Marwari Business Secrets in Hindi
मारवाड़ियों की सफलता के 5 रहस्य
नमस्कार मैं हूँ अजय अजमेरा ! स्वागत करता हूँ आपका… आपके अपने Blog Achhikhabar(dot)com पर.
दोस्तों, एक बार एक सेठ के पास कुछ ठग स्विमिंग पूल के लिए चन्दा मांगने पहुंचे. सोचा मोटा आसामी है, बढ़िया चूना लगायेंगे.
सेठ ने ठगों की बातें सुनी फिर कहा, “आप लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हो बेटा… मेरी तरफ से चंदे में दो बाल्टी पानी लिख लो…” बेचारे ठगों को बाद में पता चला कि सेठ मारवाड़ी था.
वो मारवाड़ी …
जिसे नहीं बना सकता कोई अनाड़ी
क्योंकि वो होता है एक पक्का खिलाड़ी!
दोस्तों, ‘मारवाड़ी’ आज भारत की सबसे समृद्ध बिजनेस कम्युनिटी है. कहते हैं पैसे कमाने का हुनर उनके खून में दौड़ता है और वो किसी भी वस्तु से पैसे कमा सकते हैं, शायद इसीलिए भारत में जितने भी अरबपति हैं उसमे से 42% मारवाड़ी हैं.
यानी भारत का लगभग हर दूसरा अरबपति मारवाड़ी है.
- बिरला (Ghanshyam Das Birla)
- दमानी (Radhakishan Damani),
- बजाज ( Late Rahul Bajaj),
- मित्तल (LN Mittal)
इन मारवाड़ी बिजेनस घरानों को कौन नहीं जानता!
लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि सारे अरबपति मारवाड़ी पिछली जनरेशन के ही हैं तो जरा इन्हें भी देख लीजिये … फ्लिप्कार्ट से लेकर जोमैटो तक और OYO से लेकर OLA तक सभी के फाउंडर मारवाड़ी हैं.
यही नहीं Times of India, Hindustan Times, Dainik Bhaskar, Dainik Jagaran, और कई बड़े प्रिंट मीडिया houses मारवाड़ियों की ही हैं.
दोस्तों, आज इस पोस्ट में, मैं आपको मारवाड़ियों के सफल होने के पीछे के कुछ सॉलिड कारणों को बताऊंगा. विडियो अंत तक ज़रूर देखिएगा क्योंकि अगले 10 मिनट में आपको धंधे में सफल होने के बहुत से बेहतरीन टिप्स मिलने वाले हैं.
लेकिन सबसे पहले जानते हैं कि मारवाड़ी कहते किसे हैं?
मारवाड़ के रहने वाले लोगों को मारवाड़ी कहते हैं. मारवाड़ दरअसल, वो इलाका है जिसके अंतर्गत राजस्थान प्रांत के बाड़मेर, जोधपुर, पाली, जालोर और नागौर जिले आते हैं.
वैसे बता दूँ कि मैं खुद सीकर से हूँ जिसका कुछ हिस्सा मारवाड़ में ही आता है… शायद इसीलिए मेरे भाग्य में भी बिजनेस करना ही लिखा था.
दोस्तों, जहाँ मारवाड़ क्षेत्र के लोगों को मारवाड़ी कहा जाता है वहीं इनकी भाषा भी मारवाड़ी कही जाती है. Traditionallly मारवाड़ी शुद्ध शाकाहारी होते हैं.
कई बार आपने होटलों या ढाबों पर लिखा देखा होगा – मारवाड़ी भोजनालय जिसका अर्थ vegetarian से ही होता है. इनकी world फेमस dish दाल-बाटी-चूरमा शायद आपने भी खाई होगी.
दोस्तों, सैकड़ों सालों से मारवाड़ी लोग किसी न किसी तरह के व्यापार या फाइनेंस सम्बंधित काम करते आ रहे हैं. राजपूत, मुग़ल और यहाँ तक की अंग्रेज भी मारवाड़ियों की बिजनेस स्किल्स का लोहा मानते थे और अपने फायदे के लिए उन्हें कई सहूलियतें देते थे.
शायद आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इसिहास के कई युद्ध सिर्फ इसीलिए लड़े जा सके क्योंकि मारवाड़ियों ने इसके लिए पैसे उपलब्ध कराये.
