Friends, AchhiKhabar.Com पर हम पहले ही बात कर चुके हैं कि म्यूच्यूअल फंड्स क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं.
म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश करते समय हमारे पास primarily 3 options होते हैं –
1) शेयर्स या स्टॉक्स में पैसा लगाएं.
2) बांड, कॉर्पोरेट डिबेंचर, government securities और मनी मार्केट instruments में निवेश करें, या
3) ऊपर के दोनों options को एक साथ use करें और कुछ पैसा शेयर्स में तो कुछ bonds, government securities इत्यादि में लगाएं.
पहले विकल्प के अनुसार इन्वेस्ट करने वाले म्यूच्यूअल फंड्स – Equity Mutual Funds कहलाते हैं. दूसरे विकल्प के साथ जाने वाले – Fixed Income Funds या debt-oriented mutual funds कहलाते हैं. और तीसरे विकल्प को use करने वाले – Balanced Mutual Funds कहलाते हैं.
आज इस लेख में हम बैलेंस्ड म्यूच्यूअल फंड्स के बारे में विस्तार से बात करेंगे.
क्या होते हैं बैलेंस्ड म्यूच्यूअल फंड्स?
What are Balanced Mutual Funds in Hindi
जैसा कि नाम से लगता है ये कुछ इस तरह के फंड्स होते हैं जो दो अलग-अलग चीजों के बीच संतुलन यानी बैलेंस बना के रखते हैं. और ये दो चीजें हैं equity और debt.
अतः , ऐसे म्यूच्यूअल फंड्स जो equity और debt दोनों में निवेश करते हैं; balanced mutual funds कहलाते हैं, बैलेंस्ड फंड्स को Hybrid Funds भी कहा जाता है. आम तौर पर ऐसे फंड्स 65 – 75% इन्वेस्टमेंट equities में करते हैं और बाकी का पैसा government bonds जैसे safe instruments में लगाते हैं.
नोट: इस आर्टिकल में हम Equity-oriented balanced funds की ही बात कर रहे हैं. कुछ Debt-Oriented Balanced Funds भी होते हैं जिसमे equity की अपेक्षा debt instruments में अधिक exposure होता है.
बैलेंस्ड फंड्स से कितना रिटर्न एक्स्पेक्ट किया जा सकता है?
अगर हम Reliance, HDFC, ICICI और Tata जैसे टॉप परफोर्मिंग बैलेंस्ड फंड्स की बात करें तो इन्होने पिछले पांच सालों में लगभग 17% का रिटर्न दिया है.
जबकि हम अगर इस तरह के सभी फंड्स का average लें तो 5 साल में लगभग 12% का रिटर्न मिला है.
हालांकि, past performance future performance को determine नहीं करती, पर फिर भी bank FDs, और savings account में पैसा रखने से अच्छा हम उसे mutual funds में इन्वेस्ट कर सकते हैं.
क्यों ज़रुरत पड़ी बैलेंस्ड फंड्स की?
बहुत से निवेशक, खासतौर पर retired employees या ऐसे individuals जो अच्छे रिटर्न्स तो चाते हैं पर अधिक रिस्क नहीं लेना चाहते अपना पूरा पैसा equities या शेयर मार्केट जैसे volatile avenue में नहीं लगाना चाहते.
ऐसे ही इन्वेस्टर्स की need पूरी करने के लिए बैलेंस्ड फंड्स बनाए गए ताकि एक optimum ratio में risky और risk-free investment का mix किया जाए और कम जोखिम के साथ अच्छा return देने का प्रयास किया जाए.
Balanced Funds में equity exposure 65% या उससे अधिक क्यों? कम क्यों नहीं?
Finance Bill 2018 में सरकार ने 1st April 2018 से इक्विटी रिलेटेड म्यूच्यूअल फंड्स पर long-term capital gains tax (LTCG) का प्रावधान कर दिया है, पहले इस पर कोई टैक्स नहीं लगता था. पर अब 1 लाख से अधिक का gain होने पर टैक्स लगाया जाएगा.
