शिवाजी महाराज की कहानी | History of Shivaji Maharaj
शौर्य–पराक्रम की थी वह मूर्ती
थी रखी जिसने मातृभूमि की लाज
मुगल भी डरते थे जिससे
वह थे छत्रपति शिवाजी महाराज!
नमस्कार दोस्तों, मैं अजय अजमेरा स्वागत करता हूँ आपका, आपके अपने ब्लॉग achhikhabar(dot)com में. आज हम बात करेंगे मराठा साम्रज्य के संस्थापक और करोड़ों हिन्दुस्तानियों के दिलों पर राज करने वाले एक ऐसे शूरवीर की जिसके जीवन का एक-एक पल वीरता और देशभक्ति की कहानी कहता है. आज हम बात करेंगे छत्रपति शिवाजी महाराज की. History of Shivaji Maharaj
कहते हैं जब त्याग, तपस्या, शौर्य और साहस एक साथ मिल जाते हैं तो जन्म होता है एक ऐसे शेर का जिसकी दहाड़ से बड़े से बड़े दुश्मन भी दहल उठते हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज एक ऐसे ही शेर थे जिन्होंने ‘जय भवानी’ के सिंघनाद के साथ, अपनी तलवार के दम पर, मुगल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी थी. दोस्तों, अगर कोई मुझसे पूछता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन हिन्दुस्तान और हिन्दुओं के लिए कितना महत्त्वपूर्ण था तो मैं बस इतना कहता हूँ कि-
“मेरे महाराज भगवान नहीं थे लेकिन उनकी वजह से आज मंदिरों में भगवान हैं.” शिवाजी महराज ने ऐसे समय में अपनी तलवार उठाई थी जिस समय क्रूर मुगल शाशक औरंगजेब के सामने कोई नज़रें उठाने तक की हिम्मत नहीं करता था.
दोस्तों, छत्रपति शिवाजी महाराज पर बहुत से पोस्ट बन चुके हैं पर ये पोस्ट कुछ अलग होने वाला है क्योंकि इसमें मैं शिवाजी के जीवन से जुड़े दस ऐसे प्रश्नों के उत्तर दूंगा जिनके बारे में शायद आपने पहले न कभी सुना होगा न सोचा होगा. तो चलिए शुरू से शुरू करते हैं, यानी शिवाजी के जन्म से.
पहला प्रश्न: शिवाजी का जन्म पुणे के निकट शिवनेरी फोर्ट में हुआ था. तो क्या वह फोर्ट उनके पिताजी का था? या उनके पिताजी वहां काम करते थे?
कई लोग सोचते हैं कि शिवाजी साधारण परिवार में जन्मे थे. लेकिन सच ये है कि उनका जन्म एक समृद्ध क्षत्रिय परिवार में हुआ था. उनके पिताजी शाहजी भोंसले एक योद्धा थे.
यही नहीं शिवाजी के दादाजी मालोजी भोंसले भी एक शूरवीर योद्धा थे, जिन्होंने अलग-अलग समय पर अहमदनगर सल्तनत, बीजापुर सल्तनत, और मुगल साम्राज्य को सैन्य सेवाएँ प्रदान की. मालोजी की सेवा से प्रसन्न हो कर ही अहमदनगर सल्तनत ने उन्हें शिवनेरी फोर्ट जागीर के रूप में प्रदान की थी. यानी जब शिवाजी का जन्म हुआ था, तब शिवनेरी फोर्ट भोंसले परिवार का ही था.
दूसरा प्रश्न: आप ये तो जानते हैं कि स्वराज की स्थापना के लिए शिवाजी ने सिर्फ 16 साल की उम्र में तोरणा का किला अपने कब्जे में कर लिया था पर इसके पीछे उनकी सोच क्या थी और ताकतवर आदिल शाह की रियासत में आने वाले इस किले पर वह खुद को कैसे बनाये रख सके?
दोस्तों, शिवाजी का मानना था कि यह धरती मराठाओं की है इसलिए इसपर बनी हर चीज पर मराठाओं का ही अधिकार होना चाहिए. इसी सोच से उन्होंने अपने साथियों को प्रेरित किया और जब किले का सूबेदार अय्याशी में खोया हुआ था तब उन्होंने 1645 में इस पर हमला कर भगवा ध्वज लहरा दिया.