यहाँ तक कि 1715 में मुगल शाशक फारुकसियार बंगाल के मानिक चंद नाम के एक मारवाड़ी से मिली financial help से इतने खुश हुए कि उन्होंने मानिक चंद को “जगत सेठ” यानी “Banker of the world” का ख़िताब दे दिया और तभी से इस परिवार को जगत सेठ के नाम से जाना जाने लगा.
कई इतिहासकार मानते हैं कि एक समय जगत सेठ परिवार दुनिया का सबसे अमीर परिवार था जिसके पास 1000 बिलियन पाउंड की सम्पत्ति थी जो ब्रिटिश एम्पायर की संपत्ति से भी अधिक थी…यहाँ तक कि आज के Bill Gates, इलोन मस्क, और जेफ़ बेजोस की कुल संपत्ति से भी जगत सेठ की net worth कहीं अधिक थी.
भारत की आज़ादी से पहले ही मारवाड़ी कई industries में अपनी धाक जमाने लगे थे, और आज़ाद भारत को industrialize करने का सबसे बड़ा श्रेय मारवाड़ियों को ही जाता है.
आज की बात करें तो बंसल, अग्रवाल, ओसवाल, गोयल, साराओगी, माहेश्वरी और ऐसे ही कई सरनेम्स के साथ मारवाड़ी पूरे भारत और पूरी दुनिया में व्यापार करते हैं.
दोस्तों, आइये अब जानते हैं उन qualities… को और उनसे मिलने वाली पांच सीखों को, जिनके कारण मारवाड़ी बने इतने बड़े व्यापारी.
नंबर 1: “जहाँ हो धंधो वहां को चल दो”
मारवाड़ क्षेत्र को देखा जाए तो वहां अपने आप में agriculture या बिजनेस की बहुत अधिक opportunity नहीं थी. इसलिए मारवाड़ी शुरुआत से ही migratory रहे हैं.
पुरानी कहावत भी है … जहाँ न पहुंचे बैलगाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी …
दोस्तों, सैकड़ों सालों से मारवाड़ी बिजनेस कम्युनिटी का मानना रहा है कि –
“ जहाँ हो धंधो वहां को चल दो”
ये शुरू से ही रिस्क टेकर्स रहे हैं और अपनी सीमा से निकल कर बिजनेस किया है.
यही वजह है कि आपको मारवाड़ी दिल्ली- कोलकाता -मुंबई – चेन्नई … जैसे बड़े-बड़े शहरों से लेकर भारत के छोटे-छोटे कस्बों में मिल जायेंगे. मारवाड़ी जहाँ जाते हैं वहीँ के हो जाते हैं, वे कुछ ही समय में नई कंडीशन को adapt कर लेते हैं.
जबकि आम तौर पर लोग अपना शहर छोड़ने से कतराते हैं… सोचते हैं “चार पैसा कमाओ” चैन से जियो.
लेकिन मारवाड़ी सोचता है … “चार का आठ बनाओ…और उसके लिए जहां जाना हो जाओ!”
यानी हमारी पहली सीख है: अवसरों के आने का इंतज़ार नहीं करो जहाँ अवसर हो वहां अग्रसर हो!
दोस्तों, मैं भी चाहता तो सीकर में कोई छोटी-मोटी नौकरी या काम-धंधा कर लेता …लेकिन मैं सीकर से निकल कर सूरत आया और आज अजमेरा फैशन सूरत का सबसे बड़ा टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरर बन चुका है जिसके साथ जुड़कर 80 हज़ार से भी अधिक वस्त्र विक्रेता कपड़ों का बिजनेस कर रहे हैं.
दोस्तों, अब आते हैं मारवाड़ियों से मिलने वाली दूसरी बड़ी सीख पर-
नंबर 2: खर्चो करो कम, बिजनेस में लगाओ दम
पुराने समय से ही मारवाड़ी एक-जुट होकर रहते थे और दूर-दराज के इलाकों में भी साथ जाते थे. ग्रुप में रहने के कारण उनके खर्चे कम होते थे.
जहाँ बहुत से लोग आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया के कारण परेशान रहते हैं वहीँ आज भी मारवाड़ी अठन्नी का काम चवन्नी में करने में विश्वास रखते हैं.
एक बार लोगों से पूछा गया कि अगर उन्हें किसी को गुस्से में बाहर निकलना हो तो वे क्या बोलेंगे…
एक ने कहा…. निकल जाओ यहाँ से फिर कभी मुंह मत दिखाना
एक ने अंग्रेजी में कहा – get out from here, i don’t want to see your face.