हालांकि, अभी भी यह टैक्स debt-oriented mutual funds की तुलना में बहुत कम है और साथ ही “long term” qualify करने के लिए इक्विटी रिलेटेड म्यूच्यूअल फंड्स में आपको बस 1 साल तक ही invested रहना पड़ता है. जबकि debt-oriented mutual funds में तीन साल रुकने के बाद ही वो as a “long-term” investment qualify करता है.
और इक्विटी रिलेटेड म्यूच्यूअल फंड् होने के लिए mandatory है कि at least fund का 65% एक्सपोज़र इक्विटीज में हो. इसलिए बैलेंस्ड फंड्स अपना portfolio कुछ इस तरह डिजाईन करते हैं कि वे कम से कम 65% investment में करें.
बैलेंस्ड फंड्स के advantage क्या-क्या हैं?
- इक्विटी फंड्स की तुलना में कम जोखिम.
- निवेशक को अलग-अलग इक्विटी और डेब्ट फंड्स में निवेश करने की ज़रुरत नहीं पड़ती.
- दो अलग अलग कैटेगरीज में निवेश करने से risk diversify हो जाता है, अगर कोई एक category bearish phase में जाती है तो दूसरी उसे संभाल लेती है.
- इक्विटी का लेवल मेन्टेन करने के लिए बैलेंस्ड फण्ड मैनेजर मार्केट में उछाल आने पर equity sell कर देता है और इस तरह जब मार्केट गिरता है तो equity buy कर लेता है. इस तरह का discipline investors के लिए फायदेमंद होता है.
- डेब्ट फंड्स की तुलना में better tax benefits.
- “Long-term” qualify करने के लिए छोटा होल्डिंग पीरियड, just 1 year.
- First-time equity investors के लिए उपयुक्त.
- रिटायरमेंट प्लानिंग, बच्चों की उच्च शिक्षा जैसे financial goals के लिए suitable.
बैलेंस्ड फंड्स में निवेश करते समय किन बातों का ध्यान रखें?
- इस बात को समझें कि बैलेंस्ड फंड्स risk-free नहीं बल्कि low-risk investment हैं.
- फण्ड चुनते समय ये ध्यान में रखें कि उसका कितना प्रतिशत हिस्सा equity और कितना debt में invest हो रहा है. बहुत से बैलेंस्ड फंड्स 80% तक एक्सपोज़र equity में कर देते हैं जो आपके low risk के objective के लिहाज से सही नहीं है. इसलिए इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को समझ कर ही फण्ड का चुनाव करें.
- यदि equity exposure 65% के आस-पास है तो भी ध्यान रखें कि कई बैलेंस्ड फंड्स अच्छा रिटर्न देने के चक्कर में बहुत से small cap stocks चुन लेते हैं, जो again आपके रिस्क को बढ़ा देते हैं. इसलिए यह ज़रूर समझ लें कि इक्विटी वाला हिस्सा किस तरह के स्टॉक्स में लगाया जा रहा है.
- फण्ड चुनते समय उसका track record ज़रूर चेक कर लें. सिर्फ पिछले साल या 1-2 साल की रिटर्न न देखिएं बल्कि ये समझें कि 5 to 10 year के time frame में फण्ड ने कैसा परफॉर्म किया है.
तो दोस्तों ये थी Balanced Mutual Funds के बारे में कुछ बेहद ज़रूरी बातें. I hope, ये article आपके लिए उपयोगी साबित होगा. Personal finance series के नए लेख के साथ फिर मुलाक़ात होगी.
Till then take care…save money…invest wisely!
Thank You
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Vikash says
Sir please suggest some books for mutual fund
vijay patel says
apne bhut achchhi jankariya btai hai dhnywad
rakesh Kumar sharma says
useful article
Yuvraj. says
Very useful information… thanks for the post.
Pratima Tyagi says
sir आपसे बोहोत कुछ सिखने को मिलता है में भी आप ही की तरह एक भारत की ब्लोगर बनना चाहती हूँ पर गाँव में रहने के कारन मदद करने बाला कोई नहीं सिखने के लिए बस मोबाईल ही सहारा है
Parth says
Thanks for this information!
p. manu sharma says
bahut sahi janakari di aapne mutualfund ke vishay me
Pradeep Chaudhary says
ज्ञानवर्धक पोस्ट
Rupesh Arvind Gandhi says
Good Informatiom about Mutualfund
thanks
Amit Gupta says
nice sirji