शिवाजी रणनीति बनाने में माहिर थे. उन्होंने सोचा कि अगर वे इस किले पर अधिकार कर लेंगे तो इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के कारण किसी भी सेना के लिए इस पर चढ़ाई करना मुश्किल होगा. और वे अपनी छोटी सेना के साथ भी इस किले की रक्षा कर सकेंगे और हमला करने वाली बड़ी से बड़ी सेना को भी धूल चटा सकेंगे.
इसके अलावा, एक किले पर अधिकार करना, उनके साथियों का आत्मविश्वास बढ़ा देगा, साथ ही नए साथियों को अपने साथ जोड़ना और स्वराज के लिए प्रेरित करना आसान होगा.
लेकिन आदिल शाह के होते हुए ये आसान नहीं था. क्योंकि जो भी हो, शिवाजी अभी एक किशोर थे, और आदिल शाह की मजबूत सेना का सामना करना आसान नहीं था. इसलिए शिवजी ने एक कूटनीतिक चाल चली.
उन्होंने खुद ही आदिल शाह को पत्र लिख भेजा कि किले का सूबेदार निकम्मा था, उसके बदल वे दोगुना लगान देंगे! आदिल शाह को यह प्रस्ताव पसंद आया, उसे लगा कि शिवाजी उसके अधीन रहते हुए दोगुना टैक्स दे रहे हैं तो इसमें उसी का फायदा है.
लेकिन उसे क्या पता था कि शिवाजी इस चाल से से बस अपने लिए और समय खरीद रहे थे, ताकि वे अपनी सेना को और मजबूत बना कर मराठा साम्राज्य की नीव मजबूत कर सकें. दोस्तों अगर मेरी तरह आप भी शिवाजी महाराज के सोच की दाद देते हैं तो पोस्ट को शेयर करते हुए आगे बढिएगा.
तीसरा प्रश्न: शिवाजी ने सूरत पर कब और क्यों हमला किया?
दोस्तों, सूरत मेरी कर्मभूमि! अजमेरा फैशन हो या अजमेरा ट्रेंड्स मैंने अपने हर बिजनेस की नीव यहीं सूरत में डाली है और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने कभी इस धरती को अपने चरणों से पावन किया था.
दरअसल उस समय सूरत मुगल साम्राज्य का सबसे समृद्ध बंदरगाह था. सूरत से ही मुगल साम्राज्य का व्यापार होता था और यहीं से हज यात्रियों के लिए जहाज रवाना होते थे. सूरत के समृद्ध इतिहास पर मैंने एक बहुत अच्छा विडियो बनया था, मैं लिंक दे दूंगा आप उसे भी ज़रूर देखियेगा.
दोस्तों, शिवाजी ने 1664 में पहली बार और फिर 1670 में दूसरी बार सूरत पर हमला किया. इस हमले के पीछे कई कारण थे. सबसे बड़ा कारण था मुगलों को आर्थिक चोट पहुंचाना.
दूसरा कारण था स्वराज की प्राप्ति के लिए अपनी सेना और नौसेना के लिए धन जुटाना. सोचिये, कितने दूरदर्शी थे शिवाजी महाराज, वे जानते थे कि एक मजबूत साम्राज्य के लिए नौसेना भी उतनी ही जरूरी है जितनी की थल सेना. इस हमले में उन्हें भारी मात्रा में धन और रत्न मिले, जिससे उन्होंने अपनी नौसेना को कई गुना मजबूत कर दिया. इसलिए उन्हें ‘Father of the Indian Navy‘ भी कहा जाता है.
चौथा प्रश्न: शिवाजी महाराज की तलवार ‘भवानी‘ के बारे में कहा जाता है कि वह देवी की कृपा से मिली थी. क्या यह सच है?
शिवाजी तीन तलवारों का प्रयोग करते थे – ‘भवानी तलवार’, ‘जगदंबा तलवार’ और ‘तुलजा तलवार’. भवानी तलवार को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि यह तलवार छत्रपति शिवाजी महाराज को स्वयं उनकी आराध्य कुलदेवी मां तुलजा भवानी ने साक्षात प्रकट होकर भेंट की थी.