अंत में मारवाड़ी की बारी आई, उसने जोर से कहा… “बप्प”
जब मारवाड़ी अपने शब्द भी नहीं वेस्ट करते तो पैसा कहाँ से करेंगे.
मारवाड़ी करोडपति होते हुए भी इकॉनमी क्लास में ट्रेवल करते हैं, नार्मल होटल में रुकते हैं और सिम्पल खाना खाते हैं.
इन आदतों के कारण कई लोग मारवाड़ियों को कंजूस भी कहते हैं, लेकिन वास्तव में वे फिजूलखर्ची नहीं करते और कंजूस के उलट बहुत बड़े दानवीर होते हैं.
हज़ारों स्कूल, अस्पताल, धर्मशाला और मंदिरों का निर्माण मारवाड़ियों ने ही कराया है. यहाँ तक कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए सबसे अधिक 500 करोड़ रु का चंदा मारवाड़ियों के गढ़ राजस्थान से ही आया है.
दोस्तों, पैसे बचा कर चलना आपको अचानक आने वाली कठिनाइयों के लिए तैयार रखता है और आप unfavourable business environment में भी sustain कर जाते हैं.
इसलिए मारवाड़ी कम्युनिटी से हम दूसरी सीख ये ले सकते हैं कि –
“हर पैसे को एक ऐसे बीज के रूप में देखो जिससे कई रुपये पैदा किये जा सकते हैं और एक भी बीज बर्बाद मत होने दो.”
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अब आते हैं मारवाड़ियों से मिलने वाली तीसरी सीख पर:
नंबर 3: हिसाब में रखोगे कायदो तो बिजनेस में होगो फायदो
मारवाड़ियों के बारे में कहा जाता है कि वे कैलकुलेटर लेकर पैदा होते हैं… कहने का मतलब वे नंबर्स के साथ बहुत कम्फ़र्टेबल होते हैं….इसका कारण है कि शुरू से वे अपने घर में हर एक चीज का बारीकी से हिसाब-किताब होते हुए देखते हैं और आगे खुद भी यही करते हैं.
Birlas के बारे में तो कहा भी जाता है कि वे नंबर्स के इतने पक्के होते हैं कि financial statements देखकर ही समझ जाते हैं कि कम्पनी में कहाँ दिक्कत है और उसे कैसे ठीक करना है. GD Birla के बारे में तो कहा जाता है कि वे literally 1-1 पैसे का हिसाब रखते थे.
दोस्तों, जिस तरह से एक छोटा सा छेद बड़ी से बड़ी नाव को डुबो सकता है उसी तरह बिजेनस के छोटे-छोटे leakages, बिजनेस को डुबो सकते हैं.
Ajmera Fashion की बात करूँ तो एक समय था जब हमारा काफी रॉ मटेरियल वेस्टेज के रूप में निकल जाता था. और आश्चर्य की बात है कि इस बात का पता मुझे नहीं बल्कि मेरे भाई और अजमेरा फैशन के CFO Vijay Ajmera Ji को फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स देख कर लगा.
फिर हमने जर्मनी से आधुनिक मशीने मंगायीं और पूरी प्रोडक्शन लाइन स्ट्रीमलाइन की और वेस्टेज को 80% तक reduce किया. इसीलिए हम बाकी निर्माताओं की तुलना में अच्छी क्वालिटी का माल भी सस्ती दरों पर दे पाते हैं.
आप भी मारवाड़ियों से सीख लेते हुए-
“हिसाब में रहिये फिट और बिजनेस को बनाइये हिट!”
अब आते हैं चौथी सीख पर:
Number 4: धंधो से धंधो बनाओ पैसे को काम पे लगाओ
बिजेनस का दूसरा नाम रिस्क है. तो फिर रिस्क को कम कैसे किया जाए?
आम आदमी बोलेगा…. रिस्क लो ही मत…बिजेनस करो ही मत.
लेकिन मारवाड़ी बोलेगा…. कई सारे बिजेनस कर लो … एक को कुछ हुआ तो दूसरा रहेगा, दुसरे को हुआ तो तीसरा रहेगा.
