से कम जरूरत से ज्यादा मनुष्य जितना लेता है वह चोरी है। अस्तेय और अपरिग्रह मन की स्थितियाँ हैं। सबके लिए इतनी बारीकी से उसका पालन करना कठिन है। पर जैसे-जैसे मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकताएं घटाता जाएगा, वैसे-वैसे अस्तेय और अपरिग्रह की गहराई में पहुँच जाएगा।
5. अपरिग्रह
जिस प्रकार चोरी करना पाप है, उसी प्रकार जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह करना भी पाप है। इसलिए हमें खाने की आवश्यक चीजें, कपडे और टेबल, कुर्सी आदि चीजें आवश्यकता से ज्यादा इकठ्ठी करना अनुचित है। उदाहरण के लिए यदि आपका काम दूसरी तरह चल जाए तो कुर्सी रखना व्यर्थ है।
6. प्रार्थना
महात्मा जी को प्रार्थना में अटूट विश्वास था। दक्षिण अफ्रीका में रहते समय से ही उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्रार्थना प्रारंभ कर दी थी। प्रार्थना का मूल अर्थ माँगना है। पर गाँधी जी प्रार्थना का अर्थ ईश्वरीय स्तुति, भजन, कीर्तन, सत्संग, आध्यात्म और आत्मशुद्धि मानते थे। अंग्रेजी के कवी टेनिसन ने लिखा है, “प्रार्थना से वह सब कुछ संभव हो जाता है, जिसकी संसार कल्पना नहीं कर सकता।” गांधी जी का भी कुछ-कुछ ऐसा विश्वास था।
ईश्वर को किसी ने नहीं देखा है। उसे हमें ह्रदय में अनुभव करना है, इसी के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। गाँधी जी सत्य को ईश्वर मानते थे। वे सत्य का अर्थ परमात्मा निरूपित करते थे, जो संसार में प्रारम्भ से ही था, अभी है और भविष्य में भी रहेगा। आराधना ही प्रार्थना है। प्रार्थना में सत्य से एकाकार होने की ईच्छा रखनी चाहिए। जिस प्रकार विषयी अपने विषयों में एकरस होने को व्याकुल हो जाता है, उसी प्रकार हमें भी उस परम सत्य में एक रस होने के लिए व्याकुल हो जाना चाहिए। प्रार्थना में व्याकुलता आनी चाहिए।
7. स्वास्थ्य
महात्मा जी ने आजीवन स्वास्थ्य की चिंता की और उसके लिए तरह-तरह की चिंताओं का अवलंबन किया। वे औषधियों के घोर विरोधी थे। उन्होंने कुने की जल चिकित्सा, जुष्ट की प्रकृति की ओ़र लौटो और साल्ट की शाकाहार आदि पुस्तकें पढकर उसमें बतलाये हुए नियमों का पालन किया।
तो दोस्तों ये थे गाँधी जी के 7 प्रमुख सिद्धांत. इसके आलावा भी गाँधी जी के कई सिद्धांत थे जिनका वे पालन करते थे, उनके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
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किरण साहू
Founder: HamariSafalta.Com
We are grateful to Kiran Ji for sharing an informative Hindi article on Mahatma Gandhi’s Life Principles in Hindi
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VedHelp says
Very good article about Mahatma Gandhi…
youthfev says
सुना है कि महात्मा गाँधी जी शारीरिक रूप से कमजोर पर मन से इतने मजबूत कि जो ठान लेते थे , वो करते ही थे।
इनके बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
बहुत बहुत धन्यवाद मिश्रा जी !
Shiv says
गांधी जी के विचार रूपी समुद्र से आज भी मोती निनिकल रहे हैं, जरूरत है बस गहरे उतरने की।
shiv rathore says
we are very thankfully to someone for we improve my knowledge about a real time hero and a idle for many peoples. thanks.
mithun says
very nice blog website sir ji.thanks for shareing for this types topics.
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Sufalta says
महात्मा गाँधी एक महापुरुष रहे और आप लोग जो इतने अच्छे आर्टिकल्स शेयर करते है. इसके लिए मैं आपका आभारी हु खासकर गोपाल मिश्र जी का.
shiv Bachan Singh says
किरण जी आप बहुत अच्छा लिखते है | मैं आपका articles daily पढ़ता हूँ | और गोपाल सर की तो बात ही अलग हैं |
shilpa k says
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमें आझादी दिलायी, हमें भी उनके सिद्धांत पर चलना चाहिए.
Babita Singh says
एक आम इंसान कितना असाधारण हो सकता है इसका प्रमाण थे महात्मा गांधी जी । गांधी जी का सम्पूर्ण जीवन सत्य पर आधारित था और सत्य के सामने वे किसी भी बात से समझौता करने को तैयार नहीं होते थे | गाँधी जी के 7 प्रमुख सिद्धान्तों के बारे में बताने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
gyanipandit says
mahatma gandhi was one of the great leaders of the world,
Kiran ji, very informative article,
Gopal ji, thanks for share it…………..