इससे सम्बंधित कई मूर्तियाँ और पेंटिंग्स भी देखने को मिलती है. हालांकि, इतिहासकारों का मानना है कि वास्तव में यह तलवार महाराज जी ने ढेरों स्वर्ण मुद्राएं देकर बनवाई थी.
और शिवाजी ने इस तलवार का नाम भवानी इसलिए रखा क्योंकि वे माँ भवानी के परम भक्त थे. यह तलवार उनके साथ हर युद्ध में रही और आज भी सतारा के श्री छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय में सुरक्षित है. दोस्तों, तलवार के ओरिजिन को लेकर आपका क्या सोचना है ? कमेंट में ज़रूर बताएँ.
पांचवा प्रश्न: शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य की देख रेख कैसे करते थे?
दोस्तों मैं अकसर अपने वीडियोज में “टीम” की बात करता हूँ. आपको ‘कुछ’ करना है तो आप अकेले कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको ‘बहुत कुछ’ करना है तो आपको टीम बनानी ही पड़ेगी. आज दुनिया आश्चर्य करती है कि कैसे दो साल के अन्दर अजमेरा ट्रेंड्स की फ्रैंचाइज़ी पूरे भारत में छा गई है, तो इसका एक ही राज है – हमारी डेडिकेटेड स्ट्रोंग टीम. आज अजमेरा ट्रेंड्स ढाई सौ से अधिक शहरों में अपना प्रेजेंस बना रही है और entrepreneur बनने वाले युवओं का सपना साकार कर रही है.
दोस्तों, शिवाजी भी शुरू से एक मजबूत टीम में विश्वास रखते थे. उन्होंने अपने साम्राज्य के प्रशासन के लिए अष्ट प्रधान की स्थापना की. उनके दरबार में 8 मंत्री होते थे तथा हर एक मंत्री को एक पर्टिकुलर डिपार्टमेंट दे दिया जाता था.
ठीक वैसे ही जैसे आज जब कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनता है तो अपनी सरकार चलाने के लिए अलग-अलग विभागों के लिए मंत्री बनाता है- कोई रेल मंत्री, कोई फाइनेंस मिनिस्टर, तो कोई उद्योग मंत्री.
शिवाजी स्वयं राजा थे और उनके अष्टप्रधान सिस्टम में पेशवा- मंत्रियों का प्रधान होता था, आप इन्हें प्राइम मिनिस्टर कह सकते हैं. इसके अलावा-
- अमात्य- यानी फाइनेंस मिनिस्टर
- सचिव- secretary
- सुमंत- फॉरेन मिनिस्टर
- सेनापति- यानी डिफेन्स मिनिस्टर
- पण्डितराव- आप इन्हें धार्मिक मामलों का मंत्री कह सकते हैं.
- न्यायाधीश- यानी जज और अंत में
- वाकियानवीस – यह राजा की निजी सुरक्षा व निजी कार्यों का प्रमुख होता था.
सोचिये दोस्तों, कितना शानदार था शिवाजी का administration & मैनेजमेंट. History of Chhatrapati Shivaji Post के लिए एक लाइक तो बनता है, प्लीज ब्लॉग सबस्क्राइब करते हुए आगे बढें.
छठा प्रश्न: छत्रपति शिवाजी ने अफज़ल खान को मारने से पहले अपनी माँ जीजाबाई को क्या वचन दिया था ?
शिवाजी राजे ने अपनी माँ के चरणों को स्पर्श करते हुए कहा था –
“हजारों मंदिरों को ध्वस्त करने वाले, दीन-हीन हिन्दुओ को बलपूर्वक मुसलमान बनाने वाले, माताओ बहनों सम्मान भंग करने वाले, मेरे बड़े भाई सम्भाजी की धोखे से हत्या करने वाले, माता तुलजा भवानी का मंदिर ध्वस्त करने वाले, गौवध करने वाले, अफजल खाँ के बत्तीस दाँतों की भेंट कुलदेवी तुलजा भवानी को चढ़ाऊँगा.”
और उन्होंने ऐसा किया भी. धोखेबाज अफज़ल खान ने गले मिलने के बहाने शिवाजी की पीठ में खंजर भोंकने की कोशिश की, पर शिवाजी पहले से ही सतर्क थे.