इसीलिए बिरला हो या बजाज, दमानी हो या मित्तल इन सबने किसी एक बिजनेस से पैसा बनाने के बाद दुसरे बिजनेस में expand किया. सूरत में मेरे भी कई मारवाड़ी मित्र हैं जिन्होंने पहले सरिया, स्टेशनरी, ऑटो-पार्ट्स जैसे बिजनेस में सफलता पाई फिर कपड़ों का बिजनेस भी शुरू कर दिया.
मारवाड़ी कभी भी पैसे को आराम नहीं करने देता. कहते हैं अगर मारवाड़ी का पैसा बैंक में पड़ा नाम मात्र का ब्याज कमा रहा है तो उसे नीद नहीं आती वो जल्द से जल्द उसे ऐसी जगह लगाता है जहाँ उसे बेहतर रिटर्न मिले.
अगर कोई मारवाड़ी मकान या दुकान किराये पर देता है तो आप उसे अधिक दिनों तक खाली नहीं पायेंगे. क्योंकि हर एक खाली दिन मतलब पैसे की बर्बादी और पैसा तो बीज है और पैसे कमाने का… इसलिए मारवाड़ी इस बीज को बर्बाद नहीं करता.
दोस्तों, नेपाल के कई मारवाड़ी कपड़ा व्यापारी जो अजमेरा फैशन से जुड़े हुए हैं वे बताते हैं कि वहां अधिकतर मारवाड़ी अपने बिजनेस के अलावा किसी न किसी और धंधे में लोकल लोगों के साथ पार्टनरशिप में बिजनेस कर अच्छा पैसा कमाते हैं. In fact Nepal के एक मात्र बिलियनएयर, वहां के सबसे अमीर व्यक्ति, बिनोद चौधरी एक मारवाड़ी ही है.
कहने का मतलब है कि मारवाड़ी किसी न किसी तरह से multiple stream of income generate करने की कोशिश करते हैं और उनसे सीख लेते हुए हमें भी यही करना चाहिए.
और अंत में मारवाड़ियों से मिलने वाली पांचवीं और आखिरी सीख:
Number 5: बिजनेस पे करो फोकस धंधो होगो चोकस
जी हाँ, फोकस यानी ध्यान!
दोस्तों, ये मानी हुई बात है कि ” सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम जिस चीज पर ध्यान केन्द्रित करते हैं उस चीज में आश्चर्यजनक रूप से विस्तार होता है .”
मारवाड़ी अपना पूरा ध्यान बिजनेस पे लगाते हैं और इसीलिए वे इसमें कामयाब होते हैं. मारवाड़ी बच्चे बचपन से ही घर में धंधे की बाते सुनते हैं.
और कुछ बड़े होने पर गल्ले पर बैठने लग जाते हैं.
और लोगों की दुकाने जल्दी बंद हो सकती हैं लेकिन मारवाड़ी दुकान जल्दी खोलते और देर में बंद करते हैं.
GD Birla सिर्फ 12 साल की उम्र में बिजनेस में रमने लगे थे और 16 साल का होते-होते अकेले दम पर बिजनेस करने लगे.
मारवाड़ी बिजनेस को लेकर इतना अधिक focused होते हैं कि कभी भी बेकार के पचड़ों में नहीं पड़ते, अमूमन वे कोर्ट केसेस में अपना समय बर्बाद नहीं करते, कोई विवाद हो भी तो मिल बैठ कर उसे सुलझा लेते हैं. क्योंकि उनका यही सोचना है कि कुछ भी हो जाए धंधे पे आंच नहीं आनी चाहिए.
दोस्तों, ये थीं मारवाड़ियों से मिलने वाली पांच सीखें:
नंबर1: जहाँ हो धंधो वहां को चल दो
नंबर 2: खर्चो करो कम, बिजनेस में लगाओ दम
नंबर 3: हिसाब में रखोगे कायदो तो बिजनेस में होगो फायदो
नंबर 4: धंधो से धंधो बनाओ पैसे को काम पे लगाओ
नंबर 5: बिजनेस पे करो फोकस धंधो होगो चोकस
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आपसब लगातार आगे बढें और अपने काम में खूब सफलता पाएं, इसी मंगल कामना के साथ मैं इस पोस्ट को यहीं समाप्त करता हूँ.
बहुत-बहुतधन्यवाद.
अजय अजमेरा
फाउंडर & सीईओ
सूरत
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baap re itni achhi post…main khud ek marvadi hun par inta nhi pata tha