उन्होंने अपने हाथ में “बाघ नख” पहना हुआ था…उनके भुजाओं में इतना बल था कि उन्होंने एक ही झटके में अफजल का पेट चीर दिया, तभी से से शिवाजी का बाघ नख शौर्य का प्रतीक बन गया.
सातवाँ प्रश्न: क्या शिवाजी मुसलमानों के शत्रु थे ?
बिलकुल नहीं, वे मुगलों के शत्रु थे पर मुसलमानों के नहीं. वास्तव में शिवाजी कभी भी किसी धर्म के विरोधी नहीं थे. वे केवल अन्याय और अत्याचार के विरोधी थे. शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम सेनापति थे. सिद्दी इब्राहिम, दौलत खान, इब्राहिम खान जैसे कई मुस्लिम अधिकारी उनकी सेना में उच्च पदों पर थे.
जब भी शिवाजी किसी क्षेत्र पर विजय प्राप्त करते, वहाँ की मस्जिदों और दरगाहों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते. उन्होंने अपनी सेना को कड़े आदेश दे रखे थे कि किसी भी धार्मिक स्थल को नुकसान न पहुंचाया जाए. जब भी उन्हें युद्ध में कुरान की प्रतियां मिलतीं, वे उन्हें सम्मानपूर्वक मुस्लिम विद्वानों को सौंप देते थे.
वास्तव में, शिवाजी का विरोध केवल उन शासकों से था जो अत्याचार करते थे, चाहे वे किसी भी धर्म के हों. उनका उद्देश्य स्वराज की स्थापना था, जहाँ हर धर्म के लोग शांति और सम्मान से रह सकें.
आठवाँ प्रश्न: शिवाजी के शौर्य के बारे में सब जानते हैं पर क्या उनके अन्दर चाणक्य जैसी कूटनीति भी थी और श्री कृष्ण जैसी चतुराई भी थी?
बिल्कुल थी ! शिवाजी महाराज सिर्फ एक वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक उच्च कोटि के strategist भी थे. उनकी चालें समझना सबके बस की बात नहीं थी. शाइस्ता खान पर रात में हमला करना हो या अफज़ल खान को मौत के घाट उतारना या फिर औरंगजेब कि कैद से गायब होना, उनकी चतुराई के कई किस्से मशहूर हैं.
इतिहासकार उन्हें ‘escape artist’ भी कह कर पुकारते हैं.
वहीँ मुगल उन्हें ‘mountain rat’ कहा करते थे… जो ना जाने किधर से आता था और उन्हें तबाह कर ना जाने पहाड़ियों में कहाँ खो जाता था. शिवाजी राजे को साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग करने में महारथ हासिल था…. उन्होंने कई किलों पर तो बिना तलवार उठाये ही कब्ज़ा कर लिया था. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि उन्होंने एक मजबूत गुप्तचर नेटवर्क बना रखा था. इसमें व्यापारी, भिखारी, कलाकार हर तरह के लोग शामिल थे. वे बारिश और रात के अंधेरे का फायदा उठाकर छापामार युद्ध करते थे.
आप ही सोचिये एक छोटी सी सेना के बल पर उन्होंने इतने मजबूत मुगल साम्राज्य को कैसे झकझोरा होगा. और शायद आपको पुरन्दर की संधि के बारे में भी पता होगा…तब “वीर” शिव’जी ने 12 किले अपने पास रखने के बाद बाकी 23 किले मुग़ल साम्राज्य को सौंप दिए थे.
उन्हें पता था कि कब हाथ मिलाना है और कब तलवार उठाना है, कब सिर उठाना है और कब दुसरे को सम्मान देना है, कब संधि प्रस्ताव मानना है और कब उसे ठुकराना है. शिवाजी का जीवन हमें सिर्फ बल नहीं बुद्धि के इस्तेमाल की भी सीख देता है. वह हार्ड वर्क के साथ साथ स्मार्ट वर्क की भी सीख देता है.
नौवां प्रश्न: छत्रपति शिवाजी महाराज महिलाओं के सम्मान को लेकर क्या सोचते थे?
शिवाजी महाराज के जीवन में महिलाओं का सम्मान सर्वोपरि था. उनका मानना था कि जिस समाज में नारी का सम्मान नहीं होता, वह समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता. इस बात के कई ऐतिहासिक प्रमाण हैं:
जब शिवाजी की सेना ने कल्याण पर विजय प्राप्त की, तब उनके सैनिकों ने मुल्ला अहमद की पत्नी को बंदी बना लिया. जब उसे शिवाजी के सामने लाया गया, तो शिवाजी ने कहा – “अगर मेरी माँ जीजाबाई किसी की बंदी होतीं तो मैं क्या चाहता?” और उन्होंने न सिर्फ उस महिला को सम्मान के साथ मुक्त किया, बल्कि सुरक्षित उसके घर तक पहुंचवाया.
एक और प्रसंग याद आता है – एक बार उनके सैनिक किसी गाँव के मुखिया को पकड़ कर ले लाये. उसपर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था. उस समय शिवाजी मात्र 14 वर्ष के थे, पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था.
उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुना दिया , “इसके दोनों हाथ , और पैर काट दो , ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती. दोस्तों, हम भी अजमेरा फैशन में महिलाओं के सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं. अजमेरा फैशन की टैग लाइन ही है – सम्मान भरी सुन्दरता!
हमारा मानना है कि हर एक महिला, चाहे वो जिस वर्ग से हो, जिस धर्म से हो, आत्मनिर्भर बन कर अपना सम्मान बढ़ा सकती है. हमें गर्व है कि आज हमारे साथ जुड़कर दस हज़ार से अधिक महिलाएं साड़ियों का बिजनेस कर रही हैं, और उनमे से कईयों ने अपने शो रूम भी खोल लिए हैं.
दोस्तों, शिवाजी से सीख लेते हुए आज के भारत में भी महिलाओं को पूरा सम्मान मिलना चाहिए. मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि आज अगर शिवाजी हमार बीच होते तो शायद पूरे भारत में महिलाएं बिना डर के कहीं भी आ जा पातीं और जो चाहे वो शिक्षा प्राप्त कर पातीं और और जो चाहे वो बिजनेस कर पातीं.
और अब अन्त में
दसवां और आखिरी प्रश्न: छत्रपति शिवाजी महाराज ने मृत्यु से पहले अपने बेटे संभाजी और राजाराम को बुलाकर क्या कहा ?
दोस्तों, 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज ने अंतिम सांस ली. कई दिनों से उनकी तबीयत खराब थी, कहा जाता है कि वे तीव्र ज्वर से पीड़ित थे. मृत्यु से कुछ दिनों पहले उन्होंने अपने बेटे संभाजी और राजाराम को बुलाकर कहा था –
- मराठा साम्राज्य की रक्षा करना
- प्रजा का ध्यान रखना
- धर्म की रक्षा करना
- और सभी धर्मों का सम्मान करना
अंतिम समय में भी उनकी चिंता अपने राज्य और प्रजा की ही थी. जब उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, तब भी उनका मन स्वराज की रक्षा के लिए धड़क रहा था.
उनकी मृत्यु के बाद पूरे मराठा साम्राज्य में शोक की लहर दौड़ गई. एक ऐसा वीर योद्धा, जिसने मात्र 50 वर्ष की आयु में इतना विशाल साम्राज्य खड़ा किया, जिसने मुगलों को चुनौती दी, जिसने हिंदवी स्वराज का सपना देखा और उसे साकार किया, वह अब नहीं रहा.
लेकिन शिवाजी महाराज की विरासत आज भी जीवित है. उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आज भी लाखों लोग देश और धर्म की सेवा में लगे हैं. वे भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं और हमेशा हमेशा करते रहेंगे.
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जय भवानी
अजय अजमेरा
फाउंडर & सीईओ
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A truly inspiring story of Shri Shinnaji Maharaj! His bravery, loyalty, and dedication to Swarajya reflect the true spirit of a warrior. Stories like these remind us of our rich history and the sacrifices made for our freedom. A great tribute to an unsung hero of the Maratha empire.
Gazab bhai …maja aa gaya
nice thankss
Jai Bhavani Jai Chhatrapati Shivaji Maharaj